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Sambhav-2023

  • 13 Feb 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस- 83

    प्रश्न.1 संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) क्या है। इसके निर्धारकों की चर्चा कीजिये। उन कारकों का भी उल्लेख कीजिये जो भारत को अपनी संभावित सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त करने में बाधा डालते हैं। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 सतत् आर्थिक विकास के लिये समावेशी विकास अनिवार्य है। समझाइये। (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संभावित सकल घरेलू उत्पाद का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • उन कारकों को बताइये जिन पर संभावित सकल घरेलू उत्पाद निर्भर करता है।
    • उन कारकों का उल्लेख कीजिये जो भारत में संभावित सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त करने में बाधाक हैं।
    • समग्र और प्रभावी निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) ऐसे उच्चतम स्तर के आउटपुट (वस्तुओं और सेवाओं) को संदर्भित करता है जिसका किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति सृजित किये बिना उत्पादन हो सकता है।
    • यह एक सैद्धांतिक अवधारणा है जो उत्पादन के अधिकतम स्तर का प्रतिनिधित्व करती है जिसको किसी अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों, प्रौद्योगिकी और विकास की क्षमता को देखते हुए दीर्घकाल में प्राप्त किया जा सकता है।
    • संभावित जीडीपी का उपयोग अक्सर किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के वास्तविक स्तर को मापने हेतु एक बेंचमार्क के रूप में किया जाता है साथ ही इसका उपयोग यह मापने के लिये किया जाता है कि अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता पर या उससे ऊपर किस हद तक संचालित हो रही है।

    मुख्य भाग:

    • संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कई प्रमुख कारकों द्वारा निर्धारित होता है जैसे:
      • श्रम बल: श्रम बल का आकार और गुणवत्ता संभावित सकल घरेलू उत्पाद के सबसे महत्त्वपूर्ण निर्धारकों में से एक है। बढ़ती हुई और सुशिक्षित श्रम शक्ति, उत्पादकता की क्षमता को बढ़ा सकती है जबकि घटती हुई श्रम शक्ति अर्थव्यवस्था की वृद्धि की क्षमता को सीमित कर सकती है।
      • पूंजी स्टॉक: किसी अर्थव्यवस्था में भौतिक पूंजी जैसे भवन, मशीन और उपकरण की मात्रा अर्थव्यवस्था की वृद्धि की क्षमता को प्रभावित करती है। पूंजी का संचयन उत्पादकता और उत्पादन की संभावना को बढ़ा सकता है जबकि पूंजी में निवेश की कमी से अर्थव्यवस्था की वृद्धि की क्षमता सीमित हो सकती है।
      • तकनीकी प्रगति: तकनीकी प्रगति से उत्पादन प्रक्रियाओं की दक्षता में सुधार, वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता में वृद्धि और उत्पादन की लागत में कमी आने से उत्पादकता की क्षमता बढ़ सकती है।
      • प्राकृतिक संसाधन: भूमि, खनिज और ऊर्जा जैसे प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता से अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता प्रभावित हो सकती है। यदि ये संसाधन प्रचुर मात्रा में और आसानी से सुलभ हैं तो अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता बढ़ सकती है जबकि इन संसाधनों की कमी से विकास क्षमता सीमित हो सकती है।
      • आर्थिक संरचना: अर्थव्यवस्था में उद्योगों की संरचना और आर्थिक गतिविधियों से अर्थव्यवस्था की वृद्धि की क्षमता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिये यदि किसी अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र मजबूत है तो कृषि या सेवाओं पर बहुत अधिक निर्भर अर्थव्यवस्था की तुलना में इसकी वृद्धि की संभावना अधिक हो सकती है।
      • नीतिगत वातावरण: सरकार की नीतियाँ जैसे कर और नियामक नीतियाँ, अर्थव्यवस्था की वृद्धि की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं। निवेश और नवाचार का समर्थन करने वाली नीतियाँ विकास की संभावना को बढ़ा सकती हैं जबकि निवेश और नवाचार को हतोत्साहित करने वाली नीतियाँ विकास की क्षमता को सीमित कर सकती हैं।
      • जनसांख्यिकी कारक: जनसांख्यिकी कारक जैसे जनसंख्या वृद्धि, वृद्धावस्था और प्रवासन से अर्थव्यवस्था की वृद्धि क्षमता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिये अधिक उम्र वाली आबादी से श्रम बल के आकार में कमी होने से विकास की संभावना सीमित हो सकती है जबकि अधिक युवा आबादी से विकास की संभावना को बढ़ावा मिल सकता है।
    • भारत के संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को हासिल करने में विभिन्न अवरोध हैं जैसे:
      • आधारभूत संरचना: भारत में अपर्याप्त परिवहन प्रणाली, ऊर्जा की कमी तथा आधुनिक संचार और प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुँच सहित महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ मौजूद हैं। ये बाधाएँ निवेश आकर्षित करने, उत्पादकता बढ़ाने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने की क्षमता को सीमित करती हैं।
      • विनियामक ढाँचा: भारत में जटिल नौकरशाही ढाँचा देश के आर्थिक विकास के लिये प्रमुख बाधा रहा है। इससे विदेशी निवेश सीमित होता है, व्यवसाय शुरू करने की प्रक्रिया धीमी होती है और वस्तुओं तथा सेवाओं का आवागमन प्रतिबंधित होता है।
      • कृषि उत्पादकता: विश्व के सबसे बड़े कृषि उत्पादकों में से एक होने के बावजूद भारत के कृषि क्षेत्र में कम उत्पादकता, पुरानी तकनीक और खराब बुनियादी ढाँचा मौजूद है। इससे आर्थिक विकास सीमित होने के साथ खाद्य सुरक्षा चुनौतियाँ बनी रहती हैं।
      • शिक्षा और कौशल विकास: भारत में शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों की गुणवत्ता और प्रासंगिकता बदलती जरूरतों के अनुरूप नहीं रही है। इससे कुशल श्रमिकों की कमी के साथ कार्यबल के कौशल और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के बीच अंतराल हो गया है।
      • राजनीतिक अस्थिरता: निवेश को आकर्षित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में राजनीतिक स्थिरता एक महत्त्वपूर्ण कारक है। भारत ने हाल के वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता और नीतिगत अनिश्चितता का सामना किया है जिससे यहाँ पर निवेशकों का विश्वास कम हुआ है और विदेशी निवेश आकर्षित करने की देश की क्षमता सीमित हुई है।
      • भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार, भारत की एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है जिससे सार्वजनिक सेवाओं का वितरण, व्यवसायी माहौल और आर्थिक विकास प्रभावित होता है। निवेश को सीमित करने, आर्थिक गतिविधियों को धीमा करने और बाज़ार की प्रतिस्पर्धा को विकृत करने के रूप में भ्रष्टाचार का अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।

    निष्कर्ष:

    संभावित सकल घरेलू उत्पाद उपलब्ध संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता, तकनीकी प्रगति एवं उत्पादन प्रक्रिया की दक्षता से निर्धारित होता है। संभावित सकल घरेलू उत्पाद को समझना नीति निर्माताओं के लिये आवश्यक है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता का निर्धारण करने और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाली उचित मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों का निर्धारण करने हेतु बेंचमार्क प्रदान करता है। संभावित जीडीपी का सटीक अनुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है और इसमें अलग-अलग तरीकों से अलग-अलग परिणाम मिल सकते हैं। हालांकि इससे व्यापक रूप से किसी अर्थव्यवस्था की अंतर्निहित प्रवृत्तियों और गतिशीलता को समझने के साथ समाज के समग्र कल्याण को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया जा सकता है।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • समावेशी विकास का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • सतत विकास में समावेशी विकास के महत्त्व का वर्णन कीजिये।
    • समग्र और प्रभावी निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • समावेशी विकास का तात्पर्य ऐसी आर्थिक संवृद्धि से होता है जिससे समाज के सभी वर्गों को लाभ मिलता है (विशेष रूप से सबसे वंचित और कमजोर लोगों को)।
    • इसे सतत आर्थिक विकास हेतु अनिवार्य शर्त माना जाता है क्योंकि इससे सुनिश्चित होता है कि आर्थिक प्रगति के लाभ व्यापक रूप से सभी को प्राप्त हों और विकास प्रक्रिया में कोई भी पीछे न छूटे।

    मुख्य भाग:

    • हाल के दशकों में आर्थिक विकास पर बल देने से विश्व भर में बड़ी संख्या में लोगों की आर्थिक संवृद्धि हुई है लेकिन वैश्विक आर्थिक उत्पादन में वृद्धि के बावजूद, असमानताओं और अस्थिरता के बढ़ने के प्रमाण भी मौजूद हैं।
    • ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार भारत में शीर्ष 1% अमीरों के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 51.53% हिस्सा है जबकि शेष 99% लोगों की इसमें 48% की भागीदारी है।
    • समावेशन और आर्थिक विकास एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों से ही सतत विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।
    • सतत विकास की अवधारणा को वर्ष 1987 में ब्रंटलैंड आयोग की रिपोर्ट द्वारा वर्णित किया गया था। जिसके अनुसार यह "ऐसा विकास है जो भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करने पर केंद्रित होता है।"
    • समावेशी आर्थिक विकास में सतत भविष्य हेतु आर्थिक गतिविधियों में गरीब, कमजोर, वंचित, महिलाओं, युवाओं और समाज के हर तबके के लोगों को शामिल किये जाने पर बल दिया जाता है।
    • महिलाएँ: देश की आबादी में महिलाओं की भागीदारी 49.5% है जबकि कार्यबल और आर्थिक गतिविधियों में इनकी भागीदारी काफी कम (वर्तमान में केवल 19%) है। इनके विकास से सतत विकास लक्ष्य (SDG) संख्या 5 और 10 की पूर्ति होगी।
      • स्थायी आर्थिक विकास की दिशा में महिलाओं को प्रोत्साहन देने हेतु मातृत्व लाभ अधिनियम और जननी सुरक्षा योजना जैसी पहल की गई हैं।
    • कृषक: भारत में लगभग 50% से अधिक जनसंख्या कृषि गतिविधियों पर निर्भर है। मूल्य श्रृंखला में किसानों की समावेशिता के साथ इन्हें पर्याप्त कौशल प्रदान करने से खाद्य सुरक्षा और विशेष रूप से एसडीजी संख्या 2 और सामान्य रूप से एसडीजी संख्या 1 की प्राप्ति में सहायता मिलेगी।
      • अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष के तहत मोटे अनाज को लोकप्रिय आहार में शामिल करने जैसी पहलों से शुष्क क्षेत्रों के किसानों को लाभ होगा और किसानों की आर्थिक समावेशिता को प्रोत्साहन मिलेगा।
    • युवा: 15-35 वर्ष के युवाओं की भारत की जनसंख्या में 66% हिस्सेदारी है (ILO के अनुसार)। यह जनसंख्या भारत में जनसांख्यिकी लाभांश का संकेत देती है (जो 2055-56 तक बना रहेगा)।
      • युवाओं को कौशल और रोज़गार प्रदान करके (पीएमकेवीवाई या स्किल इंडिया मिशन जैसी योजनाओं द्वारा) दीर्घकालिक सतत आर्थिक विकास में सहायता मिलेगी। कुशल और सक्षम युवाओं से लगभग सभी एसडीजी तथा विशेष रूप से एसडीजी संख्या 8 को हासिल करने में सहायता मिल सकती है।
    • आदिवासी समुदाय: भारत में जनजातियाँ, गरीबों में सबसे गरीब हैं। कौशल प्रदान करने के साथ अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा में इनका समावेश महत्त्वपूर्ण है। इनकी सांस्कृतिक और सामाजिक भावनाओं का सम्मान करने से सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिरता बढ़ेगी। एसडीजी हासिल करने के क्रम में इनका समावेशन निर्णायक है।
      • जनजातीय युवाओं की शिक्षा हेतु एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय जैसी योजनाएँ और GOAL (गोइंग ऑनलाइन एज लीडर) जैसे कौशल विकास कार्यक्रम से समावेशन को बढ़ावा मिलेगा।
    • छोटे व्यवसाय: भारत में 60 मिलियन से अधिक छोटे व्यवसाय हैं।
      • आर्थिक, कानूनी एवं श्रम मानदंडों के अंतर्गत सभी फर्मों के औपचारीकरण से न केवल सभी हितधारकों का कल्याण होगा बल्कि एसडीजी 8, 9 और 10 की प्राप्ति में सहायता मिलेगी।
      • व्यवहार्य गैप फंडिंग और क्रेडिट लिंक सब्सिडी जैसी पहलों द्वारा छोटे व्यवसायों को लाभ मिलेगा।
    • क्षेत्रीय समावेशिता: भारत में विकास की असमान प्रगति से कुछ स्थानों पर बड़े औद्योगिक क्षेत्र विकसित होने के साथ कुछ क्षेत्र विकास की मुख्यधारा से पीछे रह गए हैं। समग्र और समावेशी क्षेत्रीय विकास से भारत में शांति और स्थायित्व को बढ़ावा मिलेगा। जिससे भारत को एसडीजी संख्या 16 और 17 प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
      • समावेशी आर्थिक विकास के तहत विकास में प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी पर बल दिया जाता है।

    निष्कर्ष:

    इस प्रकार से स्थिरता और समावेशी विकास को अलग-अलग हासिल नहीं किया जा सकता है ये एक दूसरे के पूरक हैं। इस तरह से आर्थिक समावेशन से वित्तीय, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।

    सतत विकास लक्ष्य संख्या 8 का उद्देश्य विशेष रूप से समावेशी और सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। हमें नए समावेशी भारत के लिये "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" हासिल करने के क्रम में किसी को पीछे नहीं छोड़ते हुए, सभी के लिये सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की आशा के साथ अवसरों का विस्तार करने और इस संदर्भ में विद्यमान कमियों को दूर करने हेतु मिलकर कार्य करना चाहिये।

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