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13 Dec 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 1
संस्कृति
दिवस 21
Q2. भारत में स्मारकों तथा संबंधित कला को आकार देने में भारतीय दर्शन एवं परंपरा की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न क्षेत्रों और कालों से संबंधित उपयुक्त उदाहरणों को बताते हुए अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- स्मारकों और कला को आकार देने में भारतीय दर्शन तथा परंपरा की भूमिका को बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत में प्रमुख दार्शनिक परंपराओं को बताते हुए स्मारकों एवं कला के विशिष्ट उदाहरणों पर चर्चा कीजिये।
- देश की कलात्मक और स्थापत्य विरासत पर भारतीय दर्शन एवं परंपरा के स्थायी प्रभाव पर बल देते हुए निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारतीय दर्शन तथा परंपरा ने देश के स्मारकों और कला को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाई है। भारत में वास्तुशिल्प और कलात्मक प्रयासों के साथ धार्मिक, सांस्कृतिक एवं दार्शनिक मान्यताओं के अंतर्संबंध के परिणामस्वरूप एक अद्वितीय और विविध विरासत उत्पन्न हुई है।
मुख्य भाग:
- हिंदू दर्शन और वास्तुकला:
- खजुराहो के मंदिर- खजुराहो के मंदिर (950 और 1150 ईस्वी के बीच निर्मित) हिंदू दर्शन, विशेष रूप से कामसूत्र के सिद्धांतों को दर्शाते हैं। इन मंदिरों की जटिल नक्काशी जीवन, प्रेम और आध्यात्मिक गतिविधियों के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है जिससे भौतिक एवं आध्यात्मिक विचारों का एकीकरण प्रदर्शित होता है।
- कोणार्क का सूर्य मंदिर - 13वीं शताब्दी में बना कोणार्क का सूर्य मंदिर, एक प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प ग्रंथ तथा वास्तु शास्त्र का प्रमाण है। इस मंदिर का डिज़ाइन ब्रह्मांडीय सिद्धांतों के अनुरूप है और इसकी जटिल नक्काशी पौराणिक कथाओं को दर्शाती है जो वास्तुकला के साथ दर्शन के एकीकरण पर बल देती है।
- बौद्ध दर्शन और कला:
- साँची स्तूप - तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का साँची का महान स्तूप, एक महत्त्वपूर्ण बौद्ध स्मारक है। जटिल नक्काशी वाले तोरण (प्रवेश द्वार) सहित इसकी वास्तुकला करुणा, अहिंसा एवं आत्मज्ञान के मार्ग के बौद्ध आदर्शों को दर्शाती है।
- इस्लामी दर्शन और वास्तुकला:
- ताजमहल - 17वीं शताब्दी में निर्मित आगरा का ताजमहल इस्लामी वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। फारसी और मुगल स्थापत्य परंपराओं से प्रभावित यह इमारत शाश्वत प्रेम का प्रतीक है तथा यह ज्यामितीय समरूपता एवं परिशुद्धता के इस्लामी सिद्धांतों को दर्शाता है।
- जैन दर्शन और मंदिर कला:
- दिलवाड़ा मंदिर - माउंट आबू पर स्थित दिलवाड़ा मंदिर जैन वास्तुकला और कलात्मकता का एक उल्लेखनीय उदाहरण हैं। 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच निर्मित ये मंदिर जैन दर्शन, अहिंसा एवं आध्यात्मिक शुद्धता की खोज को दर्शाते हुए जटिल संगमरमर की नक्काशी का प्रदर्शन करते हैं।
- सिख दर्शन और गुरुद्वारा वास्तुकला:
- स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब)- अमृतसर का स्वर्ण मंदिर (सिखों का एक केंद्रीय धार्मिक स्थल) सिख दर्शन का उदाहरण है। इसकी वास्तुकला समावेशिता एवं समानता पर बल देती है, इसके खुले प्रवेश द्वार सिख धर्म की स्वागत योग्य प्रकृति का प्रतीक हैं।
निष्कर्ष:
भारत के स्मारक और इसकी कला, देश की दार्शनिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं। इनके द्वारा हिंदू, बौद्ध, इस्लामी, जैन या सिख दर्शन की विशेषताओं का प्रदर्शन होने के साथ भारतीय विरासत की विविध एवं समन्वित प्रकृति को दर्शाया जाता है। कलात्मक अभिव्यक्ति के साथ इन दार्शनिक विचारों के संलयन के परिणामस्वरूप एक ऐसे वास्तुशिल्प परिदृश्य का विकास हुआ है जो आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण तथा सौंदर्य की दृष्टि से मनोरम है।