प्रश्न.1 पारिस्थितिकी तंत्र और इसके कार्यों जैसे ऊर्जा प्रवाह, पोषक चक्र तथा पारिस्थितिकी अनुक्रमण पर उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 जिस प्रकार से वर्षावन पृथ्वी के फेफड़ों के रूप में कार्य करते हैं उसी प्रकार से मैंग्रोव इसके गुर्दे के रूप में कार्य करते हैं। मैंग्रोव के महत्त्व की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- पारिस्थितिक तंत्र का परिचय दीजिये।
- पारिस्थितिक तंत्र के कार्यों जैसे ऊर्जा प्रवाह, पोषक चक्र और पारिस्थितिकी अनुक्रमण को उदाहरणों सहित बताइये।
- समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
जैविक और अजैविक घटकों के अंतर्संबंधों से निर्मित संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। जीव आपस में तथा अपने पर्यावरण से जुड़े रहते हैं और मिलकर पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं। पारिस्थिकी तंत्र अथवा पारितंत्र का आकार एक छोटे तालाब से लेकर विशाल महासागर तक हो सकता है।
पारिस्थितिकी तंत्र के कुछ उदाहरणों में वन, महासागर, रेगिस्तान, घास के मैदान और आर्द्रभूमि शामिल हैं।
मुख्य भाग:
पारिस्थितिकी तंत्र में सजीव और निर्जीव घटकों की परस्पर क्रिया तथा उनके बीच ऊर्जा एवं पदार्थ का आदान-प्रदान शामिल होता है। पारिस्थितिकी तंत्र के प्रमुख कार्य निम्न हैं:
- ऊर्जा प्रवाह: पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का एकदिशीय प्रवाह होता है, जो सूर्य से शुरू होकर उत्पादकों से लेकर उपभोक्ताओं और अपघटकों तक विभिन्न स्तरों से गुजरती है। ऊर्जा का यह प्रवाह पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत सभी गतिविधियों को बल प्रदान करता है।
- उदाहरण के लिये घास के मैदान के पारिस्थितिकी तंत्र में घास प्राथमिक उत्पादक है, जिसका अर्थ है कि यह प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से अपना भोजन स्वयं बनाती है।
- तब घास का सेवन शाकाहारियों द्वारा किया जाता है जैसे कि खरगोश या हिरण, जो प्राथमिक उपभोक्ता हैं।
- जब ये घास खाते हैं तो घास में संचित ऊर्जा शाकाहारियों में स्थानांतरित हो जाती है।
- फिर शिकारियों द्वारा शाकाहारियों का सेवन किया जाता है,जो द्वितीयक उपभोक्ता कहलाते हैं।
- अंत में बैक्टीरिया और कवक जैसे अपघटक, जीवों के अवशेषों को अपघटित करते हैं जिससे पोषक तत्व वापस मृदा में मिल जाते हैं, जिसका उपयोग प्राथमिक उत्पादकों द्वारा ऊर्जा प्रवाह चक्र को फिर से शुरू करने के लिये किया जा सकता है।
- पोषक तत्वों का चक्रण: कार्बन, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्वों का पारिस्थितिकी तंत्र के सजीव और निर्जीव घटकों के बीच चक्रण होता है। उत्पादकों द्वारा पर्यावरण से पोषक तत्व लिये जाते हैं और उनका उपयोग अपने विकास के लिये किया जाता है जिनका बाद में उपभोक्ताओं द्वारा उपभोग किया जाता है। जब जीव मृत हो जाते हैं तो अपघटकों द्वारा इनके शरीर को अपघटित कर दिया जाता है जिससे पोषक तत्व मृदा या जल में मिल जाते हैं जिनका अन्य जीवों द्वारा पुन: उपयोग कर लिया जाता है।
- पारिस्थितिकी तंत्र में पोषक चक्रण का उदाहरण वन पारिस्थितिकी क्षेत्र में देखा जा सकता है।
- वन पारिस्थितिकी तंत्र में गिरी हुई पत्तियाँ और अन्य कार्बनिक पदार्थ प्राथमिक उत्पादकों जैसे कि पेड़, झाड़ियाँ एवं फर्न के लिये पोषक तत्व प्रदान करते हैं।
- प्राथमिक उत्पादक मृदा से पोषक तत्व लेते हैं जिसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम शामिल होते हैं और इनका उत्पादन में उपयोग किया जाता है।
- जैसे-जैसे वन में पेड़ और अन्य प्राथमिक उत्पादक बढ़ते हैं तो उनमें से कुछ मृत हो जाते हैं या इनकी पत्तियाँ गिर जाती हैं जिनका उपयोग कवक, बैक्टीरिया और कीटों जैसे अपघटकों द्वारा भोजन के रूप में किया जाता है।
- ये अपघटक कार्बनिक पदार्थों को सरल यौगिकों में तोड़ देते हैं जिससे पोषक तत्व वापस मृदा में मिल जाते हैं।
- इस प्रक्रिया को अपघटन कहा जाता है और यह पोषक चक्र का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
- जैव विविधता: पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों की प्रजातियाँ मिलती हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में सहायक हैं। जैव विविधता से कई प्रकार की पारिस्थितिकी सेवाएँ भी मिलती हैं जैसे परागण, कीट नियंत्रण और जल शोधन।
- कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र में, जैव विविधता का उदाहरण देखा जा सकता है। प्रवाल भित्तियाँ पृथ्वी पर सबसे विविध और उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में शामिल हैं जिसमें मछली, अकशेरूकीय और पादप सहित विभिन्न प्रकार की प्रजातियाँ मिलती हैं।
- कोरल कई अन्य जीवों के रहने और वृद्धि के लिये एक जटिल संरचना प्रदान करते हैं। इनका छोटे प्रकाश संश्लेषक शैवालों के साथ सहजीवी संबंध भी होता है जिन्हें जूजैन्थेली कहा जाता है, जो प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कोरल को पोषक तत्व और ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।
- पारिस्थितिकी अनुक्रमण: पारिस्थितिकी अनुक्रमण एक क्रमिक प्रक्रिया है जिसके तहत प्राकृतिक असंतुलन या अन्य पर्यावरणीय परिवर्तनों के परिणामस्वरूप समय के साथ पारिस्थितिकी तंत्र में होने वाला परिवर्तन शामिल है। वन पारिस्थितिक तंत्र के क्रमिक विकास में पारिस्थितिक अनुक्रमण का उदाहरण देखा जा सकता है।
- वनाग्नि, आँधी या वनों की कटाई से सभी या अधिकांश वनस्पतियों का नुकसान होने से किसी क्षेत्र में नई प्रजातियों का विकास प्रेरित होता है जैसे कि घास, जड़ी-बूटी वाले पौधे या झाड़ियाँ, जो खुले क्षेत्रों के लिये अनुकूलित होती हैं।
- समय के साथ इन प्रजातियों के माध्यम से मृदा में कार्बनिक पदार्थ एवं मृदा की उर्वरता बढ़ने से, मृदा की संरचना में सुधार होने के साथ पर्यावरण में परिवर्तन शुरू हो जाता है।
- जिससे यहाँ छोटे पेड़-पौधों के विकास से अंततः वन क्षेत्र का विकास होता है।
निष्कर्ष:
पारिस्थितिकी तंत्र जटिल और गतिशील प्रणाली है जो पृथ्वी पर जीवन के लिये आवश्यक है। यह अनिवार्य है कि हम भविष्य की पीढ़ियों के लिये पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करें और इसके संरक्षण के लिये कदम उठाएँ क्योंकि इनसे विस्तृत पारिस्थितिकी सेवाएँ प्राप्त होती हैं। पर्यावरण की रक्षा हेतु मिलकर कार्य करके, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि पृथ्वी पर जीवन को सतत् बनाने के साथ सभी के लिये एक स्थायी भविष्य मिल सके।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- पृथ्वी के फेफड़े के रूप में वर्षावन और गुर्दे के रूप में मैंग्रोव का एक संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- बताइये कि मैंग्रोव को पृथ्वी का गुर्दा क्यों माना जाता है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन उत्पन्न करने की क्षमता के कारण वर्षावनों को अक्सर "पृथ्वी का फेफड़ा" कहा जाता है।
- प्रकाश संश्लेषण के दौरान पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं, जो वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को संतुलित करने में सहायक है।
- मैंग्रोव, उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले जटिल पारिस्थितिकी तंत्र हैं।
- इन अद्वितीय पारिस्थितिक तंत्रों को खारेपन के अनुकूलन वाले पेड़ों, झाड़ियों और अन्य पौधों की उपस्थिति के रूप में चिह्नित किया जाता है, जो अत्यधिक गतिशील वातावरण में रहने के लिये अनुकूलित होते हैं।
- मैंग्रोव तटीय समुदायों और वैश्विक पर्यावरण दोनों के स्वास्थ्य और कल्याण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- जल को शुद्ध करने की इनकी क्षमता के कारण इन्हें अक्सर "पृथ्वी के गुर्दे" के रूप में जाना जाता है।
मुख्य भाग:
मैंग्रोव का महत्त्व:
- मैंग्रोव, जल से प्रदूषकों और अतिरिक्त पोषक तत्वों को हटाने में अत्यधिक प्रभावी होते हैं। इनकी जटिल जड़ प्रणालियाँ एक छलनी की तरह काम करती हैं जिससे तलछट के साथ विषाक्त पदार्थों एवं अतिरिक्त पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन और फास्फोरस को पृथक किया जाता है। यह आसपास के जल की गुणवत्ता को बनाए रखने में सहायक होने के साथ हानिकारक एल्गल ब्लूम को रोकने में सहायक है जो मछली की मौत के साथ अन्य पर्यावरणीय समस्याओं का कारण बन सकता है।
- मैंग्रोव क्षेत्र विभिन्न प्रकार की मछलियों, क्रस्टेशियंस और अन्य समुद्री जीवों के लिये महत्त्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं। मैंग्रोव की जड़ें और शाखाएँ जीवों को आश्रय और शिकारियों से सुरक्षा प्रदान करती हैं, जबकि उथला जल और प्रचुर खाद्य संसाधन इस क्षेत्र को कई प्रजातियों के लिये एक आदर्श प्रजनन स्थल बनाते हैं। यह मैंग्रोव क्षेत्र को न केवल तटीय पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिये बल्कि तटीय समुदायों की आजीविका और कल्याण के लिये भी महत्त्वपूर्ण बनाता है।
- अपने पारिस्थितिक कार्यों के अलावा, मैंग्रोव जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण हैं। ये कार्बन को अलग करने में अत्यधिक प्रभावी होते हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार ये अन्य स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों की तुलना में प्रति इकाई क्षेत्र में 10 गुना अधिक कार्बन का संग्रहण कर सकते हैं। कार्बन का भंडारण करने के माध्यम से मैंग्रोव वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने में मदद कर सकते हैं, इस प्रकार यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायक हैं।
- इनके महत्त्व के बावजूद मैंग्रोव क्षेत्रों में पौधों की कटाई, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन सहित कई तरह के खतरे विद्यमान हैं। तटीय विकास या जलीय कृषि के लिये कई मैंग्रोव वनों को साफ कर दिया गया है जबकि अन्य को कई क्षेत्र प्रदूषण और अवसादन द्वारा क्षरित हुए हैं। नतीजतन यह आवश्यक है कि हम इन महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा और संरक्षण के लिये कदम उठाएँ।
निष्कर्ष:
मैंग्रोव वन क्षेत्र वैश्विक पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण घटक हैं तथा जल को साफ और शुद्ध करने की इनकी क्षमता के कारण अक्सर इन्हें "पृथ्वी के गुर्दे" के रूप में जाना जाता है। ये क्षेत्र कई समुद्री प्रजातियों के लिये निवास स्थान प्रदान करते हैं और कार्बन को पृथक करने में भी अत्यधिक प्रभावी हैं। हालांकि ये क्षेत्र कई तरह के खतरों का सामना कर रहे हैं और यह महत्त्वपूर्ण है कि हम भविष्य की पीढ़ियों के लिये इन अद्वितीय और मूल्यवान पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा और संरक्षण के लिये कदम उठाएँ।