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Sambhav-2024

  • 02 Dec 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 12

    प्रश्न. 1: न्यायिक जवाबदेही से आप क्या समझते हैं? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में इसे कैसे सुनिश्चित किया जाता है? न्यायिक जवाबदेही के मौजूदा तंत्र की चुनौतियों और सीमाओं की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • न्यायिक जवाबदेही को परिभाषित कीजिये और इसके विभिन्न पहलुओं का उल्लेख कीजिये।
    • उल्लेख कीजिये कि हमारी राजनीतिक व्यवस्था में इसे कैसे सुनिश्चित किया जाता है।
    • उन चुनौतियों और सीमाओं का उल्लेख कीजिये जो अभी भी विद्यमान हैं।
    • यथोचित निष्कर्ष लिखिये।


    परिचय:

    न्यायिक जवाबदेही किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है, जो यह सुनिश्चित करती है कि न्यायपालिका पारदर्शी और ज़िम्मेदार रहने के साथ-साथ अनुचित प्रभाव से मुक्त रहे। इसमें न्यायाधीशों को उनके कार्यों और निर्णयों के लिये जवाबदेह बनाना तथा यह सुनिश्चित करना शामिल है कि वे नैतिक मानकों और न्याय के सिद्धांतों का पालन करें।

    मुख्य भाग:

    न्यायिक जवाबदेही में विभिन्न आयाम शामिल हैं, जैसे:

    • नैतिक आचरण:
      • न्यायाधीशों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने निर्णयों में निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा बनाए रखते हुए उच्चतम नैतिक मानकों को बनाए रखें।
      • न्यायपालिका की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये हितों के टकराव से बचना भी महत्त्वपूर्ण है।
    • पारदर्शिता:
      • न्यायिक प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिये, जिससे जनता को न्यायालय की कार्यवाही को समझने और उसका परीक्षण करने की अनुमति मिल सके।
      • निर्णयों और मामले के रिकॉर्ड सहित विभिन्न सूचनाओं तक सार्वजनिक पहुँच जवाबदेही में योगदान करती है।
    • निष्पक्षता और न्याय:
      • न्यायाधीशों को अपने निर्णयों में निष्पक्षता प्रदर्शित करनी चाहिये, सामाजिक स्थिति या प्रभाव की परवाह किये बिना सभी पक्षों के प्रति समान व्यवहार सुनिश्चित करना चाहिये।
      • न्यायिक व्यवस्था में विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये पक्षपात और दुराग्रह से बचना आवश्यक है।

    भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करना: भारत में, न्यायिक जवाबदेही विभिन्न तंत्रों के माध्यम से सुनिश्चित की जाती है:

    • रिट के माध्यम से:
      • प्रतिषेध: यह उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत या न्यायाधिकरण को अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़ने या उस अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने से रोकने के लिये जारी किया जाता है जो उसके पास नहीं है।
      • उत्प्रेषण: यह किसी मामले में उच्च न्यायालय द्वारा निचली अदालत या न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करने पर जारी किया जाता है। यह क्षेत्राधिकार की अधिकता या क्षेत्राधिकार की कमी या कानून में त्रुटि के आधार पर जारी किया जाता है।
    • महाभियोग की प्रक्रिया
      • न्यायाधीश जाँच अधिनियम, 1968 महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने से संबंधित प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
    • आतंरिक तंत्र
      • न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों के समाधान हेतु न्यायपालिका के पास एक आंतरिक तंत्र है।
      • मुख्य न्यायाधीश और वरिष्ठ न्यायाधीश कदाचार के आरोपों की जाँच करने तथा उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • उच्च न्यायपालिका की भूमिका:
      • सर्वोच्च न्यायालय सहित उच्च न्यायपालिका जवाबदेही सुनिश्चित करने में पर्यवेक्षी भूमिका निभाती है।
      • न्यायिक अखंडता और जवाबदेही बनाए रखने के लिये ऐतिहासिक निर्णय दिये गए हैं। जैसे द्वितीय न्यायाधीश मामला, 1993।

    न्यायिक जवाबदेही में चुनौतियाँ और सीमाएँ: विभिन्न तंत्रों की उपस्थिति के बावजूद न्यायिक जवाबदेही के समक्ष चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जैसे:

    • पारदर्शिता की कमी:
      • भारत में न्यायिक प्रणाली को विशेषकर नियुक्ति और अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी के लिये आलोचना का सामना करना पड़ता है।
      • सूचना तक सीमित सार्वजनिक पहुँच प्रभावी जाँच को बाधित करती है। न्यायपालिका का स्वयं पर सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI अधिनियम) के कार्यान्वयन के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त करने का एक लंबा इतिहास रहा है।
    • अनुशासनात्मक कार्रवाई में देरी:
      • न्यायाधीशों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई में अक्सर विलंब देखा जाता है, जिससे जवाबदेही उपायों की प्रभावशीलता प्रभावित होती है।
      • यह देरी न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम कर सकती है।
    • सीमित सार्वजनिक भागीदारी:
      • न्यायाधीशों को जवाबदेह ठहराने में जनता की भूमिका प्रतिबंधित है, क्योंकि यह प्रक्रिया मुख्य रूप से आंतरिक है और इसमें सक्रिय सार्वजनिक भागीदारी का अभाव है।
      • जनता को चिंता व्यक्त करने और जवाबदेही प्रक्रिया में भाग लेने के लिये सशक्त बनाना महत्त्वपूर्ण है।

    न्यायिक जवाबदेही के लिये आवश्यक कदम:

    • न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक: एक व्यापक न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक को अधिनियमित तथा कार्यान्वित किया जाना चाहिये जो न्यायाधीशों के लिये आचार संहिता की रूपरेखा तैयार करे, जवाबदेही हेतु तंत्र स्थापित करे और कदाचार के मामलों में न्यायाधीशों की जाँच व उन्हें हटाने का प्रावधान करे।
    • राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC): पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया पर दोबारा गौर किये जाने और उसे परिष्कृत किये जाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को एक संतुलित तथा जवाबदेह चयन प्रक्रिया सुनिश्चित करने हेतु न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं नागरिक समाज के प्रतिनिधित्व के लिये अभिकल्पित किया जा सकता है।
    • न्यायाधीशों के लिये आचार संहिता: न्यायाधीशों हेतु एक सशक्त आचार संहिता विकसित कर उसे लागू किया जाना चाहिये जो स्पष्ट रूप से नैतिक मानकों, पेशेवर व्यवहार संबंधी दिशा-निर्देशों तथा उल्लंघनों के परिणामों को रेखांकित करे। इस संहिता में हितों के टकराव, निष्पक्षता एवं जवाबदेही जैसे पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिये।
    • न्यायिक प्रदर्शन मूल्यांकन: न्यायाधीशों के प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिये एक स्वतंत्र एवं पारदर्शी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये। इसमें निर्णयों की गुणवत्ता तथा समयबद्धता, कानूनी सिद्धांतों का पालन एवं पीठ के अंदर व बाहर आचरण सहित विभिन्न मापदंडों के आधार पर नियमित मूल्यांकन शामिल हो सकता है।

    निष्कर्ष:

    न्यायिक जवाबदेही एक मज़बूत लोकतांत्रिक प्रणाली का आधार है, जो यह सुनिश्चित करती है कि न्यायपालिका स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं भरोसेमंद बनी रहे। हालाँकि भारत ने न्यायिक जवाबदेही के लिये तंत्र स्थापित करने हेतु कदम उठाए हैं लेकिन न्यायपालिका की विश्वसनीयता को मज़बूत करने के लिये चुनौतियों तथा सीमाओं को संबोधित करना भी आवश्यक है।

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