दिवस- 46
प्रश्न.1 मुगलों की प्रशासनिक नीतियाँ ही इसके पतन का कारण थीं। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 उत्तरी भारत में गुप्त काल के बाद, मुगल काल को द्वितीय शास्त्रीय युग की संज्ञा दी जाती है। मुगल काल में देश में होने वाले सांस्कृतिक विकास की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
31 Dec 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- मुगल साम्राज्य के पतन का संक्षेप में परिचय दीजिये।
- स्पष्ट कीजिये कि किस प्रकार मुगलों की प्रशासनिक नीतियाँ स्वयं उसके पतन का कारण बनीं थीं।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का तेजी से पतन हुआ था। इस समय मुगल दरबार गुटबाजी का केंद्र बनने के साथ प्रांतीय गवर्नर स्वतंत्र तरीके से व्यवहार करने लगे थे। मराठा साम्राज्य का प्रभाव दक्कन से लेकर इस साम्राज्य के हृदयस्थल (गंगा के मैदानी इलाकों) तक विस्तृत था। वर्ष 1739 में जब नादिरशाह ने मुग़ल बादशाह को बंदी बनाकर दिल्ली को लूटा था तब इस साम्राज्य की कमज़ोरी विश्व के समक्ष प्रदर्शित हुई थी।
मुख्य भाग:
- औरंगजेब द्वारा अपनाई गई गलत नीतियों के कारण इसकी मृत्यु के बाद के घटनाक्रमों से मुगल साम्राज्य के पतन का मार्ग प्रशस्त हुआ था। इस दौरान देश की आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक स्थिति के साथ अंतर्राष्ट्रीय प्रवृत्तियों से इसके पतन को प्रोत्साहन मिला था।
प्रशासनिक कारण:
- जमींदारों के प्रति मुगल शासकों की नीति विरोधाभासी थी।
- एक ओर जमींदारों को साम्राज्य की आंतरिक स्थिरता के लिये मुख्य खतरा माना जाता था वहीँ दूसरी ओर उन्हें स्थानीय प्रशासन में शामिल करने के प्रयास किये गए थे।
- इस प्रक्रिया में एक वर्ग के रूप में जमींदार काफी अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली हो गए थे।
- जागीरों से अधिक राजस्व प्राप्त करने के कारण न केवल किसान वर्ग में असंतोष हुआ बल्कि जमींदारों के नेतृत्व में साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत हुई। यह जागीरदारी प्रणाली का संकट था।
- इसके परिणामस्वरूप कई जागीरदार अपने सैनिकों के निर्धारित कोटे को बनाए रखने में असमर्थ थे।
- दक्कन की स्थिति: कई मनसबदारों ने ‘चौथ’ का भुगतान कर मराठा सरदारों के साथ निजी समझौते कर लिये थे।
- जागीरों की कमी, एक अन्य समस्या थी। सबसे बेहतर और सबसे आसानी से प्रबंधित होने वाली जागीरों को औरंगज़ेब द्वारा खालसा में शामिल किया गया था जिससे जागीरदारों को वितरित करने के लिये कम उत्पादक भूमि बची थी।
- नई भर्ती पर रोक, सेवारत लोगों के परिजनों में निराशा के साथ जागीर का अनुदान "एक अनार सौ बीमार" जैसा हो गया था।
- मुगलों के अधीन शासकों में एकता की भावना का अभाव होने के साथ "मुगलों के प्रति वफादारी" भी कम हो रही थी।
- मुगल प्रशासनिक व्यवस्था अत्यधिक केंद्रीकृत थी और इसे चलाने के लिये एक सक्षम सम्राट की आवश्यकता थी। इस प्रकार कमजोर शासकों से इसे नुकसान हुआ था।
- जिस समय औरंगज़ेब ने सत्ता संभाली थी उस समय मुगलों द्वारा तोपों से लैस पैदल सेना और बंदूक वाली सेना की उपेक्षा करने के कारण इनकी सेना अप्रभावी साबित हुई थी।
आर्थिक कारण:
- इस दौरान व्यापार और वाणिज्य के साथ कृषि उत्पादन का अपेक्षित विकास नहीं हुआ था।
- क्योंकि इस समय भू-राजस्व अधिक (उत्पादन का आधा) होने के साथ कृषि के आधुनिक तरीके उपलब्ध नहीं थे।
- इस दौरान शासक वर्गों की मांगों और अपेक्षाओं का तेजी से विस्तार हुआ। इस प्रकार मनसबदारों की संख्या जहाँगीर के राज्यारोहण के समय के 2069 से बढ़कर औरंगज़ेब के शासनकाल के उत्तरार्ध तक आते-आते 11,456 हो गई।
- संभ्रांत अधिकारियों की संख्या में पाँच गुना वृद्धि हुई जबकि साम्राज्य के राजस्व संसाधनों में धीरे-धीरे ही वृद्धि हुई थी।
- विश्व में पहले से ही सबसे अधिक वेतन पाने वाले इन संभ्रांत अधिकारियों का ऐश्वर्य इस अवधि के दौरान और भी बढ़ गया था।
- कई अधिकारियों ने सीधे या व्यापारियों के माध्यम से व्यापार और वाणिज्य में भाग लिया था और उन्होंने किसानों और जमींदारों से प्राप्त आय को बढ़ाने की पूरी कोशिश की।
राजनीतिक कारण:
- औरंगजेब ने कई गंभीर गलतियाँ की थीं।
- इसने न केवल मराठा आंदोलन की वास्तविक प्रकृति को समझने में निष्क्रियता दिखाई बल्कि शिवाजी से दोस्ती करने की जयसिंह की सलाह की भी अवहेलना की थी। संभाजी को मृत्युदंड देना इसकी एक और गलती थी।
- औरंगज़ेब मराठाओं के साथ भरोसेमंद संबंध स्थापित करने में विफल रहा था। राजपूतों के विपरीत इन्हें कभी भी भरोसे और जिम्मेदारी वाले पद नहीं दिये गए थे।
- मराठों के खिलाफ दक्कन के शासकों को एकजुट करने में औरंगज़ेब की विफलता की भी आलोचना की जाती है।
- मुगल साम्राज्य पर दक्कन के शासकों और अन्य युद्धों के प्रभाव एवं उत्तरी भारत में लंबे समय तक औरंगजेब की अनुपस्थिति से इसके साम्राज्य को आर्थिक और राजनीतिक नुकसान हुआ था।
- राजपूत: मेवाड़ से संघर्ष और लंबे समय तक चले युद्ध से मुगल साम्राज्य की नैतिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा था। आगे चलकर इस साम्राज्य के विघटन में राजपूतों की सक्रिय भूमिका थी।
- औरंगजेब की धार्मिक नीति को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
- गैर-मुस्लिमों के प्रति इसकी संवेदनहीनता, मंदिरों को तोड़ने की नीति और जज़िया को फिर से शुरु करने के कारण इसे काफी नुकसान उठाना पड़ा था।
निष्कर्ष:
- इस साम्राज्य के पतन हेतु आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और संस्थागत कारक जिम्मेदार थे। मुगल शासक वर्ग द्वारा आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उपेक्षा करना भी इनके पतन का एक महत्त्वपूर्ण कारक था।
- अकबर के नीतियों से इस साम्राज्य को स्थायित्व प्राप्त हुआ था लेकिन आगे चलकर अयोग्य उत्तराधिकारियों के कारण इसके पतन का मार्ग प्रशस्त हुआ था।
- जब औरंगज़ेब ने सत्ता संभाली तो विघटन हेतु सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का आधार बन चुका था। सामाजिक-राजनीतिक संरचना में मूलभूत परिवर्तन करने हेतु इसके पास आवश्यक दूरदर्शिता और कौशल का अभाव था।
- इन परिस्थितियों में मुगलों का पतन होने के साथ अन्य सामंती शक्तियों का उदय हुआ जिससे अंततः भारत, यूरोपीय शक्तियों का उपनिवेश बन गया।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- मुगलों की सांस्कृतिक गतिविधियों का संक्षेप में परिचय दीजिए।
- मुगल काल में देश में होने वाले सांस्कृतिक विकास की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
मुगल शासन के अधीन भारत में बहुपक्षीय सांस्कृतिक विकास हुआ था। इस अवधि के दौरान विकसित परंपराओं से वास्तुकला, चित्रकला, साहित्य और संगीत के क्षेत्र में प्रगति हुई जिसने आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित किया।
मुख्य भाग:
स्थापत्य:
- मुगल स्थापत्य शैली हिंदू और तुर्क-ईरानी प्रभावों के साथ सजावटी डिजाइनों के संयोजन पर आधारित है। मुगल शैली के प्रभाव विभिन्न प्रांतीय और स्थानीय महलों और किलों में दिखाई देते हैं।
- मुगलों ने शानदार किले, महल, सार्वजनिक भवन और मस्जिद आदि का निर्माण कराया। उन्होंने बहते हुये जल की नालियों वाले कई उद्यान भी बनवाए।
- अकबर ने विभिन्न किलों का निर्माण कराया जैसे आगरा का किला (लाल बलुआ पत्थर से निर्मित)।
- मुगलों ने किले-निर्माण की भारतीय परंपरा को अपनाया जैसे कि ग्वालियर, जोधपुर, आदि के तत्त्वों को अपनाना। शाहजहाँ के काल में किले के निर्माण की परंपरा अपनी पराकाष्ठा पर पहुँची जैसे इस समय प्रसिद्ध लाल किले का निर्माण हुआ था।
- फतेहपुर सीकरी में अकबर का महल-सह-किला परिसर ऊँचाई पर बनाया गया है जिसमें एक बड़ी कृत्रिम झील के साथ गुजरात और बंगाल शैली की कई इमारतें निर्मित की गईं हैं।
- इनमें बेहतरीन छज्जे और बरामदे बनाए गए थे। पंच महल में सपाट छतों को सहारा देने के लिये विभिन्न मंदिरों में उपयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के स्तंभों को शामिल किया गया था।
- महल बनाने में गुजरात स्थापत्य शैली का व्यापक रूप से उपयोग किया गया था।
- इनके स्थापत्य में फारसी या मध्य एशियाई प्रभाव को दीवारों की सजावट या छतों के रुप में उपयोग होने वाली चमकदार नीली टाइलों में देखा जा सकता है। गुजरात पर अकबर की विजय के उपलक्ष्य में बुलंद दरवाज़ा का निर्माण कराया गया था।
- साम्राज्य के सुदृढ़ीकरण के साथ ही मुगल वास्तुकला भी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची थी।
- जहाँगीर के शासनकाल के अंतिम चरण में पूरी तरह से संगमरमर की इमारतें बनना शुरु हुईं जिन्हें पत्थरों पर फूलों की डिज़ाइनों से दीवारों को अलंकृत किया गया था। इसे पित्रादुरा नाम दिया गया था।
- शाहजहाँ ने ताजमहल में इसका बड़े पैमाने पर प्रयोग किया था।
- दिल्ली में बने हुमायूँ के मकबरे को ताज का पर्याय माना जा सकता है।
- इस दौरान दोहरे गुंबद (एक बड़ा गुम्बद जिसके अंदर एक छोटा गुम्बद बनाया जाता है) निर्माण शैली को भी अपनाया गया था।
- शाहजहाँ के काल में मस्जिद-निर्माण भी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा (उसने आगरा के किले में मोती मस्जिद, दिल्ली में जामा मस्जिद का निर्माण कराया) था।
- मितव्ययी होने के कारण औरंगज़ेब ने भवन निर्माण में अधिक रूचि नहीं ली थी।
चित्रकला:
- मुगल काल में दरबारी चित्रकला में युद्ध के दृश्यों के साथ नए रंग और नए प्रतिरूप शामिल किये गए थे।
- हुमायूँ के काल में लघु चित्रकला में नए प्रतिमान स्थापित किये गए थे।
- एक शाही प्रतिष्ठान (कारखाना) के रुप में अकबर द्वारा एक अलग चित्रकला कार्यशाला स्थापित की गई थी।
- इस दौरान भारतीय विषय और भारतीय परिदृश्य का प्रचलन होने से इनकी कला शैली फारसी प्रभाव से मुक्त हुई थी। इसके साथ ही चित्रकारी में मोर जैसे नीले रंग के साथ लाल रंग का उपयोग किया जाने लगा था।
- जहांगीर के काल में मुगल चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची थी। उनका दावा है कि वे एक तस्वीर में प्रत्येक कलाकार के काम को अलग कर सकते हैं। जहाँगीर के समय में शिकार, युद्ध और दरबार के दृश्यों के अलावा जानवरों के चित्रों को बनाने में विशेष प्रगति हुई थी।
- अकबर के काल में पुर्तगाली पादरियों द्वारा दरबार में यूरोपीय चित्रकला को आरंभ किया गया था। उससे प्रभावित होकर वह विशेष शैली अपनाई गई जिसमें चित्रों में करीब तथा दूरी का स्पष्ट बोध होता था।
- यह परंपरा शाहजहाँ के काल में भी जारी रही। चित्रकला में औरंगज़ेब की कम रुचि के कारण कलाकार देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाने हेतु विवश हुए थे ।
- इससे राजस्थान और पंजाब में चित्रकला शैली के विकास में सहायता मिली थी।
साहित्य:
- अखिल भारतीय स्तर पर विचारों के प्रसार और सरकारी कामकाज में फारसी एवं संस्कृत भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। भक्ति आंदोलन के विकास के परिणामस्वरूप क्षेत्रीय भाषाओं का भी विकास हुआ था।
- स्थानीय शासकों द्वारा दिये गए संरक्षण के कारण क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहन मिला था।
- अकबर के शासनकाल में फारसी गद्य और पद्य अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा था। अबुल फजल एक महान विद्वान होने के साथ-साथ इस काल के अग्रणी इतिहासकार भी थे।
- इस दौरान क्षेत्रीय भाषाओं को स्थायित्व मिलने के साथ इनमें परिपक्वता आई। इस अवधि के दौरान कुछ बेहतरीन काव्य की रचना हुई थी।
- इस काल में बंगाली, उड़िया, हिंदी, राजस्थानी और गुजराती में काव्य के साथ राधा-कृष्ण की लीला और भागवत पुराण की कहानियों पर रचनाएँ की गईं थीं।
- इस काल में रामायण और महाभारत का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद किया गया था।
- हिंदी में सूफी संत मलिक मुहम्मद जायसी (1540 में) द्वारा रचित पद्मावत में चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का वर्णन किया गया है।
- दक्षिण भारत में साहित्यिक विकास की शुरुआत अलग भाषा के रुप में हुई थी। एकनाथ और तुकाराम के प्रयासों से मराठी अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची थी।
संगीत:
- अकबर ने ग्वालियर के तानसेन को संरक्षण दिया था जिन्हें कई रागों की रचना का श्रेय दिया जाता है।
- जहाँगीर और शाहजहाँ के साथ-साथ कई मुगल शासकों ने इसका अनुसरण किया था।
- औरंगजेब ने अपने दरबार में गायन को तो प्रतिबंधित कर दिया था लेकिन वाद्य यंत्रों को बजाना प्रतिबंधित नहीं किया था। वास्तव में औरंगजेब भी स्वयं निपुण वीणा वादक था।
- हरम में औरंगज़ेब की रानियों के साथ राजकुमारों एवं संभ्रांत लोगों द्वारा सभी रूपों में संगीत का संरक्षण करना जारी रहा था। इसी कारण से औरंगजेब के शासनकाल में शास्त्रीय भारतीय संगीत पर फारसी में सबसे अधिक पुस्तकें लिखी गईं थीं।
निष्कर्ष:
इस सांस्कृतिक विकास के क्रम में भारतीय संस्कृति का तुर्क-ईरानी संस्कृति के साथ विलय हुआ था। भारत के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ विभिन्न धर्मों और जातियों के लोगों ने विभिन्न तरीकों से इस सांस्कृतिक विकास में योगदान दिया था। इस अर्थ में इस अवधि के दौरान विकसित संस्कृति एक समग्र राष्ट्रीय संस्कृति के रुप में विकसित हो रही थी।