Sambhav-2023

दिवस- 93

प्रश्न.1 भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (FPI) की क्या स्थिति है? FPI से संबंधित प्रमुख चुनौतियों को बताते हुए FPI को प्रोत्साहन देने वाली पहलों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

प्रश्न.2 भारत ने ऐसे समय में पंचामृत अपनाने का संकल्प लिया है जब प्रमुख विकसित राष्ट्र अपने हरित लक्ष्यों से विमुख हो रहे हैं। पंचामृत के संदर्भ में भारत के संकल्प को पूरा करने के उपायों की विवेचना कीजिये। (150 शब्द)

24 Feb 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

 उत्तर 1:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थिति का उल्लेख कीजिये और इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख चुनौतियों और पहलों पर चर्चा कीजिये।
  • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग अर्थव्यवस्था का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें प्राथमिक स्तर के कृषि उत्पादों को उपभोग के लिये तैयार खाद्य उत्पादों में बदलना शामिल है। इसमें विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं जैसे सफाई, प्रसंस्करण, संरक्षण, पैकेजिंग और खाद्य उत्पादों का वितरण आदि।
  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में विस्तृत उत्पाद श्रृंखला शामिल होती है जैसे कि डिब्बाबंद सामान, फ्रोज़न फूड, स्नैक फूड, डेयरी उत्पाद, माँस उत्पाद आदि। इस उद्योग के अंतर्गत उपभोक्ताओं के लिये सुरक्षित, पौष्टिक और उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य उत्पादों का उत्पादन करने के लिये विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है।

मुख्य भाग:

भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थिति:

  • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (FPI) भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इस उद्योग की देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 9% और रोज़गार में 18% की हिस्सेदारी है।
  • भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र विश्व में सबसे बड़ा है और इसका उत्पादन वर्ष 2025-26 तक 535 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • इस क्षेत्र से वर्ष 2024 तक 9 मिलियन नौकरियाँ सृजित होने की उम्मीद है।
  • भारत के खाद्य क्षेत्र में अप्रैल 2014 और मार्च 2020 के बीच प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के अंतर्गत 4.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश आया है।
  • भारत के प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात का मूल्य वर्ष 2020-21 में 38.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो विगत वर्ष से अधिक था।

भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (FPI) के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ निम्न हैं जैसे:

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, कुशल परिवहन नेटवर्क और खाद्य प्रसंस्करण केंद्रों सहित आधुनिक बुनियादी ढाँचे की कमी से आपूर्ति श्रृंखला की दक्षता और खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना: भारत में खाद्य उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला अत्यधिक असंतुलित है जिससे उत्पादों की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर: भारत में इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का स्तर अन्य देशों से निम्न है जिससे उत्पादन की दक्षता और गुणवत्ता प्रभावित होती है।
  • खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता: भारत में एफपीआई को खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता से संबंधित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिससे उपभोक्ताओं का विश्वास तथा भारतीय खाद्य उत्पादों की निर्यात क्षमता प्रभावित होती है।
  • अपर्याप्त ऋण प्रवाह: भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (FPI) के लिये ऋण की कमी एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। एफपीआई को प्रसंस्करण संयंत्रों के निर्माण और उन्नयन, आधुनिक उपकरण स्थापित करने एवं कुशल आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने के लिये महत्त्वपूर्ण पूंजी निवेश की आवश्यकता है। हालांकि क्रेडिट की कमी के कारण, एफपीआई कंपनियाँ इन निवेशों हेतु आवश्यक धन जुटाने के लिये संघर्ष कर सकती हैं जिससे उनकी विकास क्षमता सीमित हो सकती है।

FPI को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने कई पहल की हैं जैसे:

  • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY): वर्ष 2017 में शुरू की गई PMKSY एक व्यापक योजना है जिसका उद्देश्य भारत में FPI को विकसित करना, इस क्षेत्र के लिये बुनियादी ढाँचा तैयार करना और खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन (NMFP): एनएमएफपी एक सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य इस क्षेत्र में उद्यमियों और व्यवसायों को वित्तीय सहायता प्रदान करके भारत में खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देना है।
  • ईज ऑफ डूइंग बिजनेस: भारत सरकार ने एफपीआई क्षेत्र में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार के लिये कई उपाय किये हैं जिसमें नियमों और प्रक्रियाओं को सरल बनाना एवं इस क्षेत्र में निवेश के लिये प्रोत्साहन प्रदान करना शामिल है।
  • प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (TUFS): टीयूएफएस एक सरकारी योजना है जिसका उद्देश्य एफपीआई में प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण और उन्नयन के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास करना: सरकार ने एफपीआई के लिये बुनियादी ढाँचे में सुधार हेतु देश भर में फूड पार्क और कोल्ड चेन विकसित करने की योजना की घोषणा की है।

निष्कर्ष:

भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (FPI) अर्थव्यवस्था का एक ऐसा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो देश की जीडीपी और रोज़गार में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। हालाँकि भारत में FPI को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत सरकार ने सरकारी समर्थन और निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के साथ कई पहल की हैं। भारत में FPI क्षेत्र में रोज़गार सृजित करने, भोजन की बर्बादी को कम करने और देश के कृषि उत्पादन का संवर्धन करने की महत्त्वपूर्ण क्षमता है।


 उत्तर 2:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • पंचामृत का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • पंचामृत के प्रति भारत की प्रतिज्ञा को पूरा करने के उपायों की विवेचना कीजिये।
  • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • जलवायु कार्रवाई के लिये भारत की ओर से पाँच प्रतिबद्धताएँ (पंचामृत) की गईं हैं जैसे:
    • वर्ष 2030 तक भारत की गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट (GW) तक ले जाना।
    • वर्ष 2030 तक भारत की 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को अक्षय ऊर्जा के माध्यम से पूरा करना।
    • वर्ष 2030 तक भारत की अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता में 45% से अधिक की कमी करना।
    • अब से वर्ष 2030 तक इसके शुद्ध अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में 1 बिलियन टन की कटौती करना।
    • वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना।

मुख्य भाग:

  • भारत द्वारा "पंचामृत" को अपनी जलवायु कार्य योजना के रूप में अपनाना वैश्विक जलवायु संकट को दूर करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धता है। यह प्रतिज्ञा ऐसे समय में आई है जब कुछ प्रमुख विकसित राष्ट्रों को अपने स्वयं के जलवायु लक्ष्यों से पीछे हटते हुए देखा जा रहा है। भारत की जलवायु कार्य योजना में उल्लिखित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
    • देश की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के लिये सौर, पवन, जल विद्युत और बायोमास सहित नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित प्रौद्योगिकियों का विकास करना।
    • सब्सिडी, कर प्रोत्साहन और कम ब्याज वाले ऋण द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • ऊर्जा कुशल बिल्डिंग कोड और मानकों को अपनाने सहित ऊर्जा दक्षता और संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये नीतियों और विनियमों को लागू करना।
    • परिवहन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने और चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के विकास को प्रोत्साहित करना।
    • औद्योगिक क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन को कम करने के उपायों को लागू करना जैसे स्वच्छ प्रौद्योगिकियों का उपयोग एवं टिकाऊ उत्पादन प्रणाली को अपनाना।
    • बिजली और औद्योगिक क्षेत्रों से उत्सर्जन को कम करने के लिये कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) जैसी प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देना।
    • जलवायु परिवर्तन के संबंध में जन जागरूकता बढ़ाने तथा स्थायी जीवन शैली एवं प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये संबंधित कार्यक्रमों का विकास और कार्यान्वयन करना।
    • जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में होने वाली प्रगति को ट्रैक करने तथा इसमें सुधार वाले क्षेत्रों की पहचान हेतु संबंधित निगरानी, ​​रिपोर्टिंग और सत्यापन तंत्र को मजबूत करना।
    • जलवायु कार्रवाई का समर्थन करने के के क्रम में सर्वोत्तम प्रथाओं, प्रौद्योगिकियों तथा ज्ञान को साझा करने और वित्तीय एवं तकनीकी संसाधनों का लाभ उठाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देना।

इस संबंध में की गई कुछ पहलें:

  • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और इसे अनुकूल बनाने के लिये वर्ष 2008 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना को शुरू किया गया था।
  • वर्ष 2022 तक ग्रिड समता प्राप्त करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ वर्ष 2010 में जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन शुरू किया गया था।
  • ऊर्जा दक्षता की लागत प्रभावशीलता को बढ़ाने, स्वच्छ ईंधन को अपनाने,व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार द्वारा 'संवर्द्धित ऊर्जा दक्षता पर राष्ट्रीय मिशन' को शुरू किया गया।

निष्कर्ष:

अपनी जलवायु कार्य योजना के रूप में "पंचामृत" को अपनाने की भारत की प्रतिबद्धता जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। भारत की जलवायु कार्य योजना की सफलता के लिये राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सहयोग एवं भागीदारी की आवश्यकता होगी साथ ही इस क्षेत्र की प्रगति को ट्रैक करने तथा सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने के लिये एक सतत प्रयास की आवश्यकता होगी। भारत की जलवायु कार्य योजना अन्य देशों के लिये एक मॉडल के रूप में कार्य करती है।