प्रश्न.1 क्रिप्स मिशन और कुछ नहीं बल्कि अगस्त प्रस्ताव का ही पुनर्गठित (रीपैकेजिंग) स्वरुप था। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 ‘द्वितीय विश्व युद्ध का भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था’। कथन की पुष्टि कीजिये। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- क्रिप्स मिशन के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि क्या क्रिप्स मिशन अगस्त प्रस्ताव का ही पुनर्गठित स्वरुप था। इससे असहमति के संदर्भ में अपने स्वयं के विचारों का भी उल्लेख कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- संवैधानिक प्रस्तावों का परीक्षण करने एवं युद्ध में भारतीय लोगों का समर्थन प्राप्त करने के लिये मार्च 1942 में स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भारत भेजा गया था। स्टैफोर्ड क्रिप्स हाउस ऑफ कॉमन्स के नेता और ब्रिटिश युद्ध मंत्रिमंडल के सदस्य थे।
- इसी तरह के उद्देश्य के लिये 8 अगस्त, 1940 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल द्वारा अगस्त प्रस्ताव की घोषणा की गई थी।
मुख्य भाग:
गांधी ने इस योजना को "पोस्ट-डेटेड चेक" के रूप में वर्णित किया था जो दर्शाता है कि यह तत्कालीन राजनीतिक नेताओं और भारतीय हितों के लिये अप्रासंगिक था। अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन के बीच कुछ समानताएँ, जिससे प्रतीत होता है कि यह अगस्त प्रस्ताव का पुनर्गठित स्वरुप था।
- अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन के बीच समानताएँ:
- डोमिनियन दर्जा वाले भारतीय संघ का प्रावधान।
- वायसराय की कार्यकारी परिषद का विस्तार जिसमें रक्षा संबंधी मामले और गवर्नर जनरल की शक्ति को छोड़कर अधिकांश हेतु भारतीय लोगों को योग्य माना गया था।
- युद्ध के बाद एक संविधान सभा का गठन करना।
- अल्पसंख्यकों की सहमति के बिना कोई भविष्य का संविधान नहीं अपनाने का प्रावधान।
ये दोनों प्रस्तावों के कुछ प्रमुख प्रावधान थे। इसलिये यह कहा जा सकता है कि क्रिप्स मिशन अगस्त प्रस्ताव का ही पुनर्गठित स्वरुप था।
अगस्त प्रस्ताव का पुनर्गठित स्वरुप होने के साथ क्रिप्स मिशन के कुछ अलग प्रावधान थे जैसे:
- इसने डोमिनियन ऑफ इंडिया को कॉमनवेल्थ,संयुक्त राष्ट्र एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ अपने संबंधों को तय करने हेतु स्वतंत्र दी थी।
- इसमें प्रावधान था कि संविधान सभा के सदस्य आंशिक रूप से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के माध्यम से प्रांतीय विधानसभाओं द्वारा चुने जाने के साथ आंशिक रूप से स्थानीय शासकों द्वारा नामित किये जाएंगे। जिसका अर्थ था कि भविष्य का संविधान भारतीयों द्वारा ही बनाया जाएगा।
- ब्रिटिश सरकार नए संविधान को दो शर्तों के अधीन स्वीकार करेगी:
- संघ में शामिल न होने वाला कोई भी प्रांत एक अलग संविधान और एक अलग संघ बना सकता है और
- नवीन संविधान निर्माण निकाय और ब्रिटिश सरकार, सत्ता हस्तांतरण के साथ नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हेतु एक संधि पर बातचीत करेंगे।
- क्रिप्स मिशन द्वारा केवल गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद के विस्तार के विपरीत, भारत की रक्षा के मामले और गवर्नर जनरल की शक्तियों को आरक्षित किया गया था।
उपर्युक्त प्रावधानों से संकेत मिलता है कि क्रिप्स मिशन केवल अगस्त प्रस्ताव का ही पुनर्गठित स्वरुप नहीं था।
निष्कर्ष:
स्टैफोर्ड क्रिप्स के विफल प्रयासों एवं ऐसे अन्य प्रावधानों के कारण, राष्ट्रीय स्तर पर भारत छोड़ो आंदोलन जैसा व्यापक जन आंदोलन हुआ था।
उत्तर 2:
हल करने का दृष्टिकोण:
- द्वितीय विश्व युद्ध का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- संक्षेप में व्याख्या कीजिये कि किस प्रकार भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिये द्वितीय विश्व युद्ध महत्त्वपूर्ण था।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- 1 सितंबर, 1939 को जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया था जिसके कारण द्वितीय विश्व युद्ध हुआ था। 3 सितंबर, 1939 को ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के परामर्श के बिना युद्ध में भारत के समर्थन की घोषणा कर दी थी।
- द्वितीय विश्व युद्ध का औपनिवेशीकरण की समाप्ति की प्रक्रिया पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। इससे भारत में तीव्र राष्ट्रवादी आंदोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ था।
मुख्य भाग:
भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव:
- द्वितीय विश्व युद्ध से ऐसी कई स्थितियाँ बनीं जो किसी न किसी रूप में राष्ट्रीय संघर्ष की ओर ले गईं जैसे:
- युद्ध में भारतीयों द्वारा शामिल होने हेतु सशर्त माँग रखना: भारतीयों से परामर्श किये बिना भारत को युद्ध में शामिल करने की ब्रिटिशों की एकतरफा कार्रवाई कॉन्ग्रेस को पसंद नहीं थी इसीलिये उसने सशर्त रूप से युद्ध का समर्थन करने का फैसला किया था। इसकी दो बुनियादी शर्तें थीं जैसे:
- युद्ध के बाद स्वतंत्र भारत की राजनीतिक संरचना का निर्धारण करने के लिये एक संविधान सभा का गठन किया जाना चाहिये।
- केंद्र में तत्काल प्रभाव से वास्तविक रूप से उत्तरदायी सरकार की स्थापना की जानी चाहिये। वायसराय लिनलिथगो ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। कॉन्ग्रेस ने तर्क दिया था कि युद्ध में लोगों के समर्थन हेतु ये शर्तें मानना आवश्यक है।
- राजनीतिक मोर्चे पर असहयोग: कॉन्ग्रेस ने 23 अक्टूबर, 1939 को मंत्रिमण्डल से इस्तीफा देने का निर्णय लिया था। इसने वायसराय के निर्णय को खारिज करते हुए युद्ध का समर्थन नहीं करने का फैसला किया था।
- समझौतावादी दृष्टिकोण: यूरोप में हिटलर की आश्चर्यजनक सफलता और कॉन्ग्रेस के असहयोगी रवैये के कारण समझौतावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए ब्रिटिश सरकार द्वारा अगस्त प्रस्ताव, क्रिप्स मिशन, वेवेल योजना और अंततः कैबिनेट मिशन जैसे कई प्रस्ताव लाए गए थे जिससे भारत के विभाजन और स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ था।
- व्यक्तिगत वीरता और देशभक्ति को बढ़ावा मिलना: गांधी ने प्रत्येक क्षेत्र में कुछ चुनिंदा व्यक्तियों द्वारा व्यक्तिगत आधार पर सीमित सत्याग्रह शुरू करने पर बल दिया था ताकि यह दिखाया जा सके कि राष्ट्रवादियों के धैर्य का कारण कमजोरी नहीं है और लोगों को युद्ध में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसका उद्देश्य कॉन्ग्रेस की मांगों को शांतिपूर्वक स्वीकार करने के लिये सरकार को एक और अवसर देना भी था।
- आक्रमणकारियों के खिलाफ अखिल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन: क्रिप्स मिशन के बाद गांधी ने भारत से ब्रिटिशों की वापसी तथा किसी भी आक्रमण के खिलाफ अहिंसक असहयोग आंदोलन के लिये एक प्रस्ताव तैयार किया था। इससे भारत छोड़ो आंदोलन (QIM) की शुरुआत हुई थी।
- वीरतापूर्ण और हिंसक गतिविधियाँ होना: इस दौरान बलिया, तामलुक और सतारा जैसे कई स्थानों पर समानांतर सरकारें गठित हुई थीं।
- सुभाष चंद्र बोस के निर्देशन में आज़ाद हिंद फौज ने भारत की स्वतंत्रता हेतु क्रांतिकारी कदम उठाया था। यह कदम पिछली क्रांतिकारी गतिविधियों की तुलना में अधिक संगठित, निर्देशित और विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त था।
- आर्थिक कठिनाइयाँ होना: इस दौरान यूरोपीय लोगों के लिये आर्थिक कठिनाई होने के साथ भारतीयों द्वारा स्व-शासन की तीव्र मांग की गई थी।
- अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान और बाद में तथा संयुक्त राष्ट्र के गठन के साथ नवीन वैश्विक महाशक्तियों ने उपनिवेशों की स्वतंत्रता की मांग को समर्थन प्रदान किया था।
- इसके बाद ब्रिटेन लंबे समय तक वैश्विक महाशक्ति नहीं रहा था।
निष्कर्ष:
द्वितीय विश्व युद्ध का भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था क्योंकि इसके कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के कमजोर हो जाने के कारण भारतीय नेताओं को अधिक स्वायत्तता एवं स्व-शासन के लिये दबाव डालने का अवसर मिला था।