Sambhav-2024

दिवस 12

प्रश्न. 2: सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकार की तुलना कीजिये और अंतर स्थापित कीजिये। (150 शब्द)

02 Dec 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • रिट क्षेत्राधिकार के महत्त्व का संक्षिप्त परिचय देते हुए उत्तर की शुरूआत कीजिये।
  • विभिन्न आयामों के तहत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के रिट क्षेत्राधिकारों की तुलना कीजिये।
  • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

  • भारत में सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 32 और उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत विशेषाधिकार संबंधी रिट जारी कर सकते हैं। ये रिटें हैं: बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), उत्प्रेषण ( Certiorari) और अधिकार-प्रच्छा (Quo-Warranto)।
  • हालाँकि दोनों ही संस्थाओं के पास रिट जारी करने का अधिकार है, लेकिन कुछ विशिष्टताएँ हैं जो इनके अधिकार क्षेत्र को एक-दूसरे से अलग करती हैं।
  • भारत का संविधान सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में नामित करता है और इन अधिकारों को लागू करने के लिये रिट जारी करने का अधिकार देता है। यानी जब कोई व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों की सुरक्षा हेतु न्यायालय का रुख करता है तो सर्वोच्च न्यायालय उसे इनकार नहीं कर सकता।

मुख्य भाग:

अंतर सर्वोच्च न्यायालय उच्च न्यायालय
अनुच्छेद 32 226
रिट का दायरा केवल मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन हेतु रिट जारी कर सकता है। मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के साथ-साथ अन्य कानूनी उद्देश्यों के लिये रिट जारी कर सकता है।
प्रादेशिक क्षेत्राधिकार भारत के संपूर्ण क्षेत्र में किसी व्यक्ति या सरकार के विरुद्ध रिट जारी कर सकता है। किसी व्यक्ति या सरकार के विरुद्ध उसके क्षेत्राधिकार के भीतर या उसके बाहर रिट जारी कर सकता है यदि कार्रवाई का कारण उसके क्षेत्राधिकार के भीतर उत्पन्न होता है।
उपचार की प्रकृति अनुच्छेद 32 के तहत संवैधानिक उपचार एक मौलिक अधिकार है और सर्वोच्च न्यायालय अपने रिट क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से इनकार नहीं कर सकता है। किसी व्यक्ति या सरकार के खिलाफ उसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर या उसके बाहर रिट जारी कर सकता है यदि उसके भीतर कार्रवाई का कारण उत्पन्न होता है।

निष्कर्ष:

चंद्र कुमार मामले (1997) में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय दोनों का रिट क्षेत्राधिकार संविधान की मूल संरचना का एक अभिन्न अंग है। इसका तात्पर्य यह है कि नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये एक मज़बूत तंत्र सुनिश्चित करते हुए, संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से भी इस क्षेत्राधिकार को समाप्त नहीं किया जा सकता है।