Sambhav-2024

दिवस 13

प्रश्न .2 अधिकरण जैसे अर्द्ध-न्यायिक निकाय किस प्रकार न्यायिक लंबन में कमी लाने और समय पर न्याय प्रदान करने में मदद करते हैं? (150 शब्द)

04 Dec 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • अर्द्ध-न्यायिक निकायों और अधिकरणों को परिभाषित कीजिये।
  • विश्लेषण कीजिये कि न्यायाधिकरण जैसे अर्द्ध-न्यायिक निकाय न्यायिक लंबन में कमी लाने तथा विवाद समाधान हेतु एक वैकल्पिक एवं विशेष मंच प्रदान करके समय पर न्याय वितरण सुनिश्चित करने में कैसे मदद करते हैं।
  • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

अर्द्ध-न्यायिक निकाय और अधिकरण गैर-न्यायिक संस्थाएँ हैं जिनके पास कानून की व्याख्या तथा उसे लागू करने एवं विवादों पर निर्णय लेने का अधिकार है। न्यायिक लंबन न्यायालयों के समक्ष लंबित अनसुलझे मामलों की बड़ी संख्या है, जो भारत में न्याय वितरण प्रणाली को प्रभावित करती है।

मुख्य भाग:

अर्द्ध-न्यायिक निकाय और अधिकरण विभिन्न तरीकों से विवाद समाधान हेतु एक वैकल्पिक तथा विशेष मंच प्रदान करके न्यायिक लंबन को कम करने एवं समय पर न्याय वितरण सुनिश्चित करने में मदद करते हैं:

  • विशिष्ट डोमेन: अर्द्ध-न्यायिक निकाय और न्यायाधिकरण संसदीय अधिनियमों या कानूनों के माध्यम से स्थापित किये जाते हैं, जो प्रशासन, कराधान, पर्यावरण तथा प्रतिभूतियों जैसे विशिष्ट डोमेन पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इन संस्थाओं को विशेष रूप से विवादों को संबोधित करने हेतु परिकल्पित किया गया है।
  • शीघ्र और लागत प्रभावी विवाद समाधान: अर्द्ध-न्यायिक निकायों और अधिकरणों का एक प्रमुख लाभ विभिन्न मुद्दों पर विवादों का त्वरित, लागत प्रभावी एवं विकेंद्रीकृत समाधान प्रदान करने की उनकी क्षमता है। यह न्यायिक लंबन को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है तथा समय पर न्याय वितरण सुनिश्चित करता है।
  • विशिष्ट विशेषज्ञता: अर्द्ध-न्यायिक निकाय और अधिकरण एक ऐसी संरचना हैं जिनमें प्रासंगिक विषयों विशेषज्ञ सदस्य शामिल होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप इनकी प्रभावी निर्णयन क्षमता में वृद्धि होती है। यह विशेषज्ञता उनके समक्ष आने वाले मामलों में शामिल जटिलताओं के बारे में व्यापक समझ सुनिश्चित करती है।
  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन: दीवानी न्यायालय (Civil Courts) को नियंत्रित करने वाली प्रक्रिया और साक्ष्य के कठोर नियमों के विपरीत, अर्द्ध-न्यायिक निकाय और अधिकरण प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हैं। यह लचीलापन विवाद समाधान के लिये अधिक अनुकूल एवं उत्तरदायी दृष्टिकोण प्रदान करता है।
  • स्वतंत्रता एवं निष्पक्षता: निष्पक्ष एवं न्यायपूर्ण सुनवाई सुनिश्चित करते हुए, ये निकाय सरकार की कार्यकारी और विधायी शाखाओं से स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। यह स्वायत्तता न्यायिक प्रक्रिया में जनता के विश्वास को मज़बूत करती है तथा न्याय एवं निष्पक्षता की भावना को बढ़ावा देती है।
    • अर्द्ध-न्यायिक निकायों के उदाहरण: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, तथा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड।
    • अधिकरणों के उदाहरण: केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, आयकर अपीलीय अधिकरण और राष्ट्रीय कंपनी कानून अधिकरण।

अर्द्ध-न्यायिक निकायों और अधिकरणों के समक्ष आने वाली कुछ चुनौतियाँ और सीमाएँ इस प्रकार हैं:

  • एकरूपता और पारदर्शिता का अभाव: अर्द्ध-न्यायिक निकाय और अधिकरण प्रायः एकरूपता, पारदर्शिता और जवाबदेही से संबंधित मुद्दों का सामना करते हैं। प्रक्रियाओं और निर्णय लेने में विसंगतियाँ उनके कामकाज़ में जनता के विश्वास को कमज़ोर कर सकती हैं।
  • क्षेत्राधिकार अतिव्यापन और संघर्ष: इन संस्थाओं के सामने एक महत्त्वपूर्ण चुनौती अतिव्यापी या परस्पर विरोधी क्षेत्राधिकार, कार्यों और शक्तियों का अस्तित्व है। इससे मामलों का समाधान करने में भ्रम तथा प्रक्रियात्मक जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • विलंबित नियुक्तियाँ और रिक्तियाँ: अर्द्ध-न्यायिक निकायों तथा अधिकरणों के भीतर समय पर नियुक्ति का न होना, बार-बार रिक्तियाँ होना एवं सदस्यों के स्थानांतरण पर्याप्त चुनौतियाँ पैदा करते हैं। संपूर्ण पीठ के गठन में देरी से मामलों के शीघ्र समाधान में बाधा आ सकती है।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और संसाधन: अर्द्ध-न्यायिक निकाय प्रायः अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, सीमित संसाधनों तथा अपर्याप्त कर्मचारियों का सामना करते हैं। यह बाधा मुकदमों के प्रबंधन एवं समय पर न्याय देने में उनकी दक्षता को बाधित कर सकती है।
  • कार्यकारी या विधायी शाखाओं से हस्तक्षेप: एक महत्त्वपूर्ण चुनौती कार्यकारी या विधायी शाखाओं के हस्तक्षेप या प्रभाव की संभावना है। निष्पक्ष निर्णय लेने को सुनिश्चित करने के लिये अर्द्ध-न्यायिक निकायों और अधिकरणों की स्वतंत्रता को बनाए रखना आवश्यक है।
  • मज़बूत न्यायिक समीक्षा का अभाव: न्यायिक समीक्षा के दायरे में अनुपस्थिति या सीमाएँ इन निकायों की प्रभावशीलता में बाधक बन सकती हैं। विधि के शासन को कायम रखने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये निर्णयों की जाँच हेतु स्पष्ट तंत्र महत्त्वपूर्ण हैं।

निष्कर्ष

अर्द्ध-न्यायिक निकाय और अधिकरण भारत में न्याय वितरण प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण तथा लाभकारी हिस्सा हैं, लेकिन न्यायिक प्रणाली के साथ उनकी प्रभावशीलता एवं सामंजस्य सुनिश्चित करने के लिये उन्हें मज़बूत व सुधार करने की आवश्यकता है। इन्हें नियमित न्यायालयों के विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि उनके पूरक के रूप में देखा जाना चाहिये।