12 Nov 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- राज्य के नीति निदेशक तत्वों (DPSP) और मौलिक कर्त्तव्यों (FD) के बारे में संक्षिप्त जानकारी देकर अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- DPSP और FD में किये गए संशोधनों पर चर्चा कीजिये।
- DPSP और FD के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) को संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 तक वर्णित किया गया है। संविधान के निर्माताओं ने इस विचार को वर्ष 1937 के आयरिश संविधान से लिया, जिसने इसे स्पेनिश संविधान से लिया था। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इन सिद्धांतों को भारतीय संविधान की 'नई विशेषताओं' के रूप में वर्णित किया।
मौलिक कर्त्तव्यों का विचार भूतपूर्व सोवियत संघ के संविधान से प्रेरित है। इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर संविधान के भाग IV-A में शामिल किया गया था।
मुख्य भाग
राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (DPSP) में किये गए संशोधन
- वर्ष 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम ने मूल सूची में चार नए निदेशक सिद्धांत जोड़े। जो राज्य के लिये आवश्यक है:
- बच्चों के स्वस्थ विकास के लिये अवसरों को सुरक्षित करना (अनुच्छेद 39)।
- समान न्याय को बढ़ावा देना और गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करना (अनुच्छेद 39 A)।
- उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाना (अनुच्छेद 43 A)।
- पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना तथा वनों एवं वन्य जीवों की रक्षा करना (अनुच्छेद 48 A)।
- वर्ष 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा एक और निदेशक सिद्धांत जोड़ा गया, जिसके लिये राज्य को आय, स्थिति, सुविधाओं और अवसरों में असमानताओं को कम करने की आवश्यकता है (अनुच्छेद 38)।
- वर्ष 2002 के 86 वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु को बदल दिया और प्रारंभिक शिक्षा को अनुच्छेद 21 A के तहत एक एक मौलिक अधिकार प्रदान किया गया। संशोधित नीति निदेशक में राज्य को सभी बच्चों की देखभाल और प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है जब तक कि वे छह वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेते।
- वर्ष 2011 के 97वें संशोधन अधिनियम के द्वारा सहकारी समितियों से संबंधित एक नया निदेशक सिद्धांत जोड़ा गया। जिसके तहत राज्य को सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कामकाज, लोकतांत्रिक नियंत्रण और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देना है (अनुच्छेद 43B)।
मौलिक कर्त्तव्यों के लिये संशोधन
- इन मौलिक कर्त्तव्यों की संख्या मूल रूप से 10 थी बाद में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से एक और कर्त्तव्य जोड़ा गया था। सभी ग्यारह कर्त्तव्य संविधान के अनुच्छेद 51-A (भाग- IV-A में एकमात्र अनुच्छेद) में सूचीबद्ध हैं।
- छह से चौदह वर्ष की आयु के बीच अपने बच्चो को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (86 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा जोड़ा गया)।
मौलिक कर्त्तव्यों का महत्त्व:
- लोकतांत्रिक आचरण का निरंतर स्मरण पत्र: मौलिक कर्त्तव्यों का उद्देश्य प्रत्येक नागरिक को एक निरंतर स्मरण पत्र के रूप में यह बताना है , कि संविधान ने विशेष रूप से उन्हें कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं, लेकिन नागरिकों को लोकतांत्रिक आचरण और लोकतांत्रिक व्यवहार के बुनियादी मानदंडों का पालन करने की भी आवश्यकता है।
- असामाजिक गतिविधियों के विरुद्ध चेतावनी: मौलिक कर्त्तव्य ऐसे लोगों के लिये असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ चेतावनी के रूप में कार्य करते हैं जो राष्ट्र का अपमान करते हैं; जैसे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान, सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करना या सार्वजनिक शांति भंग करना आदि।
- अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना: ये राष्ट्र के प्रति अनुशासन और प्रतिबद्धता की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते हैं तथा ये केवल दर्शकों के बजाय नागरिकों की सक्रिय भागीदारी से राष्ट्रीय लक्ष्यों को साकार करने में भी मदद करते हैं।
राज्य के नीति निदेशक तत्वों का महत्त्व (DPSP)
- ये भारतीय संघ के सभी प्राधिकारियों को संबोधित 'निर्देशों के साधन' या सामान्य सिफारिशों की तरह हैं। ये उन्हें नई सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के मूल सिद्धांतों की याद दिलाते हैं, जिसका निर्माण संविधान का लक्ष्य है।
- इन्होने न्यायालयों के लिये उपयोगी प्रकाश स्तम्भ के रूप में तथा न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रयोग करने में (यानी कानून की संवैधानिक वैधता निर्धारित करने की शक्ति) न्यायालयों की मदद की है।
- ये सभी राज्य कार्यों, विधायी या कार्यकारी के लिये प्रमुख पृष्ठभूमि बनाते हैं और कुछ मामलों में न्यायालयों के लिये एक मार्गदर्शक को भूमिका भी निभाते हैं।
- ये प्रस्तावना का विस्तार करते हैं, जो भारत के सभी नागरिकों को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुरक्षित करने का संकल्प करती है।
निष्कर्ष
- राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP) विशिष्ट कार्यों को करने के लिये राज्य पर दायित्व डालते हैं और मौलिक कर्त्तव्य नागरिकों को विशिष्ट भूमिका निभाने के लिये बाध्य करते हैं। इस प्रकार दोनों व्यक्तिगत और सामाजिक कल्याण के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं।