Sambhav-2023

दिवस- 91

प्रश्न.1 प्रच्छन्न भुखमरी (hidden hunger) क्या है? लोगों की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

प्रश्न.2 अनुबंध कृषि (contract farming) क्या है? भारत में इससे संबंधित चुनौतियों और इसके समाधानों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

22 Feb 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर 1:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • प्रच्छन्न भुखमरी का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये।
  • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • प्रच्छन्न भुखमरी (जिसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के रूप में भी जाना जाता है) कुपोषण का एक ऐसा रूप है जो आहार में आवश्यक विटामिन और खनिजों का पर्याप्त सेवन नहीं करने से होती है।
  • कुपोषण के विपरीत (जो अक्सर अवरुद्ध विकास और दुबले शरीर के रूप में परिलक्षित होता है), प्रच्छन्न भुखमरी का पता लगाना मुश्किल हो सकता है क्योंकि इसके लक्षण तुरंत स्पष्ट नहीं हो पाते हैं।

मुख्य भाग:

  • प्रच्छन्न भुखमरी के कारण:
    • अनुचित आहार: विविधता के अभाव वाला आहार प्रच्छन्न भुखमरी का कारण बन सकता है। सीमित मात्रा में खाद्य पदार्थों के सेवन से अच्छे स्वास्थ्य के लिये आवश्यक सभी आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त नहीं हो पाते हैं।
    • मृदा क्षरण: मानव स्वास्थ्य के लिये आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे लोहा, जस्ता और आयोडीन का अक्सर मृदा में अभाव होता है। इसके कारण फसलों में इन सूक्ष्म पोषक तत्त्वों में कमी आ सकती है।
    • गरीबी: गरीबी और खाद्य असुरक्षा प्रच्छन्न भुखमरी के प्रमुख कारक हैं। जो लोग गरीब हैं वे विविध और संतुलित आहार लेने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, जिससे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
    • स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अभाव: अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं से भी प्रच्छन्न भुखमरी को बढ़ावा मिल सकता है। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में अभाव से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का पता लगाना और निदान करना मुश्किल हो सकता है।
    • स्वच्छता की दयनीय स्थिति: संक्रमण (विशेष रूप से आँतों में) से पोषक तत्वों के अवशोषण की क्षमता में कमी आ सकती है। स्वच्छता के अभाव से बार-बार संक्रमण हो सकता है जिससे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को बढ़ावा मिल सकता है।
    • लैंगिक असमानताएँ: लैंगिक असमानताओं के कारण महिलाओं को प्रच्छन्न भुखमरी का अधिक खतरा रहता है। मासिक धर्म, गर्भावस्था और स्तनपान के कारण इन्हें जहाँ एक ओर पोषण की अधिक आवश्यकता होती है वहीं लैंगिक असमानताओं के कारण पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक इनकी पहुँच सीमित हो सकती है।
  • सभी व्यक्तियों के लिये पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना एक जटिल कार्य है जिसके लिये सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र सहित कई हितधारकों को शामिल करते हुए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। लोगों की पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कुछ प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं:
    • भोजन तक पहुँच में सुधार करना: पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में पहला कदम पौष्टिक भोजन तक पहुँच में सुधार करना है। इसे खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी, खाद्य सहायता कार्यक्रम और सामाजिक सुरक्षा जैसी पहलों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
    • कृषि उत्पादकता में वृद्धि करना: खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरकारें अनुसंधान और विकास में निवेश करके, किसानों को ऋण और कृषि आदानों तक पहुँच प्रदान करके तथा भोजन के परिवहन और भंडारण के लिये बुनियादी ढाँचे में सुधार करके कृषि उत्पादन को बढ़ावा दे सकती हैं।
    • खाद्य विविधता को बढ़ावा देना: व्यक्तियों की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिये विविधतापूर्ण आहार महत्त्वपूर्ण है। सरकारें फलों, सब्जियों और पशु-स्रोतों से मिलने वाले खाद्य पदार्थों सहित पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा दे सकती हैं।
    • पोषण संबंधी जागरूकता का प्रसार करना: पोषण संबंधी जागरूकता का प्रसार करने से व्यक्तियों को उनके आहार के बारे में उचित निर्णय लेने के साथ स्वस्थ खान-पान को अपनाने में मदद मिल सकती है। इसके साथ सरकारें जन जागरूकता अभियानों, स्कूल-आधारित पोषण कार्यक्रमों और स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों में निवेश कर सकती हैं।
    • स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का समाधान करना: पोषण को प्रभावित करने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं (जैसे कि संक्रामक रोग) को हल करना आवश्यक है। मलेरिया और डायरिया जैसे पोषण को प्रभावित करने वाले रोगों की व्यापकता को कम करने के लिये सरकारें सार्वजनिक स्वास्थ्य पहलों में निवेश कर सकती हैं।
    • सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करना: कमज़ोर लोगों की भोजन तक सुलभ पहुँच और उनकी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के रूप में नकद हस्तांतरण और खाद्य सहायता कार्यक्रम जैसी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करना आवश्यक है।
    • सतत खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देना: सतत खाद्य उत्पादन प्रणालियों को बढ़ावा देने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि खाद्य उत्पादन पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से उचित हो। इसमें स्थायी कृषि पद्धतियों में निवेश करना, भोजन की बर्बादी को कम करना और स्थानीय तथा क्षेत्रीय खाद्य प्रणालियों को प्रोत्साहन देना शामिल है।

निष्कर्ष:

सभी व्यक्तियों के लिये पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक और समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिससे अल्पपोषण में योगदान देने वाले कई कारकों को हल किया जाता है। सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र सभी को इस लक्ष्य को प्राप्त करने में भूमिका निभानी आवश्यक है।


उत्तर 2:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • अनुबंध कृषि का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • इससे संबंधित चुनौतियों और उपायों का उल्लेख कीजिये।
  • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • अनुबंध कृषि के तहत किसानों और कंपनियों या कृषि व्यवसाय फर्मों के बीच एक ऐसा समझौता होता है जिसमें किसान कंपनियों द्वारा निर्धारित विशिष्ट दिशानिर्देशों और गुणवत्ता मानकों के अनुसार फसल उत्पादन हेतु सहमत होते हैं।
  • मॉडल अनुबंध कृषि अधिनियम, 2018 किसानों और कंपनियों दोनों को लाभ प्रदान करने पर केंद्रित है। यह किसानों को बाज़ार, आगत और प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्रदान करने के साथ कंपनियों को उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने पर बल देता है।

मुख्य भाग:

  • भारत में अनुबंध कृषि को कृषि उत्पादकता बढ़ाने, किसानों के लिये जोखिम कम करने और कृषि में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने के तरीके के रूप में बढ़ावा दिया गया है। हालाँकि भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित कई चुनौतियाँ हैं जैसे:
    • सौदेबाजी की असमान शक्ति: कंपनियों के पास किसानों की तुलना में अधिक सौदेबाजी की शक्ति हो सकती है और इससे किसानों को प्रतिकूल नियम और शर्तों को स्वीकार करने के लिये मजबूर होना पड़ सकता है।
    • कानूनी ढाँचे का अभाव: भारत में अनुबंध कृषि को नियंत्रित करने वाला कोई व्यापक कानूनी ढाँचा नहीं है। यह अनुबंध कृषि प्रक्रिया में अनिश्चितता और पारदर्शिता की कमी पैदा कर सकता है।
    • क्रेडिट तक सीमित पहुँच: छोटे किसानों की क्रेडिट तक सीमित पहुँच होने से उनके लिये अनुबंध कृषि के लिये आवश्यक इनपुट और उपकरणों में निवेश करना मुश्किल हो सकता है।
    • एक फसल पर निर्भरता को बढ़ावा मिलना: अनुबंध कृषि द्वारा किसानों को एक ही फसल उत्पादन हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है जिससे बाज़ार में उतार-चढ़ाव होने के साथ जलवायु जोखिमों के प्रति उनकी भेद्यता को बढ़ावा मिल सकता है।
    • गुणवत्ता और मूल्य संबंधी चिंताएँ: कंपनियों के गुणवत्ता मानक जटिल हो सकते हैं जिन्हें पूरा करना किसानों के लिये कठिन होता है या इनके द्वारा उपज के लिये कम कीमतों का निर्धारण किया जा सकता है।
    • विवाद समाधान: किसानों और कंपनियों के बीच उत्पन्न विवाद समाधान हेतु स्पष्ट प्रणाली का अभाव हो सकता है।
  • भारत में अनुबंध कृषि से संबंधित चुनौतियों के आधार पर, इन चुनौतियों का समाधान करने और अनुबंध कृषि की सफलता को सुनिश्चित करने वाले कुछ उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • अनुबंध प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना: इसको कानूनी ढाँचा स्थापित करके प्राप्त किया जा सकता है जो अनुबंध कृषि को नियंत्रित करने के साथ समझौतों के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित करता हो। इस ढाँचे से यह सुनिश्चित करना चाहिये कि किसानों के पास मूल्य निर्धारण, गुणवत्ता मानकों और समझौते के नियमों और शर्तों के बारे में जानकारी तक पहुँच हो।
    • APMC (कृषि उपज बाज़ार समिति) अधिनियम, 2003: इसमें अनुबंध कृषि के लिये विशेष नियम शामिल हैं, जैसे अनुबंध कृषि में शामिल प्रायोजकों का अनिवार्य पंजीकरण और विवादों को हल करने के लिये एक तंत्र की स्थापना।
    • यह ध्यान देने योग्य है कि भारत में अनुबंध कृषि भी एपीएमसी (कृषि उत्पादन बाज़ार समिति) अधिनियम, 2003 में उल्लिखित विशिष्ट प्रावधानों के अलावा भारतीय अनुबंध अधिनियम,1872 के तहत विनियमन के अधीन है।
    • किसानों को तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करना: छोटे किसानों के पास कंपनियों द्वारा आवश्यक गुणवत्ता मानकों को पूरा करने के लिये आवश्यक ज्ञान या कौशल का अभाव हो सकता है। किसानों को तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण प्रदान करने से उन्हें अपनी फसल की पैदावार और उनकी उपज की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
    • फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना: एक ही फसल पर निर्भरता बाज़ार के उतार-चढ़ाव और जलवायु जोखिमों के प्रति किसानों की भेद्यता को बढ़ा सकती है। फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने से इन जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • ऋण तक पहुँच प्रदान करना: अनुबंध कृषि में भाग लेने के इच्छुक छोटे किसानों के लिये ऋण तक पहुँच एक बड़ी बाधा हो सकती है। सरकारें किसानों को ऋण सुविधा प्रदान करने के साथ निजी बैंकों को सस्ती ब्याज दरों पर किसानों को ऋण देने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं।
    • किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के विकास को प्रोत्साहित करना: एफपीओ किसानों को कंपनियों के साथ बेहतर नियम और शर्तों पर समझौता करने में मदद कर सकते हैं तथा किसानों और कंपनियों के बीच शक्ति असंतुलन को कम कर सकते हैं।
    • विवाद समाधान तंत्र को सुगम बनाना: विवादों को हल करने के लिये स्पष्ट तंत्र होने से किसानों और कंपनियों के बीच संघर्ष को कम करने में मदद मिल सकती है। कानूनी ढाँचे के अंतर्गत विवाद समाधान हेतु स्पष्ट दिशानिर्देश प्रदान करने के साथ अनुबंधों की निगरानी और उन्हें लागू करने के लिये एक प्रणाली स्थापित करनी चाहिये।
    • स्थायी कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना: अनुबंध कृषि टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान कर सकती है जो हानिकारक रसायनों के कम उपयोग पर आधारित होने के साथ मृदा के स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है। सरकार स्थायी कृषि प्रथाओं को अपनाने वाले किसानों के लिये प्रोत्साहन प्रदान कर सकती है।

निष्कर्ष:

भारत में अनुबंध कृषि की सफलता को बढ़ावा देने के लिये व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो किसानों और कंपनियों के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने पर केंद्रित हो। तकनीकी सहायता प्रदान करके, फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर और अनुबंध कृषि प्रक्रिया में पारदर्शिता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित करके, सरकारें तथा अन्य हितधारक यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं कि अनुबंध कृषि से किसानों और कंपनियों दोनों को ही लाभ हो। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये किसानों के अधिकारों की रक्षा करने और अनुबंध कृषि प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने वाले एक व्यापक कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त छोटे किसानों की ऋण तक पहुँच में सुधार करने के साथ इन्हें तकनीकी सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।