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Sambhav-2024

  • 12 Dec 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 20

    दल-बदल विरोधी कानून भारतीय राजनीति का एक ऐतिहासिक पहलू है क्योंकि इसका उद्देश्य राजनीतिक दल-बदल के मुद्दे पर अंकुश लगाना है। यह राजनीतिक दलों एवं विधायिकाओं की स्थिरता एवं अनुशासन को कैसे सुनिश्चित करता है? (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • दल-बदल विरोधी कानून और इसकी शुरुआत का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • उन तरीकों पर चर्चा कीजिये जिनसे दल-बदल विरोधी कानून राजनीतिक दलों तथा विधायिकाओं की स्थिरता एवं अनुशासन सुनिश्चित करता है।
    • समाधान-आधारित दृष्टिकोण के साथ निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    दल-बदल विरोधी कानून (जिसे वर्ष 1985 में संविधान में दसवीं अनुसूची में शामिल किया गया था) एक ऐसा कानूनी ढाँचा है जो निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा राजनीतिक दलों में बार-बार और मनमाने ढंग से किये जाने वाले परिवर्तन को रोकने हेतु लाया गया था। इसका उद्देश्य संसद सदस्यों (सांसदों) और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों (विधायकों) द्वारा अपने दलों तथा उन्हें वोट देने वाले लोगों के प्रति जवाबदेही बनाना है।

    मुख्य भाग:

    दल-बदल विरोधी कानून निम्नलिखित प्रावधान करके राजनीतिक दलों और विधायिकाओं की स्थिरता एवं अनुशासन सुनिश्चित करता है:

    • उन सांसदों/विधायकों को अयोग्य घोषित करना जो स्वेच्छा से उस दल की सदस्यता छोड़ देते हैं जिसके टिकट पर वे चुने गए थे या जो अपने दल के निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करते हैं या मतदान के समय अनुपस्थित रहते हैं।
    • निर्वाचित होने के बाद किसी अन्य दल में शामिल होने वाले सांसदों/विधायकों को अयोग्य घोषित करना, सिवाय इसके कि जब मूल दल के दो-तिहाई सदस्यों का किसी अन्य दल में विलय हो।
    • निर्वाचित होने के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होने वाले निर्दलीय सांसदों/विधायकों को अयोग्य घोषित करना।
    • सदन में सदस्यता की तारीख से छह महीने की समाप्ति के बाद किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने वाले मनोनीत सांसदों/विधायकों को अयोग्य घोषित करना।

    राजनीतिक दलों और विधानमंडलों की स्थिरता तथा अनुशासन सुनिश्चित करने हेतु अन्य प्रावधान:

    • सदन के अध्यक्ष/सभापति द्वारा भ्रष्टाचार या दलबदल का दोषी पाए जाने वाले सांसदों/विधायकों को अयोग्य घोषित करना, जो ऐसे मामलों पर निर्णय लेने के लिये पीठासीन अधिकारी और एकमात्र प्राधिकारी के रूप में कार्य करते हैं।
    • दुर्भावना, विकृति या संवैधानिक जनादेश के उल्लंघन के आधार पर न्यायिक समीक्षा को छोड़कर, अयोग्यता के मामलों पर अध्यक्ष/सभापति के निर्णयों में हस्तक्षेप करने के लिये न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र पर रोक।
    • दलबदल करने वालों की अयोग्यता की तारीख से छह साल की अवधि के लिये या सदन के कार्यकाल के अंत तक, जो भी पहले हो, मंत्री या किसी अन्य सार्वजनिक पद पर नियुक्ति का प्रतिबंध।

    निष्कर्ष:

    10वीं अनुसूची के संबंध में मनमानी अयोग्यता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इस संबंध में एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण, समयबद्ध समाधान, दल में आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने और सार्वजनिक जवाबदेही सहित अन्य सुधार करने से दल-बदल विरोधी कानून को मज़बूत करने के साथ लोकतांत्रिक सिद्धांतों को संरक्षित करने में सहायता मिलेगी।

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