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Sambhav-2024

  • 08 Dec 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 17

    प्रश्न1: सरकार और उसकी एजेंसियों के खातों तथा व्ययों की लेखापरीक्षा में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की भूमिका व कार्यों का विश्लेषण कीजिये। भारत में CAG के प्रदर्शन एवं चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • CAG के पद और उसके महत्त्व को संक्षेप में परिभाषित करते हुए उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • CAG की भूमिका और कार्यों पर चर्चा करने के साथ CAG के प्रदर्शन तथा चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण है जो केंद्र और राज्य सरकारों तथा उनकी एजेंसियों के खातों एवं व्यय का ऑडिट करता है। CAG राज्य सरकारों के खातों पर दृष्टि रखने के साथ किसी भी कर या शुल्क से होने वाली शुद्ध आय को प्रामाणित करता है। CAG, संसद के एजेंट के रूप में कार्य करता है तथा सार्वजनिक धन के उपयोग में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

    मुख्य भाग:

    CAG की भूमिका और कार्य:

    • CAG भारत की संचित निधि, प्रत्येक राज्य की संचित निधि और विधानसभा वाले प्रत्येक केंद्रशासित प्रदेश की संचित निधि से होने वाले सभी व्ययों से संबंधित खातों का ऑडिट करता है।
    • राष्ट्रपति या राज्यपाल के अनुरोध पर CAG किसी अन्य प्राधिकरण के खातों का ऑडिट करता है। उदाहरण के लिये, स्थानीय निकाय।
    • CAG राष्ट्रपति को सलाह देता है कि केंद्र और राज्य के रिकॉर्ड कैसे रखे जाएंगे।
    • CAG केंद्र से संबंधित अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है जो फिर इसे संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखता है।
    • CAG राज्य से संबंधित अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को सौंपता है जो फिर इसे राज्य विधानमंडल के समक्ष रखता है।
    • CAG किसी भी कर या शुल्क की शुद्ध आय का पता लगाता है और प्रामाणित करता है तथा उसका प्रमाण-पत्र इस मामले पर अंतिम होता है।

    भारत में CAG के प्रदर्शन और चुनौतियों का मूल्यांकन:

    • CAG ने सरकार के वित्तीय प्रबंधन और सार्वजनिक सेवा वितरण में विभिन्न अनियमितताओं तथा घोटालों को सामने लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
      • उदाहरण के लिये, 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला, कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला आदि।
    • CAG ने विभिन्न सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों की दक्षता तथा प्रभावशीलता में सुधार के लिये बहुमूल्य सिफारिशें भी की हैं।
      • उदाहरण के लिये, CAG ने राजस्व संग्रह बढ़ाने, राजकोषीय घाटे को कम करने, सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने आदि के उपाय सुझाए हैं।
    • CAG को अपनी प्रभावी कार्यप्रणाली बनाए रखने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जैसे–
      • CAG के पास सरकार की प्राप्तियों, भंडारों और स्टॉक का ऑडिट करने की पर्याप्त शक्तियाँ नहीं हैं। वह सरकार के गुप्त सेवा व्यय का ऑडिट भी नहीं कर सकता है।
      • CAG के पास समय पर और व्यापक ऑडिट करने के लिये पर्याप्त स्वायत्तता तथा संसाधन का अभाव रहता है। वह अपने स्टाफ, बजट और बुनियादी ढाँचे के लिये सरकार पर निर्भर रहता है।
      • कार्यपालिका की जवाबदेही लागू करने में CAG की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती है। वह अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट केवल संसद और राज्य विधानमंडलों को दे सकता है लेकिन वह यह सुनिश्चित नहीं कर सकता कि उन पर कार्रवाई की जाए।
      • CAG को अपनी ऑडिट रिपोर्टों के क्रम में सरकार तथा उसकी एजेंसियों के विरोध और आलोचना का सामना करना पड़ता है। उन पर अक्सर पक्षपातपूर्ण, सनसनीखेज होने या अपने अधिकार क्षेत्र से परे जाने का आरोप लगाया जाता है।

    निष्कर्ष:

    CAG सरकार और उसकी एजेंसियों के खातों तथा व्ययों का ऑडिट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि, इसे अपने कर्त्तव्यों को प्रभावी ढंग से और कुशलता से पूरा करने में कई चुनौतियों तथा बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है। भारत में CAG के पास ब्रिटिश के CAG के समान अधिकार होने चाहिए, जो नियंत्रक और लेखा परीक्षक दोनों के रूप में कार्य करता है (भारत में CAG के विपरीत जो पूरी तरह से एक लेखा परीक्षक की भूमिका निभाता है न कि नियंत्रक की)।

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