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Sambhav-2024

  • 19 Dec 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    दिवस 26

    Q.2 उपयुक्त उदाहरणों के साथ समकालीन समाज की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने में साहित्य की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारतीय संदर्भ में साहित्य की भूमिका का परिचय दीजिये।
    • भारत में सामाजिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने में साहित्य के योगदान पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    भारतीय संदर्भ में साहित्य की भूमिका विभिन्न ऐतिहासिक कालखंडों में अपने-अपने समय की सामाजिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने में सहायक रही है। प्राचीन से लेकर मध्यकालीन और आधुनिक भारत तक, साहित्य ने एक दर्पण के रूप में कार्य किया है जो प्रत्येक युग के लोकाचार, मूल्यों और चुनौतियों को दर्शाता है।

    मुख्य भाग:

    प्राचीन भारत:

    • साहित्य में मुख्य रूप से वेद शामिल हैं, जिनमें ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद शामिल हैं।
      • यह उस समय की सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं, अनुष्ठानों और दार्शनिक विचारों को दर्शाता है।
    • अशोक के अभिलेख, साहित्य के प्रारंभिक रूप हैं, जो नैतिक तथा दार्शनिक सिद्धांतों के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
      • जैसे अशोक के शिलालेख सामाजिक कल्याण एवं धार्मिक सहिष्णुता पर बल देते हैं।

    गुप्त काल:

    • इस समय संस्कृत नाटक का काफी विकास हुआ था। कालिदास के नाटक विशेषकर "शकुंतला" और "मालविकाग्निमित्रम्", इस संबंध में अनुकरणीय हैं।
    • आर्यभट्ट एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे, जो गुप्त काल से संबंधित थे। उनके कार्यों, विशेष रूप से "आर्यभटीय" ने गणितीय और खगोलीय ज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

    मध्यकालीन भारत:

    • दिल्ली सल्तनत (1206 ई. - 1526 ई.):
      • एक प्रमुख सूफी कवि, अमीर खुसरो ने फारसी में लेखन किया तथा भारतीय एवं फारसी सांस्कृतिक तत्वों के संश्लेषण में योगदान दिया।
      • उनकी रचनाओं में "किरान-उस-सादैन" और "खज़ैन-उल-फ़ुतुह" शामिल हैं।
    • मुगल काल:
      • अकबर के दरबार में अबुल-फजल द्वारा अकबरी और आइन-ए-अकबरी की रचनाएँ की गईं, जिसमें तत्कालीन प्रशासन एवं सामाजिक संरचना को दर्शाया गया है।

    भक्ति आंदोलन:

    • कबीर की कविताओं ने सामाजिक ऊँच-नीच और धार्मिक रूढ़िवादिता को चुनौती दी थी।
    • गुरु नानक की रचनाओं में समानता और एकता पर बल दिया गया था।
    • अलवार और नयनार दक्षिण भारत में कवि-संतों के समूह थे जिन्होंने विष्णु (अलवार) और शिव (नयनार) की प्रशंसा करते हुए भक्ति भजनों की रचना की। उनकी रचनाएँ क्रमशः दिव्य प्रबंधम (तमिल) और तेवरम (तमिल) में संग्रहित हैं।

    सामाजिक सुधार आंदोलन:

    • राजा राम मोहन राय के "एकेश्वरवादियों को उपहार" जैसे ग्रंथों ने अंधविश्वासों की आलोचना करने के साथ सामाजिक सुधार की वकालत की।
    • बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के "आनंदमठ" ने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष पर प्रकाश डाला।

    स्वतंत्रता के बाद:

    • "गोदान" जैसी प्रेमचंद की कृतियों ने स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों को चित्रित किया।
    • सलमान रुश्दी की "मिडनाइट्स चिल्ड्रन" औपनिवेशिक भारत के बाद के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तनों को दर्शाती है।

    निष्कर्ष:

    भारतीय साहित्य ने प्रत्येक ऐतिहासिक काल की विविध सामाजिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लेखकों और उनके कार्यों ने इतिहासकार के रूप में कार्य किया है, जो अपने समय के सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं आर्थिक पहलुओं के संबंध में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। साहित्य का विकास भारतीय समाज की गतिशील प्रकृति को प्रतिबिंबित करता है, जिससे इसकी ऐतिहासिक विरासत की गहरी समझ में योगदान मिलता है।

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