12 Nov 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- अपने उत्तर की शुरुआत मौलिक कर्त्तव्यों के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर कीजिये।
- मौलिक कर्त्तव्यों को न्यायोचित चरित्र देने की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
मौलिक कर्त्तव्यों का विचार भूतपूर्व यूएसएसआर के संविधान से प्रेरित है, इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था। मूल रूप से इनकी संख्या 10 थी, बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्त्तव्य जोड़ा गया। ये सभी ग्यारह कर्त्तव्य संविधान के अनुच्छेद 51-A (भाग- IV-A में एकमात्र अनुच्छेद) में सूचीबद्ध हैं।
मुख्य बिंदु
मौलिक कर्त्तव्यों को न्यायोचित चरित्र देने की आवश्यकता:
- अनुच्छेद 51-A के तहत नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्यों में नगर निकायों सहित निर्वाचित या गैर-निर्वाचित संस्थानों तथा नागरिकों के संगठनों के विधायी और कार्यकारी कार्यों के लिये भी दिशा-निर्देश होना चाहिये
- व्यक्तियों द्वारा कर्त्तव्यों का पालन उस सामाजिक व्यवस्था के वातावरण के आधार पर किया जाता है जिसमें कोई व्यक्ति रोल मॉडल के या कानून के दंडात्मक प्रावधानों के अधीन रहता है। नागरिकों द्वारा उनके दायित्वों के पालन की आवश्यकता के लिये जहाँ भी आवश्यक हो, उपयुक्त कानून बनााने की आवश्यक हो सकती है।
- मौजूदा कानून आवश्यक अनुशासन को लागू करने के लिये अपर्याप्त हैं जिसे पूर्ण करने की ज़रूरत है। यदि कानून और न्यायिक निर्देश उपलब्ध हैं और फिर भी नागरिकों द्वारा कर्त्तव्यों का उल्लंघन हो रहा है, तो उन्हें क्रियान्वित करने के लिये अन्य रणनीतियों को अपनाया जाना चाहिये।
- मौलिक कर्त्तव्यों की कानूनी उपयोगिता नीति-निदेशकों के समान है; नीति-निदेशक तत्व राज्य को संबोधित करते हैं, जबकि मौलिक कर्त्तव्य किसी भी कानूनी मंजूरी के बिना नागरिकों को संबोधित करते हैं
- नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने स्वयं की निगरानी में अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग और प्रवर्तन करें उन्हें यह ध्यान रखना चाहिये कि वह अनुच्छेद 51-A में निर्दिष्ट कर्तव्यों के प्रति राज्य के ऋणी है और यदि नागरिक अपने कर्तव्यों की परवाह नहीं करते है, तो वह मौलिक कर्तव्यों के अधिकारों के योग्य नहीं है।
- इस तरह के कर्तव्य न्यायालयों में कानूनी रूप से प्रवर्तन योग्य नहीं हैं, लेकिन यदि कर्त्तव्यों के उल्लंघन में किसी भी कार्य या आचरण को प्रतिबंधित करने के लिये एक कानून बनाया गया है, तो यह प्रासंगिक मौलिक अधिकारों पर उचित प्रतिबंध होगा।
- चूँकि मौलिक कर्त्तव्य राज्य को संबोधित नहीं करते हैं, अतः एक नागरिक यह दावा नहीं कर सकता कि उसे राज्य द्वारा उचित रूप से सुसज्जित किया जाना चाहिये ताकि वह अनुच्छेद 51-A के तहत अपने कर्त्तव्यों का पालन कर सके।
मौलिक कर्तव्यों को न्यायोचित स्वरुप प्रदान करने की आवश्यकता नहीं:
- कर्त्तव्यों की सूची संपूर्ण नहीं है क्योंकि इसमें वोट डालने, करों का भुगतान, परिवार नियोजन आदि जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्यों को शामिल नहीं किया गया है। जबकि करों का भुगतान करने के लिये स्वर्ण सिंह समिति द्वारा सिफारिश की गई थी।
- कुछ कर्त्तव्य अस्पष्ट है जिन्हें जो आम आदमी द्वारा समझना मुश्किल हैं। उदाहरण के लिये 'महान आदर्श', 'समग्र संस्कृति', 'वैज्ञानिक स्वभाव' आदि जैसे वाक्यांशों की अलग-अलग व्याख्या की जा सकती है।
- संविधान में शामिल कर्त्तव्यों का उपयोग लोगों द्वारा मूलभूत अधिकारों के रूप में किया जाएगा, भले ही उन्हें संविधान में शामिल नहीं किया गया था।
- इन कर्त्तव्यों को कानूनी रूप से लागू करने योग्य बनाने के लिये पहले से ही कानूनी प्रावधान हैं जैसे राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम आदि।
निष्कर्ष
मौलिक कर्त्तव्यों को न केवल पांडित्य या तकनीकी उद्देश्यों के रूप में, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की कुंजी के रूप में शामिल किया गया था। समाज में सार्थक योगदान देने के लिये नागरिकों को पहले संविधान और उसके अंगों को समझना होगा जिसके लिये "जन-व्यवस्था और उसकी बारीकियों, शक्तियों और सीमाओं को समझना अनिवार्य है”।
प्रत्येक नागरिक को भारतीय लोकतंत्र में सार्थक हितधारक होने और संवैधानिक दर्शन को उसकी वास्तविक भावना में आत्मसात करने का प्रयास करने की आवश्यकता है। मौलिक कर्त्तव्यों के "उचित संवेदीकरण, पूर्ण संचालन और प्रवर्तनीयता" के लिये एक समान नीति की आवश्यकता है जो "नागरिकों को ज़िम्मेदार होने में काफी मदद करेगी"।