दिवस- 92
प्रश्न.1 MSMEs का भारत के कुल रोज़गार में 20% से अधिक और कुल निर्यात में 40% से अधिक का योगदान है। इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने के लिये इस उद्योग को समर्थन की आवश्यकता है। इस उद्योग की चुनौतियों एवं संबंधित सुझावों का उल्लेख कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 भारत में बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु विभिन्न प्रकार के सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडलों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
23 Feb 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- MSME का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- MSMEs की चुनौतियों एवं संबंधित सुझावों का उल्लेख कीजिये।
- समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- MSME का आशय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम है। MSMEs को विनिर्माण उद्यमों के मामले में संयंत्र और मशीनरी या उपकरण में किये गए निवेश तथा सेवा उद्यमों के मामले में टर्नओवर के आधार पर परिभाषित किया जाता है।
- MSMEs उद्यम लगभग 110 मिलियन नौकरियाँ प्रदान करते हैं जो भारत में कुल रोज़गार का 22-23% है।
मुख्य भाग:
- भारत में एमएसएमई क्षेत्र के समक्ष कुछ चुनौतियाँ निम्न हैं जैसे:
- वित्त तक सीमित पहुँच: एमएसएमई को विशेष रूप से औपचारिक वित्तीय संस्थानों से क्रेडिट प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है। यह व्यवसायों के निवेश तथा इनके संचालन की क्षमता को सीमित कर सकता है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार का अभाव: एमएसएमई की प्रौद्योगिकी और नवाचार तक सीमित पहुँच होने से इनके लिये बड़ी फर्मों के साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो सकता है। इससे प्रक्रियाओं और उत्पादों को बेहतर बनाने की क्षमता सीमित होने के साथ कम गुणवत्ता और कम उत्पादकता की समस्या हो सकती है।
- विनियमों के अनुपालन में कठिनाई: एमएसएमई को जटिल और समय लेने वाले विभिन्न विनियमों और मानकों के अनुपालन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे कुशलता से कार्य करने की क्षमता सीमित हो सकती है।
- आधारभूत अवसंरचना का अभाव: एमएसएमई को अवसंरचना से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है जिसमें परिवहन, बिजली और अन्य सेवाओं तक सीमित पहुँच शामिल है। इसके कारण कुशलता से कार्य करना और बड़ी फर्मों के साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो सकता है।
- अनौपचारिक क्षेत्र से प्रतिस्पर्धा: एमएसएमई को अनौपचारिक क्षेत्र से भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
- इन चुनौतियों का समाधान करने और वैश्विक स्तर पर एमएसएमई की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के कुछ सुझाव हैं जैसे:
- भारत सरकार ने MSME के विकास हेतु कई योजनाएँ शुरू की हैं जैसे UDYAM प्लेटफार्म, एमएसएमई प्रदर्शन को बेहतर करने और इसकी गति में तेज़ी लाने की योजना, सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट फंड (CGTMSE), ब्याज सब्सिडी पात्रता प्रमाणपत्र (ISEC) आदि।
- क्रेडिट तक पहुँच में सुधार: सरकारें एमएसएमई को क्रेडिट सुविधाएँ प्रदान करने के साथ निजी बैंकों को सस्ती ब्याज दरों पर एमएसएमई को क्रेडिट देने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं। इससे एमएसएमई को अपने कारोबार में निवेश करने तथा अपने परिचालन का विस्तार करने में मदद मिल सकती है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार को बढ़ावा देना: सरकारें एमएसएमई को नई तकनीक और नवाचार अपनाने के लिये प्रोत्साहन प्रदान कर सकती हैं तथा एमएसएमई क्षेत्र में अनुसंधान और विकास का समर्थन कर सकती हैं।
- नियमों को सरल बनाना: सरकारें नियमों और मानकों को सरल बना सकती हैं ताकि एमएसएमई के लिये उनका अनुपालन करना आसान हो सके। इससे व्यवसायों पर बोझ कम होने के साथ दक्षता में सुधार हो सकता है।
- अवसंरचना में सुधार करना: एमएसएमई के संचालन वातावरण में सुधार के लिये सरकारों द्वारा परिवहन, बिजली तथा अन्य सेवाओं सहित अवसंरचना में निवेश किया जा सकता है।
- औपचारिकता को प्रोत्साहित करना: सरकारें MSMEs की प्रतिस्पर्धा को बेहतर बनाने के लिये अनौपचारिक क्षेत्र की औपचारिकता को बढ़ावा दे सकती हैं। इससे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिल सकता है।
- प्रशिक्षण और सहायता प्रदान करना: सरकार व्यवसाय प्रबंधन प्रशिक्षण एवं विपणन सहायता सहित एमएसएमई को प्रशिक्षण और सहायता प्रदान कर सकती है। इससे एमएसएमई को अपनी प्रक्रियाओं और उत्पादों को बेहतर बनाने और उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष:
भारत में एमएसएमई के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिससे इस क्षेत्र की विभिन्न चुनौतियों का समाधान हो सके। क्रेडिट तक पहुँच में सुधार, प्रौद्योगिकी और नवाचार को बढ़ावा देना, नियमों को सरल बनाना, बुनियादी ढाँचे में सुधार करना, औपचारिकता को प्रोत्साहित करना और प्रशिक्षण तथा सहायता प्रदान करने के साथ सरकारें तथा अन्य हितधारक यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं कि एमएसएमई वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धा कर सकें और देश के आर्थिक विकास में योगदान कर सकें।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारत में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये विभिन्न पीपीपी मॉडलों की चर्चा कीजिये।
- समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच ऐसी सहयोगी व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक भागीदार एक सामान्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपनी शक्ति और संसाधन का उपयोग करते हैं।
- पीपीपी में आमतौर पर सरकार के पास बुनियादी ढाँचे का स्वामित्व रहता है लेकिन एक विशिष्ट अवधि के लिये निजी क्षेत्र को अवसंरचना के डिज़ाइन, निर्माण, वित्तपोषण, संचालन और रखरखाव के लिये जिम्मेदारी दी जाती है।
मुख्य भाग:
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल भारत में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण तंत्र के रूप में उभरा है। भारत में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये कई पीपीपी मॉडल हैं जैसे:
- बिल्ड-ऑन-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOOT): यह भारत में सबसे लोकप्रिय पीपीपी मॉडल है। इस मॉडल के तहत एक निजी संस्था एक निश्चित अवधि के लिये किसी बुनियादी ढाँचा परियोजना का डिज़ाइन, निर्माण, संचालन और रखरखाव करती है जिसके बाद इसे सरकार को वापस स्थानांतरित कर दिया जाता है।
- बिल्ड-ऑन-ऑपरेट (BOO): इस मॉडल के तहत निजी क्षेत्र द्वारा बुनियादी ढाँचा परियोजना का डिज़ाइन, निर्माण और संचालन किया जाता है लेकिन सरकार को स्वामित्व हस्तांतरित नहीं किया जाता है। इसमें एक निर्धारित अवधि तक परियोजना के संचालन और रखरखाव के लिये निजी क्षेत्र जिम्मेदार होता है।
- डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट (DBFO): इस मॉडल के तहत निजी क्षेत्र बुनियादी ढाँचा परियोजना के डिज़ाइन, निर्माण, वित्तपोषण और संचालन के लिये जिम्मेदार होता है और इसमें सरकार द्वारा आवश्यक भूमि या अधिकार प्रदान किये जाते हैं। इसमें निजी क्षेत्र रियायत अवधि के दौरान उपयोगकर्ता शुल्क के माध्यम से अपने निवेश की वसूली करता है।
- डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट-ट्रांसफर (DBFOT): यह डीबीएफओ मॉडल का रूपांतर है जहाँ बुनियादी ढाँचा परियोजना को रियायत अवधि के अंत में सरकार को वापस स्थानांतरित कर दिया जाता है।
- हाइब्रिड एन्युटी मॉडल (HAM): इस मॉडल के तहत निजी क्षेत्र एक निश्चित अवधि के लिये बुनियादी ढाँचा परियोजना के डिज़ाइन, निर्माण और रखरखाव के लिये जिम्मेदार होता है जिसमें सरकार परियोजना के संचालन और रखरखाव के लिये एक निश्चित वार्षिकी का भुगतान करती है।
- ऑपरेट-मेंटेन-ट्रांसफर (OMT): इस मॉडल के तहत निजी क्षेत्र एक निश्चित अवधि के लिये किसी बुनियादी ढाँचा परियोजना के संचालन और रखरखाव के लिये जिम्मेदार होता है, जिसके बाद इसे सरकार को वापस स्थानांतरित कर दिया जाता है।
- लीज मॉडल: इस मॉडल के तहत निजी क्षेत्र सरकार से मौजूदा बुनियादी ढाँचे की संपत्ति को पट्टे पर लेता है और एक निश्चित अवधि के लिये इसे संचालित और प्रबंधित करने के लिये जिम्मेदार होता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल भारत में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण है। इसमें सार्वजनिक अवसंरचना परियोजनाओं के वित्तपोषण, निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिये सरकार और निजी संस्थाओं के बीच सहयोग शामिल है। निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता, नवाचार और प्रौद्योगिकी के रूप में भारत जैसे देश के लिये पीपीपी मॉडल के कई फायदे हैं।
निष्कर्ष:
प्रत्येक पीपीपी मॉडल के अपने फायदे और नुकसान हैं और इन मॉडलों का चुनाव अवसंरचना परियोजना की प्रकृति, शामिल जोखिम के स्तर तथा सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के भागीदारों की वित्तीय और परिचालन क्षमताओं पर निर्भर करता है। पीपीपी परियोजना की सफलता प्रभावी जोखिम आवंटन, स्पष्ट कानूनी और नियामक ढाँचे के साथ प्रभावी निगरानी और मूल्यांकन तंत्र पर निर्भर करती है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कोई परियोजना पारदर्शी और कुशल तरीके से कार्यान्वित और संचालित हो।