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Sambhav-2023

  • 20 Jan 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 63

    प्रश्न.1 पृथ्वी के आंतरिक भाग के अध्ययन हेतु प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष स्रोतों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    प्रश्न.2 ज्वालामुखी से आप क्या समझते हैं। ज्वालामुखी से निर्मित आंतरिक (अंतर्वेधी) और बाह्य (बहिर्वेधी) भू-आकृतियों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर: 1

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पृथ्वी के आतंरिक भाग की विभिन्न परतों की व्याख्या करते हुए अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • पृथ्वी के आंतरिक भाग के अध्ययन के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष स्रोतों की चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • पृथ्वी की उत्पत्ति के संबंध में लाप्लास का नेबुलर परिकल्पना सिद्धांत और ओटो श्मिट एवं कार्ल वीज़ास्कर की नेबुलर परिकल्पना जैसी काफी परिकल्पनाएँ की गईं हैं।
    • पृथ्वी तीन अलग-अलग परतों से बनी है: क्रस्ट, मेंटल और कोर। पृथ्वी की आंतरिक संरचना और संगठन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है क्योंकि पृथ्वी के आंतरिक भाग को केवल प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रमाणों से ही समझा जा सकता है।

    मुख्य भाग:

    पृथ्वी के आंतरिक भाग के प्रत्यक्ष स्रोत:

    • खनन: पृथ्वी पर सबसे आसानी से उपलब्ध ठोस पदार्थ धरातलीय चट्टानें हैं अथवा वे चट्टानें है, जो हम खनन क्षेत्रों से प्राप्त करते हैं। दक्षिण अफ्रीका की सोने की खानें 3से 4 कि0मी0 तक गहरी हैं।
    • प्रवेधन: खनन के अतिरिक्त वैज्ञानिक विभिन्न परियोजनाओं जैसे गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना व समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना के अतर्गत पृथ्वी की आंतरिक स्थिति को जानने के लिये भू-पर्पटी में गहराई तक छानबीन कर रहे हैं।
      • आज तक सबसे गहरा प्रवेधन आर्कटिक महासागर में कोला क्षेत्र में 12 कि.मी. की गहराई तक किया गया है। इन परियोजनाओं से प्राप्त पदार्थों के विश्लेषण से हमें पृथ्वी की आंतरिक संरचना से संबंधित जानकारी प्राप्त हुई है।
    • ज्वालामुखी उद्गार प्रत्यक्ष जानकारी का एक अन्य स्त्रोत है। जब कभी भी ज्वालामुखी उद्गार से लावा पृथ्वी के धरातल पर आता है तो यह प्रयोगशाला अन्वेषण के लिये उपलब्ध होता है। यद्यपि इस बात का निश्चय कर पाना कठिन होता है कि यह मैग्मा कितनी गहराई से निकला है।

    पृथ्वी के आंतरिक भाग की जानकारी के अप्रत्यक्ष स्रोत:

    • भौतिक गुणों में भिन्नता: पृथ्वी के धरातल में गहराई बढ़ने के साथ-साथ तापमान एवं दबाव में वृद्धि होती है। इसके साथ ही गहराई बढ़ने के साथ-साथ पदार्थ का घनत्व भी बढ़ता है। तापमान, दबाव व घनत्व में इस परिवर्तन की दर का तात्पर्य पदार्थ के गुणों में परिवर्तन से है।
    • उल्काएँ: पृथ्वी तक पहुँचने वाले उल्काओं से हमें विश्लेषण हेतु पदार्थ उपलब्ध होता है। उल्काओं से प्राप्त पदार्थ और उनकी संरचना पृथ्वी से मिलती-जुलती होती है।
      • ये वैसे ही पदार्थ के बने ठोस पिंड हैं, जिनसे हमारा ग्रह (पृथ्वी) बना है। अतः पृथ्वी की आंतरिक जानकारी के लिये उल्काओं का अध्ययन एक अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
    • विभिन्न बलों और तरंगों का विश्लेषण: गुरुत्वाकर्षण, चुंबकीय क्षेत्र और भूकंप संबंधी क्रियाएँ ।
      • भूकंप संबंधी क्रियाएँ: भूकंपीय गतिविधियाँ भी पृथ्वी की आंतरिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
        • भूकंप अधिकेंद्र से 105° और 145° के बीच का क्षेत्र दोनों प्रकार की तरगों (प्राथमिक तरंग और द्वितीयक तरंग) के लिये छाया क्षेत्र होता है। 105° से परे संपूर्ण क्षेत्र में द्वितीयक तरंग नहीं पहुँचती हैं। यह छाया क्षेत्र पृथ्वी के अंदर विभिन्न घनत्वों के पदार्थों का चित्रण करता है।
      • गुरुत्वाकर्षण विसंगति: पृथ्वी की सतह पर विभिन्न अक्षांशों पर गुरुत्वाकर्षण बल समान नहीं होता है। गुरुत्वाकर्षण बल पदार्थ के भार, ध्रुवों और भूमध्य रेखा के अनुसार भिन्न होता है।
        • गुरुत्वाकर्षण विसंगतियाँ हमें पृथ्वी की परत में और पृथ्वी के अंदर के पदार्थ के द्रव्यमान के असमान वितरण के बारे में जानकारी देती हैं।
      • चुंबकीय सर्वेक्षण: इससे पृथ्वी के ऊपरी भाग में चुंबकीय पदार्थ के वितरण के बारे में जानकारी मिलती है जिससे इस भाग में पदार्थ के वितरण के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है।

    निष्कर्ष:

    ज्वालामुखी विस्फोट, गुरुत्वाकर्षण विसंगति और मंगल एवं शुक्र जैसे अन्य आकाशीय ग्रहों के अध्ययन से पृथ्वी के आंतरिक भाग की स्पष्ट तस्वीर मिल सकती है जिससे भू-भौतिक और भूवैज्ञानिक अनुसंधान एवं विकास को गति मिल सकती है।


    उत्तर: 2

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ज्वालामुखी का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • ज्वालामुखी से निर्मित आंतरिक और बाह्य भू-आकृतियों पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ज्वालामुखी का तात्पर्य पृथ्वी के धरातल पर किसी छिद्र के माध्यम से पिघले हुए पदार्थ (मैग्मा) का आना है। अत्यधिक उच्च तापमान के कारण कुछ चट्टानें धीरे-धीरे पिघलकर एक गाढ़े तरल पदार्थ में बदल जाती हैं जिसे मैग्मा कहते हैं। चूँकि यह अपने चारों ओर की ठोस चट्टान से हल्का होता है जिससे यह मैग्मा ऊपर उठता है तथा मैग्मा कक्षों में एकत्र होकर अंततः पृथ्वी की सतह पर दरारों के माध्यम से आता है।

    यह आमतौर पर ऐसे क्षेत्रों से संबंधित होते हैं जहाँ विवर्तनिकी प्लेटें (जैसे यूरेशियन, प्रशांत, सोमाली आदि) अपसारित या अभिसारित होती हैं। उदाहरण- मध्य महासागरीय कटक और रिंग ऑफ फायर क्षेत्र के ज्वालामुखी।

    मुख्य भाग:

    • ज्वालामुखी उद्गार से निकलने वाले लावा के ठंडा होने से आग्नेय शैल का निर्माण होता है। यह लावा या तो धरातल पर पहुँचकर ठंडा और जमा होता है या धरातल तक पहुँचने से पहले भूपटल के नीचे ही ठंडा हो जाता है।
    • लावा के ठंडा होने के स्थान के आधार पर आग्नेय शैलें- ज्वालामुखी शैलों (धरातल के ऊपर) और पाताली शैलों (धरातल के नीचे) में वर्गीकृत की गई हैं। जब यह लावा धरातल के नीचे ठंडा होता है तो कई आकृतियों का निर्माण होता है जिन्हें अंतर्वेधी आकृतियाँ कहते हैं। कुछ अंतर्वेधी शैलें निम्नलिखित हैं-
      • सिल: अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठंडा होना सिल या शीट कहलाता है।
      • डाइक: जब दरारों में धरातल के समकोण पर लावा का प्रवाह होता है और अगर यह इसी स्थिति में ठंडा हो जाए तो दीवार की भाँति एक संरचना का निर्माण होता है, इसे ही डाइक कहा जाता है।
      • लैकोलिथ: ये गुंबद के आकार की विशाल अंतर्वेधी चट्टानें होती हैं। इनका तल सपाट और एक नली द्वारा नीचे से जुड़ा होता है।
      • लैपोलिथ और फैकोलिथ: ऊपर उठते हुए लावा का कुछ भाग जब क्षैतिज रूप में पाए जाने वाले कमज़ोर धरातल में चला जाता है तो अलग-अलग आकृतियों का निर्माण होता है। यदि यह तश्तरी के आकार में जम जाए तो लैपोलिथ कहलाता है और अगर अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में लावा का जमाव होता है तो ये फैकोलिथ कहलाती हैं।
      • बैथोलिथ: ये ग्रेनाइट के बने पिंड होते हैं जिनका निर्माण मैग्मा भंडारों के जमाव से होता है। कालांतर में अनाच्छादन प्रक्रियाओं द्वारा इनके ऊपर के पदार्थों के हटने से धरातल पर ये प्रकट होते हैं।

    image1

    बहिर्वेधी भू-आकृतियाँ:

    • सिंडर शंकु: सिंडर शंकु कम ऊँचाई के होते हैं और यह ज्वालामुखी धूल तथा राख जैसे पदार्थों से बनते हैं। गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से ये कण एक बड़े ढेर के रुप में जमा हो जाते हैं।
      • पहाड़ी की चोटीनुमा संरचना के रुप में शीर्ष पर एक गड्ढानुमा संरचना के साथ सिंडर शंकु काफी विशिष्ट होता है। उदाहरण: पेरिकुटिन ज्वालामुखी, मेक्सिको।
    • मिश्रित या कंपोजिट शंकु: मिश्रित शंकु तब बनता है जब विस्फोट कभी-कभी प्रवाही और कभी-कभी तीव्र होता है। मिश्रित शंकु लावा प्रवाह और पाइरोक्लास्टिक सामग्री के संयोजन से बने होते हैं।
      • यह लावा और खंडित सामग्री की क्रमिक परतों के निक्षेपण से बने होते हैं जिसमें लावा सीमेंटिंग सामग्री के रूप में कार्य करता है। उदाहरण: जापान में माउंट फूजी।
    • शील्ड ज्वालामुखी: यह सभी ज्वालामुखियों में (बेसाल्ट प्रवाह को छोड़कर) सबसे विशाल होते हैं। हवाईद्वीप के ज्वालामुखी इसके उदाहरण हैं। ये ज्वालामुखी मुख्यत: बेसाल्ट से निर्मित होते हैं तथा यह कम विस्फोटक होते हैं। तरल लावा के उद्गार के कारण इनकी ढाल मंद होती है।
    • काल्डेरा: काल्डेरा एक बड़ा, बेसिन के आकार का गड्ढा होता है जो ज्वालामुखी के मुहाने पर बनता है। उदाहरण: क्रेटर लेक, यूएसए।

    निष्कर्ष:

    भूकंपीय गतिविधियों से महाद्वीपों और महासागर घाटियों के रुप में प्रथम चरण की उच्चावच संरचनाओं का निर्माण होता है और इन मूलभूत उच्चावच संरचनाओं से अन्य प्रकार की भू-आकृतियाँ विकसित होती हैं।

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