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Sambhav-2023

  • 01 Mar 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस- 97

    प्रश्न.1 वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA) के तहत संरक्षित जानवरों पर चर्चा कीजिये। इस अधिनियम में हाल ही में वर्ष 2021 में किया गया संशोधन किस प्रकार से वन्यजीव संरक्षण में अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दे सकता है? (250 शब्द)

    प्रश्न.2 भारत में भौगोलिक रूप से प्रतिबंधित वन्यजीव संरक्षण उपागम जैसे राष्ट्रीय उद्यान और बायोस्फीयर रिज़र्व किस सीमा तक सफल रहे हैं? वन्यजीव संरक्षण के कुछ अन्य उपाय सुझाइए। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA), 1972 के तहत संरक्षित जानवरों के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में किये गए हाल के संशोधनों के योगदान की चर्चा कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA), 1972 को जंगली जानवरों और पौधों की रक्षा करने और उनके अवैध शिकार एवं व्यापार को विनियमित करने के लिये लागू किया गया था।
    • इस अधिनियम में वन्यजीवों की विभिन्न श्रेणियों को परिभाषित किया गया है जिनमें संरक्षित जानवर भी शामिल हैं, जिन्हें कानून के तहत उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान की गई है।
    • संरक्षित जानवरों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची I से V में सूचीबद्ध किया गया है और इनके संरक्षण की स्थिति और खतरे के स्तर के अनुसार इन्हें वर्गीकृत किया गया है।

    मुख्य भाग:

    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में वन्यजीवों और उनके निवास स्थान की सुरक्षा को मजबूत करने के लिये पिछले कुछ वर्षों में कई संशोधन किये गए हैं। हाल ही में वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 को वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन हेतु लाया गया है। यह विधेयक कानून के तहत संरक्षित प्रजातियों को बढ़ाने और वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) को लागू करने पर केंद्रित है।
    • इस विधेयक की प्रमुख विशेषताएँ:
      • CITES: यह सरकारों के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो यह सुनिश्चित करता है कि जंगली जानवरों और पौधों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से इन प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा न हो। CITES के तहत पौधों और जानवरों को उनके विलुप्त होने के खतरे के आधार पर तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। इस कन्वेंशन के अनुसार देशों को परमिट के माध्यम से सभी सूचीबद्ध पौधों और जानवरों के व्यापार को विनियमित करने की आवश्यकता है। यह विधेयक CITES के इन प्रावधानों को लागू करने पर केंद्रित है।
      • अनुसूचियों को युक्तिसंगत बनाना: वर्तमान में इस अधिनियम में विशेष रूप से संरक्षित पौधों के लिये एक, विशेष रूप से संरक्षित जानवरों के लिये चार और वर्मिन प्रजातियों के लिये एक अनुसूची के साथ कुल छह अनुसूचियाँ हैं। वर्मिन का आशय छोटे रोगजनक और भोजन को नष्ट करने वाले जीवों से है। इस विधेयक में इन अनुसूचियों की कुल संख्या को घटाकर चार करने का प्रावधान है: (i) विशेष रूप से संरक्षित जानवरों के लिये अनुसूचियों की संख्या घटाकर दो (अधिक सुरक्षा स्तर के लिये एक), (ii) वर्मिन प्रजातियों की अनुसूची को हटाना और (iii) CITES के तहत परिशिष्ट में सूचीबद्ध प्रजातियों के लिये नई अनुसूची को शामिल करना।
      • CITES के तहत दायित्व: यह विधेयक केंद्र सरकार के लिये निम्नलिखित के गठन करने का प्रावधान करता है: (i) प्रबंधन प्राधिकरण, जो प्रजातियों के व्यापार के लिये निर्यात या आयात परमिट देता है और (iii) वैज्ञानिक प्राधिकरण, जो व्यापार की जाने वाली प्रजातियों के अस्तित्व के प्रभाव से संबंधित पहलुओं पर सलाह देता है। इसके तहत संरक्षित प्रजातियों के व्यापार में संलग्न प्रत्येक व्यक्ति को लेन-देन का विवरण प्रबंधन प्राधिकरण को देना आवश्यक है। CITES के अनुसार, प्रबंधन प्राधिकरण प्रजातियों के लिये एक पहचान चिह्न का उपयोग कर सकता है। यह विधेयक किसी भी व्यक्ति को प्रजातियों के पहचान चिह्न को संशोधित करने या हटाने से रोकता है। इसके अतिरिक्त संरक्षित प्रजातियों को रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रबंधन प्राधिकरण से एक पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा।
      • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ: यह केंद्र सरकार को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आयात, व्यापार या प्रसार को विनियमित या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है। आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ पौधों या जानवरों की ऐसी प्रजातियाँ होती हैं जो भारत की मूल प्रजातियाँ नहीं हैं और जिनकी उपस्थिति से वन्यजीव या इसके आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। केंद्र सरकार किसी अधिकारी को आक्रामक प्रजातियों को समाप्त करने के लिये अधिकृत कर सकती है।
      • अभयारण्यों का नियंत्रण: यह मुख्य वन्यजीव अधिकारी को किसी राज्य में सभी अभयारण्यों को नियंत्रित करने, प्रबंधित करने और बनाए रखने का कार्य सौंपता है। मुख्य वन्यजीव अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है। यह विधेयक निर्दिष्ट करता है कि मुख्य वन्यजीव अधिकारी की कार्रवाई अभयारण्य के लिये निर्धारित प्रबंधन योजनाओं के अनुसार होनी चाहिये। इन योजनाओं को केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार और मुख्य वन्यजीव अधिकारी द्वारा दिये गए अनुमोदन के अनुसार तैयार किया जाएगा। विशेष क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले अभयारण्यों के लिये, संबंधित ग्राम सभा के साथ उचित परामर्श के बाद प्रबंधन योजना तैयार की जानी चाहिये। विशेष क्षेत्रों में अनुसूचित क्षेत्र या वे क्षेत्र शामिल हैं जहाँ अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 लागू है। अनुसूचित क्षेत्र आर्थिक रूप से ऐसे पिछड़े क्षेत्र हैं जहाँ मुख्य रूप से आदिवासी आबादी रहती है और इन्हें संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचित किया गया है।
      • संरक्षण रिज़र्व: इस अधिनियम के तहत राज्य सरकारें वनस्पतियों और जीवों तथा उनके आवास की रक्षा के लिये राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्यों के आस-पास के क्षेत्रों को संरक्षण रिज़र्व के रूप में घोषित कर सकती हैं। यह विधेयक केंद्र सरकार को भी एक संरक्षण रिज़र्व को अधिसूचित करने का अधिकार देता है।
      • दंड: WPA अधिनियम,1972 में अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कारावास की सज़ा तथा जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस विधेयक में दंड के प्रावधानों में भी वृद्धि की गई है।

    निष्कर्ष:

    WLPA में हाल ही में किये गए संशोधन के तहत वन्यजीव संबंधी अपराधों के लिये अधिक कठोर दंड का प्रावधान करके, प्रवर्तन एजेंसियों को मजबूत करके, सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देकर और वन्यजीव आवासों और गलियारों का संरक्षण करके वन्यजीव संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान मिल सकता है। ये संशोधन भारत में वन्यजीवों और उनके आवास के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भौगोलिक रूप से प्रतिबंधित वन्यजीव संरक्षण उपागमों के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • वन्यजीव संरक्षण में इस उपागम की सफलता की चर्चा कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • भौगोलिक रूप से प्रतिबंधित वन्यजीव संरक्षण उपागम जैसे कि राष्ट्रीय उद्यान और बायोस्फीयर रिज़र्व, भारत में काफी हद तक सफल रहे हैं।
    • इनका उद्देश्य विशिष्ट क्षेत्रों में वन्यजीवों और उनके आवासों की रक्षा करना है जो सख्त दिशानिर्देशों के तहत सीमांकित और प्रबंधित होते हैं।
    • इन क्षेत्रों को अक्सर सरकारों द्वारा संरक्षित क्षेत्रों के रूप में नामित किया जाता है जहाँ मानवीय गतिविधियाँ (जो पर्यावरण या वन्यजीव को नुकसान पहुँचा सकती हैं) प्रतिबंधित या निषिद्ध होती हैं।
    • भारत में पारिस्थितिकी तंत्र की अद्वितीय जैव विविधता की रक्षा के लिये देश भर में विभिन्न प्रकार के संरक्षित क्षेत्र स्थापित किये गए हैं।

    मुख्य भाग:

    • भारत में भौगोलिक रूप से प्रतिबंधित वन्यजीव संरक्षण उपागम की कुछ सफलताओं में शामिल हैं:
      • कुछ प्रजातियों की संख्या में वृद्धि होना:
        • कुछ राष्ट्रीय उद्यानों और बायोस्फीयर रिज़र्व में संरक्षण के प्रयासों के कारण बाघ, गैंडे और हाथी की संख्या में वृद्धि हुई है।
        • उदाहरण के लिये भारत में बाघों की संख्या (मुख्य रूप से राष्ट्रीय उद्यानों और बायोस्फीयर रिज़र्व में) वर्ष 2006 के 1,411 से बढ़कर वर्ष 2021 में 2,967 हो गई है ।
      • विशिष्ट आवासों का संरक्षण होना:
        • राष्ट्रीय उद्यान और बायोस्फीयर रिज़र्व विशिष्ट आवास स्थलों जैसे आर्द्रभूमि, घास के मैदान और वनों के संरक्षण में सफल रहे हैं।
        • केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और ग्रेट हिमालयन राष्ट्रीय उद्यान जैसे संरक्षित क्षेत्र विशिष्ट आवासों की रक्षा करने में सफल रहे हैं और इन्हें महत्त्वपूर्ण जैव विविधता हॉटस्पॉट के रूप में मान्यता दी गई है।
      • स्थानीय समुदायों की सहायता करना:
        • राष्ट्रीय उद्यानों और बायोस्फीयर रिज़र्व की स्थापना से स्थानीय समुदायों को आजीविका के अवसर मिले हैं।
        • उदाहरण के लिये कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा मिलने से स्थानीय समुदायों को रोज़गार के अवसर मिले हैं।
      • संरक्षण प्रयासों को मजबूती मिलना:
        • राष्ट्रीय उद्यानों और बायोस्फीयर रिज़र्व की स्थापना से संरक्षण प्रयासों को मजबूती मिली है और भारत में संरक्षित क्षेत्रों के बेहतर नेटवर्क का निर्माण हुआ है।
        • इससे वन्यजीव संरक्षण के महत्त्व और प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा की आवश्यकता के बारे में अधिक जागरूकता बढ़ाने में मदद मिली है।
    • हालाँकि भारत में भौगोलिक रूप से प्रतिबंधित वन्यजीव संरक्षण उपागम की चुनौतियाँ और सीमाएँ भी हैं जैसे:
      • मानव-वन्यजीव संघर्ष:
        • जैसे-जैसे मनुष्यों और जानवरों की आबादी बढ़ती जा रही है मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में वृद्धि हुई है (विशेष रूप से राष्ट्रीय उद्यानों और बायोस्फीयर रिज़र्व के आसपास के क्षेत्रों में)।
      • सीमित संसाधनों का होना:
        • राष्ट्रीय उद्यानों और बायोस्फीयर रिज़र्व में संरक्षण प्रयासों के लिये आवंटित संसाधन अक्सर सीमित होते हैं, जो संरक्षण उपायों की प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकते हैं।
      • सीमित कनेक्टिविटी होना:
        • संरक्षित क्षेत्रों के बीच सीमित कनेक्टिविटी होने से प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता प्रभावित हो सकती है।
    • वन्यजीव संरक्षण के अन्य तरीके:
      • अवैध शिकार को रोकना: अवैध शिकार वन्यजीवों की संख्या में कमी आने के प्रमुख कारणों में से एक है। अवैध शिकार को रोकने के लिये अवैध शिकार विरोधी उपाय जैसे कि गश्त करना, निगरानी और खुफिया जानकारी एकत्र करना तथा वन्यजीव कानूनों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है।
      • वन्यजीव पुनर्वास और बचाव प्रयास करना: वन्यजीव पुनर्वास केंद्र से घायल और बीमार जानवरों को सहायता मिल सकती है। इन केंद्रों का उद्देश्य जानवरों को तब तक चिकित्सा देखभाल, पोषण और आश्रय प्रदान करना होता है जब तक कि वे जंगल में वापस जाने के अनुकूल नहीं हो जाते हैं।
      • जागरूकता का प्रसार करना: लोगों को वन्यजीवों के महत्त्व और पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी भूमिका के बारे में शिक्षित करने से इनमें वन्यजीवों की रक्षा करने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद मिल सकती है। इसमें लोगों को अवैध शिकार के खतरों, वन्यजीव आवासों के महत्त्व और टिकाऊ जीवन के लाभों के बारे में बताने वाले कार्यक्रम शामिल हो सकते हैं।
      • सतत् वन्यजीव पर्यटन को अपनानाना: सतत् वन्यजीव पर्यटन से वन्यजीवों और उनके आवासों के संरक्षण में योगदान मिल सकता है। इससे वन्यजीव आवासों के पास रहने वाले समुदायों को आर्थिक प्रोत्साहन मिलने से उनके द्वारा की जाने वाली अवैध शिकार जैसी गतिविधियों में कमी आ सकती है।
      • अनुसंधान और निगरानी करना: वन्यजीवों की संख्या और उनके आवासों की निगरानी से संरक्षण प्रयासों के लिये मूल्यवान डेटा मिल सकता है। इसमें वन्यजीवों के व्यवहार, आनुवंशिकी और संख्या में होने वाले परिवर्तन पर शोध करना शामिल है जिससे खतरों की पहचान करने और तार्किक संरक्षण रणनीतियों को अपनाने में मदद मिल सकती है।
      • सतत् विकास पर बल देना: सतत् विकास के तहत संरक्षण के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने के तरीके खोजना शामिल है। इसे ऐसी नीतियों को लागू करके प्राप्त किया जा सकता है जो प्राकृतिक संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा देती हैं, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा और टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ।

    निष्कर्ष:

    भौगोलिक रूप से प्रतिबंधित वन्यजीव संरक्षण उपागम जैसे कि राष्ट्रीय उद्यान और बायोस्फीयर रिज़र्व भारत में वन्यजीवों और उनके आवासों की रक्षा करने में सफल रहे हैं। इसके साथ इसकी कुछ सीमाएँ और चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करने के क्रम में हल करने की आवश्यकता है।

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