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Sambhav-2024

  • 18 Dec 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    दिवस 25

    Q.1 सांस्कृतिक विरासत, एकता एवं विविधता को संरक्षित करने तथा सामाजिक जागरूकता और शैक्षिक मूल्यों को बढ़ावा देने में पारंपरिक भारतीय रंगमंच रूपों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पारंपरिक भारतीय रंगमंचों का परिचय दीजिये।
    • सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक जागरूकता के संरक्षण में पारंपरिक भारतीय रंगमंचों पर चर्चा कीजिये।
    • एकता विविधता और विविध मूल्यों को बढ़ावा देने में पारंपरिक भारतीय रंगमंच कलाओं का वर्णन कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    पारंपरिक भारतीय रंगमंच रूपों ने सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने तथा सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत की समृद्ध संस्कृति में गहराई से निहित ये कला रूप ऐतिहासिक विरासत के भंडार होने के साथ समकालीन सामाजिक मुद्दों को हल करने के क्रम में शक्तिशाली माध्यम के रूप में कार्य करते हैं।

    मुख्य भाग:

    सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण:

    • पारंपरिक भारतीय रंगमंच रूप (जैसे कि नाटक, यक्षगान और कथकली) परंपराओं को संरक्षित करने में सहायक रहे हैं।
    • कथा कहने, संगीत तथा नृत्य के माध्यम से इन रूपों ने सांस्कृतिक मूल्यों, मिथकों एवं ऐतिहासिक घटनाओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाया है।
    • इनका प्रदर्शन अक्सर पौराणिक कहानियों, महाकाव्यों एवं ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाता है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत से गहराई से संबंधित हैं।
    • उदाहरण के लिये, भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्य हिंदू पौराणिक कथाओं का जटिल विवरण प्रस्तुत करने के साथ भारतीय संस्कृति के सौंदर्य और आध्यात्मिक आयामों को प्रदर्शित करते हैं।

    सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा मिलना:

    • पारंपरिक रंगमंच समाज के गुणों और अवगुणों को चित्रित करके समाज के लिये एक दर्पण के रूप में कार्य करता है। पारंपरिक नाटकों के द्वारा व्यंग्यात्मक तत्त्वों में अक्सर सामाजिक मानदंडों की आलोचना होने के साथ जातिगत भेदभाव, लैंगिक असमानता एवं सामाजिक अन्याय जैसे मुद्दों को शामिल किया जाता है।
    • नुक्कड़ नाटक और तमाशा जैसे लोक रंगमंच ऐसे माध्यम हैं जो समकालीन सामाजिक मुद्दों को संबोधित करते हुए रंगमंच को ज़मीनी स्तर पर लाते हैं। जीवंत प्रदर्शन के माध्यम से ये कला रूप लोगों के विचारों को प्रसारित करने के साथ सामाजिक संवाद को प्रोत्साहन देते हैं।

    सांस्कृतिक एकता और विविधता:

    • पारंपरिक रंगमंच भारतीय संस्कृति की विविधता को प्रदर्शित करते हैं। यह भाषाई, क्षेत्रीय और सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद एकता एवं समन्वय का प्रदर्शन करते हैं। ये एक एकीकृत शक्ति के रूप में कार्य करते हुए अपनेपन तथा राष्ट्रीय पहचान की भावना को बढ़ावा देते हैं।
    • भारत में प्रत्येक क्षेत्र का अपना अनूठा पारंपरिक रंगमंच है, जो उस क्षेत्र की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का प्रतिनिधित्व करता है। उदाहरण के लिये, जम्मू-कश्मीर का भांड पाथेर या गुजरात का भवई इनकी सांस्कृतिक संरचना से प्रेरित हैं।

    शैक्षिक मूल्य:

    • पारंपरिक नाटक अक्सर दर्शकों में नैतिक शिक्षा का प्रसार करते हैं। इसमें कहानी कहने का तरीका दर्शकों को भावनात्मक रूप से बाँधे रखता है, जिससे यह मूल्यों एवं सिद्धांतों को प्रदान करने का एक प्रभावी उपकरण बन जाता है।
    • ऐतिहासिक घटनाओं और पौराणिक कथाओं के अभिनय के माध्यम से पारंपरिक रंगमंच एक शैक्षिक मंच बन जाता है, जो भारत के इतिहास, दर्शन एवं सांस्कृतिक लोकाचार के संबंध में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

    निष्कर्ष:

    पारंपरिक भारतीय रंगमंच रूप राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में सहायक होने के साथ सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने के क्रम में शक्तिशाली माध्यम के रूप में भी कार्य कर रहे हैं। ये कला रूप भारत के गतिशील सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य में विकसित तथा अनुकूलित हुए हैं।

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