प्रश्न.2 संविधान के भाग XXI के तहत कुछ राज्यों के लिये विशेष प्रावधानों के प्रभाव और प्रभावशीलता का मूल्यांकन करना। उन्होंने इन राज्यों के विकास, सुरक्षा तथा एकीकरण में कैसे योगदान दिया है? इन प्रावधानों की चुनौतियाँ एवं सीमाएँ क्या हैं? (150 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- विशेष प्रावधानों को परिभाषित करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- संविधान के भाग XXI के तहत कुछ राज्यों के लिये विशेष प्रावधानों के पीछे के तर्क और उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिये।
- कुछ राज्यों के लिये विशेष प्रावधानों के प्रभाव और प्रभावशीलता के साथ-साथ इन प्रावधानों की चुनौतियों एवं सीमाओं का मूल्यांकन कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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उत्तर:
- विशेष प्रावधान संवैधानिक व्यवस्थाएँ हैं जो कुछ राज्यों या क्षेत्रों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को संबोधित करने के लिये कुछ हद तक स्वायत्तता, सुरक्षा या प्राथमिकता प्रदान करती हैं।
- संविधान के भाग XXI में बारह राज्यों अर्थात् महाराष्ट्र, गुजरात, नगालैंड, असम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, सिक्किम, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, गोवा और कर्नाटक के लिये विशेष प्रावधान हैं।
कुछ राज्यों के लिये विशेष प्रावधानों के पीछे तर्क और उद्देश्य हैं:
- राज्यों के पिछड़े क्षेत्रों के लोगों की मांगों को पूरा करना।
- राज्यों के जनजातीय लोगों के सांस्कृतिक और आर्थिक हितों की रक्षा करना।
- राज्यों के कुछ हिस्सों में बिगड़ी कानून व्यवस्था की स्थिति से निपटना।
- राज्यों के स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा करना।
कुछ राज्यों के लिये विशेष प्रावधानों के कुछ उदाहरण हैं:
- अनुच्छेद 371 विदर्भ, मराठवाड़ा, सौराष्ट्र और कच्छ के लिये अलग-अलग विकास बोर्डों की स्थापना तथा इन क्षेत्रों हेतु धन एवं अवसरों के समान आवंटन सुनिश्चित करने के लिये महाराष्ट्र व गुजरात के राज्यपाल को विशेष ज़िम्मेदारी देता है।
- अनुच्छेद 371A नगालैंड को विशेष दर्जा देता है और प्रावधान करता है कि संसद राज्य विधानसभा की सहमति के बिना नागा समुदाय, सामाजिक प्रथाओं, प्रथागत कानून, भूमि अधिकार तथा नागरिक एवं आपराधिक न्याय से संबंधित मामलों पर कानून नहीं बना सकती है।
- अनुच्छेद 371F सिक्किम को विशेष दर्जा देता है और यह प्रावधान करता है कि सिक्किम के लोगों के मौजूदा कानूनों, रीति-रिवाज़ों तथा अधिकारों का संसद एवं राज्य सरकार द्वारा सम्मान व संरक्षण किया जाएगा।
कुछ राज्यों के लिये विशेष प्रावधानों का इन राज्यों के विकास, सुरक्षा और एकीकरण पर मिश्रित प्रभाव तथा प्रभावशीलता पड़ी है। उन्होंने निम्नलिखित में योगदान दिया है:
- उन्होंने राज्यों में क्षेत्रीय असंतुलन एवं असमानताओं को दूर करने और राज्यों के पिछड़े व आदिवासी क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक विकास तथा कल्याण को बढ़ावा देने में मदद की है।
- उन्होंने राज्यों के जनजातीय और जातीय समुदायों की विशिष्ट पहचान, संस्कृति एवं परंपराओं को संरक्षित करने तथा उनके अधिकारों व हितों की रक्षा करने में सहायता की है।
- उन्होंने कुछ राज्यों में राजनीतिक संघर्षों और विद्रोहों को सुलझाने तथा राज्यों में शांति एवं स्थिरता बहाल करने में मदद की है।
इन प्रावधानों ने कुछ चुनौतियाँ और सीमाएँ भी प्रस्तुत की हैं, जैसे:
- इन्होंने राज्यों, क्षेत्रों के बीच भेदभाव और असमानता की भावना उत्पन्न की है तथा अन्य राज्यों एवं क्षेत्रों द्वारा समान या अधिक रियायतों व विशेषाधिकारों की मांग को जन्म दिया है।
- राजनीतिक या व्यक्तिगत लाभ के लिये केंद्र या राज्य सरकारों या राज्यपालों द्वारा उनका दुरुपयोग या दुर्व्यवहार किया गया है और संवैधानिक सिद्धांतों तथा कानून के शासन का उल्लंघन किया है।
- वे राज्यों के लोगों के मूल कारणों और वास्तविक शिकायतों को संबोधित करने में अप्रभावी या अपर्याप्त रहे हैं तथा उनके समग्र एवं समावेशी विकास व सशक्तीकरण को सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं।
निष्कर्ष:
संविधान में कुछ राज्यों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये विशेष प्रावधान हैं, लेकिन उनमें कुछ समस्याएँ भी हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता है। यह विशेष प्रावधानों को राज्यों तथा राष्ट्र हेतु अधिक निष्पक्ष, कुशल एवं लाभकारी बनाएगा।