दिवस- 40
प्रश्न.1 संगम साहित्य का क्या तात्पर्य है? इस साहित्य में वर्णित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशाओं की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 दक्षिण भारत के इतिहास में 'महापाषाण काल' का क्या अर्थ है? इस काल के दौरान होने वाले राज्य के गठन और सभ्यता के विकास पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
24 Dec 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- संगम साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- संगम साहित्य में जिन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों का चित्रण किया गया है, उनकी चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- संगम से तात्पर्य तमिल कवियों का सम्मलेन या सभा थी जिन्हें संभवतः शाही संरक्षण में आयोजित किया जाता था। आठवीं शताब्दी के मध्य के एक तमिल लेख में बताया गया है कि 9,990 वर्षों तक तीन संगमों का आयोजन किया गया था। इनमें 8,598 कवियों ने भाग लिया था और संरक्षक के रूप में 197 पांड्य राजा इनमें शामिल हुए थे। संगम का आयोजन मदुरै में शाही संरक्षण में किया गया था।
- इन संगम के दौरान संकलित संगम साहित्य (वर्तमान में उपलब्ध) लगभग 300-600 ई. के हैं।
- संगम साहित्य को मोटे तौर पर दो समूहों में विभाजित किया जा सकता है- वर्णनात्मक और उपदेशात्मक। वर्णनात्मक ग्रंथों को मेलकनक्कू या अठारह वृहद कृतियाँ कहा जाता है। इनमें अठारह प्रमुख रचनाएँ शामिल हैं। उपदेशात्मक कार्यों को किलकनक्कू या अठारह लघु कृतियाँ कहा जाता है।
मुख्य भाग:
संगम ग्रंथों से सामाजिक विकास की प्रेरणा:
- वर्णनात्मक ग्रंथ ईसाई युग की प्रारंभिक शताब्दियों से संबंधित हैं और इनमें न केवल राजा और उसके दरबार बल्कि विभिन्न सामाजिक समूहों और व्यवसायों के लिये आचार संहिता का निर्धारण किया गया है।
- संगम ग्रंथों के अलावा इस समय का तोलकप्पियम नामक ग्रंथ व्याकरण और काव्यशास्त्र से संबंधित है। एक अन्य महत्त्वपूर्ण तमिल ग्रंथ (जिसे तिरुक्कुरल कहा जाता है) दर्शन और बौद्धिक सिद्धांतों से संबंधित है।
- शिलप्पादिकारम और मणिमेखलै नामक दो तमिल महाकाव्य भी हैं।
- तमिलों को लेखन की कला निस्संदेह ईसाई युग की शुरुआत से पहले ज्ञात थी। मदुरै क्षेत्र में प्राकृतिक गुफाओं में ब्राह्मी लिपि में 75 से अधिक चित्रांकन मिले हैं। इनसे प्राकृत शब्दों के साथ मिश्रित तमिल के प्रारंभिक साक्ष्य मिलते हैं।
आर्थिक:
- प्रारंभिक महापाषाण जीवन के साक्ष्य संगम ग्रंथों में दिखाई देते हैं। प्रारंभिक महापाषाण काल के लोग प्राथमिक शिकारी और मछुआरे प्रतीत होते हैं हालांकि ये लोग चावल का भी उत्पादन करते थे।
- इस समय कुदाल और दरांती और अन्य लोहे की वस्तुओं जैसे कीलें, कुदालें, तीर, तलवारें और भाले आदि के साक्ष्य प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से युद्ध और शिकार के लिये किया जाता था।
- इन ग्रंथों से हमें व्यापार, व्यापारियों, शिल्पकारों और किसानों और कई शहरों जैसे काँची, कोरकाई, मदुरै, पुहार और उरैयूर के बारे में पता चलता है।
- नगरों और आर्थिक गतिविधियों के संगम संदर्भ, ग्रीक और रोमन लेखों के साथ संगम स्थलों की खुदाई से भी प्रमाणित होते हैं।
राजनीतिक:
- वर्णनात्मक संगम ग्रंथ से राज्य की संरचना का भी पता चलता है जिसके अनुसार सेना में योद्धाओं के समूह शामिल थे और कराधान प्रणाली एवं न्याय व्यवस्था अल्पविकसित अवस्था में थी।
- वर्णनात्मक ग्रंथों को साहसी काव्य कृतियाँ माना जाता है जिसमें नायकों के महिमामंडन के साथ युद्धों और मवेशियों के हमलों का उल्लेख किया गया है।
- इनसे संकेत मिलता है कि आरंभिक तमिल लोग मुख्य रूप से पशुपालक थे।
- संगम ग्रंथों से भी इनकी साम्यता देखी जा सकती है जिनमें युद्ध और मवेशियों के हमलों की बात की गई है। इन ग्रंथों से पता चलता है कि युद्ध द्वारा लूट करना आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत था।
- संभवतः राजा और अन्य लोगों की रक्षा के लिये लड़ते हुए मारे गए नायकों के सम्मान में विरार्कल नामक उनकी प्रतिमा को बनाया जाता था।
निष्कर्ष:
तीसरी शताब्दी ईस्वी के अंत तक आते-आते संगम काल का पतन होना शुरु हो गया था। तीन सौ ईस्वी से छह सौ ईस्वी के बीच तमिल क्षेत्र पर कालभ्रस का कब्ज़ा रहा था। इस अवधि को प्रारंभिक इतिहासकारों द्वारा 'अंधकार युग' की संज्ञा दी गई है।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- दक्षिण भारत के इतिहास में महापाषाण काल का परिचय दीजिये।
- इस काल के दौरान राज्य के गठन और सभ्यता के विकास की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- दूसरी शताब्दी ई.पू. तक इस प्रायद्वीप के ऊपरी भागों में ऐसे लोग रहते थे जिन्हें महापाषाण निर्माता या कब्र निर्माता कहा जाता था। इन कब्रों को महापाषाण इसलिये कहा जाता था क्योंकि ये बड़े-बड़े पत्थरों से घिरी हुई थीं।
- इन कब्रों में दफन किये गए लोगों के कंकाल और मिट्टी के बर्तन (काले और लाल रंग के बर्तन) एवं लोहे की वस्तुएँ (जैसे तीर, भाला, दरांती और त्रिशूल) प्राप्त हुई हैं।
- महापाषाण काल के लोग शिकारी थे क्योंकि यहाँ से प्राप्त खेती के औजारों की संख्या युद्ध और शिकार के औजारों की तुलना में कम थी।
- महापाषाण स्थलों की सघनता पूर्वी आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अधिक मिलती है। महापाषाण संस्कृति की शुरुआत लगभग 1000 ई.पू. से देखी जा सकती है।
- अशोक के शिलालेखों में चोल, पांड्य और केरलपुत्र (चेर) का उल्लेख मिलता है।
मुख्य भाग:
राज्य का गठन और सभ्यता का विकास:
- तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक महापाषाण काल के लोग ऊपरी क्षेत्रों से उपजाऊ नदी घाटियों और दलदली डेल्टा क्षेत्रों में चले गए थे।
- इन लोगों ने धान की खेती करने के साथ गांवों और कस्बों को बसाया और सामाजिक वर्ग विकसित किये।
- उत्तर और गहन दक्षिण के बीच सांस्कृतिक और आर्थिक संपर्क (जिसे तमिझकम के नाम से जाना जाता है) को ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से अत्यंत महत्त्व प्राप्त होने लगा। दक्षिण का दक्षिणापथ मार्ग उत्तरी क्षेत्रों के लोगों के लिये मूल्यवान था क्योंकि इसी के माध्यम से दक्षिण से सोना, मोती और विभिन्न कीमती पत्थरों की आपूर्ति होती थी।
- लौह प्रौद्योगिकी के प्रसार के कारण ये दक्षिणी राज्य और भी विकसित हुए। लौह के उपयोग से जंगल की सफाई होने के साथ खेती को बढ़ावा मिला। यहाँ से महाजनपद और मगध कालीन आहत सिक्कों का प्राप्त होना, उत्तर-दक्षिण के बीच व्यापार के विकास को दर्शाता है।
- रोमन साम्राज्य के साथ फलते-फूलते व्यापार से क्रमशः चोलों, चेरों और पांड्यों को लाभ मिला।
प्रारंभिक राज्य:
- कृष्णा नदी के दक्षिण में भारतीय प्रायद्वीप तीन राज्यों - चोल, पांड्य और चेर या केरल में विभाजित था।
पांड्य :
- मेगस्थनीज के अनुसार पांड्यों का साम्राज्य मोतियों के लिये प्रसिद्ध था और उस पर एक महिला का शासन था। इससे पांड्य समाज में मातृसत्तात्मक प्रभाव के संकेत मिलते हैं।
- पांड्य राज्य भारतीय प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी भाग में विस्तारित था। पाण्ड्यों ने मदुरै से शासन किया था।
- ईसाई युग की प्रारंभिक शताब्दियों में तमिल क्षेत्र में संकलित साहित्य (जिसे संगम साहित्य कहा जाता है) से पांड्य शासकों का उल्लेख मिलता है। पांड्य राजाओं ने रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार द्वारा मुनाफा कमाया और रोमन सम्राट ऑगस्टस के दरबार में दूतामंडल भेजे।
- इस समय ब्राह्मणों का काफी अधिक प्रभाव था और पांड्य शासकों ने ईसाई युग की शुरुआती शताब्दियों में वैदिक यज्ञ भी किये थे।
चोल:
- चोल साम्राज्य (जिसे चोलमंडलम (कोरोमंडल) कहा जाता था) पांड्यों के क्षेत्र के उत्तर-पूर्व में विस्तृत था।
- इनकी राजनीतिक शक्ति का मुख्य केंद्र (उरैयूर) कपास के व्यापार के लिये प्रसिद्ध था।
- चोल साम्राज्य की राजधानी पुहार थी। यह व्यापार और वाणिज्य का प्रमुख केंद्र था।
- चोल साम्राज्य की आय का मुख्य स्रोत सूती कपड़े का व्यापार था। इनके पास कुशल नौसेना भी थी।
चेर:
- चेर साम्राज्य, पांड्यों के साम्राज्य के पश्चिम और उत्तर में स्थित था। इसके अंतर्गत समुद्र और पहाड़ों के बीच की संकीर्ण भूमि शामिल थी और यह केरल एवं तमिलनाडु दोनों क्षेत्रों तक विस्तृत था।
- चेरों का इतिहास चोलों और पांड्यों के साथ लगातार होने वाले युद्ध से संबंधित था।
- चेर कवियों के अनुसार उनका सबसे बड़ा राजा सेनगुट्टुवन था। दूसरी शताब्दी ईस्वी के बाद चेर शक्ति का पतन हुआ था और हमारे पास इसके बाद आठवीं शताब्दी ईस्वी तक के इनके इतिहास के बारे में कुछ जानकारी उपलब्ध नहीं है।
निष्कर्ष:
प्रायद्वीपीय भारत में महापाषाण संस्कृति से शुरू हुई सभ्यता की इस विकास यात्रा को प्रायद्वीपीय शासकों द्वारा प्रोत्साहन प्राप्त हुआ था और यह मध्यकालीन भारत के महान साम्राज्य अर्थात विजयनगर और चोल काल में और भी समृद्ध हुई थी।