Sambhav-2024

दिवस 19

प्रश्न.1 भारत में सहकारी समितियों के संवैधानिक एवं विधिक ढाँचे का विश्लेषण कीजिये। सहकारी समितियों को मज़बूत करने के उपाय और सुझाव क्या हैं? (150 शब्द)

11 Dec 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • सहकारी समितियों का संक्षिप्त विवरण देते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
  • सहकारी समितियों के गठन का समर्थन करने वाले संवैधानिक प्रावधानों और कानूनी ढाँचे पर चर्चा करने के साथ सहकारी समितियों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को बताते हुए उन्हें मज़बूत करने हेतु उठाए जा सकने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

सहकारी समितियाँ लोगों द्वारा गठित ऐसे स्वैच्छिक संगठन हैं जो अपने सामान्य आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिये एक साथ आते हैं। ये समितियाँ स्वयं-सहायता, पारस्परिक सहायता और लोकतांत्रिक नियंत्रण के सिद्धांतों पर आधारित होती हैं। भारत में सहकारी समितियों को केंद्र तथा राज्य स्तर पर विभिन्न कानूनों द्वारा विनियमित किया जाता है।

मुख्य भाग:

संवैधानिक प्रावधान:

संविधान का अनुच्छेद 19(1)(c) संघ बनाने के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें सहकारी समितियाँ बनाने का अधिकार भी शामिल है।

अनुच्छेद 43B (97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 द्वारा DPSPs में जोड़ा गया) में कहा गया है कि राज्य को सहकारी समितियों के निम्नलिखित पहलुओं को बढ़ावा देना चाहिये: स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कार्यप्रणाली, लोकतांत्रिक नियंत्रण, व्यावसायिक प्रबंधन।

कानूनी ढाँचा:

  • बहु-राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम, 2002 और विभिन्न राज्य सहकारी सोसायटी अधिनियम सहकारी समितियों के पंजीकरण, कार्यप्रणाली व विघटन को नियंत्रित करते हैं।
  • राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) अधिनियम, 1962 राष्ट्रीय स्तर पर सहकारी समितियों को वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन देने की सुविधा प्रदान करता है।

सहकारी समितियों के समक्ष आने वाली कुछ चुनौतियाँ:

  • सदस्यता के मुद्दे: सहकारी समितियाँ कम सदस्य भागीदारी, खराब संचार और जागरूकता का सामना कर रही हैं, जिससे इसके सदस्यों के बीच समन्वय तथा समझ में कमी आई है।
  • बाह्य चुनौतियाँ: सरकारी हस्तक्षेप, राजनीतिक प्रभाव और प्रशासनिक बाधाएँ सहकारी समितियों की स्वायत्तता तथा निर्णय क्षमता में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं, जिससे इसकी दक्षता एवं प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
  • प्रबंधन और कार्यबल की समस्याएँ: कमज़ोर प्रबंधन के साथ प्रशिक्षित, समर्पित श्रमिकों की कमी सहित आंतरिक मुद्दे, गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ प्रदान करने के साथ अपने लक्ष्यों को पूरा करने में सहकारी समितियों की क्षमता में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • वित्तीय बाधाएँ: सहकारी समितियों को किफायती ऋण तक पहुँचने, उच्च-सुरक्षा आवश्यकताओं से निपटने एवं ब्याज दरों के प्रबंधन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिससे इसके सदस्यों का वित्तीय कल्याण प्रभावित होता है।
  • बाज़ार प्रतिस्पर्धा और ठहराव: सहकारी समितियों को अन्य क्षेत्रों से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है तथा यह बाज़ार की बढ़ती मांगों और तकनीकी परिवर्तनों को पूरा करने के लिये विविधीकरण तथा नवाचार की कमी का सामना कर रही हैं।

इन्हें मज़बूत करने हेतु उपाय:

  • कृषि हेतु अलग सहकारी समितियाँ स्थापित करना: राज्यों में किसानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देते हुए कृषि-संबंधित कार्यों के लिये नई सहकारी समितियाँ स्थापित करनी चाहिये।
  • क्रेडिट सोसायटी का डिजिटल परिवर्तन: प्राथमिक कृषि क्रेडिट सोसायटी को कम्प्यूटरीकृत करना, सेवाओं का विस्तार करना तथा कुशल वित्तीय संचालन के लिये पारदर्शिता बढ़ाना।
  • राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस और नीति: बेहतर नीति निर्माण के लिये एक केंद्रीकृत डेटाबेस बनाना तथा मानकीकृत विकास के लिये एक राष्ट्रीय सहकारी नीति तैयार करना।
  • गरीबों के लिये वित्तीय सहायता: ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों पर आर्थिक बोझ कम करने के लिये कराधान राहत, सब्सिडी तथा ब्याज मुक्त ऋण का प्रावधान करना।
  • सहकारी संघों को सशक्त बनाना: सहकारी संघों को सशक्त करने के साथ शासन का विकेंद्रीकरण करना तथा स्थानीय सशक्तीकरण को बढ़ावा देना।
  • लोकतंत्र और पारदर्शिता: लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना, पारदर्शिता सुनिश्चित करना, नियमित चुनाव कराना और जवाबदेह सहकारी संरचनाओं के लिये सक्रिय सदस्य भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • व्यापक कृषि सहायता: कृषि उत्पादकता बढ़ाने और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिये इनपुट, तकनीकी मार्गदर्शन एवं विपणन सहायता प्रदान करना।
  • सामुदायिक शिक्षा: समग्र सामुदायिक विकास के लिये नियोजित पितृत्व, जनसंख्या शिक्षा, परिवार कल्याण, वयस्क शिक्षा और साक्षरता पर सदस्यों को शिक्षित करना।

निष्कर्ष:

इन उपायों और सुझावों को लागू करके भारत में सहकारी समितियों के संवैधानिक एवं कानूनी ढाँचे को मज़बूत किया जा सकता है, जिससे उनके सतत विकास के साथ देश की सामाजिक-आर्थिक प्रगति में योगदान को बढ़ावा मिलेगा।