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Sambhav-2024

  • 14 Dec 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    दिवस 22

    Q.2 भारतीय दर्शन में मीमांसा एवं वेदांत विचारधारा के मौलिक सिद्धांतों तथा दार्शनिक दृष्टिकोणों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारतीय दर्शन की मीमांसा और वेदांत शाखाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • मीमांसा और वेदांत शाखाओं के मौलिक सिद्धांतों एवं दार्शनिक दृष्टिकोणों पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    मीमांसा और वेदांत भारतीय दर्शन की दो महत्त्वपूर्ण शाखाएँ हैं। इनमें से प्रत्येक के अलग-अलग मौलिक सिद्धांत और दार्शनिक दृष्टिकोण हैं। दोनों की जड़ें वैदिक परंपरा में निहित हैं लेकिन परम वास्तविकता (ब्राह्म) और स्वयं की प्रकृति (आत्मन) को समझने के दृष्टिकोण के आधार पर इनमें भिन्नता है।

    मुख्य भाग:

    मीमांसा और वेदांत के मौलिक सिद्धांत एवं दार्शनिक दृष्टिकोण:

    • मीमांसा दर्शन:
      • वेदों की सत्ता: मीमांसा, जिसे पूर्व मीमांसा के नाम से भी जाना जाता है, वेदों की सत्ता पर बल देती है। इसमें दावा किया गया है कि वेद शाश्वत और रहस्यमयी होने के साथ ज्ञान के प्राथमिक स्रोत हैं।
      • अनुष्ठान और धर्म: मीमांसा का मुख्य बल वेदों के अनुष्ठानिक पहलुओं पर है (विशेष रूप से बलि अनुष्ठानों (यज्ञों) के प्रदर्शन पर)। इसका तर्क है कि ये अनुष्ठान वांछित लक्ष्य प्राप्त करने और वेदों के निर्देशों के अनुसार कर्त्तव्यों (धर्म) को पूरा करने के साधन हैं।
      • कर्म-मार्ग (कर्त्तव्य मार्ग): मीमांसा में कर्म के महत्त्व पर बल दिया गया है और वेदों में उल्लिखित कर्त्तव्यों को निभाने की वकालत की गई है। इसका मानना है कि परिणामों की चिंता किये बिना अपने कर्त्तव्यों का पालन करने से आध्यात्मिक योग्यता और अंततः मुक्ति (मोक्ष) मिलती है।
    • वेदांत दर्शन:
      • उपनिषदिक ज्ञान: वेदांत, जिसे उत्तर मीमांसा के नाम से भी जाना जाता है, उपनिषदों से काफी हद तक प्रभावित है। यह दार्शनिक ग्रंथ वास्तविकता की प्रकृति के अन्वेषण पर आधारित है। इसमें उपनिषदों को वैदिक विचार की पराकाष्ठा माना गया है।
      • अद्वैत वेदांत: वेदांत की प्रमुख शाखाओं में से एक, आदि शंकराचार्य द्वारा प्रतिपादित अद्वैत वेदांत, गैर-द्वैतवाद की वकालत करता है। इसमें माना गया है कि परम वास्तविकता (ब्राह्मण) अविभाज्य है और विश्व में स्पष्ट विविधता एक भ्रम (माया) है। स्वयं की वास्तविक प्रकृति (आत्मान) ब्रह्म के समान है।
      • द्वैतवाद और गुणात्मक अद्वैतवाद: वेदांत की अन्य शाखाएँ, जैसे द्वैत (द्वैतवाद) और विशिष्टाद्वैत (योग्य अद्वैतवाद), व्यक्तिगत आत्मा (जीव) और ब्रह्म के बीच एक द्वैतवादी संबंध प्रस्तुत करती हैं। इनमें विविधता में अंतर्निहित मौलिक एकता को स्वीकार करते हुए एक व्यक्तिगत देवता के प्रति समर्पण पर बल दिया गया है।
      • मुक्ति मार्ग: वेदांत में मोक्ष प्राप्त करने के लिये विभिन्न मार्गों का वर्णन है, जिनमें ज्ञान, भक्ति, कर्म (कार्य) और राज शामिल हैं। व्यक्ति अपने स्वभाव और झुकाव के आधार पर उचित मार्ग चुन सकते हैं।

    निष्कर्ष:

    मीमांसा में वैदिक अनुष्ठानों और कर्त्तव्यों पर बल दिया गया है जबकि वेदांत में गैर-द्वैतवाद, योग्य गैर-द्वैतवाद और द्वैतवाद पर विविध दृष्टिकोण के साथ उपनिषदों के रहस्यमय पहलुओं पर बल दिया गया है। दोनों ही दर्शन वास्तविकता और स्वयं पर चिंतन करने के लिये भारतीय दर्शन को विभिन्न दृष्टिकोणों से समृद्ध करते हैं।

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