दिवस 5: संघवाद से आप क्या समझते हैं? क्या भारत सही मायने में संघीय देश है?
14 Nov 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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परिचय
संघवाद लैटिन शब्द Foedus से लिया गया है, जिसका अर्थ है समझौता। वास्तव में संघ, शक्ति का बंटवारा करने और अपने से संबंधित क्षेत्रों को नियंत्रित करने वाली दो प्रकार की सरकारों के बीच एक समझौता है। इस प्रकार, एक संघ राष्ट्रीय और स्थानीय सरकारों की एक प्रणाली है, जो संविधान द्वारा सौंपे गए स्वायत्त क्षेत्रों वाले राष्ट्रीय और संघीय दोनों इकाइयों के साथ एक सामान्य संप्रभुता के तहत आपस में संबंधित है।
संविधानों को कठोर व लचीला दो प्रकार से विभाजित किया जा सकता है। कठोर संविधान वह है जिसमें संशोधन के लिये एक विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, उदाहरण के लिये, अमेरिकी संविधान। दूसरी ओर लचीला संविधान वह है जिसे सामान्य कानूनों की तरह ही संशोधित किया जा सकता है जैसे कानूनन- ब्रिटिश संविधान। भारत का संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला है, बल्कि दोनों का संश्लेषण है।
भारत का संविधान देश को संघ के रूप में संदर्भित नहीं करता है बल्कि संविधान का अनुच्छेद 1 भारत को "राज्यों के संघ" के रूप में संदर्भित करता है। यह दर्शाता है कि भारत कई राज्यों से बना एक संघ है और सभी राज्य समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। भारतीय संघ अटूट है।
मुख्य बिन्दु
भारतीय संघ में दोहरी राजनीति, लिखित संविधान, शक्तियों का विभाजन आदि जैसी कई संघीय विशेषताएँ हैं। लेकिन संघीय विशेषताओं के साथ-साथ भारत में कई गैर-संघीय विशेषताएँ हैं जो भारतीय संघ को प्रकृति में अर्ध-संघीय बनाती हैं।
भारत पारंपरिक अर्थों में महासंघ नहीं है। यह एक संघीय सरकार की विशेषताओं को एकात्मक सरकार के साथ जोड़ता है, जिन्हें गैर-संघीय विशेषताओं के रूप में जाना जाता है। नतीजतन, भारत को एक अर्ध-संघीय राज्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसे प्रोफेसर केसी व्हीयर द्वारा "अर्ध-संघीय राज्य" के रूप में वर्णित किया गया है।
भारतीय संघवाद की एकात्मक विशेषताएँ
संविधान में ये कुछ एकात्मक विशेषताएँ हैं जिनके द्वारा हम कह सकते हैं कि भारत प्रकृति में एक अर्ध-संघीय देश है-
1. सशक्त केंद्र : संविधान अनुच्छेद 355 के तहत यह प्रावधान करता है कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने के लिये कर्तव्यबद्ध है कि राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता न हो और राज्य आंतरिक अशांति और बाहरी आक्रमण तथा युद्ध से सुरक्षित रहे। इस प्रावधान की विफलता पर अनुच्छेद 356 केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रावधान करता है और संबंधित राज्य के राज्यपाल का कर्तव्य है कि वह राजनीतिक या किसी अन्य कारणों से राज्य की मशीनरी की संवैधानिक विफलता के बारे में केंद्र को रिपोर्ट करे।
2. एकल नागरिकता: संविधान पूरे देश के लिये एक और समान नागरिकता प्रदान करता है। हालाँकि, संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे संघीय राज्य में, दोहरी नागरिकता है जिसमें नागरिक पहले राज्यों और फिर संघ के लिये कर्त्तव्य का पालन करता है। लेकिन भारत के मामले में एकल नागरिकता का ही प्रावधान है, भले ही यह एक संघीय देश भी हो।
3. एकीकृत न्यायपालिका: भारतीय संविधान द्वारा सबसे ऊपर उच्चतम न्यायालय के साथ एकात्मक न्यायपालिका की स्थापना की गयी है | हमारी एकात्मक न्यायिक प्रणाली में, सर्वोच्च न्यायालय सर्वोच्च स्थान रखता है। हम जानते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय भारत में सभी निचली अदालतों के लिये बाध्यकारी हैं।
4. सर्वोच्च पदों की नियुक्तियाँ: सर्वोच्च पदों पर सभी नियुक्तियाँ केंद्र सरकार द्वारा की जाती हैं जैसे कि मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक और आईएएस और आईपीएस जैसी अखिल भारतीय सेवाएं बनायी गयीं हैं जिन पर संघ का नियंत्रण होता है।
5. राज्य प्रतिनिधित्व में समानता का अभाव: संघीय राज्यों में विधायिका में प्रतिनिधित्व समान आधार पर होता है, जो भारतीय राज्यों के मामले में भी लागू नहीं होता है। राज्य सभा में राज्यों का प्रतिनिधित्व समान आधार नहीं है यह राज्य से राज्य पर निर्भर करता है और केंद्र द्वारा विनियमित होता है जो मूल रूप से राज्य की एकात्मक विशेषता है।
6. आपातकालीन प्रावधान: अनुच्छेद 356 के प्रावधानो के आधार पर यह उद्घोषणा के माध्यम से राज्य सरकार को या तो बर्खास्त किया जा सकता है या विधानसभा को निलंबित अवस्था में रखा जा सकता है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि भारत एक पूर्ण संघीय राज्य नहीं है, बल्कि इसकी अनूठी विशेषताओं के कारण केवल एक अर्ध-संघीय राज्य है और ऐसी विशेषतायें अन्य संघों में देखने को नही मिलती हैं |