प्रश्न.1 संसदीय समितियों के महत्त्व एवं कार्यों पर चर्चा कीजिये। साथ ही उनकी भूमिका और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये आवश्यक चुनौतियों एवं सुधारों का भी पता लगाइये। (250 शब्द)
30 Nov 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- संसदीय समितियों को परिभाषित करते हुए उत्तर प्रस्तुत कीजिये।
- संसदीय समितियों के सामने आने वाली चुनौतियों और सीमाओं पर चर्चा कीजिये।
- संसदीय समितियों की भूमिका और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये कुछ सुधार एवं उपाय सुझाइये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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संसदीय समितियाँ वे समितियाँ हैं जो संसद को उसके कार्य में सहायता करने के लिये सदन द्वारा नियुक्त या निर्वाचित की जाती हैं या पीठासीन अधिकारी द्वारा नामांकित की जाती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं: स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँ।
- स्थायी समितियाँ, स्थायी और नियमित समितियाँ हैं जिनका गठन समय-समय पर संसद के एक अधिनियम के प्रावधानों या लोकसभा में प्रक्रिया तथा संचालन के नियमों के अनुसार किया जाता है।
- तदर्थ समितियाँ अस्थायी एवं विशिष्ट समितियाँ होती हैं जो किसी विशेष उद्देश्य के लिये बनाई जाती हैं तथा जब वे अपना कार्य पूरा कर लेती हैं और एक रिपोर्ट प्रस्तुत कर देती हैं तो उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है।
संसदीय समितियों का महत्त्व:
- ये कानून की जाँच करने और कार्यपालिका को जवाबदेह बनाने के लिये एक तंत्र के रूप में कार्य करके संसद की प्रभावशीलता में सुधार करती हैं।
- वे कई मंत्रालयों के साथ मिलकर कार्य करके अंतर-मंत्रालयी समन्वय की सुविधा प्रदान करती हैं।
- ये समितियाँ राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाने के लिये एक मंच प्रदान करती हैं, क्योंकि उनकी बैठकें बंद कमरे में होती हैं और संसदीय समितियाँ उन्हें स्वतंत्र चर्चा की अनुमति देती हैं।
- वे विभिन्न मुद्दों पर बहस और विचार-विमर्श की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं, क्योंकि उनकी पहुँच डोमेन विशेषज्ञों एवं सरकारी अधिकारियों तक होती है।
संसदीय समितियों के कार्य हैं:
- वे विधेयकों, अनुदानों की मांगों, वार्षिक रिपोर्टों और मंत्रालयों/विभागों की दीर्घकालिक योजनाओं की जाँच करती हैं।
- वे प्रशासन और सार्वजनिक मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं व अक्षमताओं के मामलों की जाँच करती हैं।
- वे अपने निष्कर्षों एवं सिफारिशों के आधार पर सरकार के विधेयकों और नीतियों में बदलाव संशोधन का सुझाव देती हैं।
- वे संसद द्वारा अधिनियमित कानूनों और नीतियों के कार्यान्वयन एवं प्रभाव की निगरानी तथा मूल्यांकन करती हैं।
संसदीय समितियों को भी कई चुनौतियों और सीमाओं का सामना करना पड़ता है जो उनकी भूमिका तथा प्रभावशीलता में बाधा डालती हैं। इनमें से कुछ हैं:
- समितियों की कार्यवाहियों और रिपोर्टों तक पारदर्शिता एवं सार्वजनिक पहुँच का अभाव, जिससे सार्वजनिक जाँच तथा प्रतिक्रिया की गुंजाइश कम हो जाती है।
- समितियों के लिये पर्याप्त संसाधनों, विशेषज्ञता और कर्मचारियों के समर्थन का अभाव, जो उनकी गुणवत्ता तथा आउटपुट को प्रभावित करता है।
- समितियों की स्वायत्तता और स्वतंत्रता का अभाव, जो अक्सर पार्टी व्हिप, कार्यकारी हस्तक्षेप एवं राजनीतिक विचारों से प्रभावित होते हैं।
- समितियों के सदस्यों की भागीदारी एवं उपस्थिति में कमी, जिससे उनकी कार्यप्रणाली एवं विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
संसदीय समितियों की भूमिका और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये कुछ सुधार तथा उपाय सुझाए जा सकते हैं:
- समितियों की कार्यवाही और रिपोर्टों को लाइव-स्ट्रीमिंग, प्रकाशन तथा ऑनलाइन संगृहीत करके जनता, मीडिया व अन्य हितधारकों के लिये अधिक पारदर्शी एवं सुलभ बनाना।
- समितियों का बजट बढ़ाकर, अधिक योग्य और अनुभवी कर्मियों को नियुक्त करके तथा बाहरी सलाहकारों एवं अनुसंधान संस्थानों के साथ जुड़कर उन्हें अधिक संसाधन, विशेषज्ञता व कर्मचारी सहायता प्रदान करना।
- समितियों की स्वायत्तता और स्वतंत्रता को मज़बूत करना, यह सुनिश्चित करके कि उनका गठन निष्पक्ष तथा आनुपातिक तौर पर किया गया है और उनके पास किसी भी व्यक्ति या दस्तावेज़ को बुलाने की शक्ति है तथा वे पार्टी सचेतक (Whip) या कार्यकारी निर्देशों से बँधे नहीं हैं।
- समितियों के सदस्यों की भागीदारी और उपस्थिति को बढ़ाना, उनके लिये बैठकों में भाग लेना अनिवार्य बनाकर, उनके प्रदर्शन हेतु उन्हें प्रोत्साहन देकर तथा उनकी अनुपस्थिति या कदाचार के लिये उन्हें दंडित करके।
निष्कर्ष:
भारतीय संसदीय समितियाँ विधायी और निरीक्षण कार्यों में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। उनके महत्त्व के बावजूद, उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लोगों और संविधान के प्रति बेहतर प्रतिनिधित्व, जवाबदेही तथा जवाबदेही हेतु सुधारों की आवश्यकता है।