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Sambhav-2023

  • 08 Feb 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 79

    प्रश्न.1 भारत के सभी क्षेत्रों में कृषि ताज़े पानी का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और मानसून की विफलता का राष्ट्रीय बजट पर प्रभाव पड़ सकता है। उपयुक्त उदाहरणों के साथ कृषि में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिये आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये।

    प्रश्न.2 जलवायु परिवर्तन के खतरे के बीच सौर और परमाणु विश्व के लिये ऊर्जा के प्रमुख और व्यवहार्य रूप हैं। ऊर्जा के प्रत्येक रूप के अप्रत्याशित लाभ और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। साथ ही आगे की राह सुझाइए। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर: 1

    हल करने का दृष्टिकोण

    • सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप में कृषि और राष्ट्रीय बजट पर मानसून की विफलता के प्रभाव का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • पानी की कमी से निपटने और पानी के उपयोग की दक्षता बढ़ाने के लिये आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये।
    • एक समग्र और प्रभावी निष्कर्ष लिखिये।

    भूमिका

    • भारत में कृषि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जो आबादी के एक बड़े हिस्से को भोजन और आजीविका प्रदान करता है।
    • हालाँकि, यह जल संसाधनों का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता भी है, जो देश के ताज़े पानी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से की खपत करता है।
    • यह पहले से ही सीमित ताज़े पानी के संसाधनों पर दबाव डालता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की कमी है।
    • कृषि क्षेत्र की सफलता मानसून के समय पर आगमन और पर्याप्त वितरण पर बहुत अधिक निर्भर करती है, जो सिंचाई के लिये अधिकांश जल प्रदान करती है।
    • दुर्भाग्य से, न केवल कृषि क्षेत्र पर बल्कि राष्ट्रीय बजट पर भी, मानसून की विफलता के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं।
    • इस संदर्भ में, इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र की निरंतर सफलता सुनिश्चित करने के लिये कृषि में जल संसाधनों का सतत् और कुशल तरीके से प्रबंधन करना महत्त्वपूर्ण है।

    मुख्य भाग

    • कृषि में जल दक्षता बढ़ाने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
      • सिंचाई प्रबंधन: सिंचाई प्रणालियों की दक्षता में सुधार करना और सटीक सिंचाई, ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर प्रणाली जैसी प्रथाओं के माध्यम से पानी की बर्बादी को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, उप-तलीय ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग पारंपरिक तलीय सिंचाई विधियों की तुलना में पानी के उपयोग को 20-50% तक कम कर सकता है।
      • फसल चयन: ऐसी फसलों का चयन करना जो अधिक जल दक्ष हों एवं स्थानीय जलवायु और मृदा की स्थिति के अनुकूल हों। उदाहरण के लिये, पानी की कमी वाले क्षेत्रों में किसान सूखा-सहिष्णु फसल जैसे कि बाज़रा, ज़्वार और मसूर आदि उगा सकते हैं।
      • मृदा संरक्षण: वाष्पीकरण और अपवाह से पानी के नुकसान को कम करने के लिये मल्चिंग, टेरेसिंग और निम्न जोत जैसे मृदा संरक्षण उपायों को लागू किया जा सकता है। ये अभ्यास मृदा के स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार करने में भी मदद करते हैं।
      • जल भंडारण: शुष्क अवधि के दौरान उपयोग के लिये वर्षा जल को अधिग्रहित और संग्रहीत करने के लिये टैंकों, तालाबों और कुओं जैसी जल भंडारण सुविधाओं का निर्माण और रखरखाव किया जा सकता है। इससे भूजल और तलीय जल स्रोतों पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है।
      • जल पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग: कृषि के लिये आवश्यक ताज़े पानी की मात्रा को कम करने के लिये जल पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग प्रणालियों को लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, सिंचाई के लिये उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग करने से आवश्यक ताज़े पानी की मात्रा में काफी कमी आ सकती है।
      • जागरूकता और शिक्षा: जल-दक्ष कृषि पद्धतियों और जल संसाधनों के संरक्षण के महत्त्व पर किसानों को प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान किया जा सकता है।

    निष्कर्ष

    भारत में कृषि का महत्त्व और इसकी सफलता के लिये ताज़े पानी पर निर्भरता इसे दक्ष जल प्रबंधन के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बनाती है। मानसून की विफलता का कृषि क्षेत्र और राष्ट्रीय बजट दोनों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जो सतत् जल संसाधन प्रबंधन प्रथाओं की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। सिंचाई प्रबंधन, फसल चयन, मृदा संरक्षण, जल भंडारण, पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग एवं जागरूकता और शिक्षा जैसे उपायों को लागू करने से कृषि में जल दक्षता में वृद्धि और जल संसाधनों पर दबाव कम करना संभव है। अंतत: इससे अधिक सतत् और लचीले कृषि क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, जो खाद्य सुरक्षा और भारत के आर्थिक विकास में योगदान देगा।


    उत्तर: 2

    हल करने का दृष्टिकोण

    • जलवायु परिवर्तन के विषय में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • सौर और परमाणु ऊर्जा के लाभ और हानि पर चर्चा कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष लिखिये।

    भूमिका

    • जलवायु परिवर्तन आज दुनिया के सामने सबसे अधिक दबाव वाले पर्यावरणीय मुद्दों में से एक है।
    • तापमान में निरंतर वृद्धि, समुद्र का स्तर और चरम मौसम की घटनाएँ ग्रह पर मानव गतिविधियों के प्रभाव के सभी प्रमाण हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने के लिये, यह महत्त्वपूर्ण है कि हम ऊर्जा के स्वच्छ और अधिक सतत् रूपों की ओर बढ़ें।
    • जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने में मदद करने के लिये सौर और परमाणु ऊर्जा ऊर्जा के दो सबसे प्रमुख और व्यवहार्य रूप हैं।

    मुख्य भाग

    • सौर ऊर्जा, ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है, जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है, जो इसे जीवाश्म ईंधन का एक स्वच्छ विकल्प बनाता है।
      • सौर ऊर्जा के लाभ:
        • नवीकरणीय: सौर ऊर्जा, ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है, जिसका अर्थ है कि यह कभी समाप्त नहीं होगा और विश्व के अधिकांश हिस्सों में उपलब्ध है।
        • स्वच्छ: सौर ऊर्जा ग्रीनहाउस गैसों, वायु प्रदूषण या जहरीले अपशिष्टों का उत्पादन नहीं करता है, जिससे यह जीवाश्म ईंधन का एक स्वच्छ विकल्प बन जाता है।
        • लागत प्रभावी: पिछले कुछ वर्षों में सौर प्रौद्योगिकी की लागत में काफी कमी आई है, जिससे यह एक तेज़ी से लागत-प्रतिस्पर्धी विकल्प बन गया है।
        • विकेन्द्रीकृत: सौर ऊर्जा को छोटे पैमाने पर उत्पन्न किया जा सकता है, जैसे कि छतों पर, जिससे जहाँ बिजली की खपत होती है उसके करीब बिजली उत्पन्न करना संभव बनाता है, ट्रांसमिशन लाइनों की आवश्यकता को कम करता है और परिवहन के दौरान ऊर्जा हानि को कम करता है।
        • विविध अनुप्रयोग: सौर ऊर्जा का उपयोग कई प्रकार के अनुप्रयोगों के लिये किया जा सकता है, जिसमें बिजली पैदा करना, पानी गर्म करना और ऑफ-ग्रिड घरों और व्यवसायों को बिजली प्रदान करना शामिल है।
      • सौर ऊर्जा की कमियाँ:
        • आंतरायिकता: सौर ऊर्जा केवल तभी उपलब्ध होती है जब सूर्य चमक रहा होता है, जो विश्वसनीय बिजली प्रदान करने की इसकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
        • मौसम पर निर्भर: सौर पैनलों का उत्पादन मौसम की स्थिति जैसे मेघ, वर्षा और बर्फ से प्रभावित हो सकता है, जो सौर ऊर्जा प्रणालियों की दक्षता को कम कर सकता है।
        • उच्च प्रारंभिक लागत: हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में सौर प्रौद्योगिकी की लागत में कमी आई है, सौर ऊर्जा प्रणाली स्थापित करने की प्रारंभिक लागत अभी भी अधिक हो सकती है, जो कुछ व्यक्तियों और समुदायों के लिये एक बाधा हो सकती है।
        • सघन भूमि अवधारक: बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा प्रणालियों के लिये काफी मात्रा में भूमि की आवश्यकता हो सकती है, जो सघन आबादी वाले क्षेत्रों में एक चुनौती पैदा कर सकती है।
    • दूसरी ओर, परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा का एक विश्वसनीय स्रोत है, जो जीवाश्म ईंधन की तुलना में अपेक्षाकृत कम कार्बन पदचिह्न के साथ 24/7 बिजली उत्पन्न कर सकता है।
      • परमाणु ऊर्जा के लाभ:
        • विश्वसनीय: परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा का एक विश्वसनीय स्रोत है, जो बिजली की स्थिर और निरंतर आपूर्ति प्रदान करते हुए 24/7 बिजली पैदा कर सकता है।
        • दक्ष: परमाणु ऊर्जा संयंत्र बड़ी मात्रा में बिजली का उत्पादन करने के लिये कम मात्रा में ईंधन का उपयोग करके उच्च स्तर की दक्षता के साथ बिजली पैदा कर सकते हैं।
        • कम कार्बन पदचिह्न: परमाणु ऊर्जा में जीवाश्म ईंधन की तुलना में अपेक्षाकृत कम कार्बन पदचिह्न होता है, जो इसे जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम करने के लिये एक संभावित आकर्षक विकल्प बनाता है।
        • सुरक्षित: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को दुर्घटनाओं को रोकने और जनता की सुरक्षा के लिये कई सुरक्षा प्रणालियों के साथ सुरक्षित रूप से अभिकल्पित किया गया है।
      • परमाणु ऊर्जा की कमियाँ:
        • रेडियोधर्मी अपशिष्ट: परमाणु ऊर्जा रेडियोधर्मी अपशिष्ट का उत्पादन करती है, जो अत्यधिक विषाक्त होता है और इसके लिये सावधानीपूर्वक प्रबंधन और निपटान की आवश्यकता होती है।
        • दुर्घटनाएँ: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में गंभीर दुर्घटनाएँ होने की संभावना होती है, जैसे कि चेरनोबिल और फुकुशिमा में हुई दुर्घटनाएँ, जिनके दीर्घकालिक पर्यावरणीय और स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं।
        • प्रसार संबंधी चिंताएँ: परमाणु ऊर्जा में उपयोग की जाने वाली तकनीक और सामग्री में परमाणु हथियारों के लिये उपयोग किये जाने की क्षमता है, जो परमाणु प्रसार के बारे में चिंताएँ पैदा करती है।
        • उच्च लागत: परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण और संचालन की लागत अधिक हो सकती है, जो इसे ऊर्जा के अन्य स्रोतों की तुलना में कम आकर्षक विकल्प बना सकती है।
        • सेवामुक्तिकरण: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का एक सीमित जीवनकाल होता है और जब वे अपने परिचालन काल के अंत तक पहुँचते हैं, तो उन्हें सेवामुक्त और निष्क्रिय कर देना चाहिये, जो एक जटिल और महँगी प्रक्रिया हो सकती है।

    निष्कर्ष

    सौर और परमाणु ऊर्जा, ऊर्जा के महत्त्वपूर्ण और व्यवहार्य दोनों रूप हैं, जो जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने में मदद कर सकते हैं। हालाँकि, ऊर्जा के दोनों रूपों के अपने-अपने लाभ और हानि हैं। उपयोग करने का निर्णय लेने से पहले ऊर्जा के प्रत्येक रूप से गुण और दोष को ध्यान से देखना महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इसके अतिरिक्त, एक व्यापक दृष्टिकोण जो ऊर्जा के विभिन्न रूपों, ऊर्जा भंडारण प्रणालियों और ऊर्जा दक्षता उपायों को जोड़ता है, आगे बढ़ने का सबसे प्रभावी तरीका होने की संभावना है। यह दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करने में मदद कर सकता है कि विश्व के पास ऊर्जा के एक विश्वसनीय और सतत् स्रोत तक पहुँच है जो ऊर्जा उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हुए अपनी बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा कर सकता है।

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