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Sambhav-2023

  • 14 Jan 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 58

    प्रश्न.1 स्वतंत्रता संग्राम की गांधीवादी शैली को सत्य और अहिंसा जैसे मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के लिये जाना जाता है। क्या आपको लगता है कि भारत छोड़ो आंदोलन में इन मूल्यों से समझौता किया गया था? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच सहयोग के बावजूद, विभिन्न वैचारिक मतभेद भी थे। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत छोड़ो आंदोलन की संक्षेप में चर्चा कीजिये।
    • भारत छोड़ो आंदोलन के उन तत्त्वों पर चर्चा कीजिये जिनसे सत्य और अहिंसा जैसे गांधीवादी मूल्यों से समझौता हुआ था।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    भारत छोड़ो आंदोलन को 'अगस्त क्रांति' के रूप में भी जाना जाता है जिसे क्रिप्स मिशन द्वारा संवैधानिक गतिरोध को हल करने में विफल रहने के कारण शुरू किया गया था। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने वर्धा बैठक में गांधी को अहिंसक जन आंदोलन की कमान संभालने के लिये अधिकृत किया था। 8 अगस्त, 1942 को बॉम्बे के ग्वालिया टैंक में कांग्रेस की बैठक में इसकी पुष्टि की गई थी।

    मुख्य भाग:

    भारत छोड़ो आंदोलन मूलतः एक अहिंसक आंदोलन था जो अन्य अखिल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों जैसे असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे गांधीवादी मूल्यों से प्रेरित था।

    गांधी के मार्गदर्शन और गांधीवादी मूल्यों द्वारा समर्थित होने के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ऐसी कई घटनाएँ हुईं जिससे यह कहा जा सकता है कि इस आंदोलन में गांधीवादी मूल्यों से समझौता किया गया था। जैसे:

    • 'करो या मरो' का नारा: सत्याग्रहियों के लिये गांधी का प्रसिद्ध आह्वान कि "हम या तो भारत को स्वतंत्र करेंगे या इस प्रयास में मर जाएँगे; हम अपनी गुलामी के स्थायीकरण को देखने के लिये जीवित नहीं रहेंगे" से गांधी के"साधन बनाम साध्य" के मूल्य का विचलन दिखता है।
      • इससे संकेत मिला कि यह आंदोलन हिंसक हो सकता है जिससे ब्रिटिशों ने कांग्रेस के सभी शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था फलस्वरूप आंदोलन नेतृत्वहीन होने के कारण हिंसात्मक हो गया था।
      • गांधी का यह नारा उनके समझौतावादी रवैये को दर्शाता है।
    • सामूहिक प्रतिशोध: शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी के बाद छह या सात सप्ताह के लिये पूरे देश में बड़े पैमाने पर विद्रोह हुआ था जिससे सत्याग्रहियों और पुलिस बलों के बीच अधिक हिंसक संघर्ष हुआ था।
    • हिंसक तरीकों का इस्तेमाल: लोगों ने अपने गुस्से को व्यक्त करने के लिये तरह-तरह के तरीके विकसित किये थे। कुछ जगहों पर भीड़ ने पुलिस थानों, डाकघरों, न्यायालयों और रेलवे स्टेशनों पर हमला किया था।
      • पुलिस की अवज्ञा के रुप में सार्वजनिक भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। इस दौरान शहरों, कस्बों और गाँवों में लोगों का गुस्सा देखा गया था।
      • बिहार और पूर्वी संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में व्यापक स्तर पर हिंसा हुई थी।
    • इस दौरान कई स्थानों पर बलपूर्वक समानांतर सरकारें स्थापित की गईं थीं।
      • बलिया (अगस्त 1942 में) में चित्तू पाण्डेय के नेतृत्व में।
      • तामलुक (मिदनापुर में दिसंबर, 1942 से सितंबर 1944 तक) की जातीय सरकार ने राहत कार्य किया था, स्कूलों के लिये अनुदान स्वीकृत किया और विद्युत वाहिनी का गठन किया था।
      • सतारा (वर्ष 1943 के मध्य से वर्ष 1945 तक) में वाई.बी.चव्हाण, नाना पाटिल के नेतृत्व में "प्रति सरकार" गठित हुईं थीं।
    • महात्मा गांधी ने लोगों की हिंसा के लिये सरकार को जिम्मेदार ठहराया था।
    • उपरोक्त उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधीवादी मूल्यों से समझौता किया गया था लेकिन सत्य और अहिंसा जैसे मूल्यों की भावना आंदोलन के दौरान भी देखी गई थी। जैसे:
    • गांधी द्वारा हिंसा की निंदा करना: गांधी ने जनता द्वारा की जाने वाली हिंसा और सरकार द्वारा लोगों के दमन की निंदा की थी क्योंकि इस दौरान पुलिस द्वारा की गई हिंसा बहुत क्रूर थी एवं लोगों द्वारा की गई हिंसा सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई हिंसा की ही प्रतिक्रिया थी।
    • सत्याग्रही की अहिंसा से भारत छोड़ो आंदोलन की सफलता सीमित रही थी। इसके साथ ही इसमें सरकार के दमन, कमजोर समन्वय, नेतृत्व की कमी और कार्रवाई हेतु स्पष्ट कार्यक्रम का अभाव आदि कारक जिम्मेदार थे।

    निष्कर्ष:

    • असहयोग और सविनय अवज्ञा जैसे अन्य गांधीवादी आंदोलनों की तुलना में भारत छोड़ो आंदोलन में लोगों की अधिक सहज भागीदारी थी।
    • इस ऐतिहासिक आंदोलन का महत्त्व यह था कि इसमें स्वतंत्रता की मांग को राष्ट्रीय आंदोलन के तत्काल उद्देश्य के रुप में निर्धारित किया गया था।
    • द्वितीय विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन के बाद भारत की स्वतंत्रता का मार्ग स्पष्ट हो गया था।

    उत्तर 2:

    दृष्टिकोण:

    • एक दूसरे के प्रति गांधी और बोस के विचारों को बताइये।
    • गांधी और बोस के बीच वैचारिक मतभेदों की चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • वर्ष 1942 में गांधी ने बोस को "देशभक्तों के बीच राजकुमार" कहा। गांधी ने कहा था कि नेताजी की देशभक्ति किसी से कम नहीं है। उनकी वीरता उनके सभी कार्यों से चमकती है। एक अन्य अवसर पर गांधी ने कहा, "भारत की सेवा के रुप में नेताजी आने वाले समय के लिये अमर रहेंगे।"
    • बोस, गांधी को भारतीय राष्ट्रवाद का प्रतीक मानते थे और उन्हें "राष्ट्रपिता" के रुप में संबोधित किया था।

    मुख्य भाग:

    उनकी विचारधाराओं में समानताएँ:

    • दोनों ने स्वतंत्र भारत में ‘समाजवाद’ को आगे बढ़ने का आधार माना था।
    • दोनों ही धार्मिक व्यक्ति होने के साथ साम्यवाद को नापसंद करते थे।
    • उन्होंने छुआछूत के खिलाफ काम किया और महिलाओं की मुक्ति की बात की।

    मतभेद:

    • अहिंसा बनाम क्रांतिकारी दृष्टिकोण:
      • गांधी अहिंसा और सत्याग्रह में दृढ़ विश्वास रखते थे जबकि बोस गांधी की अहिंसा पर आधारित रणनीति को भारत की स्वतंत्रता हेतु अपर्याप्त मानते थे। बोस का मानना था कि केवल हिंसक प्रतिरोध ही भारत से विदेशी साम्राज्यवादी शासन को समाप्त कर सकता था।
    • साधन और साध्य:
      • बोस की नज़र कार्रवाई के परिणाम पर थी। नाजियों, फासीवादियों या बाद में जापान की मदद लेना उनके लिये कोई नैतिक मुद्दा नहीं था।
      • लेकिन गांधी मानते थे कि लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये किसी भी साधन का उपयोग नहीं किया जा सकता है चाहे उसका अंत कितना ही वांछनीय क्यों न हो।
    • सरकार का स्वरुप:
      • प्रारंभिक लेखन में बोस ने यह राय व्यक्त की कि लोकतंत्र भारत के लिये स्वीकार्य राजनीतिक व्यवस्था है। लेकिन बाद में ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस विचार की ओर उन्मुख हुए कि कम से कम शुरुआत में राष्ट्र के पुनर्निर्माण और गरीबी तथा सामाजिक असमानता के उन्मूलन की प्रक्रिया के लिये लोकतांत्रिक प्रणाली पर्याप्त नहीं होगी।
      • गांधी के आदर्श के रुप में रामराज्य को प्रतिनिधि सरकार, संविधान, सेना या पुलिस बल की आवश्यकता नहीं थी। गांधी केंद्रीकरण के विरोधी थे।
    • सैन्यवाद:
      • बोस सैन्य अनुशासन के प्रति बहुत आकर्षित थे जबकि कुल मिलाकर गांधी, सेना के खिलाफ थे। उनका रामराज्य, सत्य और अहिंसा तथा आत्म-नियमन की अवधारणा पर आधारित था।
    • अर्थव्यवस्था पर विचार:
      • गांधी की स्वराज की अवधारणा का अलग आर्थिक दृष्टिकोण था। वह राज्य के नियंत्रण के बिना एक विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था चाहते थे जबकि बोस भारत के लिये व्यापक औद्योगीकरण के पक्ष में थे।
    • शिक्षा:
      • गांधी ब्रिटिशों की शिक्षा प्रणाली के खिलाफ थे और शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी के इस्तेमाल के भी खिलाफ थे।
      • बोस उच्च शिक्षा (खासकर तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में) में अंग्रेजी के पक्षधर थे क्योंकि वे औद्योगिक भारत चाहते थे।

    निष्कर्ष:

    • गांधी और सुभाष बोस अपनी अलग विचारधाराओं के बावजूद एक दूसरे के लिये गहरा सम्मान रखते थे। इन दोनों ने स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय संघर्ष में दूसरे द्वारा किये गए कार्यों की सराहना की थी और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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