न्यू ईयर सेल | 50% डिस्काउंट | 28 से 31 दिसंबर तक   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Sambhav-2023

  • 18 Feb 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस- 88

    प्रश्न.1 मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण क्या है? व्यापक आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने के क्रम में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति ढाँचे के रूप में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को अपनाए जाने के लाभों और सीमाओं पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 मुक्त व्यापार समझौते और इसके विभिन्न प्रकारों को बताइये। भारत में इन समझौतों की विकास यात्रा की चर्चा कीजिये? (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • मौद्रिक नीतिगत ढाँचे के रूप में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के लाभों और सीमाओं पर चर्चा कीजिये।
    • समग्र और प्रभावी निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का अभिप्राय मौद्रिक नीतिगत ढाँचा के तहत केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रास्फीति दर हेतु स्पष्ट लक्ष्य का निर्धारण करना और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपने नीतिगत साधनों (जैसे ब्याज दरों) का उपयोग करना है।
    • भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा +/- 2% के लचीलेपन बैंड के साथ 4% का मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसका मतलब यह है कि आरबीआई का लक्ष्य मुद्रास्फीति को 4% पर रखना है लेकिन इसमें 2% से 6% के बीच की मुद्रास्फीति को अनुकूल माना गया है।
    • मौद्रिक नीति ढाँचे के रूप में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण की भारत में व्यापक आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने के संदर्भ में लाभ और सीमाएँ हो सकती हैं।

    मुख्य भाग:

    • लाभ:
      • पारदर्शिता: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण में एक स्पष्ट मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित करने से केंद्रीय बैंक के नीतिगत निर्णयों को आकार मिलने के साथ मौद्रिक नीति में पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार हो सकता है।
      • विश्वसनीयता: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को अपनाने से केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता बढ़ने और अनिश्चितता कम होने के साथ अधिक स्थिर और अनुमानित आर्थिक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
      • लचीलापन: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण केंद्रीय बैंक को बदलती आर्थिक स्थितियों और मुद्रास्फीति को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों के आधार पर अपने नीतिगत उपकरणों को समायोजित करने के लिये लचीलापन प्रदान करने हेतु सहायक है।
      • दीर्घावधिक दृष्टिकोण से व्यवहारिक: मध्यम अवधि के मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित करने से मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के रूप में मौद्रिक नीति में दीर्घकालिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहन मिलने के साथ सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
    • सीमाएँ:
      • अवसंरचनात्मक बाधाएँ: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण, आपूर्ति-पक्ष या संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने में प्रभावी नहीं हो सकता है जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है जैसे कि अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा, जिससे उच्च मुद्रास्फीति हो सकती है।
      • विनिमय दर में उतार-चढ़ाव: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण से विनिमय दर में उतार-चढ़ाव हो सकता है (विशेष रूप से खुली अर्थव्यवस्था वाले देशों में), क्योंकि ब्याज दरों में परिवर्तन से पूंजी प्रवाह और विनिमय दरें प्रभावित हो सकती हैं।
      • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं (विशेष रूप से समाज के कमज़ोर लोगों पर), क्योंकि ब्याज दरों में परिवर्तन से रोज़गार, आय और अन्य आर्थिक पहलू प्रभावित हो सकते हैं।
      • सटीक आंकड़ो की उपलब्धता: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण हेतु मुद्रास्फीति और अन्य व्यापक आर्थिक पहलुओं से संबंधित सटीक आंकड़ो की आवश्यकता होती है।
    • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण व्यापक आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने का एक प्रभावी मौद्रिक नीति ढाँचा हो सकता है लेकिन इसको देश की विशिष्ट आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों पर विचार करते हुए लागू करना चाहिये।

    निष्कर्ष:

    भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा मौद्रिक नीति ढाँचे के रूप में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को अपनाने के कुछ लाभ और सीमाएँ हैं। यह ढाँचा केंद्रीय बैंक की पारदर्शिता, जवाबदेहिता और विश्वसनीयता को बढ़ाने में सहायक है जिससे अधिक स्थिर मुद्रास्फीति के साथ लंबी अवधि में निम्न ब्याज दरों को प्राप्त किया जा सकता है। हालाँकि भारत में मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को लागू करने की अपनी सीमाएँ भी हैं, जिसमें मुद्रास्फीति और अन्य व्यापक आर्थिक लक्ष्यों को निर्धारित करने में जटिलता और मुद्रास्फीति को सही ढंग से मापने और इसकी भविष्यवाणी करने में होने वाली कठिनाई शामिल है। इन सीमाओं के बावजूद व्यापक आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने के लिये मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण एक प्रभावी उपकरण हो सकता है लेकिन इसके कार्यान्वयन हेतु भारत की अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इसके लाभों और सीमाओं पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • मुक्त व्यापार समझौते के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • विभिन्न प्रकार के मुक्त व्यापार समझौतों को बताते हुए भारत में इन समझौतों की विकास यात्रा की चर्चा कीजिये।
    • समग्र निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • मुक्त व्यापार समझौता (FTA) दो या दो से अधिक देशों के बीच की एक ऐसी संधि है जिसका उद्देश्य टैरिफ, कोटा और अन्य प्रतिबंधों जैसी व्यापार बाधाओं को कम या समाप्त करके वस्तु और सेवाओं के व्यापार को उदार और सुविधाजनक बनाना है।
    • इस समझौते में आमतौर पर बौद्धिक संपदा संरक्षण, निवेश और व्यापार से संबंधित अन्य मुद्दों से संबंधित प्रावधान शामिल होते हैं।
    • FTA का मुख्य उद्देश्य मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना और वस्तुओं तथा सेवाओं के सीमापार व्यापार को खुला और प्रतिस्पर्धी बनाना है।
    • एफटीए पर सरकारों द्वारा हस्ताक्षर किये जाते हैं जिसमें उद्योगों, विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न मुद्दों को शामिल किया जा सकता है।

    मुख्य भाग:

    • विभिन्न प्रकार के मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) हैं जैसे:
      • द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता: यह दो देशों के बीच व्यापार बाधाओं जैसे टैरिफ, कोटा और वस्तुओं तथा सेवाओं पर अन्य प्रतिबंधों को कम करने या समाप्त करने से संबंधित समझौता है।
      • बहुपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता: यह कई देशों के बीच होने वाला समझौता है जिसका उद्देश्य व्यापार को उदार बनाना और सभी सदस्यों के बीच व्यापार से संबंधित बाधाओं को कम करना है। इसके उदाहरण में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) और इसके विभिन्न व्यापार समझौते शामिल हैं।
      • क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौता: यह किसी विशिष्ट क्षेत्र या क्षेत्र के देशों के बीच होने वाला समझौता है जैसे उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता (NAFTA), जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको शामिल हैं।
      • क्षेत्र-विशिष्ट मुक्त व्यापार समझौता: यह एक ऐसा समझौता है जो एक विशिष्ट क्षेत्र या उद्योग पर केंद्रित होता है जैसे कि सूचना प्रौद्योगिकी समझौता (ITA)। जिसके तहत आईटी उत्पादों पर टैरिफ को समाप्त किया जाता है।
      • व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता: यह एक व्यापक समझौता होता है जिसमें व्यापार से परे विभिन्न मुद्दों को शामिल किया जाता है जैसे कि निवेश, बौद्धिक संपदा और श्रम मानक।
      • अधिमान्य व्यापार समझौता: यह उन देशों के बीच एक समझौता है जो कुछ उत्पादों के लिये अधिमान्य उपचार प्रदान करते हैं जैसे कि कम टैरिफ या शुल्क के साथ मुक्त व्यापार को अनुमति देना। लेकिन इसके तहत सभी व्यापार बाधाओं को समाप्त नहीं किया जाता है।
    • ये समझौते अलग-अलग प्रकार के होने के साथ इनमें उदारीकरण के अलग-अलग स्तर हो सकते हैं, लेकिन इन सभी का उद्देश्य मुक्त व्यापार को बढ़ावा देना और व्यापार तथा निवेश से संबंधित बाधाओं को कम करना होता है।

    इन समझौतों के संदर्भ में भारत की विकास यात्रा:

    • पिछले कुछ वर्षों में भारत ने विभिन्न क्षेत्रों और देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) किये हैं जैसे:
      • दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (SAPTA): वर्ष 1993 में हस्ताक्षरित इस समझौते का उद्देश्य सार्क देशों (बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका) के बीच टैरिफ को कम करना है। हालांकि निम्न अंतर-क्षेत्रीय व्यापार और राजनीतिक तनाव के कारण इसका सीमित प्रभाव रहा है ।
      • भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता (ISFTA): वर्ष 1998 में हस्ताक्षरित इस समझौते का उद्देश्य भारत और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना है। इससे व्यापार में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई (विशेषकर कपड़ा और परिधान क्षेत्रों में)।
      • भारत-थाईलैंड मुक्त व्यापार समझौता (ITFTA): वर्ष 2003 में हस्ताक्षरित इस समझौते का उद्देश्य भारत और थाईलैंड के बीच व्यापार को बढ़ावा देना है। हालाँकि दायरे में बहुत सीमित होने और गैर-टैरिफ बाधाओं को दूर न करने के कारण इसकी आलोचना की गई।
      • भारत-सिंगापुर व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA): वर्ष 2005 में हस्ताक्षरित इस समझौते का उद्देश्य भारत और सिंगापुर के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना है। यह विशेष रूप से सेवा क्षेत्र में व्यापार और निवेश प्रवाह बढ़ाने में सफल रहा है।
      • भारत-कोरिया व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA): वर्ष 2009 में हस्ताक्षरित इस समझौते का उद्देश्य भारत और कोरिया के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना है। यह द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने में सफल रहा है लेकिन कोरिया के साथ भारत, व्यापार घाटे की स्थिति में है।
      • भारत-जापान व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA): वर्ष 2011 में हस्ताक्षरित इस समझौते का उद्देश्य भारत और जापान के बीच आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देना है। यह द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने में सफल रहा है लेकिन जापान के साथ भारत, व्यापार घाटे की स्थिति में है।
      • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP): भारत, आसियान और उसके छह एफटीए भागीदारों (चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) के बीच इस मेगा एफटीए के लिये होने वाली वार्ता में भागीदार था। हालाँकि बाज़ार पहुँच और घरेलू उद्योगों पर विपरीत प्रभाव जैसे मुद्दों के कारण भारत, वर्ष 2019 में इस समझौते से अलग हो गया था।

    निष्कर्ष:

    एफटीए के रूप में भारत को कुछ समझौतों से महत्त्वपूर्ण लाभ हुआ है जबकि अन्य कुछ समझौतों में कम सफलता हासिल हुई है। देश को घरेलू चिंताओं को दूर करने और अपने उद्योगों की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देते हुए इस प्रकार के व्यापार समझौतों में भाग लेना आवश्यक है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2