दिवस- 90
प्रश्न.1 भारत में मौजूद बौद्धिक संपदा अधिकारों के विभिन्न रूप क्या हैं। बौद्धिक संपदा अधिकारों की क्षमता को और बढ़ाने के लिये किये जा सकने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों को क्रिप्टोकरेंसी तथा ई-कॉमर्स जैसी नई नियामक चुनौतियों से निपटने के लिये और अधिक रचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
21 Feb 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- विभिन्न प्रकार के बौद्धिक संपदा अधिकारों तथा उन्हें सुदृढ़ करने के उपायों का उल्लेख कीजिये।
- समग्र और उचित निष्कर्ष लिखिये।
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भूमिका:
- बौद्धिक संपदा अधिकार कानूनी अधिकार हैं जो मनुष्य की मानसिक रचनाओं जैसे आविष्कार, साहित्यिक रचनाओं, कलात्मक कार्य (प्रतीक, नाम और डिजाइन) आदि की रक्षा करते हैं।
- इन अधिकारों में पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, ट्रेड सीक्रेट और सुरक्षा के अन्य रूप शामिल हैं। बौद्धिक संपदा अधिकार उनके मालिकों को उनकी कृतियों/ रचनाओं का उपयोग करने और उनका दोहन करने का विशेष अधिकार देते हैं एवं दूसरों द्वारा अनधिकृत उपयोग या नकल को रोकने के लिये एक वैधानिक ढाँचा प्रदान करते हैं।
मुख्य भाग:
- भारत में मौजूद बौद्धिक संपदा अधिकारों के विभिन्न रूप:
- पेटेंट: भारतीय पेटेंट अधिनियम, 1970 ऐसे आविष्कारों के लिये पेटेंट प्रदान करने का प्रावधान करता है जो नए और औद्योगिक अनुप्रयोग के लिये सक्षम हैं।
- ट्रेडमार्क: ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 ट्रेडमार्क और सेवा चिह्नों के पंजीकरण का प्रावधान करता है, जिसे हर 10 वर्ष में नवीनीकृत किया जा सकता है।
- कॉपीराइट: कॉपीराइट अधिनियम, 1957 मूल साहित्यिक, नाटकीय, संगीतमय और कलात्मक कार्यों के साथ-साथ कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और सिनेमैटोग्राफिक फिल्मों की सुरक्षा करता है।
- भौगोलिक संकेतक: वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 भौगोलिक संकेतकों के पंजीकरण और संरक्षण का प्रावधान करता है।
- ट्रेड सीक्रेट: भारतीय कानूनी प्रणाली ट्रेड सीक्रेट और गोपनीय जानकारी को मूल्यवान बौद्धिक संपदा के रूप में पहचानती है और अनधिकृत उपयोग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करती है।
- प्रवर्तन: भारत सरकार ने बौद्धिक संपदा (IP) अधिकार संबंधी कानूनों को कार्यान्वित करने के लिये बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड और बौद्धिक संपदा अधिकार सीमा शुल्क प्रकोष्ठ जैसी विशिष्ट बौद्धिक संपदा प्रवर्तन एजेंसियों की स्थापना की है।
- अंतर्राष्ट्रीय समझौते: भारत ने ट्रिप्स (TRIPS) समझौते जैसे कई अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, जो बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण और प्रवर्तन के लिये एक रूपरेखा प्रदान करते हैं।
- भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों को मज़बूत करने के लिये कई कदम उठाए जा सकते हैं जैसे:
- बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) नीति, 2016: इस नीति के मुख्य उद्देश्यों में बौद्धिक संपदा (IP) के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक लाभों के बारे में जन जागरूकता पैदा करना, बौद्धिक संपदा के लिये कानूनी और संस्थागत ढाँचे को मज़बूत करना एवं नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना शामिल है।
- प्रवर्तन तंत्र को मज़बूत करना: भारत को बौद्धिक संपदा अधिकारों के लिये प्रवर्तन तंत्र को और मज़बूत करने की आवश्यकता है। यह बौद्धिक संपदा (IP) प्रवर्तन एजेंसियों की संख्या बढ़ाकर, विशेष बौद्धिक संपदा (IP) न्यायालयों की स्थापना करके और बौद्धिक संपदा (IP) उल्लंघनों के लिये दंड बढ़ाकर किया जा सकता है।
- जागरूकता बढ़ाना: बौद्धिक संपदा अधिकारों के महत्त्व के बारे में आम जनता, व्यवसायों और नीति निर्माताओं के बीच जागरूकता बढ़ाने से बौद्धिक संपदा (IP) सुरक्षा के लिये अधिक अनुकूल वातावरण बनाने में मदद मिल सकती है।
- पेटेंट प्रणाली में सुधार करना: पेटेंट आवेदनों के बैकलॉग को कम करके, पेटेंट परीक्षकों की संख्या बढ़ाकर और पेटेंट आवेदन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करके भारत अपनी पेटेंट प्रणाली में सुधार कर सकता है।
- नवाचार को प्रोत्साहन देना: कर प्रोत्साहन, अनुदान और सब्सिडी जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहित करने से नवाचार और रचनात्मकता की संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है, जो बौद्धिक संपदा के विकास के लिये आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना: अन्य देशों के साथ अधिक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर करके अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करने से विदेशों में भारतीय व्यवसायों के बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा करने और बौद्धिक संपदा (IP) प्रवर्तन में सहयोग को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
- हितधारकों की भागीदारी में वृद्धि: नीति निर्माण प्रक्रिया में व्यवसायों, आविष्कारकों और अनुसंधान संस्थानों जैसे हितधारकों की भागीदारी बढ़ाने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि बौद्धिक संपदा संबंधी शासन उनकी आवश्यकताओं और चिंताओं के प्रति अधिक उत्तरदायी है।
निष्कर्ष
बौद्धिक संपदा अधिकारों के लिये भारत में एक मज़बूत कानूनी ढाँचा है जिसमें पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क तथा सुरक्षा के अन्य रूपों के लिये कानून और नियम शामिल हैं। हालाँकि, भारत में बौद्धिक संपदा अधिकारों के संरक्षण एवं प्रवर्तन को मज़बूत करने के लिये अभी भी चुनौतियाँ और अवसर दोनों हैं। उठाए जा सकने वाले कुछ कदमों में सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा का प्रसार करना, कानूनी प्रणाली की दक्षता और पारदर्शिता में सुधार करना एवं बौद्धिक संपदा कानूनों और मानकों को सुसंगत तथा मज़बूत करने के लिये अन्य देशों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना शामिल है। इन कदमों को उठाकर, भारत अपने नागरिकों और व्यवसायों की बौद्धिक संपदा की रक्षा तथा उन्हें पुरस्कृत करते हुए नवाचार, रचनात्मकता और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण
- विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- क्रिप्टोकरेंसी और ई-कॉमर्स जैसी नई नियामक चुनौतियों से निपटने के लिये सुधारों का उल्लेख कीजिये।
- समग्र और उचित निष्कर्ष लिखिये।
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भूमिका
- वैश्विक आर्थिक स्थिरता, संवृद्धि और विकास को बढ़ावा देने के लिये विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों की स्थापना की गई थी।
- हालाँकि, क्रिप्टोकरंसी और ई-कॉमर्स जैसे नए आर्थिक क्षेत्रों के तेज़ी से विकास के साथ, इन संस्थानों को नई और जटिल नियामक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनके लिये नवीन समाधानों की आवश्यकता है।
- जैसे-जैसे ये चुनौतियाँ विकसित होती जा रही हैं, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि इन संस्थानों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये और अधिक रचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है।
मुख्य भाग
- इन चुनौतियों से निपटने के लिये इन संस्थानों को निम्नलिखित तरीकों से रचनात्मक सुधार करने की आवश्यकता है:
- नई तकनीकों को शामिल करना: विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को तेज़ी से बदलते आर्थिक परिदृश्य के साथ तालमेल रखने के लिये अपने नीतिगत ढाँचे में नई तकनीकों को शामिल करने की आवश्यकता है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नई प्रौद्योगिकियों के प्रभाव की निगरानी और विश्लेषण करने के लिये एक समर्पित विभाग की स्थापना करके किया जा सकता है।
- विनियामक ढाँचे का विकास करना: विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) सरकारों और नियामक निकायों के साथ कार्य कर सकते हैं ताकि नई तकनीकों जैसे कि क्रिप्टोकरेंसी और ई-कॉमर्स के लिये नियामक ढाँचे को विकसित किया जा सके। यह उनके संभावित लाभों को बढ़ावा देते हुए इन तकनीकों से जुड़े जोखिमों को कम करने में मदद कर सकता है।
- पारदर्शिता में वृद्धि करना: नई तकनीकों से जुड़ी विनियामक चुनौतियों से निपटने के लिये विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को अपनी नीतियों और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बढ़ाने की आवश्यकता है। यह हितधारकों के बीच विश्वास बनाने और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों और सरकारों के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
- क्षमता निर्माण करना: विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थान विकासशील देशों में क्षमता निर्माण के प्रयासों का समर्थन कर सकते हैं ताकि उन्हें बदलते आर्थिक परिदृश्य के अनुकूल बनाने में मदद मिल सके। इसमें स्थानीय सरकारों और नियामक निकायों को तकनीकी सहायता तथा प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल हो सकता है।
- समन्वय: विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को नई तकनीकों के विनियमन हेतु एक समन्वित दृष्टिकोण विकसित करने के लिये विश्व व्यापार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ जैसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग और समन्वय करने की आवश्यकता है। यह परस्पर विरोधी नियामक ढाँचे से बचने और वैश्विक नीति में अधिक स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
निष्कर्ष
क्रिप्टोकरेंसी तथा ई-कॉमर्स के बढ़ते प्रसार ने विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों के लिये नई नियामक चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि ये संस्थान विकासशील आर्थिक परिदृश्य के साथ तालमेल रखने तथा वैश्विक सतत् आर्थिक विकास का समर्थन करने के लिये रचनात्मक सुधार करें। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) को उभरती प्रौद्योगिकियों से जुड़ी नई नियामक चुनौतियों से निपटने के लिये रचनात्मक सुधार करने की आवश्यकता है। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था समावेशी और सतत् बनी रहे।