दिवस- 98
प्रश्न.1 महासागरीय अम्लीकरण पर चर्चा कीजिये। यह समुद्री जैव विविधता को कैसे प्रभावित करेगा? (150 शब्द)
प्रश्न.2 जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन क्षरण आपस में किस प्रकार संबंधित हैं? चर्चा कीजिये कि अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत का क्षरण अधिकतम क्यों होता है? (150 शब्द)
02 Mar 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | पर्यावरण
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- महासागरीय अम्लीकरण का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- सागरीय जैव विविधता पर अम्लीकरण के प्रभाव की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- महासागरीय अम्लीकरण का आशय समुद्र के जल के पीएच में निरंतर कमी होना है, जिसका कारण वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का अवशोषण करना होता है।
- जब CO2 समुद्री जल में घुल जाती है तो इससे कार्बोनिक अम्ल बनता है, जिसके कारण जल की अम्लता बढ़ जाती है।
- महासागरीय अम्लीकरण की यह प्रक्रिया कई दशकों से चल रही है जिसका मुख्य कारण जीवाश्म ईंधन को जलाना है जिससे बड़ी मात्रा में वायुमंडल में CO2 का उत्सर्जन होता है।
मुख्य भाग:
- महासागरों की बढ़ती अम्लता का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र और इस पर निर्भर जीवों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है:
- कंकाल (आवरण) निर्माण: कई समुद्री जीव जैसे मोलस्क, कोरल और प्लैंकटन की कुछ प्रजातियाँ अपने कंकाल के विकास हेतु कैल्शियम कार्बोनेट पर निर्भर होते हैं। हालाँकि अधिक अम्लीय समुद्री जल में कैल्शियम कार्बोनेट की उपलब्धता में कमी आती है, जिससे इन जीवों के लिये अपने कंकाल को बनाना और बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इससे कमजोर या विकृत कंकाल होने के साथ इनकी मृत्यु भी हो सकती है।
- खाद्य श्रृंखला बाधित होना: महासागरीय अम्लीकरण से खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिये प्लैंकटन की कुछ प्रजातियाँ समुद्री खाद्य श्रृंखला का आधार होती हैं और यह कई अन्य प्रजातियों के अस्तित्व के लिये आवश्यक होती हैं। इनमें गिरावट आने से संपूर्ण खाद्य श्रृंखला प्रभावित हो सकती है।
- मछलियों पर प्रभाव पड़ना: महासागरीय अम्लीकरण से मछलियों का व्यवहार भी प्रभावित हो सकता है। अध्ययनों से पता चला है कि बढ़ी हुई अम्लता से शिकारियों का पता लगाने या भोजन का पता लगाने की मछलियों की क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे इनकी संख्या में गिरावट आ सकती है।
- जैव विविधता की हानि होना: समुद्र के अम्लीकरण से समुद्री जैव विविधता में गिरावट आ सकती है। इसमें कुछ प्रजातियाँ पीएच स्तर में बदलाव के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती हैं, जिससे प्रभावित क्षेत्रों में प्रजातियों की विविधता में कमी आती है।
- प्रवाल विरंजन होना: प्रवाल, समुद्र के अम्लीकरण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। बढ़ी हुई अम्लता से प्रवाल विरंजन हो सकता है। जिससे कई अन्य प्रजातियों के आवास और सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है।
निष्कर्ष:
महासागरीय अम्लीकरण का समुद्री जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अम्लीकरण के प्रभावों का संपूर्ण खाद्य श्रृंखला पर प्रभाव होने से जीवों के कंकाल का कमजोर होना, जीवों के व्यवहार में परिवर्तन आने के साथ प्रजातियों की संख्या में गिरावट आ सकती है। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के साथ समुद्री जैव विविधता की रक्षा हेतु अन्य कदम उठाने से महासागरों पर होने वाले विपरीत प्रभावों को कम किया जा सकता है।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- ओज़ोन क्षरण और जलवायु परिवर्तन के संबंध के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत के अधिक क्षरण के कारणों का वर्णन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन क्षरण दो अलग-अलग लेकिन परस्पर जुड़ी पर्यावरणीय समस्याएँ हैं। मानव गतिविधियाँ जैसे कि जीवाश्म ईंधन को जलाने और रसायनों के उपयोग से इसे बढ़ावा मिलता है।
- जीवाश्म ईंधन को जलाने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होने के कारण वातावरण में ऊष्मा में वृद्धि होती है जिससे ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों का निर्माण होता है।
- ओज़ोन क्षरण के लिये जिम्मेदार कई रसायन जैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) भी शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है जिसकी जलवायु परिवर्तन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- ओज़ोन परत के क्षरण का प्रभाव जलवायु पर भी पड़ सकता है। ओज़ोन परत सूर्य से निकलने वाले पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित करती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण पवन के पैटर्न और तापमान में होने वाले परिवर्तन से ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों का वितरण और क्षय प्रभावित हो सकता है।
- निचले वातावरण में तापमान वृद्धि से ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलों के निर्माण को बढ़ावा देने वाली स्थिति पैदा हो सकती है जिसकी ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों के विघटन में भूमिका होती है।
- इन दोनों मुद्दों को हल करने के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने हेतु ठोस प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
मुख्य भाग:
- अद्वितीय वायुमंडलीय और मौसम संबंधी स्थितियों के कारण अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत का अधिक क्षरण होता है जिससे तथाकथित "ओज़ोन छिद्र" हेतु अनुकूल वातावरण बनता है। इसके कुछ प्रमुख कारक हैं जैसे:
- ध्रुवीय भंवर: सर्दियों के महीनों के दौरान अंटार्कटिक क्षेत्र में ध्रुवीय भंवर का विकास होता है जो इस क्षेत्र को विश्व के बाकी हिस्सों से अलग करता है। इससे ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलों के निर्माण के लिये अनुकूल स्थिति बनती है, जो छोटे बर्फ के क्रिस्टल से बने होते हैं जो क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसे ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों के साथ प्रतिक्रिया कर सकते हैं जिससे क्लोरीन अणुओं का उत्सर्जन होता है। ये क्लोरीन अणु वायुमंडल में ओज़ोन के अणुओं को विघटित करते हैं जिससे ओज़ोन छिद्र बनता है।
- निम्न तापमान होना: अंटार्कटिक क्षेत्र में अत्यधिक ठंडे तापमान के कारण स्थिर वायुमंडलीय दशाएँ विकसित होती हैं जिससे वायुमंडल की निचली और ऊपरी परतों के बीच वायु का मिश्रण नहीं हो पाता है। इसका अर्थ यह है कि ओज़ोन क्षयकारी वायु, सतह के पास संग्रहित हो जाती है।
- ओज़ोन क्षयकारी अभिक्रियाएँ: ध्रुवीय समतापमंडलीय बादलों, निम्न तापमान और ओज़ोन-क्षयकारी रसायनों की उपस्थिति से विभिन्न ओज़ोन क्षयकारी अभिक्रियाएँ होती हैं। सीएफसी के विघटन से निकलने वाले क्लोरीन अणु ओज़ोन अणुओं के साथ प्रतिक्रिया करके इन्हें ऑक्सीजन अणुओं में तोड़ देते हैं।
- मौसम में होने वाला परिवर्तन: इस क्षेत्र में ओज़ोन परत का अधिकतम क्षरण अंटार्कटिक वसंत ऋतु (सितंबर से नवंबर) के दौरान होता है, जब कई महीनों के अंधेरे के बाद सूर्य का इस क्षेत्र की ओर गमन होता है। इस समय अधिक यूवी विकिरण के कारण ओज़ोन क्षयकारी अभिक्रियाओं में वृद्धि होती है जिससे ओज़ोन छिद्र का निर्माण होता है।
निष्कर्ष:
मानवीय गतिविधियों से वातावरण में सीएफसी जैसी गैसों के उत्सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन और ओज़ोन क्षरण जैसी अंतर्संबंधित चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। इसलिये व्यक्तियों और सरकारों के लिये यह आवश्यक है कि वे ओज़ोन-क्षयकारी गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये निर्णायक कार्रवाई करने के साथ स्थायी भविष्य को सुरक्षित करने के क्रम में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने का प्रयास करें। अद्वितीय वायुमंडलीय और मौसम संबंधी स्थितियों के कारण अंटार्कटिक क्षेत्र में ओज़ोन परत का अधिक क्षरण होता है। ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों के उत्पादन और उपभोग को समाप्त करने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के कारण हाल के वर्षों में ओज़ोन छिद्र के आकार में कमी आई है। भविष्य में ओज़ोन परत को पूरी तरह से ठीक करने के लिये इस दिशा में नियमित निगरानी और निरंतर कार्रवाई किया जाना आवश्यक है।