Q.2 भारत में यूनेस्को द्वारा मूर्त विश्व धरोहर स्थलों को मान्यता देने का क्या महत्त्व है? (150 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- यूनेस्को और विश्व स्तर पर सांस्कृतिक विरासत को पहचानने एवं संरक्षित करने में इसकी भूमिका के संक्षिप्त परिचय के साथ उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- यूनेस्को द्वारा यह मान्यता देने के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल, मानवता के लिये उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के स्थान होते हैं, जिन्हें 1972 के विश्व धरोहर सम्मेलन के तहत संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा पहचाना तथा संरक्षित किया जाता है।
मुख्य भाग:
यूनेस्को की स्वीकृति का महत्त्व:
- सांस्कृतिक:
- यूनेस्को की मान्यता प्राचीन सभ्यताओं, धर्मों, भाषाओं और कलात्मक परंपराओं को दर्शाते हुए भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के साथ बढ़ावा देती है।
- इससे भारतीयों में गर्व और पहचान की भावना को बढ़ावा मिलता है जिससे विरासत के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ती है।
- आर्थिक:
- इससे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक आकर्षित होने के साथ स्थानीय समुदायों के लिये राजस्व एवं रोज़गार का सृजन होता है।
- निवेश को प्रोत्साहन मिलने से इससे बुनियादी ढाँचे का विकास होता है जिससे निवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- पर्यावरण:
- पारिस्थितिकी संतुलन और स्थिरता के लिये प्राकृतिक संसाधनों एवं जैवविविधता के संरक्षण तथा प्रबंधन को बढ़ावा मिलता है।
- इससे संबंधित स्थलों के पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आने के साथ नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहन मिलता है।
- कूटनीतिक:
- इससे विविध सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत वाले देश के रूप में भारत की वैश्विक छवि को बढ़ावा मिलता है।
- इससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं संवाद को बढ़ावा मिलने के साथ साझा विरासत वाले देशों के बीच समन्वय एवं शांति को बढ़ावा मिलता है।
निष्कर्ष:
यूनेस्को द्वारा भारत में विश्व धरोहर स्थलों को मान्यता देने से सांस्कृतिक संरक्षण, आर्थिक विकास एवं वैश्विक समन्वय पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इससे विश्व भर में सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को मज़बूती मिलती है।