Sambhav-2023

दिवस- 84

प्रश्न.1 गरीबी, लोगों की अवसर हीनता का कारण बनती है। चर्चा कीजिये कि क्या संपत्ति वितरण या संपत्ति सृजन के माध्यम से गरीबी उन्मूलन संभव है? (250 शब्द)

प्रश्न.2 बेरोज़गारी के प्रकारों को समझाइये। भारतीय कृषि में प्रच्छन्न बेरोजगारी के समाधान हेतु उपाय बताइये। (250 शब्द)

14 Feb 2023 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर 1:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • गरीबी के बारे में संक्षिप्त परिचय देते हुए गरीबी के कारण होने वाले अवसरों के नुकसान का उल्लेख कीजिये।
  • चर्चा कीजिये कि संपत्ति सृजन या संपत्ति वितरण से गरीबी कैसे दूर हो सकती है।
  • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • गरीबी एक जटिल और बहुआयामी मुद्दा है जो न्यूनतम जीवन स्तर हेतु आवश्यक संसाधनों, सेवाओं और अवसरों तक पहुँच की कमी को संदर्भित करता है। गरीबी के कई प्रकार हो सकते हैं जैसे निरपेक्ष गरीबी, जिसमें व्यक्तियों के पास अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त आय का अभाव होता है और सापेक्ष गरीबी, जिसमें व्यक्तियों की समाज में दूसरों की तुलना में संसाधनों तक कम पहुँच होती है।
  • गरीबी लोगों, परिवारों और पूरे समुदायों को प्रभावित कर सकती है तथा स्वास्थ्य, शिक्षा एवं जीवन की समग्र गुणवत्ता के लिये इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। गरीबी में योगदान देने वाले कुछ कारकों में बेरोज़गारी, कम मजदूरी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में कमी, भेदभाव और सामाजिक एवं आर्थिक असमानता शामिल हैं।

मुख्य भाग:

  • गरीबी कई तरह से व्यक्ति के अवसरों को सीमित कर सकती है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आवास और अन्य मूलभूत आवश्यकताओं तक पहुँच को सीमित कर सकती है।
  • संसाधनों की इस कमी से गरीबी के दुष्चक्र को जन्म मिल सकता है क्योंकि इससे व्यक्तियों के लिये अपनी परिस्थितियों में सुधार करना एवं अपनी पूरी क्षमता का लाभ उठाना मुश्किल हो जाता है।
  • इसके अतिरिक्त गरीबी किसी व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकती है जिससे लोगों को और भी नुकसान हो सकते हैं।
  • व्यक्तियों के लिये उपलब्ध अवसरों की संख्या को सीमित करने के रूप में गरीबी का लोगों के जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है।
  • कई प्रकार से गरीबी लोगों की अवसरहीनता का कारण बनती है जैसे:
    • शिक्षा तक सीमित पहुँच: गरीबी में रहने वाले बच्चों को अक्सर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है जिससे उनके भविष्य के अवसर सीमित हो सकते हैं। ये स्कूल के साथ परिवहन का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं होते हैं या उन्हें अपने परिवार का समर्थन करने के लिये कार्य करना पड़ सकता है, जिससे इनका नियमित रूप से स्कूल जाना मुश्किल हो जाता है।
    • स्वास्थ्य देखभाल की कमी: गरीबी में रहने वाले लोगों की अक्सर बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं होती है, जिससे उनके रोज़गार और शिक्षा के अवसर सीमित हो सकते हैं। खराब स्वास्थ्य व्यक्तियों के कार्य और अन्य गतिविधियों में बाधक हो सकता है।
    • अपर्याप्त आवास: रहने की दयनीय स्थिति जैसे भीड़भाड़ के साथ स्वच्छ जल और बिजली तक पहुँच की कमी, लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित कर सकती है जिससे इनके कार्य और शिक्षा के अवसर सीमित हो सकते हैं।
    • प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच : गरीबी में रहने वाले लोगों की अक्सर कंप्यूटर, इंटरनेट और अन्य तकनीकों तक पहुँच नहीं होती है जो कई क्षेत्रों में सफलता के लिये आवश्यक हैं।
    • रूढ़िवादिता और भेदभाव: गरीबी नकारात्मक रूढ़िवादिता और भेदभाव को जन्म दे सकती है, जो रोज़गार और शिक्षा के अवसरों को और सीमित कर सकती है।
  • संपत्ति सृजन या संपत्ति वितरण, गरीबी निवारण में किस प्रकार सहायक होगा:
    • संपत्ति सृजन और वितरण व्यक्तियों और समुदायों को आय उत्पन्न करने के साधन प्रदान करके गरीबी को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
    • संपत्ति सृजन में संपत्ति और वित्तीय संपत्तियों के नए रूपों का सृजन शामिल है जैसे कि बचत खाते, स्टॉक, बॉन्ड या रियल एस्टेट। जिसका उपयोग आय और सुरक्षा के स्रोत के रूप में किया जा सकता है। यह व्यक्तियों और परिवारों को उनकी वित्तीय स्थिरता बढ़ाने और आर्थिक अनिश्चितता के प्रति उनकी भेद्यता को कम करने में मदद कर सकता है।
    • संपत्ति वितरण, किसी समाज में संपत्ति और धन के समान वितरण को संदर्भित करता है। इसे विभिन्न माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है जैसे प्रगतिशील कराधान के साथ बुनियादी ढाँचे और शिक्षा में सार्वजनिक निवेश करना। धन के अधिक समान वितरण को सुनिश्चित करके संपत्ति वितरण से आय असमानता को कम करने एवं उन लोगों के लिये आर्थिक अवसर बढ़ाने में मदद मिल सकती है जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर हैं या आर्थिक विकास से लाभान्वित नहीं हैं।
    • हालांकि यह ध्यान देने योग्य है कि गरीबी को कम करना एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है जिसके लिये संपत्ति सृजन और वितरण के साथ एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है । गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसरों तक पहुँच के अभाव के साथ राजनीतिक अस्थिरता, संघर्ष और भ्रष्टाचार जैसे कारक गरीबी में योगदान कर सकते हैं। इसीलिये सार्थक और निरंतर प्रगति प्राप्त करने के लिये इन मुद्दों को हल किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

गरीबी उन्मूलन एक जटिल मुद्दा है जिसके लिये बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। संपत्ति वितरण और संपत्ति सृजन दोनों से ही गरीबी को कम करने और आर्थिक अवसर बढ़ाने में सहायता मिल सकती है। इसलिये संपत्ति वितरण और संपत्ति सृजन, गरीबी उन्मूलन हेतु एक प्रभावी संभावित तरीका हो सकता है। अंततः गरीबी उन्मूलन के क्रम में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक प्रभावी नीतियों का कार्यान्वयन करना है जिससे गरीबी के मूल कारण दूर होने के साथ समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। इसके लिये सरकारों, व्यवसायों और नागरिक समाज संगठनों के बीच सहयोग की आवश्यकता है ताकि समाज के सभी सदस्यों के लिये आर्थिक विकास में भागीदारी करने तथा इससे लाभ उठाने के अवसर प्रदान किये जा सकें।


उत्तर 2:

हल करने का दृष्टिकोण:

  • बेरोज़गारी का परिचय दीजिये।
  • बेरोज़गारी के प्रकारों को समझाइये।
  • भारतीय कृषि में प्रच्छन्न बेरोज़गारी से निपटने के तरीकों पर विचार कीजिये।
  • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • बेरोज़गारी एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जिसमें कार्य करने के इच्छुक और सक्षम व्यक्ति रोज़गार पाने में असमर्थ होते हैं। बेरोज़गारी को कई तरीकों से मापा जा सकता है, जिसमें बेरोज़गारी दर भी शामिल है, जो श्रम बल का वह प्रतिशत है जो बेरोज़गार है लेकिन सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश कर रहे हैं।

मुख्य भाग:

  • बेरोज़गारी के कई प्रकार हैं जैसे:
    • घर्षण बेरोज़गारी: यह ऐसी स्थिति है जब श्रमिक नौकरी के दौरान नए रोज़गार की तलाश कर रहे होते हैं। घर्षण बेरोज़गारी अर्थव्यवस्था का एक स्वाभाविक हिस्सा है और इसे नौकरी खोजने की प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा माना जा सकता है।
    • संरचनात्मक बेरोज़गारी: यह ऐसी स्थिति है जब श्रमिकों के कौशल और क्षमताओं का श्रम बाज़ार की मांगों के साथ तालमेल नहीं होता है। इस प्रकार की बेरोज़गारी अर्थव्यवस्था में कुछ परिवर्तन के कारण हो सकती है जैसे कि कुछ उद्योगों में गिरावट आना या प्रौद्योगिकी में प्रगति होना।
    • चक्रीय बेरोज़गारी: यह ऐसी स्थिति है जब समग्र अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में होती है, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग में कमी आने के साथ रोज़गार में कमी आती है। इस प्रकार की बेरोज़गारी अस्थायी होती है क्योंकि अर्थव्यवस्था में सुधार होने के साथ वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ती है।
    • मौसमी बेरोज़गारी: यह ऐसी स्थिति है जब मौसम में होने वाले परिवर्तनों से रोज़गार प्रभावित होता है जैसे कि कृषि या पर्यटन उद्योग।
    • तकनीकी बेरोज़गारी: यह ऐसी स्थिति है जब प्रौद्योगिकी में होने वाली प्रगति से नौकरी छूट जाती है क्योंकि इससे श्रमिकों की जगह मशीनों द्वारा कार्य किया जाता है।
  • प्रत्येक प्रकार की बेरोज़गारी के कुछ अपने कारण और प्रभाव होते हैं तथा बेरोज़गारी की प्रकृति और सीमा कई कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है, जिसमें व्यापार चक्र, सरकारी नीतियाँ और अंतर्राष्ट्रीय घटनाएँ शामिल हैं। विभिन्न प्रकार की बेरोज़गारी को समझने से नीति निर्माताओं और व्यक्तियों को श्रम बाज़ार को बेहतर ढंग से समझने और बेरोज़गारी से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये कदम उठाने में मदद मिल सकती है।
  • भारतीय कृषि में प्रच्छन्न बेरोज़गारी के समाधान के कई तरीके हैं जैसे:
    • कृषि विविधीकरण: किसानों को छोटे व्यवसायों या सेवा क्षेत्रों के रूप में गैर-कृषि गतिविधियों में विविधता लाने के लिये प्रोत्साहित करने से कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोज़गारी को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • कृषि मशीनीकरण: ट्रैक्टर और सिंचाई प्रणाली जैसी आधुनिक कृषि तकनीकों तक पहुँच में सुधार करने से उत्पादकता बढ़ाने और कृषि में श्रम की आवश्यकता को कम करने में मदद मिल सकती है।
    • भूमि सुधार: भूमि समेकन और वितरण को बढ़ावा देने के लिये नीतियों को लागू करने से भूमि के छोटे, खंडित भूखंडों की संख्या कम करने और कृषि की दक्षता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
    • ग्रामीण विकास: ग्रामीण बुनियादी ढाँचे जैसे सड़कों, स्कूलों और स्वास्थ्य सुविधाओं में निवेश से रोज़गार के नए अवसर सृजित करने और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों के लिये जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
    • कौशल विकास: किसानों और ग्रामीण श्रमिकों को प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करने से उन्हें नए कौशल प्राप्त करने और कृषि के अतिरिक्त अपने रोज़गार की संभावनाओं में सुधार करने में मदद मिल सकती है।
    • फसल विविधीकरण: किसानों को केवल कुछ फसलों पर निर्भर रहने के बजाय फसलों की व्यापक किस्मों को उगाने के लिये प्रोत्साहित करने से फसल की विफलता के जोखिम को कम करने और समग्र कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने में मदद मिल सकती है।
    • सहकारी कृषि को बढ़ावा देना: सहकारी कृषि और सामूहिक कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने से किसानों को अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग करने, लागत कम करने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
  • ये रणनीतियाँ भारतीय कृषि में प्रच्छन्न बेरोज़गारी की समस्या को कम करने, कृषि उत्पादकता बढ़ाने और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की जीवन गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकती हैं। हालांकि यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि इन विकल्पों को प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप निर्धारित करने के साथ इन्हें स्थायी और न्यायसंगत तरीके से लागू किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

भारतीय कृषि में प्रच्छन्न बेरोज़गारी एक प्रमुख मुद्दा है जिसे शिक्षा और प्रशिक्षण, निवेश, विविधीकरण, प्रौद्योगिकी एवं सहायक नीतियों सहित विभिन्न माध्यमों से हल करने की आवश्यकता है। इन उपायों को अपनाने से बेरोज़गारी कम होने के साथ आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल सकता है।