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Sambhav-2023

  • 27 Jan 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 69

    प्रश्न.1 महासागरीय अधस्तल (ocean floor) के उच्चावच पर चर्चा कीजिये। महासागरों में लवणता वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का भी उल्लेख कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 धाराएँ जल की क्षैतिज गति को संदर्भित करती हैं जबकि ज्वार-भाटा का तात्पर्य जल की ऊर्ध्वाधर गति है। ज्वार-भाटा के बारे में चर्चा करते हुए इसके महत्त्व को बताइये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • महासागरीय अधस्तल के बारे में बताते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • महासागरों में लवणता वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    महासागरीय अधस्तल के उच्चावच को समुद्र तल की सतह पर पाई जाने वाली ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृतियों के रूप में संदर्भित किया जाता है।

    इसमें पर्वत, घाटियाँ या गर्तों जैसी संरचनाएँ शामिल हैं। उदाहरण के लिये मध्य-अटलांटिक कटक,अटलांटिक महासागर में स्थित जलमग्न पर्वत श्रृंखला है। मारियाना ट्रेंच समुद्र का सबसे गहरा बिंदु है, जिसकी गहराई लगभग 36,000 फीट है। महासागरीय अधस्तल के उच्चावच के अध्ययन को बाथीमेट्री के रूप में जाना जाता है और यह समुद्र विज्ञान में अनुसंधान का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।

    मुख्य भाग:

    महासागरों में लवणता के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक:

    • वाष्पीकरण और वर्षा: लवणता उन क्षेत्रों में अधिक होती है जहाँ वाष्पीकरण, वर्षा से अधिक होता है और उन क्षेत्रों में कम होती है जहाँ वर्षा, वाष्पीकरण से अधिक होती है। उदाहरण के लिये, ऐसे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में लवणता अधिक होती है, जहाँ वाष्पीकरण अधिक होता है और वर्षा कम होती है।
    • नदी के जल का प्रवाह: नदियाँ मीठे जल को समुद्र में लाती हैं जिससे लवणता में कमी आती है।
    • तापमान: ठंडे जल में गर्म जल की तुलना में अधिक घुलित लवण हो सकते हैं, इसलिये ठंडे जल में लवणता अधिक होती है।
    • महासागरीय धाराएँ: महासागरीय धाराओं से विभिन्न लवणता वाले जल का प्रवाह होने से विभिन्न क्षेत्रों में लवणता का वितरण प्रभावित होता है।
    • सागरीय जल की अपवेलिंग: अपवेलिंग, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा गहरा, ठंडा और लवणों से भरपूर जल सतह पर आता है जिससे लवणता का वितरण प्रभावित हो सकता है।
    • मानवीय गतिविधियाँ: मानवीय गतिविधियों जैसे सिंचाई के साथ नदियों पर बाँध बनाना और विलवणीकरण संयंत्र स्थापित करने से भी समुद्र की लवणता प्रभावित हो सकती है।

    निष्कर्ष:

    महासागरीय अधस्तल के उच्चावच को समुद्र तल की सतह पर पाई जाने वाली ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृतियों के रूप में संदर्भित किया जाता है। इसके अध्ययन को बाथीमेट्री के रूप में जाना जाता है। समुद्र तल के भूविज्ञान और इसे आकार देने वाली प्रक्रियाओं को समझने के लिये समुद्र तल के उच्चावच को समझना महत्त्वपूर्ण है। महासागरों में लवणता का वितरण कई कारकों से प्रभावित होता है जैसे वाष्पीकरण और वर्षा, नदी के जल का प्रवाह, तापमान, महासागरीय धाराएँ, सागरीय जल की अपवेलिंग और मानवीय गतिविधियाँ। समुद्र विज्ञान और पृथ्वी के पर्यावरण को समग्र रूप से समझने के लिये इन कारकों को समझना महत्त्वपूर्ण है।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जल धाराओं और ज्वार-भाटा का परिचय देते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • ज्वार-भाटा के विकास एवं उसके महत्त्व की विवेचना कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • जल धाराओं का तात्पर्य जल का एकदिशीय या क्षैतिज प्रवाह है। इनका कारण वर्षा, भूजल और पिघलने वाली बर्फ या इस प्रकार के अन्य स्रोत होते हैं। जल प्रवाह से भूमि कटाव,खाड़ियों के विकास के साथ अन्य परिदृश्य विकसित होते हैं।
    • ज्वार-भाटा जल का ऊर्ध्वाधर संचलन है जिसे महासागरों में देखा जाता है।

    मुख्य भाग:

    • जल धाराएँ:
      • धाराएँ आकार और प्रवाह दर में भिन्न हो सकती हैं इसमें छोटी मौसमी खाड़ियों के प्रवाह से लेकर बड़ी बारहमासी नदियों का प्रवाह शामिल है।
      • धाराएँ भी पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं इससे विभिन्न पौधों और जानवरों के लिये आवास प्रदान होने के साथ कई पारिस्थितिकी प्रक्रियाओं का पोषण होता है।
      • सिंचाई, पीने और औद्योगिक उपयोग के लिये जल उपलब्ध करने के साथ मनोरंजन और पर्यटन के स्रोत के रूप कार्य करने के माध्यम से इनकी मानव समाज में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
      • टर्बाइनों को चालू करने के रूप में बहते जल की गतिज ऊर्जा का उपयोग करके जलविद्युत ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।
      • कुल मिलाकर धाराएँ, जल चक्र का एक महत्त्वपूर्ण घटक हैं और पृथ्वी के परिदृश्य को आकार देने एवं जीवन को बनाए रखने में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
    • ज्वार-भाटा:
      • ज्वार-भाटा जल का ऊर्ध्वाधर संचलन है जिसे महासागरों में देखा जाता है।
      • महासागरों में चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के कारण ज्वार-भाटा आते हैं।
      • चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के निकटतम क्षेत्र की तरफ अधिक मजबूत होता है, जिससे उच्च ज्वार की स्थिति बनती है।
      • इसकी विपरीत दिशा में गुरुत्वाकर्षण बल कमजोर होता है, जिसके कारण निम्न ज्वार उत्पन्न होता है।
      • ज्वार-भाटा में सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल भी भूमिका निभाता है लेकिन इसका प्रभाव चंद्रमा की तुलना में कमजोर होता है।
      • जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी सीधी रेखा में होते हैं तब सूर्य और चंद्रमा के संयुक्त गुरुत्वाकर्षण बल के कारण काफी उच्च ज्वार आते हैं जिसे दीर्घ ज्वार/ वृहद ज्वार के रूप में जाना जाता है।
      • जब सूर्य और चंद्रमा एक दूसरे के समकोण पर होते हैं तब विपरीत गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप छोटे ज्वार आते हैं जिन्हें नीप टाइड (neap tides) कहा जाता है।
    • ज्वार-भाटा का महत्त्व:
      • समुद्री जीवन और समुद्र तटों के पारिस्थितिकी तंत्र पर ज्वार-भाटा का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
      • इनसे तटीय क्षेत्रों में पोषक तत्त्व और ऑक्सीजन आने से पौधों और जानवरों के विकास को समर्थन मिलता है।
      • दूसरी ओर ज्वार की मजबूत धाराएँ समुद्र तटों को नष्ट कर सकती हैं और बाढ़ का कारण भी बन सकती हैं।
      • ज्वार-भाटा ऊर्जा का स्रोत भी प्रदान करते हैं जिसका उपयोग टाइडल टर्बाइनों के उपयोग के माध्यम से बिजली उत्पन्न करने में किया जा सकता है।
      • ज्वार एक प्राकृतिक घटना है जो आकाशीय पिंडों के गुरुत्वाकर्षण बल से उत्पन्न होती है। इससे विकसित जल की ऊर्ध्वाधर गति,पृथ्वी पर जीवन के लिये आवश्यक है यह समुद्र तटों और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने के साथ ऊर्जा का स्रोत भी प्रदान करते हैं।

    निष्कर्ष:

    धाराएँ और ज्वार-भाटा जल प्रवाह के दो अलग-अलग रूप हैं। धाराएँ उच्च स्थान से निम्न स्थान की ओर जल के प्रवाह को संदर्भित करती हैं जबकि ज्वार-भाटा महासागरों में चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण होने वाला जल संचलन है। ताज़े जल के प्रवाह और जीवन निर्वाह के लिये जल धाराएँ महत्त्वपूर्ण हैं जबकि समुद्री संसाधनों के प्रवाह और समुद्री जीवन निर्वाह के लिये ज्वार-भाटा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जल धाराएँ और ज्वार-भाटा दोनों ही पृथ्वी के जल चक्र के अभिन्न अंग हैं और पारिस्थितिकी तंत्र को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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