Sambhav-2024

दिवस 14

प्रश्न .1 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 की मुख्य विशेषताएँ और उद्देश्य क्या हैं? इसने भारत में शासन के तीसरे स्तर के रूप में पंचायती राज संस्थानों (PRI) को कैसे सशक्त बनाया? (150 शब्द)

05 Dec 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 का परिचय दीजिये और बताइए कि कैसे इसका मुख्य उद्देश्य सत्ता का विकेंद्रीकरण करना है?
  • अधिनियम की मुख्य विशेषताओं पर चर्चा कीजिये और बताइये कि कैसे इन विशेषताओं ने PRI को स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने के लिये सशक्त बनाया।
  • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

भारत में पंचायती राज संस्थानों (Panchayati Raj Institutions- PRI) को संवैधानिक दर्जा और मान्यता प्रदान करने के लिये भारत की संसद द्वारा 73वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 अधिनियमित किया गया था। अधिनियम का मुख्य उद्देश्य केंद्र तथा राज्य सरकारों से लेकर गाँव, ब्लॉक एवं ज़िला स्तर पर स्थानीय स्व-सरकारी निकायों को शक्ति और निर्णय लेने का विकेंद्रीकरण करना व उन्हें अपने-अपने क्षेत्रों में विकास कार्य करने हेतु सशक्त बनाना था।

मुख्य भाग:

73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • यह गाँव, मध्यवर्ती और ज़िला स्तर पर PRI की त्रिस्तरीय प्रणाली प्रदान करता है।
  • यह PRI में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और महिलाओं के लिये प्रत्येक स्तर पर उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • यह PRI में हर स्तर पर (अध्यक्षों को छोड़कर, जो अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं) सभी सीटों पर हर पाँच वर्षों में प्रत्यक्ष और नियमित चुनाव का प्रावधान करता है। यह PRI के चुनावों का संचालन, पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण करने के लिये प्रत्येक राज्य में एक राज्य चुनाव आयोग की स्थापना का भी प्रावधान करता है।
  • यह आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिये योजनाओं की तैयारी एवं कार्यान्वयन तथा संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध मामलों के वितरण के संबंध में राज्य विधानमंडलों द्वारा PRI को शक्तियों व ज़िम्मेदारियों के हस्तांतरण का प्रावधान करता है।
  • यह राज्य की समेकित निधि से PRI को सहायता अनुदान के लिये राज्य विधानमंडलों से प्राधिकरण प्राप्त करके राज्य सरकार द्वारा लगाए गए कुछ करों, टोलों और शुल्कों का राजस्व PRI को सौंपकर PRI को एक सुदृढ़ वित्तीय स्थिति प्रदान करता है।
    • यह प्रत्येक राज्य में एक राज्य वित्त आयोग की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • यह राज्य सरकार द्वारा PRI के खातों की लेखापरीक्षा और राज्य विधानमंडल तथा ग्राम सभा को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का प्रावधान करता है।

इन सुविधाओं ने PRI को कई तरीकों से सशक्त बनाया:

73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 ने PRI को स्वशासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने और अपने संबंधित क्षेत्रों में विकास कार्य करने का अधिकार दिया:

  • संवैधानिक संशोधन के माध्यम से सशक्तीकरण: 1992 का 73वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम एक महत्त्वपूर्ण कानून के रूप में कार्य करता है, जो पंचायती राज संस्थानों (PRI) को स्वशासी संस्थाओं के रूप में कार्य करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • महिला सशक्तीकरण: लैंगिक समानता के महत्त्व को स्वीकार करते हुए, संशोधन PRI में महिलाओं के लिये एक तिहाई आरक्षण का महत्त्वपूर्ण प्रावधान पेश करता है। इस परिवर्तनकारी उपाय का उद्देश्य स्थानीय शासन में महिलाओं का सक्रिय प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करना है, जिससे अधिक समावेशी तथा विविध निर्णय लेने वाले वातावरण को बढ़ावा मिलेगा।
  • स्थानीयकृत विकास पहल: PRI को अपने अधिकार क्षेत्र में विकास परियोजनाओं का नेतृत्व करने का अधिकार दिया गया है, जिसमें पानी, बिजली और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के प्रावधान संबंधी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं।
  • समग्र सामुदायिक विकास: PRI का दायरा महज़ बुनियादी ढाँचे से परे है, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता, कृषि, पशुपालन और सामाजिक कल्याण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हैं, जिससे व्यापक सामुदायिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
  • समावेशी शासन और भागीदारी: संशोधन PRI को एक समावेशी मंच के रूप में परिकल्पित करता है, जो समाज के सभी वर्गों की सक्रिय भागीदारी के लिये अवसर प्रदान करता है, विशेष रूप से कमज़ोर वर्गों और महिलाओं को सशक्त बनाता है। ये संस्थान ज़मीनी स्तर के शासन और समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

निष्कर्ष:

73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 ने PRI को प्रशासन के तीसरे स्तर के रूप में मान्यता देकर भारतीय शासन में एक मील का पत्थर साबित किया। सत्ता का विकेंद्रीकरण करने के अपने लक्ष्य के बावजूद, अपर्याप्त हस्तांतरण, राज्य हस्तक्षेप और स्थानीय अभिजात वर्ग का प्रभुत्व जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। प्रभावी ज़मीनी स्तर के लोकतंत्र के लिये PRI को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है। सर्वोत्तम प्रदर्शन सुनिश्चित करने हेतु नागरिक समाज के साथ-साथ केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा उनका समर्थन एवं निगरानी की जानी चाहिये।