Sambhav-2023

दिवस- 99

प्रश्न.1 भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की चर्चा करते हुए बताइये कि राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) इन प्रभावों को कम करने में किस प्रकार सहायक हो सकता है। (250 शब्द)

प्रश्न.2 आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) पर चर्चा कीजिये। खाद्य पदार्थों की कमी और जलवायु परिवर्तन जैसी दोहरी चुनौतियों से निपटने में GMOs किस प्रकार प्रभावी समाधान हो सकते हैं? (150 शब्द)

03 Mar 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर 1:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारतीय कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • बताइये कि राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) इन प्रभावों को कम करने में किस प्रकार भूमिका निभा रहा है।
  • प्रभावी और समग्र निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • जलवायु परिवर्तन वर्तमान की सबसे महत्त्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों में से एक है और इसका विश्व के समाजों और पारिस्थितिकी तंत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ रहा है।
  • भारत, विश्व के सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक के रूप में, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिये विशेष रूप से संवेदनशील है।
  • भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर बहुत अधिक निर्भर है, जो देश में लाखों लोगों के लिये आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
  • हालाँकि जलवायु परिवर्तन भारत में कृषि क्षेत्र के लिये महत्त्वपूर्ण खतरे पैदा कर रहा है, जिससे फसल की पैदावार, जल की उपलब्धता और आजीविका प्रभावित हो रही है।

मुख्य भाग:

जलवायु परिवर्तन का भारतीय कृषि पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है, जो देश की अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है और लाखों लोगों के लिये आजीविका का स्रोत है। निम्नलिखित तरीके से जलवायु परिवर्तन भारतीय कृषि को प्रभावित कर रहा है:

  • मौसम प्रतिरूप में बदलाव: जलवायु परिवर्तन के कारण अधिक चरम मौसमी घटनाएँ हो रही हैं, जिनमें सूखा, बाढ़ और हीट वेव शामिल हैं, जो कृषि गतिविधियों को बाधित कर रही हैं। अनियमित और अप्रत्याशित वर्षा के पैटर्न से फसलें खराब हो सकती हैं और अत्यधिक गर्मी से फसलों, मृदा और सिंचाई प्रणालियों को नुकसान पहुँच सकता है।
  • फसल की पैदावार और गुणवत्ता: बढ़ता तापमान, वर्षा के पैटर्न में बदलाव और चरम मौसमी घटनाएँ की बढ़ती आवृत्ति भारत में फसलों की मात्रा और गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार और गुणवत्ता में गिरावट से खाद्य असुरक्षा एवं उच्च खाद्य कीमतों के साथ किसानों की आय में गिरावट हो सकती है।
  • कीट और रोग: जलवायु परिवर्तन से कीटों और रोगों के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा हो रही हैं, जिससे फसलों को नुकसान और उपज कम होने के साथ कीटनाशकों के उपयोग में वृद्धि हो सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में टिड्डियों जैसे कीट और गेहूँ के ब्लैक रस्ट जैसे रोगों का प्रचलन बढ़ रहा है।
  • जल की उपलब्धता: जलवायु परिवर्तन से सिंचाई, पीने और अन्य उपयोगों के लिये जल की उपलब्धता और गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। बारिश के बदलते पैटर्न, पिघलते ग्लेशियर और समुद्र का बढ़ता स्तर भारत की नदियों, झीलों और भूजल भंडार को प्रभावित कर रहा है।
  • किसानों की आजीविका: छोटे किसान (जो भारत के कृषि क्षेत्र की रीढ़ हैं) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं। जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं से किसानों की आय सीमित हो सकती है।

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA):

  • राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन को टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने और भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने हेतु भारत सरकार द्वारा वर्ष 2010 में शुरू किया गया था।
  • इस मिशन को कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जाता है और इसका उद्देश्य स्थायी कृषि के विभिन्न घटकों को एकीकृत करना है जिसमें मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, जल उपयोग दक्षता, आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं शमन रणनीतियाँ शामिल हैं।
  • NMSA जलवायु-अनुकूल कृषि प्रणालियों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। इस मिशन के तहत स्थानीय परिस्थितियों के लिये सबसे उपयुक्त प्रणाली जैसे कि फसल विविधीकरण, कृषि वानिकी, एकीकृत कीट प्रबंधन और संरक्षण कृषि को अपनाने पर बल दिया जाता है।
  • इसका उद्देश्य जलवायु-अनुकूल कृषि प्रथाओं और प्रौद्योगिकियों पर जानकारी और ज्ञान प्रदान करके जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये किसानों की क्षमता को बढ़ाना है।
  • NMSA को विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है, जिसमें राज्य सरकारें इस मिशन के तहत योजना बनाने और उन्हें क्रियान्वित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  • इस मिशन के तहत टिकाऊ कृषि पद्धतियों के कार्यान्वयन, किसानों के क्षमता निर्माण और जलवायु-अनुकूल कृषि प्रणालियों के विकास हेतु राज्य सरकारों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने का प्रावधान है।
  • यह टिकाऊ कृषि और जलवायु-अनुकूल फसल प्रणालियों के विकास से संबंधित अनुसंधान और विकास गतिविधियों का भी समर्थन करता है।

निष्कर्ष:

जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जिसके लिये एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना, फसल प्रबंधन प्रथाओं में सुधार करना, जलवायु-अनुकूल फसलों का विकास करना, जल प्रबंधन को बढ़ावा देना और बदलती परिस्थितियों के अनुकूल छोटे पैमाने के किसानों का समर्थन करना शामिल है। भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन के लिये भारतीय कृषि के अनुकूलन को बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है। पारिस्थितिकी रूप से मजबूत और जलवायु-अनुकूल कृषि प्रणालियों को अपनाने पर बल देकर, NMSA का उद्देश्य किसानों की आजीविका में सुधार करना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और भारत के सतत विकास लक्ष्यों में योगदान करना है।


उत्तर 2:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि GMOs भोजन की कमी और जलवायु परिवर्तन की दोहरी चुनौतियों से निपटने में किस प्रकार सहायक है।
  • उचित और समग्र निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) का आशय ऐसे जीवों से है जिनकी आनुवंशिक प्राकृतिक विशेषताओं को परिवर्तित कर दिया जाता है।
  • ऐसा जीन को जोड़कर या हटाकर, डीएनए अनुक्रम को बदलकर या एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में जीन स्थानांतरित करके किया जाता है।
  • GMOs का उपयोग कृषि, चिकित्सा और जैव प्रौद्योगिकी सहित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।

मुख्य भाग:

  • कृषि में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों को पौधों के डीएनए में बाहरी जीनों के प्रवेश से बनाया जाता है ऐसा कीटों के प्रति प्रतिरोध एवं शाकनाशियों के प्रति सहनशीलता विकसित करने के साथ पैदावार में वृद्धि करने हेतु किया जाता है।
  • उदाहरण के लिये प्राकृतिक कीटनाशक का उत्पादन करने वाले जीवाणु से जीन निकालकर कपास, मक्का और सोयाबीन में प्रवेश कराया गया है जिससे यह पौधे कुछ कीटों के प्रतिरोधी हुए हैं।
  • इसी तरह से कुछ फसलों को शाकनाशियों के प्रभाव से बचाने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया है जिससे किसान फसलों को नुकसान पहुँचाए बिना खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिये इनका उपयोग कर सकते हैं।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों में पैदावार बढ़ाने, कीटनाशकों के उपयोग को कम करने और खाद्य सुरक्षा में सुधार करने की क्षमता होती है लेकिन इसके पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर संभावित प्रभाव के बारे में भी चिंता व्यक्त की जाती है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (GMOs) में कई प्रकार से भोजन की कमी और जलवायु परिवर्तन की दोहरी चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता है जैसे:

  • GMOs द्वारा फसल की पैदावार में सुधार करके और कीटों, बीमारियों एवं पर्यावरणीय असंतुलन के प्रति फसलों को अधिक प्रतिरोधी बनाकर खाद्य उत्पादन बढ़ाने के साथ भोजन की कमी को दूर किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये कुछ आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों को स्वयं के कीटनाशकों का उत्पादन करने या शाकनाशियों का प्रतिरोध करने के लिये विकसित किया गया है, जिनसे किसानों को कीटों और खरपतवारों को अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के साथ अधिक उपज प्राप्त हो सकती है।
  • GMOs द्वारा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और संसाधन दक्षता में सुधार के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायता मिल सकती है।
    • उदाहरण के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें जिनमें जल, उर्वरक और कीटनाशक के रूप में कम निवेश की आवश्यकता होती है, से कार्बन उत्सर्जन को कम करने और संसाधनों के संरक्षण में मदद मिल सकती है। आनुवंशिक रूप से संशोधित कुछ फसलों को अधिक सूखा-सहिष्णु बनाने के लिये विकसित किया गया है जो किसानों को बदलते मौसम के पैटर्न और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती हैं।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें खाद्य पदार्थों को बेकार होने से बचाने एवं फसलों की अवधि और पोषण मूल्य में सुधार करके खाद्य सुरक्षा बढ़ाने में मदद कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये कुछ आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों को खराब होने से बचाने या अधिक पोषक तत्वों से युक्त बनाने के लिये विकसित किया गया है जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि भोजन लंबे समय तक खाने योग्य बने रहने के साथ पौष्टिक बना रहे।

निष्कर्ष:

GMOs के संदर्भ में सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रभावों और संभावित अनपेक्षित परिणामों के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं। इसलिये यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि जीएमओ का उपयोग उचित विनियामक निरीक्षण और वैज्ञानिक मूल्यांकन के साथ किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इससे समाज को लाभ प्राप्त हो। जीएमओ में खाद्य असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने की काफी क्षमता है। हालांकि सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये इनका उपयोग वैज्ञानिक अनुसंधान, नियामक निरीक्षण और नैतिक विचारों द्वारा निर्देशित होना चाहिये। इस क्षेत्र में ज़िम्मेदारीपूर्ण एवं तार्किक निर्णय लेने के लिये पारदर्शी सार्वजनिक संवाद के साथ जागरूकता बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।