दिवस- 89
प्रश्न.1 वर्ष 1991 में हुए रणनीतिक आर्थिक सुधारों ने भुगतान संतुलन के संकट के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया था। वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को आंतरिक और बाह्य वित्तीय उतार-चढ़ाव तथा चुनौतियों से सुरक्षित रखने हेतु अधिक मजबूत विनियमन की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 कॉर्पोरेट क्षेत्र का क्या उत्तरदायित्व है? इस क्षेत्रक द्वारा अपने निहित लक्ष्यों को किस सीमा तक प्राप्त किया गया है? (150 शब्द))
20 Feb 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- 1991 के आर्थिक सुधारों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारतीय अर्थव्यवस्था को आंतरिक और बाह्य उतार-चढ़ाव से बचाने के लिये मज़बूत विनियमों की आवश्यकता के बारे में बताइये।
- समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- वर्ष 1991 में भुगतान घाटे के असंतुलन के कारण भारत को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई थी और आर्थिक विकास में तीव्र गिरावट दर्ज की गई थी।
- इस संकट को दूर करने के लिये भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था को उदार बनाने और सरकारी हस्तक्षेप को कम करने के उद्देश्य से रणनीतिक आर्थिक सुधारों की शुरुआत की थी।
- इन सुधारों (जिनमें मुद्रा के अवमूल्यन, व्यापार बाधाओं में कमी और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के निजीकरण जैसे उपाय शामिल थे) ने भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया और इसे निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर करने में भूमिका निभाई थी।
- भारत की अर्थव्यवस्था और इसकी विरासत पर इन सुधारों के प्रभाव के संबंध में विश्व भर के अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं द्वारा बहस और विश्लेषण किया जाता है।
मुख्य भाग:
- मजबूत विनियमन की आवश्यकता:
- वर्तमान समय में भारत, विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जिसमें तेजी से विस्तार करने वाले मध्यम वर्ग के साथ वृद्धिशील उद्यमशीलता वाला पारिस्थितिकी तंत्र शामिल है। हालाँकि भारतीय अर्थव्यवस्था आंतरिक और बाह्य वित्तीय उतार-चढ़ाव और संकटों के प्रति संवेदनशील बनी हुई है। ऐसे जोखिमों से बचाव के लिये भारत को अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में अधिक मजबूत विनियमन की आवश्यकता है।
- यहाँ वित्तीय क्षेत्र में मजबूत विनियमन की आवश्यकता है। भारत की बैंकिंग प्रणाली हाल के वर्षों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) के उच्च स्तर से ग्रस्त रही है जिससे तरलता में कमी आने के साथ बैंकों की उधार देने की क्षमता कमजोर हुई है। इस मुद्दे को हल करने के लिये भारत सरकार ने दिवाला और दिवालियापन संहिता के कार्यान्वयन एवं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के समेकन सहित नियामक ढाँचे को मजबूत करने के लिये कई कदम उठाए हैं। हालाँकि बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों के पर्याप्त रूप से विनियमन और पर्यवेक्षण को सुनिश्चित करना आवश्यक है।
- श्रम बाज़ार भी एक और ऐसा क्षेत्र है जहाँ मजबूत विनियमन की जरूरत है। भारत के श्रम कानून जटिल और अक्सर प्रतिबंधात्मक रहे हैं जो निवेश के लिये बाधक होने के साथ रोज़गार सृजन में बाधा डाल सकते हैं। आर्थिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये भारत को श्रम कानूनों को सरल एवं आधुनिक बनाने तथा श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा लाभों में सुधार सहित व्यापक श्रम बाज़ार सुधार करने की आवश्यकता है।
- अंततः भारत को बाहरी उतार-चढ़ाव तथा चुनौतियों से सुरक्षित रखने हेतु अपनी व्यापार और निवेश नीतियों को मजबूत करने की जरूरत है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के समन्वय के साथ, भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इसकी व्यापार नीतियाँ वैश्विक मानकों के अनुरूप तथा इसकी निवेश नीतियाँ पारदर्शी एवं विदेशी निवेश के अनुकूल हों।
निष्कर्ष:
भारत में हुए आर्थिक सुधारों से देश एक वैश्विक आर्थिक महाशक्ति के रूप में तब्दील हुआ है आंतरिक और बाह्य वित्तीय उतार-चढ़ाव तथा चुनौतियों से बचाव के लिये इस दिशा में और अधिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। निरंतर आर्थिक संवृद्धि और विकास को सुनिश्चित करने हेतु वित्तीय क्षेत्र, श्रम बाज़ार तथा व्यापार एवं निवेश नीतियों सहित अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत विनियमन की आवश्यकता है।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- कॉर्पोरेट क्षेत्र के उत्तरदायित्व के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) में भारत की उपलब्धियों के बारे में बताइये।
- समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- कॉर्पोरेट क्षेत्र का उत्तरदायित्व (जिसे कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के रूप में भी जाना जाता है) का आशय है कि व्यवसायों की जिम्मेदारी है कि वे इस तरह से कार्य करें जिससे समाज और पर्यावरण को लाभ हो।
- भारत में कंपनी अधिनियम, 2013 द्वारा कुछ कंपनियों के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) को अनिवार्य बनाया गया है।
- इसमें पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करने, स्थानीय समुदायों का कल्याण करने और विविधता तथा समावेशन को बढ़ावा देने वाली प्रथाएँ शामिल हो सकती हैं।
- कॉर्पोरेट क्षेत्र की जिम्मेदारी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यवसाय न केवल अधिकतम लाभ पर केंद्रित हो बल्कि इससे अधिक से अधिक स्थानीय समुदायों के कल्याण को बढ़ावा मिले।
मुख्य भाग:
- कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की दिशा में भारत की उपलब्धि:
- भारत का कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) ढाँचा वर्ष 2014 में प्रस्तुत किया गया था जिसके तहत कुछ मानदंडों को पूरा करने वाली कंपनियों को सीएसआर गतिविधियों पर अपने औसत शुद्ध लाभ का 2% खर्च करने की आवश्यकता को निर्धारित किया गया था। तब से कई भारतीय कंपनियों ने इसके तहत विभिन्न सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक क्षेत्रों में योगदान देने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। सीएसआर में भारत की उपलब्धियों के कुछ उदाहरणों में निम्न शामिल हैं:
- पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना: कई कंपनियों ने अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने, ऊर्जा संरक्षण और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये कई कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिये टाटा समूह ने अक्षय ऊर्जा में व्यापक निवेश किया है तथा रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये कई पहलें शुरू की हैं।
- शिक्षा और कौशल विकास को प्रोत्साहन देना: कई कंपनियों ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों में निवेश किया है। उदाहरण के लिये इंफोसिस फाउंडेशन द्वारा कंप्यूटर साक्षरता को बढ़ावा देने के लिये कई कार्यक्रमों को वित्तपोषित किया गया है जबकि आईटीसी ने कई व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये हैं।
- स्वास्थ्य और स्वच्छता को प्रोत्साहन देना: कई कंपनियों ने ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य और स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिये पहलें शुरू की हैं। उदाहरण के लिये हिंदुस्तान यूनिलीवर ने कई जल संरक्षण परियोजनाओं को शुरू किया है जबकि विप्रो ने ग्रामीण क्षेत्रों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार हेतु कार्यक्रमों को वित्तपोषित किया किया है।
- आपदा राहत और सामुदायिक विकास को प्रोत्साहन देना: कई कंपनियों ने आपदा राहत प्रयासों और सामुदायिक विकास पहलों में योगदान दिया है। उदाहरण के लिये अडानी फाउंडेशन ने आदिवासी समुदायों की जीवन स्थितियों में सुधार के लिये कई परियोजनाओं को शुरू किया है जबकि महिंद्रा समूह ने प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत प्रयासों में योगदान दिया है।
- महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता पर बल देना: कई कंपनियों ने महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये पहल शुरू की है। उदाहरण के लिये आईसीआईसीआई बैंक ने महिलाओं के लिये वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये कार्यक्रम शुरू किया है जबकि हिंदुस्तान यूनिलीवर ने कार्यस्थल पर लैंगिक विविधता को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें शुरू की हैं।
- लोक कल्याण की दिशा में कार्य करना: कई भारतीय व्यापारियों ने परोपकारी कार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उदाहरण के लिये विप्रो के संस्थापक अजीम प्रेमजी द्वारा अपनी संपत्ति के कुछ हिस्से को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल पहलों के लिये दान किया गया है जबकि टाटा संस द्वारा सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिये कई परोपकारी संगठनों की स्थापना की गई है।
निष्कर्ष:
भारत के सीएसआर ढाँचे द्वारा कई कंपनियों को सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी के लिये अधिक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने के हेतु प्रोत्साहित किया गया है जिससे विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है। हालाँकि सामाजिक और पर्यावरणीय चुनौतियों को दूर करने तथा सतत एवं समावेशी विकास को बढ़ावा देने हेतु इस दिशा में अभी भी काफी लंबा रास्ता तय करना है। सीएसआर की अवधारणा को हाल के वर्षों में और अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई है इसके अंतर्गत कई कंपनियों ने अपनी व्यावसायिक रणनीतियों में सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी को शामिल किया है। हालाँकि इस दिशा में अभी भी काफी सुधार की गुंजाइश है और विभिन्न हितधारक जलवायु परिवर्तन, असमानता एवं मानवाधिकारों से संबंधित वैश्विक चुनौतियों को दूर करने की दिशा में कॉर्पोरेट घरानों द्वारा पहल किये जाने पर बल दे रहे हैं।