Sambhav-2023

दिवस 7

प्रश्न- 1. भारत और ब्रिटेन की संसदीय शासन प्रणाली की तुलना कीजिये।

प्रश्न- 2. भारत में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद से संबंधित भूमिका, उत्तरदायित्वों और विवेकाधिकारों का उल्लेख कीजिये।

16 Nov 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर: 1

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली को संक्षेप में बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये ।
  • भारत और ब्रिटेन की संसदीय शासन प्रणाली के बीच अंतरों पर चर्चा कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय

  • भारत का संविधान, केंद्र और राज्यों दोनों स्तर पर सरकार की संसदीय प्रणाली का प्रावधान करता है। अनुच्छेद 74 और 75 केंद्र में और अनुच्छेद 163 और 164 राज्यों में संसदीय प्रणाली से संबंधित हैं।
  • संसदीय सरकार को कैबिनेट सरकार या उत्तरदायी सरकार या सरकार के वेस्टमिंस्टर मॉडल के रूप में भी जाना जाता है तथा यह प्रणाली ब्रिटेन, जापान, कनाडा और भारत में प्रचलित है।

मुख्य भाग

भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली काफी हद तक ब्रिटिश संसदीय प्रणाली पर आधारित है। हालाँकि यह कभी भी पूरी तरह से ब्रिटिश प्रणाली के अनुरूप नहीं रही है और यह निम्नलिखित मामलों में इससे भिन्न है:

1. राज्य का प्रमुख: भारत में ब्रिटिश की राजतंत्रीय व्यवस्था के स्थान पर एक गणतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है। दूसरे शब्दों में भारत में राज्य का प्रमुख (राष्ट्रपति) निर्वाचित होता है, जबकि ब्रिटेन में राज्य के प्रमुख (राजा या रानी) को वंशानुगत पद प्राप्त होता है।

2. संसद की सर्वोच्चता: ब्रिटिश प्रणाली संसद की संप्रभुता के सिद्धांत पर आधारित है जबकि भारत में संसद सर्वोच्च नहीं है और यहाँ लिखित संविधान, संघीय प्रणाली, न्यायिक समीक्षा एवं मौलिक अधिकारों के कारण इसे सीमित शक्तियाँ प्राप्त होती हैं ।

3. सरकार का प्रमुख: ब्रिटेन में प्रधानमंत्री को संसद के निचले सदन (हाउस ऑफ कॉमन्स) का सदस्य होना चाहिये। भारत में प्रधानमंत्री संसद के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य हो सकता है।

4. मंत्री: आमतौर पर ब्रिटेन में केवल संसद सदस्यों को ही मंत्री के रूप में नियुक्त किया जाता है। भारत में कोई ऐसा व्यक्ति जो संसद का सदस्य नहीं है तो उसे भी अधिकतम छह महीने की अवधि के लिये मंत्री के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

5. विधिक उत्तरदायित्व की प्रणाली: ब्रिटेन में मंत्री की विधिक ज़िम्मेदारी की व्यवस्था है जबकि भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। ब्रिटेन के विपरीत भारत में मंत्रियों को राज्य के प्रमुख के आधिकारिक कृत्यों पर प्रतिहस्ताक्षर करने की आवश्यकता नहीं होती है।

6. छाया कैबिनेट: यह ब्रिटिश कैबिनेट प्रणाली की एक अद्वितीय संस्था है। इसका गठन विपक्षी दल द्वारा सत्तारूढ़ कैबिनेट को संतुलित करने और अपने सदस्यों को भविष्य के मंत्रिस्तरीय कार्यालय के लिये तैयार करने हेतु किया जाता है। भारत में ऐसी कोई संस्था नहीं है।

निष्कर्ष

हालाँकि भारत ने सरकार की संसदीय प्रणाली को अपनाया है लेकिन भारत की संसद ब्रिटेन की संसद के समान नहीं है, क्योंकि ब्रिटेन की संसद संप्रभु है।


उत्तर: 2

हल करने का दृष्टिकोण:

  • संघीय कार्यपालिका के बारे में संक्षिप्त जानकारी देते हुए अपने उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों पर चर्चा कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

परिचय

संविधान के भाग V में अनुच्छेद 52 से 78 संघीय कार्यपालिका से संबंधित हैं। संघ की कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद और भारत के महान्यायवादी शामिल होते हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों ही भारत की राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और बहुत महत्त्व रखते हैं।

मुख्य भाग

भारत के राष्ट्रपति की भूमिकाएँ और शक्तियाँ

  • राष्ट्रपति, राज्य का प्रमुख होता है। भारत के प्रथम नागरिक होने के साथ यह राष्ट्र की एकता, अखंडता और एकजुटता के प्रतीक के रूप में कार्य करते हैं।
  • भारत सरकार का प्रत्येक कार्यकारी कृत्य राष्ट्रपति के नाम पर किया जाता है ।
  • वह संसद की बैठक बुला सकता है या उसका सत्रावसान कर सकता है और लोकसभा को भंग कर सकता है।
  • कोई भी विधेयक तब तक अधिनियम नहीं बन सकता जब तक उस पर राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त नहीं हो जाती है।
  • जब संसद के दोनों सदन या संसद का कोई भी एक सदन सत्र में नहीं होता है तो वह अध्यादेश जारी करता है।
  • वह केंद्रीय बजट को संसद के समक्ष प्रस्तुत करने में भूमिका निभाता है।
  • राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के बिना कोई धन विधेयक नहीं लाया जा सकता है।
  • राष्ट्रपति किसी गंभीर अपराध के दोषी व्यक्ति को क्षमादान दे सकता है।
  • यह राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352), राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356 और 365), और वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) जैसे तीनों प्रकार के आपातकाल की घोषणा कर सकता है।

भारत के उपराष्ट्रपति की भूमिकाएँ और शक्तियाँ

उपराष्ट्रपति का पद देश का दूसरा सबसे बड़ा पद होता है। आधिकारिक रुप से वरीयता के क्रम में इसे राष्ट्रपति के बाद रखा जाता है। यह पद अमेरिकी उपराष्ट्रपति के पद से प्रेरित है।

उपराष्ट्रपति की दोहरी भूमिका होती है:

1. यह राज्य सभा के पदेन सभापति के रूप में कार्य करता है। इस आलोक में इसकी शक्तियाँ और कार्य लोकसभा अध्यक्ष के समान होते हैं। इस संबंध में यह अमेरिकी उपराष्ट्रपति के समान है, जो अमेरिकी विधानमंडल के ऊपरी सदन सीनेट के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करता है।

2. जब राष्ट्रपति का पद इस्तीफा, महाभियोग, मृत्यु या अन्य किसी कारण से रिक्त होता है तब यह राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है। यह अधिकतम छह महीने की अवधि के लिये ही राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर सकता है और इस अवधि के दौरान नए राष्ट्रपति का चुनाव किया जाता है। इसके अलावा जब मौजूदा राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या किसी अन्य कारण से अपने कार्यों का निर्वहन करने में असमर्थ होता है तो उपराष्ट्रपति इसके कार्यों का निर्वहन तब तक करता है जब तक कि राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ

जब तक उपराष्ट्रपति, भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य नहीं करता है तब तक उसके पास कोई संवैधानिक विवेकाधीन शक्तियाँ नहीं होती हैं, राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने के दौरान इसे भारत के राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। हालाँकि राष्ट्रपति के पास कोई संवैधानिक विवेकाधिकार नहीं होता है लेकिन निम्नलिखित मामलों में स्थितिजन्य विवेकाधिकार प्राप्त होता है:

  • त्रिशंकु संसद: जब कोई भी राजनीतिक दल या दलों का गठबंधन आम चुनाव के बाद लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर पााता है तब इस स्थिति को त्रिशंकु संसद कहा जाता है। यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाता है कि सबसे बड़े दल का नेता सदन में बहुमत हासिल नहीं कर पाएगा तो वह किसी ऐसे दल का चयन करने में अपने विवेक का प्रयोग कर सकता है जो उसकी राय में एक स्थिर सरकार बनाने में सक्षम होगा। इस स्थिति में वह सरकार बनाने के लिये सबसे सक्षम नेता को आमंत्रित करता है।
  • प्रधानमंत्री की नियुक्ति में विवेकाधिकार: जब किसी प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाती है और उसके स्थान पर कोई उत्तराधिकारी नहीं होता है, तो राष्ट्रपति को अगले प्रधानमंत्री के चयन और नियुक्ति में भूमिका निभानी होती है। कार्यवाहक प्रधानमंत्री के चयन और नियुक्ति का विवेकाधिकार, इसकी मृत्यु के बाद सरकार को स्थिर बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रधानमंत्री से जानकारी मांगना: संविधान का अनुच्छेद 78 राष्ट्रपति को केंद्र सरकार के मामलों के बारे में प्रधानमंत्री से जानकारी का अधिकार देता है।
  • लोकसभा का विघटन: जब मंत्रिपरिषद का लोकसभा में बहुमत नहीं रहता है तो यह तय करना राष्ट्रपति का विवेकाधिकार होता है कि सदन को भंग किया जाना चाहिये या नहीं। यद्यपि यह विघटन मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार किया जाता है और यह केवल बहुमत प्राप्त सरकार के संदर्भ में बाध्यकारी होता है।

निष्कर्ष

राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते समय या राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन करते हुए उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के सभापति के रुप में कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करता है। इस अवधि के दौरान इसके कर्तव्यों का निर्वहन, राज्यसभा के उपसभापति द्वारा किया जाता है।