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Sambhav-2023

  • 10 Jan 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 54

    प्रश्न.1 भारत की आजादी हेतु शुरु हुए स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसा और सत्य जैसे मूल्य गांधीवादी शैली के आंदोलन के प्रेरक तत्त्व थे। क्या आप सहमत हैं? स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 ‘असहयोग आंदोलन को वापस लेने के कारण कई मोर्चों पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का उदय हुआ था’। उदाहरणों सहित कथन का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    दृष्टिकोण:

    • आंदोलन के नेतृत्व की गांधीवादी शैली का परिचय दीजिये।
    • उचित संघर्ष और विराम की रणनीति पर आधारित गांधीवादी स्वतंत्रता आंदोलन की चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ब्रिटिश शासन के खिलाफ हुए स्वतंत्रता आंदोलन की गांधीवादी शैली, भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण पहलू थी। यह सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के साथ अहिंसक सविनय अवज्ञा पर आधारित थी। गांधी का मानना था कि भारत, हिंसा के बजाय शांतिपूर्ण तरीकों से स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है।

    मुख्य भाग:

    • स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे कई अहिंसक आंदोलन किये थे। इस सक्रिय अभियान के दौरान उन्होंने ऐसी अनेक रणनीतियाँ अपनाई जिन्होंने सरकार को बातचीत करने और प्रतिक्रिया देने के लिये समय प्रदान करने के साथ जनता को आगे के संघर्ष के लिये अपनी ताकत बनाए रखने के लिये प्रेरित किया था।
    • इसे कई उतार-चढ़ाव वाली लंबी और कठिन प्रक्रिया के रूप में संदर्भित किया जा सकता है।

    गांधीवादी आंदोलन का उच्च या सक्रिय चरण:

    • चंपारण सत्याग्रह (1917)-प्रथम सविनय अवज्ञा: इसमें गांधी जी अधिकारियों को तिनकठिया व्यवस्था को समाप्त करने और किसानों से वसूल किये जाने वाले अवैध बकाये की छूट सुनिश्चित कराने में सफल हुए थे।
    • अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918)- पहली भूख हड़ताल: इसमें प्लेग बोनस को बंद करने के मुद्दे पर अहमदाबाद के सूती मिल मालिकों और श्रमिकों के बीच विवाद हुआ था।
      • अंत में मिल मालिक इस मुद्दे को एक न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये सहमत हुए और इससे श्रमिकों को 35 प्रतिशत वेतन वृद्धि मिली थी।
    • खेड़ा सत्याग्रह (1918)-पहला असहयोग आंदोलन: इसमें गुजरात के खेड़ा ज़िले के किसानों ने फसलों के खराब होने के कारण कर माफी की मांग की थी।
      • अंततः सरकार किसानों के साथ एक समझौते के माध्यम से उस वर्ष के लिये कर को निलंबित करने के साथ अगले वर्ष के लिये कर की दर में कमी और जब्त की गई सारी संपत्ति वापस करने हेतु सहमत हुई थी।
    • असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन: इसे स्वराज प्राप्त करने के लिये शुरू किया गया था।
      • चौरी-चौरा की हिंसक घटना के कारण इस आंदोलन को वापस ले लिया गया था। भारत के लोगों को सामाजिक-संगठनात्मक और राजनीतिक शिक्षा देने के अलावा यह आंदोलन अंग्रेजों से कोई राजनीतिक लाभ प्राप्त करने में विफल रहा था।
    • सविनय अवज्ञा आंदोलन- नमक सत्याग्रह: 2 मार्च, 1930 को गांधी ने वायसराय को अपनी कार्ययोजना की जानकारी दी थी। इसके अंतर्गत गांधी को साबरमती आश्रम से अपने अनुयायियों के साथ, अहमदाबाद में अपने मुख्यालय से मार्च करना था और दांडी के तट पर पहुँकर समुद्र तट से नमक एकत्र करके नमक कानून का उल्लंघन करना था।
      • सविनय अवज्ञा आंदोलन 12 मार्च को शुरू हुआ था और गांधी ने 6 अप्रैल को दांडी में नमक कानून तोड़ा था। कानून के इस उल्लंघन को ब्रिटिश-निर्मित भेदभाव वाले कानूनों का पालन न करने के भारतीय लोगों के संकल्प के प्रतीक के रूप में देखा गया था।
    • भारत छोड़ो आंदोलन: क्रिप्स प्रस्ताव के बाद गांधी ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ, अहिंसक असहयोग आंदोलन के लिये एक प्रस्ताव तैयार किया था।
      • जुलाई 1942 में कॉन्ग्रेस कार्यकारी समिति की वर्धा में हुई बैठक में संकल्प लिया गया था कि गांधी को अहिंसक जन आंदोलन का नेतृत्व दिया जाएगा। 8 अगस्त, 1942 को बॉम्बे के ग्वालिया टैंक में कॉन्ग्रेस की बैठक में भारत छोड़ो प्रस्ताव की पुष्टि की गई थी।

    संघर्ष का निष्क्रिय चरण: गांधी ने आंदोलन के प्रत्येक सक्रिय चरण के बाद निष्क्रिय चरण पर बल दिया था। इसे रचनात्मक चरण कहा गया। इस दौरान समाज के विभिन्न स्तरों के बीच विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों का प्रदर्शन किया गया था।

    • असहयोग आंदोलन के बाद:
      • स्वराजवादियों (जो परिषदों में प्रवेश की वकालत कर रहे थे) ने जनता को उत्साहित करने और उनका मनोबल बनाए रखने के लिये परिषदों का राजनीतिक संघर्ष के क्षेत्र के रूप में उपयोग किया था।
      • नो-चेंजर्स' (इन्होंने तर्क दिया था कि परिषदों में प्रवेश से रचनात्मक कार्यों की उपेक्षा होगी) ने सविनय अवज्ञा के अगले चरण के लिये सभी को तैयार करने का कार्य किया था। नो-चेंजर्स द्वारा किये गए रचनात्मक कार्य:
        • आश्रमों में युवक और युवतियों ने आदिवासियों और निम्न जातियों के बीच कार्य कर चरखा और खादी के उपयोग को लोकप्रिय बनाया था।
        • राष्ट्रीय स्कूल और कॉलेज स्थापित किये गए जहाँ छात्रों को एक गैर-औपनिवेशिक वैचारिक ढाँचे में प्रशिक्षित किया गया।
        • हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देने के साथ अस्पृश्यता दूर करने, विदेशी वस्त्र और शराब के बहिष्कार तथा बाढ़ राहत के लिये महत्त्वपूर्ण कार्य किये गए थे।
    • सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद:
      • सरकार की प्रतिक्रिया- सुलह के प्रयास: 5 मार्च, 1931 को दिल्ली में वायसराय और गांधी के बीच गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे जिसे गांधी-इरविन समझौता कहा जाता है।
      • लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने गांधी को अपने एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में नामित किया था।
      • सरकार की बाँटो और राज करो की नीति के विभाजनकारी उद्देश्य को खत्म करने के लिये गांधी ने हरिजन अभियान चलाया था। गांधी ने अगस्त 1933 में अस्पृश्यता के खिलाफ अभियान शुरू किया था और अखिल भारतीय अस्पृश्यता विरोधी लीग की स्थापना की थी।
      • मई 1934 में अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमेटी ने कॉन्ग्रेस के तत्वावधान में चुनाव लड़ने का फैसला किया था। बॉम्बे, मद्रास, मध्य प्रांत, उड़ीसा, संयुक्त प्रांत और बिहार में कॉन्ग्रेस बहुमत में रही थी।
    • भारत छोड़ो आंदोलन के बाद:
      • व्यक्तिगत सत्याग्रह: गांधी ने ऐसे कदम उठाए जिनसे व्यापक रणनीतिक परिप्रेक्ष्य के साथ जन संघर्ष का मार्ग प्रशस्त हुआ था। उन्होंने प्रत्येक क्षेत्र में कुछ चुनिंदा व्यक्तियों द्वारा व्यक्तिगत आधार पर सीमित सत्याग्रह शुरू करने पर बल दिया था। जिसका उद्देश्य-
      • यह प्रदर्शित करना था कि राष्ट्रवादियों के धैर्य का कारण कमजोरी नहीं है।
      • लोगों की भावना को व्यक्त करना था, कि उन्हें युद्ध में कोई रूचि नहीं है।
      • सरकार को कॉन्ग्रेस की मांगों को शांतिपूर्ण ढंग से स्वीकार करने का एक और अवसर देना था।

    निष्कर्ष:

    कुल मिलाकर स्वतंत्रता आंदोलन की गांधीवादी शैली ने स्वतंत्रता हेतु भारत के संघर्ष में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अहिंसक प्रतिरोध और नैतिक परिवर्तन पर आधारित होने के कारण इसने लाखों लोगों को प्रेरित किया और भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का मार्ग प्रशस्त किया था।


    उत्तर 2:

    दृष्टिकोण:

    • असहयोग आंदोलन (NCM) का परिचय दीजिये।
    • चर्चा कीजिये कि कैसे असहयोग आंदोलन की वापसी के कारण कई मोर्चों पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम का उदय हुआ था।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • खिलाफत का मुद्दा, प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों द्वारा तुर्की के साथ किये गए व्यवहार से प्रकाश में आया था। जब युद्ध समाप्त हुआ तो ब्रिटिशों ने तुर्की के प्रति सख्त रुख अपनाते हुए तुर्की को विभाजित कर खलीफा को सत्ता से हटा दिया था। इससे विश्व स्तर पर मुस्लिम समुदाय नाखुश था।
    • सितंबर 1920 में कलकत्ता में हुए एक विशेष अधिवेशन में, कॉन्ग्रेसने असहयोग आंदोलन को मंजूरी दी थी।

    मुख्य भाग:

    • असहयोग आंदोलन (NCM) वर्ष 1920 में भारत में शुरू किया गया एक सविनय अवज्ञा आंदोलन था। इस आंदोलन में भारतीयों को ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करने, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने और किसी भी तरह से ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करने से मना करने का आह्वान किया गया था।
    • संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले में 5 फरवरी, 1922 को चौरी चौरा की हिंसा के कारण गांधी ने इस आंदोलन को वापस ले लिया था।
    • इसमें आक्रोशित भीड़ ने थाने में आग लगा दी थी जिसमें 22 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी।

    इस दौरान भारत के स्वतंत्रता संग्राम का कई मोर्चों पर उदय था:

    परिषदों में स्वराजवादियों ने बजटीय अनुदानों से संबंधित मामलों पर भी सरकार को जबावदेह ठहराने के साथ स्थगन प्रस्ताव पारित किये थे।

    • उन्होंने भाषणों के माध्यम से स्वशासन, नागरिक स्वतंत्रता और औद्योगीकरण पर बल दिया था।
    • वर्ष 1925 में विट्ठलभाई पटेल केंद्रीय विधानसभा के अध्यक्ष चुने गए।
    • वर्ष 1928 में सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक को पारित होने से रोका गया था, जिसका उद्देश्य अवांछनीय और अराजक विदेशियों को निर्वासित करने के लिये सरकार को सशक्त बनाना था
    • अपनी गतिविधियों से उन्होंने ऐसे समय में राजनीतिक शून्यता को भर दिया जब राष्ट्रीय आंदोलन मजबूती से उभर रहा था। (vi) उन्होंने मोंटफोर्ड योजना की कमियों को उजागर किया था।

    नो-चेंजर्स द्वारा रचनात्मक कार्य किये गए थे जैसे:

    • आश्रमों में युवक और युवतियों ने आदिवासियों और निम्न जातियों के बीच कार्य कर चरखा और खादी के उपयोग को लोकप्रिय बनाया था।
    • राष्ट्रीय स्कूल और कॉलेज स्थापित किये गए जहाँ छात्रों को एक गैर-औपनिवेशिक वैचारिक ढाँचे में प्रशिक्षित किया गया।
    • हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देने के साथ अस्पृश्यता दूर करने, विदेशी वस्त्र और शराब के बहिष्कार तथा बाढ़ राहत के लिये महत्त्वपूर्ण कार्य किये गए थे।

    नई शक्तियों का उदय: समाजवादी विचार, युवा शक्ति, व्यापारिक संघवाद

    • मार्क्सवादी और समाजवादी विचारों का प्रसार: सोवियत क्रांति से प्रेरणा लेने के साथ गांधीवादी विचारों और राजनीतिक कार्यक्रम से असंतुष्ट होने के कारण नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे वामपंथी विचारों का उदय भी इन विचारों के परिणामस्वरूप हुआ था।
    • वर्ष 1920 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का ताशकंद (अब उज्बेकिस्तान की राजधानी) में एम.एन. रॉय, अबनी मुखर्जी और अन्य द्वारा गठन किया गया था।
    • वर्ष 1925 में कानपुर के भारतीय कम्युनिस्ट सम्मेलन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को औपचारिक रूप दिया गया था।
    • भारतीय युवकों की सक्रियताः छात्र संघों की स्थापना के साथ छात्र सम्मेलनों का आयोजन किया गया था। वर्ष 1928 में जवाहरलाल नेहरू ने अखिल बंगाल छात्र सम्मेलन की अध्यक्षता की थी।
    • कृषक आंदोलन: संयुक्त प्रांत में काश्तकारी कानूनों में संशोधन, कम राजस्व दर, जमीन से बेदखली के खिलाफ सुरक्षा और ऋणग्रस्तता से राहत के लिये किसान आंदोलन हुए थे। गुजरात में बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व वल्लभभाई पटेल (1928) ने किया था।
    • ट्रेड यूनियनवाद का विकास: ट्रेड यूनियन आंदोलन का नेतृत्व वर्ष 1920 में स्थापित ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेसद्वारा किया गया था। लाला लाजपत राय इसके पहले अध्यक्ष थे और दीवान चमन लाल इसके महासचिव थे। 1920 के दशक के दौरान प्रमुख हड़तालों में खड़गपुर रेलवे वर्कशॉप, टाटा आयरन एंड स्टील वर्क्स (जमशेदपुर), बॉम्बे टेक्सटाइल मिल्स और बकिंघम कर्नाटक मिल्स में होने वाली हड़तालें शामिल हैं।
    • जाति आंदोलन: ये आंदोलन विभाजनकारी, रूढ़िवादी और कभी-कभी कट्टरपंथी भी होते थे। इसमें शामिल हैं:
      • ई. वी. रामास्वामी नायकर द्वारा वर्ष 1925 में शुरु किया गया, आत्म-सम्मान आंदोलन।
      • सतारा (महाराष्ट्र) में सत्यशोधक कार्यकर्ता, अंबेडकर (महाराष्ट्र) के तहत महार, केरल में के. अयप्पन और सी. केसवन के तहत कट्टरपंथी एझावा।
      • Satyashodhak activists in Satara (Maharashtra), Mahars under Ambedkar (Maharashtra), Radical Ezhavas under K. Aiyappan and C. Kesavan in Kerala.
    • समाजवाद की ओर झुकाव वाली क्रांतिकारी गतिविधियाँ: इन्हें राजनीतिक संघर्ष की राष्ट्रवादी रणनीति से असंतुष्ट लोगों द्वारा शुरु किया गया था।
      • हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (H.R.A.) - पंजाब-यूपी-बिहार में
      • बंगाल में युगान्तर, अनुशीलन समूह और सूर्य सेन के नेतृत्व वाला चटगाँव विद्रोह समूह

    निष्कर्ष:

    असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घटना भारत में स्वतंत्रता के लिये संघर्ष के अंत को चिह्नित नहीं करती है। इसके बजाय इसने विभिन्न राजनीतिक दलों, संगठनों और आंदोलनों के उदय का मार्ग प्रशस्त किया जिन्होंने अलग-अलग तरीकों से आजादी की प्राप्ति में योगदान दिया था। सविनय अवज्ञा और अहिंसक प्रतिरोध के उपयोग के माध्यम से भारत अंततः वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता हासिल हुई थी।

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