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15 Feb 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 3
अर्थव्यवस्था
दिवस- 85
प्रश्न.1 वस्तु एवं सेवा कर (GST) का बढ़ता संग्रह इसकी सफलता को प्रतिबिंबित कर रहा है। क्या कर व्यवस्था को अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष कर प्रणाली में बदलने की कोई आवश्यकता है? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 FRBM अधिनियम क्या है? राजकोषीय सुदृढ़ीकरण (fiscal consolidation) के संबंध में इसमें क्या प्रावधान हैं? (250 शब्द)
उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- वस्तु एवं सेवा कर की प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये।
- स्पष्ट कीजिये कि क्या कर व्यवस्था को अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष कर व्यवस्था में बदलने की कोई आवश्यकता है।
- समग्र और प्रभावी निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) भारत में वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाने वाला एक मूल्य वर्धित कर है।
- यह एक व्यापक, अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है जिसमें विभिन्न प्रकार के करों जैसे VAT, उत्पाद शुल्क, सेवा कर आदि को समाहित कर एकीकृत कर व्यवस्था में बदला गया है।
- जीएसटी को आपूर्ति श्रृंखला के हर चरण पर लगाया जाता है (उत्पादन से लेकर अंतिम उपभोग तक)। इसमें प्रत्येक चरण में मूल्य वर्धन पर भुगतान किये गए कर पर इनपुट टैक्स क्रेडिट के रूप में दावा किया जा सकता है।
मुख्य भाग:
- वस्तु एवं सेवा कर (GST):
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) के कार्यान्वयन से वास्तव में भारत में अप्रत्यक्ष करों के संग्रह में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- जीएसटी द्वारा VAT, उत्पाद शुल्क और सेवा कर जैसे विभिन्न प्रकार के करों को समाहित करके अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सुव्यवस्थित किया गया है।
- इससे न केवल कर प्रणाली और अधिक कुशल हुई है बल्कि करों के कैस्केडिंग प्रभाव में भी कमीं आई है, जिससे व्यवसायों को संचालित करना आसान हो गया है।
- जीएसटी से सरकार के राजस्व में वृद्धि होने के साथ आय का एक स्थिर और अनुमानित स्रोत सुनिश्चित हुआ है जिसका उपयोग सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रमों और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये किया जा सकता है।
- कर व्यवस्था को अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष कर में बदलना है या नहीं, इस पर बहस करना एक जटिल विषय है और यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि देश की आर्थिक स्थिति, कराधान प्रणाली और कानूनों को लागू करने की प्रशासनिक क्षमता।
- कर व्यवस्था को अप्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष कर प्रणाली में बदलने की आवश्यकता: अप्रत्यक्ष बनाम प्रत्यक्ष कर से संबंधित बहस।
- प्रत्यक्ष कराधान के समर्थकों का तर्क है कि यह एक अधिक न्यायसंगत प्रणाली है क्योंकि इसमें व्यक्तियों और निगमों पर उनकी आय या संपत्ति के आधार पर कर आरोपित किया जाता है।
- इस प्रणाली को न्यायपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसके तहत जो व्यक्ति अधिक कमाते हैं उन्हें अधिक कर चुकाना होता है, जिससे कर का बोझ अधिक न्यायसंगत तरीके से वितरित होता है।
- प्रत्यक्ष करों को प्रगतिशील माना जाता है क्योंकि इन्हें व्यक्तियों और संगठनों पर उनकी आय या संपत्ति के अनुपात में आरोपित किया जाता है।
- प्रत्यक्ष कर, जैसे व्यक्तिगत आयकर और निगम कर से सरकार को राजस्व का एक स्थिर और अनुमानित स्रोत मिलता है, जिसका उपयोग सार्वजनिक कल्याण कार्यक्रमों और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये किया जा सकता है।
- प्रत्यक्ष करों को अपनाने से कर आधार को बढ़ाने में सहायता मिल सकती है, क्योंकि इससे व्यक्तियों और संगठनों को अपनी वास्तविक आय घोषित करने के लिये प्रोत्साहन मिलने से कर चोरी में कमी आने के कारण सरकारी राजस्व में वृद्धि होने की संभावना है।
- जीएसटी से कर प्रणाली को सरल बनाने और कर आधार को बढ़ाने में मदद तो मिली है लेकिन अप्रत्यक्ष करों को अभी भी प्रतिगामी माना जाता है क्योंकि यह उच्च आय वाले लोगों की तुलना में कम आय वाले लोगों को अधिक गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
- यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि अप्रत्यक्ष कर प्रणाली की जगह पूरी तरह से प्रत्यक्ष कर प्रणाली को अपनाना संभव या व्यावहारिक नहीं है।
- संतुलित और स्थायी कर प्रणाली में दोनों प्रकार के कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का उपयुक्त मिश्रण प्रत्येक देश की विशिष्ट परिस्थितियों और आवश्यकताओं पर निर्भर करता है।
निष्कर्ष:
करों के संग्रह हेतु वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का कार्यान्वयन एक सफल निर्णय साबित हुआ है। कुछ शुरुआती चुनौतियों के बावजूद, जीएसटी से कर प्रणाली को सुव्यवस्थित करने के साथ सरकार के राजस्व को बढ़ाने में मदद मिली है। हालांकि यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि कर प्रणाली की प्रभावशीलता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जिनमें देश की आर्थिक स्थिति, कर व्यवस्था की सरलता और नागरिकों द्वारा कर कानूनों का अनुपालन शामिल होता है।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- FRBM अधिनियम के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- उन प्रावधानों का उल्लेख कीजिये जो राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- FRBM (राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम) को भारतीय संसद द्वारा वर्ष 2003 में सरकारी खर्च में राजकोषीय अनुशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
- इस अधिनियम के अनुसार सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि राजकोषीय घाटा (जो कि सरकार के कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच का अंतर है) को समय के साथ कम किया जाए और राजस्व घाटे (जो सरकार के कुल राजस्व की तुलना में कुल व्यय की अधिकता है) को समाप्त किया जाए।
- राजकोषीय सुदृढ़ीकरण का अभिप्राय अंतर्निहित राजकोषीय घाटे में कमी लाना और सरकारों (राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर) द्वारा अपने घाटे और ऋण को कम करने के लिये व्यवहारिक नीतियों को शुरू करना है।
मुख्य भाग:
- राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के संबंध में कई प्रावधान शामिल हैं:
- राजकोषीय घाटा के लक्ष्य का निर्धारण करना: इस अधिनियम के अनुसार सरकार को निश्चित समय अवधि में अपने राजकोषीय घाटे को एक निर्दिष्ट लक्ष्य तक कम करने की आवश्यकता है। वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को 4.5 प्रतिशत से नीचे लाया जाना शामिल है।
- राजस्व घाटे को समाप्त करना: इस अधिनियम के अनुसार सरकार को अपने राजस्व घाटे को समाप्त करने की आवश्यकता है, जो सरकार के कुल राजस्व की तुलना में कुल व्यय की अधिकता को संदर्भित करता है।
- मध्यम अवधि की राजकोषीय रणनीति: इस अधिनियम के अनुसार सरकार को मध्यम अवधि की वित्तीय रणनीति तैयार करने और लागू करने की आवश्यकता है, जो तीन साल की अवधि में सरकार के राजकोषीय घाटे को कम करने की योजना की रूपरेखा पर आधारित हो।
- वार्षिक राजकोषीय रिपोर्ट: इस अधिनियम के अनुसार सरकार को संसद में वार्षिक राजकोषीय उत्तरदायित्व विवरण प्रस्तुत करना आवश्यक है, जो अपने राजकोषीय सुदृढ़ीकरण लक्ष्यों को प्राप्त करने में सरकार की प्रगति को रेखांकित करता हो।
- अनुपालन न किये जाने पर दंड का प्रावधान: इस अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर दंड देने का प्रावधान है, जिसमें जुर्माना लगाना और निर्वाचित सदस्यों को सार्वजनिक पद धारण करने से अयोग्य घोषित करना शामिल है।
निष्कर्ष:
राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम का उद्देश्य सरकार के बजट प्रबंधन में राजकोषीय उत्तरदायित्व और स्थिरता को बढ़ावा देना है। इसमें राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के प्रावधान शामिल हैं। जिसमें राजकोषीय घाटा और ऋण को कम करने के लक्ष्य के साथ-साथ बजट योजना और निष्पादन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उपाय भी शामिल हैं। FRBM अधिनियम यह सुनिश्चित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है कि सरकार के धन को एक ऐसे उत्तरदायी और सतत तरीके से प्रबंधित किया जा रहा है जिसे भारत में आर्थिक स्थिरता और विकास को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण माना जाता है।