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31 Jan 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 72
प्रश्न.1 विश्व में भारत की जलवायु अद्वितीय है। भारत की जलवायु को निर्धारित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 कोपेन के अनुभवजन्य मॉडल के आधार पर भारत के जलवायु क्षेत्रों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत की जलवायु का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- भारत की जलवायु हेतु उत्तरदायी कारकों का वर्णन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- विस्तृत आकार और विविध स्थलाकृति के कारण भारत में विविध जलवायु है। इसके उत्तरी क्षेत्रों में शीतकाल और ग्रीष्मकाल के साथ महाद्वीपीय जलवायु मिलती है जबकि दक्षिणी क्षेत्रों में मध्यम तापमान और उच्च आर्द्रता वाली उष्णकटिबंधीय जलवायु मिलती है।
- मानसून के मौसम (जो जून से सितंबर तक रहता है) में देश के अधिकांश हिस्सों में भारी वर्षा होती है। पश्चिमी तट पर भी ठंडी सर्दियों और मध्यम गर्मियों के साथ समुद्री जलवायु रहती है।
मुख्य भाग:
- भारत की जलवायु अद्वितीय है और स्थानिक आधार पर यह बहुत भिन्न होती है। विभिन्न प्रकार के कारकों से भारत की जलवायु अद्वितीय और विविध है। भारत की जलवायु को निर्धारित करने वाले मुख्य कारक हैं:
- उत्तर में हिमालय: मध्य एशिया से आने वाली ठंडी, शुष्क हवाओं और उपमहाद्वीप में वर्षा लाने वाली नम मानसूनी हवाओं को रोककर, हिमालय भारत की जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
- पर्वतों से मानसूनी हवाओं को ऊपर उठने में सहायता मिलती है जिससे पवन की ओर वाले ढाल पर भारी वर्षा होती है और इसके विपरीत ढाल पर वृष्टि छाया क्षेत्र विकसित होता है, जिसके परिणामस्वरूप थार रेगिस्तान जैसे शुष्क क्षेत्र बनते हैं।
- हिमालय के ग्लेशियर, भारत की प्रमुख नदियों जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु के लिये जल उपलब्ध कराते हैं जो कृषि और पनबिजली उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- दक्षिण के महासागर: तापमान, वर्षा और मौसम के प्रतिरूप को प्रभावित करके भारत की जलवायु को आकार देने में महासागर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- हिंद महासागर (विशेष रूप से बंगाल की खाड़ी और अरब सागर) से वातावरण को आर्द्रता प्राप्त होती है जिससे भारतीय मानसून प्रभावित होता है।
- हिंद महासागर डायपोल (IOD):
- हिंद महासागर डायपोल (IOD) की भी भारतीय जलवायु में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- सकारात्मक IOD के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर में मजबूत व्यापारिक पवनों के साथ समुद्री सतह के तापमान अधिक होने से भारतीय उपमहाद्वीप पर तुलनात्मक रूप से उच्च दाब विकसित होता है।
- इससे भारत में कम वर्षा और सूखे जैसी स्थिति पैदा होती है।
- IOD के नकारात्मक चरण के दौरान पश्चिमी हिंद महासागर में कमजोर व्यापारिक पवनों के साथ समुद्री सतह का तापमान कम होने से भारत में अधिक वर्षा होने के साथ बाढ़ की स्थिति विकसित होती है।
- अक्षांश: भारत, भूमध्य रेखा के पास स्थित है जिससे यहाँ उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता के साथ उष्णकटिबंधीय मौसम देखा जाता है।
- तुंगता: भारत की जलवायु ऊँचाई के साथ बहुत भिन्न होती है। उत्तर में उच्च हिमालय में ठंडी, अल्पाइन जलवायु होने के साथ निचले इलाकों के तटीय क्षेत्रों में गर्म और आर्द्र जलवायु मिलती है।
- मानसून: भारत की जलवायु मानसूनी हवाओं से अत्यधिक प्रभावित होती है जिससे गर्मियों के महीनों के दौरान देश में भारी वर्षा होती है। मानसून का विकास भूमि और समुद्र के विभिन्न ऊष्मण और परिणामी दाब प्रवणता के कारण होता है।
- महासागरीय धाराएँ: हिंद महासागर का भारत की जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। महासागरीय धाराएँ समुद्र से तट की ओर चलने वाली हवाओं के साथ तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिये कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठंडी जलधाराएँ बहती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर हो, तब वह तट गर्म या ठंडा हो जाएगा।
- स्थलाकृति: भारत की स्थलाकृति भी जलवायु के निर्धारण में भूमिका निभाती है। पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के रूप में प्राकृतिक अवरोध वायुराशियों की गति और वर्षा के वितरण को प्रभावित करते हैं।
- समुद्र से दूरी: भारत की लंबी तट रेखा है। समुद्र के करीब के क्षेत्रों में आंतरिक क्षेत्रों की तुलना में अधिक सामान्य जलवायु होती है।
- उत्तर में हिमालय: मध्य एशिया से आने वाली ठंडी, शुष्क हवाओं और उपमहाद्वीप में वर्षा लाने वाली नम मानसूनी हवाओं को रोककर, हिमालय भारत की जलवायु पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालता है।
निष्कर्ष:
भारत की जलवायु उपर्युक्त कारकों की जटिल परस्पर क्रिया द्वारा निर्धारित होती है, जिसके परिणामस्वरूप देश भर में विस्तृत जलवायु परिस्थितियाँ बनती हैं। दक्षिण में उष्णकटिबंधीय जलवायु, उत्तर में समशीतोष्ण जलवायु, उत्तर पश्चिम में शुष्क जलवायु और उच्च हिमालय में अल्पाइन जलवायु भारतीय जलवायु की विविधता के कुछ उदाहरण हैं।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- कोपेन के अनुभवजन्य मॉडल का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- कोपेन के अनुभवजन्य मॉडल के अनुसार भारत के जलवायु क्षेत्र का वर्णन कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
- कोपेन के अनुभवजन्य मॉडल (जिसे कोपेन की जलवायु वर्गीकरण प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है) का जलवायु को वर्गीकृत करने के लिये व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। 1900 के दशक की शुरुआत में जलवायु विज्ञानी व्लादिमीर कोपेन द्वारा विकसित की गई इस प्रणाली द्वारा तापमान और वर्षा के प्रतिरूप के आधार पर जलवायु का वर्गीकरण किया गया है।
- इस मॉडल में पाँच मुख्य जलवायु समूहों का उल्लेख कियुआ गया है: A (उष्णकटिबंधीय), B (शुष्क), C (समशीतोष्ण), D (महाद्वीपीय) और E (ध्रुवीय)। प्रत्येक समूह को विशिष्ट तापमान और वर्षा के आधार पर उपश्रेणियों में विभाजित किया गया है। उदाहरण के लिये A समूह को उष्णकटिबंधीय वर्षावन, उष्णकटिबंधीय मानसून और उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु में विभाजित किया गया है।
मुख्य भाग:
- उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु:
- उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु (जिसे उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु के रूप में भी जाना जाता है) में वर्ष भर उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता रहती है, जिसमें वर्षा और शुष्क ऋतु होती है। यह जलवायु आमतौर पर भूमध्य रेखा के पास के क्षेत्रों में पाई जाती है जैसे कि भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्से। भारत में यह जलवायु मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है। इन क्षेत्रों में मानसून के दौरान भारी वर्षा होती है, जो आमतौर पर जून से सितंबर तक रहती है और शेष वर्ष के दौरान अपेक्षाकृत शुष्क स्थिति रहती है। भारत में उष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु में सघन वनस्पतियों के साथ उच्च जैव विविधता पाई जाती है।
- उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु:
- उष्णकटिबंधीय शुष्क जलवायु (जिसे उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु के रूप में भी जाना जाता है) में लंबे शुष्क मौसम के साथ अल्प आर्द्र मौसम रहता है। यह जलवायु क्षेत्र आमतौर पर भूमध्य रेखा के पास ऐसे क्षेत्रों में मिलता है जहाँ तापमान वर्ष भर अधिक रहता है। इस क्षेत्र में शुष्क मौसम के दौरान (जो कई महीनों तक रह सकता है) बहुत कम वर्षा होती है, जबकि आर्द्र मौसम में आमतौर पर पर्याप्त वर्षा देखी जाती है। यह जलवायु मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका के उत्तरी भाग में और अफ्रीका के कुछ हिस्सों में मिलती है।
- उपोष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु:
- भारत में उपोष्णकटिबंधीय आर्द्र जलवायु उत्तर पूर्वी क्षेत्र के साथ-साथ पश्चिमी तट के महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा राज्यों में मिलती है। इस क्षेत्र में सामान्य सर्दियाँ, गर्म ग्रीष्मकाल और उच्च आर्द्रता होती है। इस जलवायु में तापमान साल भर अपेक्षाकृत अधिक रहता है जिसमें कभी-कभार हीट वेव भी देखी जाती हैं। इस क्षेत्र में वर्ष भर पर्याप्त वर्षा भी होती है। आमतौर पर गर्मियों के महीनों में सबसे अधिक वर्षा होती है।
- पर्वतीय जलवायु:
- पर्वतीय जलवायु (जिसे उच्च भूमि या अल्पाइन जलवायु के रूप में भी जाना जाता है) ऊँचे क्षेत्रों में (आमतौर पर समुद्र तल से 1,500 मीटर (5,000 फीट) की ऊँचाई पर) पाई जाती है। भारत में यह जलवायु हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है जिसमें जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड एवं सिक्किम राज्यों के साथ-साथ पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्से शामिल हैं। इस जलवायु में आसपास के तराई क्षेत्रों की तुलना में कम तापमान और उच्च वर्षा होती है। ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान कम होता जाता है और सर्दियों में अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में भारी बर्फबारी के साथ मौसम काफी ठंडा हो सकता है। इसमें गर्मी का मौसम अपेक्षाकृत छोटा होता है। यहाँ पर वर्षा हिमपात के रूप में भी होती है। इस जलवायु में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ मिलती हैं जिनमें शंकुधारी वन,अल्पाइन घास के मैदान और झाड़ियाँ शामिल हैं।
निष्कर्ष:
भारत की जलवायु, मानसूनी हवाओं से अत्यधिक प्रभावित होती है जिससे गर्मियों के महीनों में देश में भारी वर्षा होती है। देश में विविध तापमान भी देखा जाता है जिसमें सर्दियों में उत्तरी क्षेत्रों में दक्षिणी क्षेत्रों की तुलना में अधिक ठंडा मौसम रहता है। भारत को उष्णकटिबंधीय आर्द्र और शुष्क जलवायु,उष्णकटिबंधीय सवाना जलवायु और रेगिस्तानी जलवायु के लिये भी जाना जाता है। इसके अलावा भारत के तटीय क्षेत्र चक्रवात और उष्णकटिबंधीय तूफान से भी प्रभावित होते हैं जिससे बुनियादी ढाँचे को काफी नुकसान हो सकता है।