प्रश्न.1 स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन की रणनीतियों पर चर्चा करते हुए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसके महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 प्रथम विश्व युद्ध ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को किस हद तक प्रभावित किया था। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन की प्रकृति का परिचय दीजिये।
- स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन की रणनीतियों पर चर्चा कीजिये और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में इसके महत्त्व का विश्लेषण कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण भाग था। इस आंदोलन (मुख्य रूप से बंगाल का विभाजन) के स्वदेशी पहलू के तहत ब्रिटिश सरकार पर आर्थिक दबाव डालने और उस समय ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने के साधन के रूप में भारतीय निर्मित वस्तुओं के प्रचार और ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया गया था।
- ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1905 में किये गए बंगाल विभाजन के बाद यह आंदोलन शुरू किया गया था। इस विभाजन को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन को विभाजित करने और कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा गया था जिससे भारतीयों के बीच व्यापक आक्रोश हुआ था।
मुख्य भाग:
स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन की रणनीतियाँ और कार्यनीतियाँ इस प्रकार हैं:
राष्ट्रवादियों ने सैद्धांतिक, प्रचार और कार्यक्रम स्तर पर कई नए विचार प्रस्तुत किये थे। इस आंदोलन के तहत विभिन्न रणनीतियाँ शामिल थीं:
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार: इसमें विदेशी कपड़ों का बहिष्कार और सार्वजनिक रूप से जलाना, विदेशी नमक या चीनी का बहिष्कार करना, पुजारियों द्वारा विदेशी वस्तुओं के आदान-प्रदान से जुड़े विवाहों को संपन्न कराने से मना करना और धोबी द्वारा विदेशी कपड़े धोने से इनकार करना आदि रणनीतियों को अपनाया गया था। विरोध के इस रूप को व्यावहारिक और लोकप्रिय स्तर पर बड़ी सफलता मिली थी।
- सार्वजनिक सभाएँ करने के साथ जुलूस को लोकप्रिय अभिव्यक्ति के रूप में अपनाया गया था।
- अश्विनी कुमार दत्त (बारिसल में) की स्वदेश बाँधब समिति जैसे स्वयंसेवक संघ या 'समितियाँ' जन आंदोलन के एक बहुत ही लोकप्रिय और शक्तिशाली साधन के रूप में उदित हुईं।
- जनता तक पहुँचने और राजनीतिक संदेश प्रसारित करने के साधन के रूप में पारंपरिक लोकप्रिय त्योहारों और मेलों का उपयोग किया गया था।
- उदाहरण के लिये तिलक के गणपति और शिवाजी उत्सव, न केवल पश्चिमी भारत में बल्कि बंगाल में भी स्वदेशी प्रचार का माध्यम बने थे।
- इस दौरान आत्मनिर्भरता या 'आत्मशक्ति' पर जोर देने के साथ गरिमा, सम्मान और आत्मविश्वास एवं गाँवों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान पर जोर दिया गया था। व्यावहारिक रूप में इसके अंतर्गत सामाजिक सुधार करने के क्रम में उत्पीड़न, कम उम्र में शादी, दहेज प्रथा, शराब का सेवन आदि के खिलाफ अभियान शामिल थे।
- स्वदेशी आंदोलन में छात्रों की भागीदारी को दबाने के ब्रिटिश सरकार के प्रयासों के खिलाफ राष्ट्रवादियों ने स्वदेशी या राष्ट्रीय शिक्षा कार्यक्रम पर बल दिया था।
- स्वदेशी कपड़ा मिलें, साबुन और माचिस के कारखाने, चर्म शोधन कारखाने, बैंक, बीमा कंपनियाँ आदि स्वदेशी उद्यम स्थापित किये गए थे। ये उद्यम व्यावसायिक कौशल की तुलना में देशभक्ति के उत्साह पर अधिक आधारित थे।
स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन का महत्त्व:
स्वदेशी आंदोलन का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर कई तरह से महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था जैसे-
- इसने देश भर में बड़ी संख्या में भारतीयों को एकजुट करने में मदद की थी क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों के लोग इस आंदोलन का समर्थन करने के लिये एक साथ आए थे।
- इस आंदोलन में राजनीतिक परिवर्तन लाने के साधन के रूप में अहिंसक प्रतिरोध के विचार को प्रेरित किया गया था। गांधी ने बाद के चरण में इन विचारों का उपयोग व्यापक राष्ट्रीय जन आंदोलन को बढ़ावा देने के लिये किया था।
- इस आंदोलन का महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़ा था क्योंकि इसने भारतीय उद्योग और कृषि के विकास को बढ़ावा देने में मदद की थी। भारतीय निर्मित उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित करके इस आंदोलन ने घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने और भारतीयों के लिये रोजगार सृजित करने में मदद की थी जिससे राष्ट्रीय गौरव और आत्मनिर्भरता की भावना को बल मिला था।
- सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रभाव: इस दौरान राष्ट्रवादियों ने रवींद्रनाथ टैगोर, रजनीकांत सेन, द्विजेंद्रलाल रे, मुकुंद दास, सैयद अबू मुहम्मद और अन्य के लिखे गीतों से प्रेरणा ली थी।
- इस दौरान टैगोर द्वारा लिखे गए अमार सोनार बांग्ला ने बाद में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को प्रेरित किया था और इसे इसके राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था।
- इस दौरान अवनींद्र नाथ टैगोर ने भारतीय कला परिदृश्य पर विक्टोरियन वर्चस्व को तोड़ा और अजंता, मुगल एवं राजपूत चित्रों से प्रेरणा ली थी।
निष्कर्ष:
कुल मिलाकर स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलन द्वारा भारतीय लोगों के बीच व्यापक जागृति लाने के साथ उन्हें स्व-शासन की मांग करने के लिये प्रेरित किया गया था। इस आंदोलन में अहिंसक प्रतिरोध अपनाने और भारतीय उद्योग एवं संस्कृति को बल देने के कारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा था।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान होने वाले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि प्रथम विश्व युद्ध ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को किस हद तक प्रभावित किया था।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) यूरोप की औपनिवेशिक शक्तियों के बीच हुआ था। इसने भारत में सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बदलकर स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को प्रभावित किया था।
मुख्य भाग:
- इसमें भारतीय राजनीतिक नेताओं से परामर्श किये बिना भारत को युद्ध में शामिल कर दिया गया था। इसके कारण बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों को यूरोप, अफ्रीका और मध्य पूर्व में तैनात किया गया था जहाँ उन्हें काफी जटिलताओं का सामना करना पड़ा था। इस युद्ध से भारत में मुद्रास्फीति के साथ आर्थिक व्यवधान उत्पन्न हुआ था जिससे लोगों में असंतोष और बढ़ गया था।
- इन घटनाक्रमों के जवाब में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने वर्ष 1920 में असहयोग आंदोलन शुरू किया था जिसमें भारतीयों से ब्रिटिश वस्तुओं और संस्थानों का बहिष्कार करने का आह्वान किया गया था।
- चूंकि ब्रिटिश सेना युद्ध में सक्रिय भागीदार थी, इससे सरकार के रक्षा व्यय में वृद्धि हुई थी। बढ़ते राजकोषीय घाटे की भरपाई के लिये सरकार ने व्यापारी वर्ग सहित सभी वर्गों पर समान रूप से कर बढ़ा दिया था। इस प्रकार व्यय में वृद्धि और बढ़ती मांग के कारण मूल्य वृद्धि हुई जिससे आम लोगों के लिये मुश्किलें पैदा हुईं।
- चूंकि युद्ध से औद्योगिक वस्तुओं की मांग पैदा हुई थी, इसलिये भारत में घटते आयात के कारण व्यापारी वर्ग ने भारी मुनाफा कमाया था। इस प्रकार युद्ध के दौरान भारतीय व्यवसायों का विस्तार हुआ और बाद में उन्होंने सरकार से अपने विकास के लिये अधिक अवसरों की मांग की थी।
- सैनिकों की आवश्यकता के कारण, ग्रामीणों को सशस्त्र बलों में भर्ती होने और विदेशों में सेवा करने के लिये मजबूर होना पड़ा था। इससे सैनिकों को पता चला था कि कैसे औपनिवेशिक शक्तियाँ एशिया और अफ्रीका के लोगों का शोषण कर रही थीं।
- युद्ध के अंत में हुई रूसी क्रांति से कई लोगों को समाजवादी आदर्शों और किसानों एवं श्रमिकों की शक्ति का एहसास हुआ था।
- इस युद्ध ने भारतीय नेताओं को ब्रिटिश सरकार के साथ जुड़ने और स्वशासन की अपनी मांगों पर जोर देने का अवसर प्रदान किया था।
- इस युद्ध के दौरान होमरूल लीग का गठन हुआ था, जो एक राजनीतिक संगठन था जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर भारत के लिये अधिक स्वायत्तता की मांग की थी।
- युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1919 के मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों सहित भारतीय राष्ट्रवादियों को कई रियायतें दी थीं।
- हालाँकि ये सुधार कई भारतीय राष्ट्रवादियों की मांगों से कम थे।
विदेशों में भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव:
- कामागाटामारू एक जहाज का नाम था जो सिंगापुर से वैंकुवर तक आप्रवासियों को ले जा रहा था। ब्रिटिश सरकार के प्रभाव से कनाडा के अधिकारियों द्वारा इन्हें वापस लौटा दिया गया था। अंततः सितंबर 1914 में यह वापस कलकत्ता लौट आया था।
- इस घटना के बाद, यात्रियों और सुरक्षा बलों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 लोगों की मौत हो गई थी।
- इसके साथ ही प्रथम विश्व युद्ध के शुरु होने के बाद गदर संगठन के नेताओं ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ हिंसक हमला शुरू करने का फैसला किया था। इन्होंने 21 फरवरी, 1915 को फिरोजपुर, लाहौर और रावलपिंडी की चौकियों में सशस्त्र विद्रोह करने का निर्णय लिया था।
- 'बर्लिन कमेटी फाॅर इंडियन इंडिपेंडेंस' की स्थापना वर्ष 1915 में वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय ने 'ज़िम्मरमैन योजना' के तहत जर्मन विदेश कार्यालय की मदद से की थी।
- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जुगांतर/युगांतर पार्टी ने विदेशों में सहानुभूति रखने वालों और क्रांतिकारियों के माध्यम से जर्मन हथियारों और गोला-बारूद का आयात करने की व्यवस्था की थी। जिसका उद्देश्य 'जर्मन प्लॉट' या 'ज़िम्मरमैन प्लान' के तहत अखिल भारतीय विद्रोह करना था।
- श्यामजी कृष्णवर्मा ने वर्ष 1905 में लंदन में इंडियन होमरूल सोसाइटी या इंडिया हाउस की स्थापना की थी और इन्होंने द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट पत्रिका भी प्रकाशित की थी।
निष्कर्ष:
कुल मिलाकर प्रथम विश्व युद्ध का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था और इसने स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा देने में भूमिका निभाई थी। इसने राजनेताओं को ब्रिटिश सरकार के साथ जुड़ने और स्वशासन के लिये अपनी मांगों को प्रबल करने का अवसर प्रदान किया था। स्वतंत्रता आंदोलन के तहत नियोजित रणनीतियों पर इस युद्ध का स्थायी प्रभाव पड़ा था क्योंकि गांधी जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के साधन के रूप में अहिंसक प्रतिरोध पर बल दिया था।