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Sambhav-2023

  • 18 Nov 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 9

    प्रश्न- 1. संसद के उच्च और निम्न सदन की शक्तियों के बीच असमानताओ को बताइये। लोकसभा के पीठासीन अधिकारी द्वारा लिये जाने वाले निर्णय से संबंधित मुद्दे क्या हैं?

    प्रश्न- 2. भारत में कार्यपालिका पर संसदीय नियंत्रण के साधन कौन-से हैं?

    उत्तर

    उत्तर: 1

    दृष्टिकोण:

    • लोकसभा और राज्यसभा के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • राज्यसभा और लोकसभा के कार्यों के बीच अंतरों को बताइए।
    • लोक सभा अध्यक्ष के पद से जुड़ी समस्याओं की विवेचना कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही भारतीय संसद के अंग हैं। लोकसभा भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है और राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिये इन्हें क्रमशः हाउस ऑफ पीपल और काउंसिल ऑफ स्टेट्स के रूप में जाना जाता है।

    दोनों सदनों में विधेयक प्रस्तुत किये जाते हैं और उन पर मतदान होता है। इनका प्रमुख कार्य देश के बेहतर शासन के लिये कानून बनाना, आम नागरिकों की समस्याओं को विधि निर्माताओं तक पहुँचाना आदि है। लोकसभा और राज्यसभा के कार्यों में लगभग समानता होने के बावजूद कुछ प्रमुख अंतर भी मौजूद हैं।

    मुख्य भाग

    राज्यसभा और लोकसभा के कार्यों में असमानताएँ

    निम्नलिखित मामलों में राज्यसभा की शक्तियाँ और स्थिति लोकसभा के समान नहीं होती हैं:

    • धन विधेयक का पारित होना: धन विधेयक को केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है न कि राज्यसभा में। राज्यसभा धन विधेयक में न तो संशोधन कर सकती है न इसे अस्वीकार कर सकती है। इसे 14 दिनों के अंदर या तो सिफारिशों के साथ या बिना सिफारिशों के विधेयक को लोकसभा के पास भेजना होता है।
    • वित्त विधेयक: वित्त विधेयक में केवल अनुच्छेद 110 से संबंधित मामले शामिल नहीं होते हैं। इसे केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है राज्य सभा में नहीं। लेकिन इसके पारित होने के संबंध में दोनों सदनों के पास समान शक्तियाँ होती हैं।
    • धन विधेयक पर अंतिम अधिकार: यह तय करने की अंतिम शक्ति कि कोई विशेष विधेयक धन विधेयक है या नहीं, लोकसभा के अध्यक्ष में निहित होती है।
    • अधिक बहुमत होना: अधिक सदस्य संख्या होने के कारण, लोकसभा को संयुक्त बैठक में बढ़त मिल जाती है (सिवाय इसके कि जब दोनों सदनों में सत्तारूढ़ दल की संयुक्त सदस्य संख्या की तुलना में विपक्षी दलों की सदस्य संख्या अधिक होती है)।
    • अनुदानों की मांगों पर मतदान: राज्यसभा केवल बजट पर चर्चा कर सकती है लेकिन अनुदानों की मांगों पर मतदान नहीं कर सकती (जो कि लोकसभा का विशेषाधिकार है) है।
    • राष्ट्रीय आपातकाल: राष्ट्रीय आपातकाल को समाप्त करने का प्रस्ताव केवल लोकसभा द्वारा पारित किया जा सकता है न कि राज्यसभा द्वारा।

    लोकसभा अध्यक्ष के पद से जुड़ी समस्याएँ

    • निर्णय निर्माण प्रक्रिया में विलंब: दल-बदल विरोधी कानून में सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित याचिका पर निर्णय लेने के संबंध में पीठासीन अधिकारी के लिये किसी निश्चित समय अवधि को निर्दिष्ट नहीं किया गया है। पीठासीन अधिकारी द्वारा इस संबंध में निर्णय लेने के बाद ही न्यायालय इसमें हस्तक्षेप कर सकता है इसीलिये सदस्यों की अयोग्यता की मांग करने वाले याचिकाकर्ता के पास इस निर्णय का इंतजार करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होता है।
      • ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें न्यायालयों ने ऐसी याचिकाओं पर निर्णय लेने में अनावश्यक देरी के बारे में चिंता व्यक्त की है।
    • दलीय राजनीति में अधिक संलग्नता: दल-बदल विरोधी कानून में प्रावधान है कि सदन का पीठासीन अधिकारी, निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये तब तक अपने दल से इस्तीफा दे सकता है जब तक कि वह पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करता है और अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद पुनः अपने दल में शामिल हो सकता है।
      • लेकिन भारत के संदर्भ में यह अपने पद से इस्तीफा नहीं देता है और दल में अपनी सदस्यता जारी रखता है।
    • सांसदों का निलंबन: लोकसभा अध्यक्ष अक्सर अपने दल की राजनीति से प्रभावित होकर, विपक्षी दल के सदस्यों (सांसदों) को बिना किसी उचित आधार के निलंबित कर देता है।

    आगे की राह

    • लोकसभा अध्यक्ष को समय पर और निष्पक्ष निर्णय लेने के लिये प्रेरित करने हेतु, दल-बदल विरोधी कानून में उपयुक्त संशोधन करके इसे और भी प्रभावी बनाया जाना चाहिये।
    • निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये सदन के पीठासीन अधिकारी का अपने दल से इस्तीफा देना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये।
    • सांसदों के व्यवहार के संबंध में एक अलग निर्णय लेने वाला प्राधिकरण होना चाहिये और अध्यक्ष द्वारा किये जाने वाले सांसदों के निलंबन के संबंध में निर्दिष्ट नियम और कानून होने चाहिये।

    उत्तर: 2

    दृष्टिकोण:

    • कार्यपालिका के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुये अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • भारत में कार्यपालिका पर संसदीय नियंत्रण के साधनों की चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    संविधान द्वारा विधायिका को कानून बनाने, कार्यपालिका को कानून लागू करने और न्यायपालिका को इन कानूनों की व्याख्या करने और लागू करने का अधिकार दिया गया है। न्यायपालिका अन्य दोनों निकायों से स्वतंत्र है लेकिन कार्यपालिका (मंत्रिपरिषद) का गठन विधानमंडल के अधिकांश सदस्यों से ही किया जाता है।

    इसलिये कार्यपालिका अपने कार्यों के लिये सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका तात्पर्य यह है कि संसद, सरकार को उसके निर्णयों के लिये जवाबदेह ठहरा सकती है और उसके कामकाज की समीक्षा कर सकती है।

    मुख्य भाग

    भारत में कार्यपालिका पर संसदीय नियंत्रण के साधन:

    • चर्चा और वाद-विवाद: सरकार के कामकाज की समीक्षा करने के लिये संसद में मुद्दे उठाए जा सकते हैं जिसमें संबंधित मंत्री को उत्तर देना होता है या इसके लिये प्रस्ताव लाया जा सकता है जिसमें मतदान की आवश्यकता होती है। इनमें से कुछ बहसों या विधेयकों पर चर्चा के लिये आवंटित समय का निर्धारण सदन की कार्य मंत्रणा समिति द्वारा किया जाता है जिसमें सत्तारूढ़ और विपक्षी दोनों दलों के सदस्य शामिल होते हैं। इन विधियों का उपयोग करते हुए सांसद महत्वपूर्ण मामलों, नीतियों और सामयिक मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं।
    • अविश्वास प्रस्ताव: संविधान के अनुच्छेद 75 के अनुसार, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका तात्पर्य यह है कि मंत्रिपरिषद तब तक बनी रहेगी जब तक कि इसे लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत का विश्वास हासिल हो। दूसरे शब्दों में अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से, लोकसभा द्वारा मंत्रिपरिषद को भंग किया जा सकता है।
      • राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये, सरकार पर दबाव बनाने हेतु विपक्षी दल द्वारा इसका एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • समितियों द्वारा विनियमन: सरकार के कार्यों के मूल्यांकन हेतु संसदीय समितियाँ जिम्मेदार होती हैं। चूंकि संसद के पास कानून या विभिन्न विषयों पर चर्चा करने के लिये सीमित समय होता है ऐसे में ये समितियाँ विस्तृत जाँच और विचार-विमर्श के लिये मंच प्रदान करती हैं। संसदीय स्थायी समितियाँ निम्नलिखित की जाँच करती हैं: (i) उन्हें भेजे गए विधेयक (ii) मंत्रालयों के अनुदान की मांग या (iii) अन्य विषय।
    • वित्तीय मामलों की समीक्षा: संसद, सरकार के कराधान और व्यय को मंजूरी देकर कार्यपालिका के वित्तीय मामलों की समीक्षा करने के लिये उत्तरदायी है और इसके द्वारा यह भी देखा जाता है कि स्वीकृत व्यय ठीक से खर्च किया गया है या नहीं। यह समीक्षा विभिन्न चर्चाओं के दौरान की जाती है: (i) आम बजट पर (ii) विभागवार अनुदान की मांग पर और (iii) संसदीय समितियों में।
    • प्रश्नकाल: प्रश्नकाल के दौरान सांसद, कार्यपालिका को कानूनों और नीतियों को लागू करने के क्रम में उत्तरदायी ठहराने के लिये मंत्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं। अतारांकित प्रश्नों के लिये लिखित उत्तर दिया जाता है जबकि तारांकित प्रश्नों के लिये संबंधित मंत्री द्वारा मौखिक उत्तर देने की आवश्यकता होती है। दिये गए उत्तर के आधार पर सांसदों को मंत्री से दो अनुवर्ती प्रश्न पूछने की अनुमति होती है।

    निष्कर्ष

    भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिये कार्यपालिका पर संसद का नियंत्रण आवश्यक है। कार्यपालिका पर संसदीय नियंत्रण की प्रभावशीलता को संसद की छवि में सुधार, इसके सदस्यों की गुणवत्ता में सुधार और समिति प्रणाली को मजबूत करने आदि जैसे कदमों से सुधारा जा सकता है।

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