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Sambhav-2024

  • 21 Nov 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 2

    प्रश्न.1 केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच हाल ही में चल रहे विवादों के आलोक में, क्या भारत को इन संस्थाओं के बीच व्यापार के सुचारू लेन-देन को सुनिश्चित करने के लिये अपने संघीय ढाँचे पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है? अपने विचारों स्पष्ट कीजिये। (250 Words)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • संघवाद के संक्षिप्त परिचय से शुरुआत कीजिये।
    • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच हाल ही में चल रहे विवादों पर चर्चा कीजिये।
    • संघीय ढाँचे में व्यवसाय के सुचारू लेन-देन को सुनिश्चित करने के लिये आगे की राह पर चर्चा कीजिये।
    • संघीय ढाँचे के निरंतर विकास की आवश्यकता को समझाते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    परिचय:

    संघवाद, सरकार की एक प्रणाली है जिसमें शक्तियों को सरकार के दो या दो से अधिक स्तरों, जैसे केंद्र तथा राज्यों अथवा प्रांतों के बीच विभाजित किया जाता है। संघवाद एक बड़ी राजनीतिक इकाई के भीतर विविधता के साथ-साथ क्षेत्रीय स्वायत्तता के समायोजन की अनुमति प्रदान करता है।

    मुख्य भाग:

    भारत में केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच हाल के कुछ विवादों ने देश की संघीय संरचना की प्रभावशीलता पर प्रश्न उठाए हैं:

    • वस्तु एवं सेवा कर (GST) मुआवज़ा: राज्यों ने मुआवज़े की राशि की गणना तथा केंद्र सरकार द्वारा GST मुआवज़ा भुगतान जारी करने में देरी पर चिंता व्यक्त की थी।
    • कृषि कानून: केंद्र सरकार द्वारा नए कृषि कानूनों को लागू करने के कारण कई राज्यों में विरोध एवं प्रतिरोध हुए।
    • जल विवाद: कर्नाटक तथा तमिलनाडु के बीच कावेरी जल बंटवारा अथवा ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ के बीच महानदी जल विवाद जैसे जल-बंटवारे विवाद लगातार विवादास्पद बने हुए हैं।
    • वित्तीय स्वायत्तता: राज्यों ने प्राय: अधिक वित्तीय स्वायत्तता की मांग की है, जिसमें उनके संसाधनों, राजकोषीय नीतियों एवं केंद्रीय करों के बंटवारे पर अधिक नियंत्रण शामिल है। संघीय ढाँचे में यह एक महत्त्वपूर्ण मामला है।
    • राज्यपालों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग: ऐसे उदाहरण भी सामने आए हैं जहाँ राज्यपालों के कार्यों ने केंद्र सरकार द्वारा उनकी शक्तियों के संभावित दुरुपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
      • वर्ष 2016 में अरुणाचल प्रदेश में राजनीतिक संकट में राज्यपाल की भूमिका की आलोचना की गई और बाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्यपाल के कार्यों को “संविधान का उल्लंघन” घोषित कर दिया गया था।

    इस प्रकार, वर्तमान प्रणाली संघ सरकार को संघ एवं राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के विषम विभाजन के साथ राज्यों पर बड़े पैमाने पर नियंत्रण प्रदान करती है। जब सरकार के दो स्तरों के अधिकार क्षेत्र के बीच अधिव्यापन होता है तो इससे निरंतर संघर्ष हो सकता है।

    इसलिये, भारत की संघीय संरचना में निम्नलिखित आयोगों की सिफारिश के आधार पर व्यापार के सुचारु लेन-देन को सुनिश्चित करने के लिये निम्नलिखित सुधारों की आवश्यकता है:

    • सरकारिया आयोग:
      • स्थायी अंतरराज्यीय परिषद की स्थापना।
      • अनुच्छेद-356 (राष्ट्रपति शासन) का प्रतिबंधित उपयोग।
      • राज्य विधेयकों पर सहमति रोकने के कारणों के संबंध में राष्ट्रपति से राज्य को प्रेषित करना।
      • सुरक्षा तैनाती, समवर्ती सूची के विषयों पर कानून एवं राज्यपालों की नियुक्ति पर राज्यों के साथ परामर्श।
    • एम. एम. पुंछी आयोग:
      • राज्य सूची के विषयों तथा समवर्ती सूची में स्थानांतरित वस्तुओं पर राज्यों के लिये अधिक लचीलापन।
      • अनुच्छेद-163 के अंर्तगत राज्यपालों को दी गई विवेकाधीन शक्तियों की संकीर्ण व्याख्या।
    • राष्ट्रीय संविधान कार्यकरण समीक्षा आयोग(NCRWC):
      • अनुच्छेद-307 के अनुसार अंतरराज्यीय व्यापार और वाणिज्य आयोग का निर्माण।
      • अनुच्छेद-356 को लागू करने से पहले राज्यों को राजनीतिक विफलताओं को ठीक करने का अवसर प्रदान करना।
    • सहकारी एवं प्रतिस्पर्धी संघवाद को बढ़ावा देना:
      • सहकारी संघवाद: सहकारी संघवाद द्वारा केंद्र एवं राज्य एक क्षैतिज संबंध साझा करते हैं, जहाँ वे व्यापक सार्वजनिक हित में “सहयोग” भी प्रदान करते हैं।
        • उदाहरणः GST का कार्यान्वयन
      • प्रतिस्पर्धी संघवाद: प्रतिस्पर्धी संघवाद में केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच संबंध लंबवत तथा राज्य सरकारों के बीच क्षैतिज होता है।
        • उदाहरण: राज्यवार डूइंग बिज़नेस रैंकिंग।

    निष्कर्ष:

    वर्तमान व्याप्त विवादों के आलोक में, भले ही संघीय ढाँचे को संशोधित किया गया हो, यह सुनिश्चित करने के लिये मूल्यांकन एवं सुधार की एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिये कि यह राष्ट्र की उभरती ज़रूरतों के साथ-साथ उनकी आकांक्षाओं के भी अनुरूप हो।

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