Q.1 पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प कलाओं में शामिल कारीगरों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। इन शिल्प कलाओं के सांस्कृतिक महत्त्व को संरक्षित करते हुए इन कारीगरों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देने हेतु रणनीतियाँ बताइये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- देश की सांस्कृतिक विरासत में पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प के महत्त्व का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प में कारीगरों के समक्ष आने वाली चुनौतियों तथा सामाजिक-आर्थिक कल्याण को बढ़ावा देने की रणनीतियों पर चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प देश की सांस्कृतिक विरासत में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो पीढ़ियों से चले आ रहे कौशल और कलात्मकता का प्रदर्शन करते हैं। हालाँकि इन शिल्पों में शामिल कारीगरों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उनकी आजीविका और इन सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण दोनों को खतरे में डालती हैं।
मुख्य भाग:
पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प में कारीगरों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ:
- बाज़ार तक पहुँच और वैश्वीकरण: कारीगरों को स्थानीय और वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर अन्य उत्पादित विकल्पों से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जिससे हस्तनिर्मित शिल्प की मांग में गिरावट आई है।
- आर्थिक भेद्यता: अनियमित आय, वित्तीय साक्षरता की कमी और ऋण तक सीमित पहुँच से कारीगरों के बीच वित्तीय अस्थिरता बढ़ती है।
- तकनीकी विस्थापन: आधुनिक मशीनरी से पारंपरिक शिल्प के समक्ष खतरा उत्पन्न हुआ है और तकनीकी कौशल की कमी वाले कारीगर बाज़ार परिवर्तनों के अनुकूल होने के लिये संघर्ष करते हैं।
- शिक्षा और प्रशिक्षण का अभाव: सीमित औपचारिक शिक्षा और प्रशिक्षण के अवसर कारीगरों की आधुनिक व्यावसायिक प्रथाओं एवं प्रौद्योगिकी को अपनाने की क्षमता में बाधा उत्पन्न करते हैं।
- शोषणकारी बिचौलिये: कारीगरों का अक्सर बिचौलियों द्वारा शोषण होता है जो कीमतों को नियंत्रित करते हैं, जिससे कारीगरों को न्यूनतम रिटर्न मिलता है।
सांस्कृतिक महत्त्व को संरक्षित करते हुए सामाजिक-आर्थिक कल्याण को बढ़ाने की रणनीतियाँ:
- कौशल वृद्धि और प्रशिक्षण: PM VIKAS जैसी योजनाओं के माध्यम से कारीगरों को आवश्यक तकनीकी और व्यावसायिक कौशल के साथ सशक्त बनाने के लिये कौशल विकास में निवेश करना चाहिये।
- बाज़ार संपर्क: बिचौलियों को खत्म करते हुए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, प्रदर्शनियों और सहयोगों के माध्यम से सीधे बाज़ार पहुँच की सुविधा प्रदान करनी चाहिये।
- वित्तीय समावेशन: वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा देना और कारीगरों को अपने व्यवसायों में निवेश करने के लिये ऋण तक पहुँच प्रदान करनी चाहिये।
- प्रौद्योगिकी एकीकरण: ऐसी तकनीक का उपयोग करना जो प्रमाणिकता से समझौता किये बिना पारंपरिक शिल्प कौशल की पूरक हो।
- उचित व्यापार प्रथाएँ: कारीगरों को उचित वेतन और नैतिक कार्य परिस्थितियाँ प्राप्त हों यह सुनिश्चित करने के लिये निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- शिक्षा को बढ़ावा देना: गरीबी के चक्र को तोड़ने के लिये कारीगरों और उनके परिवारों के लिये शैक्षिक पहल का समर्थन करना चाहिये।
- सांस्कृतिक पर्यटन: कारीगरों के लिये अतिरिक्त आय के अवसर पैदा करने के लिये पारंपरिक शिल्प पर प्रकाश डालते हुए सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिये।
निष्कर्ष:
पारंपरिक भारतीय हस्तशिल्प का समर्थन करने के लिये हमें एक ऐसे समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिससे कौशल विकास, बाज़ार पहुँच, वित्तीय सशक्तीकरण और आधुनिक उपकरणों का समन्वय शामिल है। इससे कारीगरों की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए उनके सामाजिक-आर्थिक कल्याण में वृद्धि होगी।