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24 Jan 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 1
भूगोल
दिवस- 66
प्रश्न.1 चर्चा कीजिये कि तापमान के आधार पर वायुमंडल को विभिन्न परतों में किस प्रकार विभाजित किया गया है और पृथ्वी पर मानव जीवन के लिये प्रत्येक परत का क्या महत्त्व है? (150 शब्द)
प्रश्न.2 तापमान व्युत्क्रमण क्या है? किसी स्थान पर वायु के तापमान वितरण को नियंत्रित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
उत्तर 1:
हल करने का दृष्टिकोण:
- वायुमंडल के संघटन का परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि तापमान के आधार पर वायुमंडल को परतों में कैसे विभाजित किया गया है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
वायुमंडल गैसों, जलवाष्प एवं धूल कणों से बना है। वायुमंडल की ऊपरी परतों में गैसों का अनुपात इस प्रकार
बदलता है जैसे कि 120 कि॰मी॰ की ऊँचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है। इसी प्रकार, कार्बन डाईऑक्साइड एवं जलवाष्प पृथ्वी की सतह से 90 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक ही पाये जाते हैं।
मुख्य भाग:
वायुमंडल अलग-अलग घनत्व तथा तापमान वाली विभिन्न परतों का बना होता है। पृथ्वी की सतह के पास घनत्व अधिक होता है जबकि ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ यह घटता जाता है। तापमान की स्थिति के अनुसार वायुमंडल को पाँच विभिन्न संस्तरों में बाँटा गया है। ये हैंः क्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल, बाह्य वायुमंडल तथा बहिर्मंडल।
- क्षोभमंडल: क्षोभमंडल वायुमंडल का सबसे नीचे का संस्तर है। इसकी ऊँचाई सतह से लगभग 13 कि॰मी॰ तक होती है तथा यह ध्रुव के निकट 8 कि॰मी॰ तथा विषुवत् वृत्त पर 18 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक होता है। क्षोभमंडल की मोटाई विषुवत् वृत्त पर सबसे अधिक होती है, क्योंकि तेज वायुप्रवाह के कारण ताप का अधिक ऊँचाई तक संवहन होता है। इस संस्तर में धूलकण तथा जलवाष्प मौजूद होते हैं। मौसम में परिवर्तन इसी संस्तर में होता है। इस संस्तर में प्रत्येक 165 मी. की ऊँचाई पर तापमान 1° से॰ घटता जाता है। जैविक क्रिया के लिये यह सबसे महत्त्वपूर्ण संस्तर है।
- क्षोभमंडल और समतापमंडल को अलग करने वाले भाग को क्षोभसीमा कहते हैं। विषुवत् वृत्त के ऊपर क्षोभसीमा में हवा का तापमान -80° से॰ और ध्रुव के ऊपर -45° से॰ होता है। यहाँ पर तापमान स्थिर होने के कारण इसे क्षोभसीमा कहा जाता है।
- समतापमंडल: क्षोभमंडल के ऊपर 50 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक समतापमंडल पाया जाता है। समतापमंडल का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि इसमें ओजोन परत पायी जाती है। यह परत पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर पृथ्वी को ऊर्जा के तीव्र तथा हानिकारक तत्त्वों से बचाती है।
- मध्यमंडल: मध्यमंडल, समतापमंडल के ठीक ऊपर 80 कि॰मी॰ की ऊँचाई तक फैला होता है। इस संस्तर में भी ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है और 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँकर यह -100° से॰ हो जाता है।
- मध्यमंडल की ऊपरी परत को मध्यसीमा कहते हैं।
- आयनमंडल: आयनमंडल, मध्यमंडल से 80 से 400 कि.मी के बीच स्थित होता है। इसमें विद्युत आवेशित कण होते हैं जिन्हें आयन कहा जाता है। इसलिये इसे आयनमंडल के रूप में जाना जाता है।
- पृथ्वी के द्वारा भेजी गई रेडियो तरंगें इस संस्तर के द्वारा वापस पृथ्वी पर लौट आती हैं। यहाँ का तापमान ऊँचाई के साथ बढ़ने लगता है।
- बहिर्मंडल: वायुमंडल का सबसे ऊपरी संस्तर, जो बाह्य वायुमंडल के ऊपर स्थित होता है उसे बहिर्मंडल कहते हैं। यह सबसे ऊँचा संस्तर है तथा इसके बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इस संस्तर में मौजूद सभी घटक विरल हैं, जो धीरे-धीरे बाहरी अंतरिक्ष में मिल जाते हैं।
निष्कर्ष:
वातावरण को तापमान के आधार पर पाँच मुख्य परतों में विभाजित किया गया है इनमें से प्रत्येक की अद्वितीय विशेषताएँ और कार्य हैं, जो पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। क्षोभमंडल, समतापमंडल, मध्यमंडल, आयनमंडल और बहिर्मंडल जैसी परतें पृथ्वी पर जीवन के लिये आवश्यक परिस्थितियों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- तापमान व्युत्क्रमण के बारे में संक्षेप में परिचय दीजिये।
- किसी स्थान पर वायु के तापमान वितरण को नियंत्रित करने वाले कारकों की विवेचना कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
सामान्यतः तापमान ऊँचाई के साथ घटता जाता है, जिसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं। कई बार स्थिति बदल जाती है और सामान्य ह्रास दर उलट जाती है। इसे तापमान का व्युत्क्रमण कहते हैं। अक्सर व्युत्क्रमण बहुत थोड़े समय के लिये होता है, पर यह काफी सामान्य घटना है। सर्दियों की मेघविहीन लंबी रात तथा शांत वायु, व्युत्क्रमण के लिये आदर्श दशाएँ हैं। दिन में प्राप्त ऊष्मा रात के समय विकिरित होती है और सुबह तक भूपृष्ठ अपने ऊपर की हवा से अधिक ठंडा हो जाता है। ध्रुवीय क्षेत्रों में वर्ष भर तापमान व्युत्क्रमण होना सामान्य है।
मुख्य भाग:
वायुमंडल एवं भू-पृष्ठ के साथ सूर्यातप की अन्योन्यक्रिया द्वारा जनित ऊष्मा को तापमान के रूप में मापा जाता है।
तापमान वितरण को नियंत्रित करने वाले कारक: किसी भी स्थान पर वायु का तापमान निम्नलिखित कारकों द्वारा प्रभावित होता हैः (i) उस स्थान की अक्षांश रेखा; (ii) समुद्र तल से उस स्थान की उत्तुंगता; (iii) समुद्र से उसकी दूरी, वायु संहति का परिसंचरण; (iv) कोष्ण तथा ठंडी महासागरीय धाराओं की उपस्थिति ; (v) स्थानीय कारक।
- अक्षांश: किसी भी स्थान का तापमान उस स्थान द्वारा प्राप्त सूर्यातप पर निर्भर करता है। सूर्यातप की मात्रा में अक्षांश के अनुसार भिन्नता पाई जाती है जिससे तापमान में भी भिन्नता पाई जाती है।
- उत्तुंगता: पार्थिव विकिरण द्वारा निम्न वायुमंडल पहले गर्म होता है। यही कारण है कि समुद्र तल के पास के स्थानों पर तापमान अधिक तथा ऊँचे भाग में स्थित स्थानों पर तापमान कम होता है।
- अन्य शब्दों में तापमान सामान्यतः उत्तुंगता बढ़ने के साथ घटता है। उत्तुंगता के बढ़ने के साथ तापमान के घटने की दर को ‘सामान्य ह्रास दर’ कहते हैं। सामान्य ह्रास दर प्रति 1000 मीटर की ऊँचाई बढ़ने पर 6.5° सेल्सियस होती है।
- समुद्र से दूरी: किसी भी स्थान के तापमान को प्रभावित करने वाला दूसरा कारक समुद्र से उस स्थान की दूरी है। स्थल की अपेक्षा समुद्र धीरे-धीरे गर्म और धीरे-धीरे ठंडा होता है। स्थल जल्दी गर्म और जल्दी ठंडा होता है। इसलिये समुद्र के ऊपर स्थल की अपेक्षा तापमान में भिन्नता कम होती है। समुद्र के निकट स्थित क्षेत्रों पर समुद्र एवं स्थल समीर का सामान्य प्रभाव पड़ता है और तापमान सम रहता है।
- वायुसंहति तथा महासागरीय धाराएँ: स्थलीय एवं समुद्री समीरों की तरह वायु संहतियाँ भी तापमान को प्रभावित करती हैं। कोष्ण वायु संहतियों से प्रभावित होने वाले स्थानों का तापमान अधिक एवं शीत वायुसंहतियों से प्रभावित स्थानों का तापमान कम होता है। इसी प्रकार ठंडी महासागरीय धारा के प्रभाव के अंतर्गत आने वाले समुद्र तटों की अपेक्षा गर्म महासागरीय धारा के प्रभाव में आने वाले तटों का तापमान अधिक होता है।
- स्थानीय कारक: स्थानीय कारक जैसे झीलें, बड़ी नदियाँ (जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र आदि) और स्थानीय घने जंगल स्थानीय क्षेत्र के तापमान निर्धारण में भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिये इन कारकों की उपस्थिति से एक विशिष्ट सूक्ष्म जलवायु क्षेत्र के विकसित होने से स्थानीय तापमान में परिवर्तन आता है।
निष्कर्ष:
किसी भी स्थान पर वायु का तापमान वितरण अक्षांश, ऊँचाई, भूमि और जल की उपस्थिति, महासागरीय धाराओं, वायुसंहति, बादल और शहरीकरण जैसे विभिन्न कारकों की जटिल परस्पर क्रिया द्वारा नियंत्रित होता है जिससे पृथ्वी पर प्रत्येक स्थान के लिये एक अद्वितीय तापमान स्थिति विकसित होती है।