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12 Jan 2023
सामान्य अध्ययन पेपर 1
इतिहास
दिवस- 56
प्रश्न.1 सांप्रदायिक पंचाट और पूना समझौता क्या थे? क्या आपको लगता है कि पूना समझौता का दलितों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान था? (250 शब्द)
प्रश्न.2 भारत का विभाजन, भारत सरकार अधिनियम,1935 के साथ शुरू होने वाला एक क्रमिक प्रक्रम था। क्या आप सहमत हैं? स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- साम्प्रदायिक पंचाट और पूना समझौता का परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि क्या, पूना समझौता का दलितों के उत्थान में महत्त्वपूर्ण योगदान था।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
वर्ष 1932 के सांप्रदायिक पंचाट में ब्रिटिश सरकार द्वारा विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिये अलग निर्वाचक मंडल का प्रावधान किया गया था। इसका राष्ट्रवादियों ने व्यापक विरोध किया था और अंततः वर्ष 1932 में इसके संदर्भ में महात्मा गांधी और अंबेडकर के बीच पूना समझौता पर हस्ताक्षर हुए थे।
मुख्य भाग:
सांप्रदायिक पंचाट और पूना समझौता:
- 16 अगस्त, 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री, रामसे मैकडोनाल्ड द्वारा सांप्रदायिक पंचाट की घोषणा की गई थी। यह भारतीय मताधिकार समिति (जिसे लोथियन समिति भी कहा जाता है) के निष्कर्षों पर आधारित था, जिसमें अल्पसंख्यकों और दलित वर्गों के लिये अलग निर्वाचक मंडल और आरक्षित सीटों को शामिल किया गया था।
- इस प्रकार इस पंचाट द्वारा मुस्लिमों, यूरोपीय, सिख, भारतीय ईसाई, एंग्लो-इंडियन,दलित वर्गों और यहाँ तक कि बॉम्बे में कुछ सीटों पर मराठों के लिये अलग निर्वाचक मंडल प्रदान किया गया था।
- पूर्व में भी डॉ. बी.आर.अंबेडकर ने साइमन कमीशन और दूसरे गोलमेज सम्मेलन के दौरान इस बात पर जोर दिया था कि दलित वर्गों को सवर्ण हिंदुओं से अलग, एक स्वतंत्र अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में माना जाना चाहिये।
- यहाँ तक कि बंगाल डिप्रेस्ड क्लासेज एसोसिएशन ने भी अलग निर्वाचक मंडल पर बल दिया था। जिसमें कुल आबादी के अनुपात में सीटें आरक्षित करना शामिल था। साइमन कमीशन ने दलित वर्गों के लिये अलग निर्वाचक मंडल के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। हालाँकि इसने सीटों को आरक्षित करने की अवधारणा को बरकरार रखा था।
- गांधी ने दलित वर्गों के लिये अलग निर्वाचक मंडल के खिलाफ मुस्लिमों से मतदान करने का समझौता किया था और बदले में उनकी मांगों का समर्थन करने का वादा किया था। गांधी की इस पहल की काफी आलोचना हुई थी।
- पूना समझौता द्वारा बी.आर. अंबेडकर ने दलित वर्गों की ओर से 24 सितंबर, 1932 को दलित वर्गों के लिये अलग निर्वाचक मंडल के विचार को त्याग दिया था लेकिन इसके बाद प्रांतीय और केंद्रीय विधानमंडल में दलित वर्गों के लिये आरक्षित सीटों को बढ़ा दिया गया था। पूना समझौता को सरकार ने सांप्रदायिक पंचाट में संशोधन के रूप में स्वीकार कर लिया था।
पूना समझौता के प्रभाव:
- गांधी के हरिजन अभियान के आंतरिक सुधार कार्यक्रम में शिक्षा, स्वच्छता को बढ़ावा देने के साथ मांस और शराब के प्रतिषेध एवं अस्पृश्यता को दूर करने पर बल दिया गया था।
- इसने दलित समुदाय की नैतिक और आंतरिक शक्ति को मजबूत किया था।
- यद्यपि इस अभियान ने दलितों की स्थिति के बारे में सामाजिक जागरूकता बढ़ाकर उनके उत्थान में विभिन्न तरीकों से महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था लेकिन आर्थिक और शैक्षिक उत्थान के अभाव में यह केवल भावनात्मक और क्षणिक ही था।
- इसने सरकार की बाँटो और राज करो की नीति (सांप्रदायिक पंचाट) के विभाजनकारी इरादों को खत्म करने की कोशिश की थी।
- पूना समझौता विभिन्न कमियों को दूर करने में विफल रहा था जैसे:
- दलित वर्ग की स्वतंत्रता के वांछित लक्ष्य को प्राप्त न कर पाने के साथ पुरानी हिंदू सामाजिक व्यवस्था जारी रहने से कई समस्याओं को जन्म मिला था।
- इस समझौते ने दलित वर्गों को राजनीतिक उपकरण बना दिया था जिसका उपयोग बहुसंख्यक हिंदू संगठनों द्वारा किया जा सकता था।
- इसने दलित वर्गों को नेतृत्वविहीन बना दिया था क्योंकि इन वर्गों के प्रतिनिधि उनके खिलाफ जीतने में असमर्थ थे जिन्हें हिंदू संगठनों द्वारा समर्थन प्राप्त था।
- इसके कारण दलित वर्गों को राजनीतिक, वैचारिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में यथास्थिति को स्वीकार करना पड़ा था। इसके साथ ही यह ब्राह्मणवादी व्यवस्था से लड़ने के लिये स्वतंत्र और वास्तविक नेतृत्व विकसित करने में सक्षम नहीं हो सके थे।
- इसने दलित वर्गों को एक अलग और विशिष्ट अस्तित्व से वंचित करके उन्हें हिंदू सामाजिक व्यवस्था का अधीनस्थ हिस्सा बना दिया था।
निष्कर्ष:
दलितों के अधिकारों के संदर्भ में सांप्रदायिक पंचाट और पूना समझौता महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम थे। गांधी का हरिजन अभियान एक सामाजिक सुधार आंदोलन था जिसने राष्ट्रवाद के संदेश को हरिजनों और देश के अधिकांश हिस्सों में खेतिहर मजदूरों तक पहुँचाया था जिससे राष्ट्रीय और किसान आंदोलनों में उनकी भागीदारी में वृद्धि हुई थी।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- भारत सरकार अधिनियम,1935 और उसके बाद की नीतियों के बारे में संक्षेप में बताइये जिन्होंने भारत के विभाजन को मूर्त रूप देने में योगदान दिया था।
- प्रश्न की मांग के अनुसार एक-एक करके कुछ नीतियों की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
भारत में ब्रिटिश सरकार की नीतियाँ जैसे भारत सरकार अधिनियम,1935, अगस्त प्रस्ताव, क्रिप्स मिशन और कैबिनेट मिशन सभी में भारत के विभाजन की मांग को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से मान्यता दी गई थी। इन नीतियों से भारत के विभाजन का मार्ग प्रशस्त हुआ था।
मुख्य भाग:
ब्रिटिशों की नीतियों के ऐसे प्रावधान जिनका भारत के विभाजन में योगदान था:
- भारत सरकार अधिनियम 1935: इसका उद्देश्य गवर्नर के प्रांत, मुख्य आयुक्तों के प्रांत एवं भारतीय राज्यों (जो एकजुट होने के लिये सहमत हों) को मिलाकर एक अखिल भारतीय संघ स्थापित करना था।
- इस अधिनियम से न केवल विभाजन की संभावना बल्कि संघ (फेडरेशन) के नाम पर भारत के बाल्कनीकरण का भी संकेत मिला था जिसमें राज्यों को संघ से बाहर होने की स्वतंत्रता थी।
- अगस्त प्रस्ताव, 1940: इसमें अल्पसंख्यकों की सहमति के बिना कोई भविष्य का संविधान नहीं अपनाए जाने का प्रावधान था जिससे मुस्लिम लीग को अलग राज्य की अपनी मांग के प्रचार के लिये एक अनौपचारिक वीटो दिया गया था।
- क्रिप्स मिशन, 1942: क्रिप्स मिशन का प्रावधान कि "कोई भी प्रांत जो संघ में शामिल होने के लिये तैयार नहीं है, उसका एक अलग संविधान हो सकता है और वह एक अलग संघ बना सकता है" भी भारत के विभाजन की संभावना की ओर संकेत करता है।
- कैबिनेट मिशन, 1946: इसे भारत को शासन के शांतिपूर्ण हस्तांतरण के तरीकों और साधनों का पता लगाने के लिये लाया गया था।
- यद्यपि इसने जनसंख्या के विभाजन, भाषाई, प्रशासनिक-आर्थिक और सुरक्षा की दृष्टि से पाकिस्तान के गठन की मांग को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया था।
- लेकिन इसके कुछ ऐसे प्रावधान थे जिन्होंने स्पष्ट रूप से भारत के विभाजन और मुस्लिम बहुल राज्य के रुप में पाकिस्तान की मांग का समर्थन किया था जैसे:
- मौजूदा प्रांतीय विधानसभाओं का धार्मिक आधार पर 3 वर्गों में समूहन किया गया था। जिसमें समूह ए हिंदू बहुमत और समूह बी एवं सी में मुस्लिम बहुमत को शामिल किया गया था।
- प्रांतों को पूर्ण स्वायत्तता और अवशिष्ट शक्तियाँ दी गईं थीं।
- प्रांत उत्तराधिकारी सरकारों में से किसी में भी शामिल हो सकते थे।
- इसमें प्रावधान था कि प्रांत 10 वर्ष बाद समूह से बाहर आ सकते हैं।
- कुल मिलाकर कैबिनेट मिशन ने भी भारत के विभाजन में योगदान दिया था।
- वेवेल की "ब्रेकडाउन योजना": मई, 1946 में वेवेल ने एक योजना प्रस्तुत की थी जिसमें उत्तर पश्चिम और उत्तर पूर्व के मुस्लिम प्रांतों में ब्रिटिश सेना एवं अधिकारियों की वापसी तथा देश के बाकी हिस्सों को कांग्रेस को सौंपने की परिकल्पना की गई थी।
- जिन्ना के प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के खिलाफ कार्रवाई करने की ब्रिटिशों की अनिच्छा और प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के दौरान होने वाली हिंसा को रोके बिना अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग को निमंत्रण देना भी इसका प्रमाण है।
- माउंटबेटन की बाल्कन योजना: मई, 1947 में इस योजना के तहत माउंटबेटन ने अलग-अलग प्रांतों को सत्ता हस्तांतरण की परिकल्पना की थी जिसमें पंजाब एवं बंगाल को अपने प्रांतों के विभाजन के लिये मतदान करने का विकल्प दिया गया था।
- इस प्रकार रियासत के साथ गठित विभिन्न इकाइयों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या अलग रहने का विकल्प दिया गया था।
- इस योजना का उद्देश्य भारत का बाल्कनीकरण करना था।
- माउंटबेटन योजना और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947: इनसे पाकिस्तान के निर्माण और भारत के अविस्मरणीय विभाजन को मूर्त रूप दिया गया था।
निष्कर्ष:
हालाँकि ब्रिटिशों ने भारत के विभाजन में योगदान दिया था लेकिन समकालीन सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन, धार्मिक राजनीतिक दलों के गठन और उस समय की अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति जैसे अन्य कारकों ने भारत के विभाजन में समान रूप से योगदान दिया था।