प्रश्न.1 भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच संपर्क होने से भारत की राजनीतिक व्यवस्था, समाज एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर पड़े प्रभावों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
प्रश्न.2 सातवाहन शासकों के प्रशासन, कला एवं स्थापत्य और सामाजिक व्यवस्था का वर्णन कीजिये। (150 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच संपर्क के बारे में संक्षेप में परिचय दीजिये।
- भारत की राजनीतिक व्यवस्था, समाज और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर मध्य एशियाई संपर्कों के प्रभाव की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
200 ई.पू. के बाद की अवधि में मौर्यों जैसा बड़ा साम्राज्य तो नहीं देखा गया लेकिन यह काल मध्य एशिया और भारत के बीच घनिष्ठ और व्यापक संपर्कों के लिये उल्लेखनीय रहा है। उत्तर-पश्चिमी भारत पर कई मध्य एशिया के राजवंशों द्वारा शासन किया गया था। उनमें से कुषाण सबसे अधिक प्रसिद्ध हुए।
मुख्य भाग:
भारत की राजनीतिक व्यवस्था, समाज और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर मध्य एशियाई संपर्कों का प्रभाव:
स्थापत्य और मिट्टी के बर्तन:
- शक और कुषाण काल में भवन निर्माण गतिविधियों में काफी प्रगति हुई थी। उत्खनन से निर्माण की सामग्री और फर्श के लिये पक्की ईंटों के उपयोग और फर्श एवं छत दोनों के लिये टाइलों के उपयोग का साक्ष्य मिला है। इस दौरान सादा और पॉलिश किये हुए विशिष्ट मिट्टी के लाल बर्तनों का उपयोग किया जाता था। लाल मिट्टी के बर्तनों की तकनीक मध्य एशिया में व्यापक रूप से प्रचलित थी और इनका प्रचलन संभवतः फरगना जैसे क्षेत्रों में हुआ था जो कुषाण वंश की सांस्कृतिक परिधि में थे।
बेहतर घुड़सवार सेना:
- भारत में बसने के साथ शक और कुषाणों ने यहीं की संस्कृति को अपना लिया था। यह भारत की लिपि, भाषा और धर्म से प्रेरित हुए थे।
- उन्होंने बेहतर घुड़सवार सेना और बड़े पैमाने पर घुड़सवारी का इस्तेमाल शुरू किया था।
- उन्होंने लगाम और काठी के उपयोग को सामान्य बना दिया था जो दूसरी और तीसरी शताब्दी ईस्वी के बौद्ध स्थापत्य में प्रतिबिंबित होता है।
- उन्होंने पगड़ी,पतलून और भारी लंबे कोट की शुरुआत की थी। उन्होंने मध्य एशियाई टोपी, हेलमेट और जूते के उपयोग को शुरु किया था जिनका इस्तेमाल योद्धा करते थे।
व्यापार और कृषि:
- मध्य एशिया और भारत के बीच संपर्कों के परिणामस्वरूप, भारत को मध्य एशिया के अल्ताई पहाड़ों के सोने से लाभ प्राप्त हुआ था क्योंकि कुषाणों ने रेशम मार्ग को नियंत्रित किया और व्यापारियों से शुल्क वसूल किया।
- संभवतः रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार के माध्यम से भी सोना प्राप्त हुआ था।
- कुषाणों ने कृषि को भी बढ़ावा दिया था।
राजव्यवस्था:
- मध्य एशियाई विजेताओं ने यहाँ के कई छोटे स्थानीय शासकों पर अपना शासन लागू किया। कुषाणों ने 'राजाओं के राजा' की उपाधि धारण की। जो कई छोटे शासकों पर उनके वर्चस्व को इंगित करता है।
- शकों और कुषाणों ने राजत्व की दैवीय उत्पत्ति के विचार को मजबूत किया।
- अशोक को देवताओं का प्रिय कहा जाता था लेकिन कुषाण राजाओं को ईश्वर का पुत्र कहा जाता था। हिंदू विधि-निर्माता, मनु द्वारा लोगों से राजा का सम्मान करने पर बल दिया गया भले ही वह एक बच्चा हो, क्योंकि वह शासन करने वाला महान व्यक्ति होता है।
- कुषाणों ने शासन की क्षत्रप प्रणाली भी शुरू की थी। इस समय साम्राज्य को कई क्षत्रपों में विभाजित किया गया था और इसके प्रमुख के रुप में क्षत्रप को नियुक्त किया गया था।
- इस समय वंशानुगत द्वैत शासन अर्थात एक ही राज्य में एक ही समय में शासन करने वाले दो राजाओं जैसी कुछ विचित्र प्रथाएँ शुरू की गईं थी।
- यूनानियों ने सैन्य शासन की प्रथा भी शुरू की थी। उन्होंने अपने गवर्नर नियुक्त किये जिन्हें रणनीतिकार कहा जाता था।
धार्मिक विकास:
- कुछ विदेशी शासकों ने वैष्णववाद को अपनाया था। हेलिओडोरस नामक ग्रीक राजदूत ने दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में मध्य प्रदेश के विदिशा (विदिशा जिले का मुख्यालय) के पास वासुदेव के सम्मान में एक स्तंभ स्थापित किया था।
- कुछ अन्य शासकों ने बौद्ध धर्म अपनाया था। प्रसिद्ध यूनानी शासक मिनाण्डर बौद्ध बन गया था।
- कुषाण शासकों ने शिव और बुद्ध दोनों को महत्त्व दिया और सिक्कों पर इन दोनों देवताओं के चित्र अंकित कराए।
महायान बौद्ध धर्म की उत्पत्ति:
- बौद्धों ने उन विदेशियों का भी स्वागत किया था जो मांसाहारी थे। बौद्ध धर्म के इस नए रूप को महायान कहा जाने लगा। इसके तहत प्रतीकों की पूजा के स्थान पर बुद्ध की प्रतिमा की पूजा होने लगी। महायान के उदय के साथ बौद्ध धर्म के प्राचीन रुप को हीनयान के रूप में जाना जाने लगा।
- कनिष्क ने कश्मीर में बौद्ध परिषद का आयोजन किया था। कनिष्क ने बुद्ध की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिये कई अन्य स्तूप बनवाए।
गांधार और मथुरा कला शैली:
- कुषाण साम्राज्य के साथ विभिन्न प्रशिक्षित राजमिस्त्री और अन्य कारीगर भारत आए। इससे कला की नई शैलियों का विकास हुआ जैसे- मध्य एशियाई, गांधार और मथुरा कला शैली। मध्य एशिया की मूर्तिकला के टुकड़े बौद्ध धर्म के प्रभाव में स्थानीय और भारतीय दोनों तत्वों के संश्लेषण को दर्शाते हैं।
- इससे एक नई तरह की कला शैली का विकास हुआ। जिसके तहत ग्रीको-रोमन शैली में बुद्ध की प्रतिमाएँ बनाई गईं। बुद्ध के बालों को ग्रीको-रोमन शैली के अनुरूप दर्शाया गया था।
साहित्य और शिक्षा:
- विदेशी शासकों ने संस्कृत साहित्य को संरक्षण दिया और उसका संवर्धन किया। संस्कृत काव्य शैली का सबसे पहला साक्ष्य लगभग 150 ई. के काठियावाड़ में रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है।
- अश्वघोष जैसे महान लेखकों को कुषाणों का संरक्षण प्राप्त हुआ था। उन्होंने बुद्ध की जीवनी (बुद्धचरित) की रचना की थी।
- यूनानियों ने पर्दे के उपयोग की शुरुआत करके भारतीय रंगमंच के विकास में योगदान दिया था।
- यह पर्दा यूनानियों की ही देन थी जिसे यवनिका के नाम से जाना जाने लगा।
- धर्मनिरपेक्ष साहित्य का उदाहरण वात्स्यायन के कामसूत्र में मिलता है। तीसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व से संबंधित यह रचना प्रेम प्रसंग से संबंधित सबसे प्रारंभिक रचना है।
विज्ञान और तकनीक:
- मौर्योत्तर काल में भारतीय खगोल विज्ञान और ज्योतिष को यूनानियों के संपर्क से लाभ हुआ।
- ठीक आकार और मुद्रांकन वाले ग्रीक सिक्के, आहत सिक्कों का विकसित रुप थे।
- ग्रीक शब्द ड्रैक्मा को ड्रामा के नाम से जाना जाने लगा।
- बदले में ग्रीक शासकों ने ब्राह्मी लिपि का इस्तेमाल किया और अपने सिक्कों पर कुछ भारतीय रूपांकनों को अंकित कराया।
- प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी भारतीयों को संभवतः मध्य एशियाई लोगों के संपर्क से लाभ हुआ है।
- कनिष्क को पतलून और लंबे बूट पहने दिखाया गया है। भारत में चमड़े के जूते बनाने की प्रथा इसी काल में प्रारम्भ हुई।
निष्कर्ष:
मौर्य काल के दौरान विकसित ज्ञान, कौशल और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाएँ, भारत-मध्य एशियाई संपर्क से और भी समृद्ध हुईं। गुप्त साम्राज्य के दौरान विकास की यह यात्रा जारी रही।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- भारत में सातवाहनों के शासनकाल का संक्षेप में परिचय दीजिये
- सातवाहनों के शासनकाल के प्रशासन, कला एवं स्थापत्य और सामाजिक संरचना की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
- उत्तर भारत में मौर्यों के मूल उत्तराधिकारियों में सबसे महत्त्वपूर्ण शुंग और उसके बाद कण्व थे। दक्कन और मध्य भारत में सातवाहन लगभग 100 वर्षों के अंतराल के बाद मौर्यों के उत्तराधिकारी बने।
- सातवाहन वंश का शासन पहली शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में शुरू हुआ और तीसरी शताब्दी की शुरुआत तक चला।
- शुरुआती सातवाहन शासकों ने उत्तरी महाराष्ट्र में शासन करना शुरु किया और आगे चलकर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश तक इनकी सत्ता का विस्तार हुआ।
- सातवाहनों में सबसे प्रमुख, गौतमीपुत्र शातकर्णी (106-ई. 130 ई.) ने स्वयं को एकमात्र ब्राह्मण कहा। उसने शकों को हराया और कई क्षत्रिय शासकों को नष्ट कर दिया।
मुख्य भाग:
सामाजिक संरचना:
- सातवाहन संभवतः मूल रूप से दक्कन के जनजाति, ब्राह्मणवादी समुदाय थे।
- शकों और सातवाहनों के बीच अंतर्विवाह द्वारा ब्राह्मणवादी समाज में क्षत्रियों के रूप में शकों का उत्थान हुआ।
- सातवाहन, ब्राह्मणों को भूमि अनुदान देने वाले पहले शासक थे।
- सातवाहन वंश से मातृसत्तात्मक सामाजिक संरचना के साक्ष्य मिलते हैं। इस वंश के शासकों के नाम उनकी मां के नाम पर रखने की प्रथा थी।
- लेकिन मूल रूप से सातवाहन, पितृसत्तात्मक थे क्योंकि सिंहासन का उत्तराधिकार पुरुष सदस्य को ही मिलता था।
प्रशासनिक संरचना:
- सातवाहन शासकों ने धर्मशास्त्रों में निर्धारित शाही आदर्श लागू करने का प्रयास किया। राजा को धर्म के रक्षक के रूप में दर्शाया गया था।
- अशोक कालीन प्रशासनिक इकाइयों के कुछ तत्त्वों को सातवाहनों ने अपनाया था। उनके जिले को अहार (अशोक के समय की तरह) कहा जाता था और उनके अधिकारियों को अमात्य और महामात्र (मौर्य काल की तरह) के रूप में जाना जाता था।
- सातवाहन प्रशासन में कुछ सैन्य और सामंती लक्षण मौजूद थे। सेनापति को दक्कन के आदिवासियों को मजबूत सैन्य नियंत्रण में रखने के लिये प्रांतीय गवर्नर नियुक्त किया जाता था।
- ग्रामीण क्षेत्रों के प्रशासक को गौल्मिक कहा जाता था, जो नौ घुड़सवार वाली एक सैन्य रेजिमेंट का प्रमुख होता था।
- इसलिये सेना के प्रमुख को शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिये ग्रामीण इलाकों में तैनात किया जाता था।
- उनके शिलालेखों में कटक और स्कंधावर शब्द सैन्य शिविरों और बस्तियों को दर्शाते हैं जो प्रशासनिक केंद्र के रूप में सेवा करते थे ।
- सातवाहनों ने ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं को कर-मुक्त गाँव देने की प्रथा शुरू की थी। ब्राह्मणों ने वर्ण व्यवस्था के नियमों को लागू करने पर बल दिया, जिससे समाज को स्थिरता मिली।
- सातवाहन साम्राज्य में तीन प्रकार के सामंत थे।
- उच्चतम श्रेणी के रुप में राजा होता था।
- दूसरी श्रेणी के रुप में महाभोज और तीसरी श्रेणी के रुप में सेनापति शामिल थे।
स्थापत्य:
सातवाहन काल में चैत्य कहे जाने वाले कई मंदिरों और विहार कहे जाने वाले मठों को उत्तर-पश्चिमी दक्कन या महाराष्ट्र में चट्टान से काटकर बनाया गया था।
- उन्होंने आंध्र प्रदेश में अमरावती स्तूप सहित कृष्णा नदी घाटी में शानदार स्तूपों का निर्माण कराया था।
- पश्चिमी दक्कन का कार्ले चैत्य सबसे प्रसिद्ध है।
- नासिक के तीन विहारों में नहपान और गौतमीपुत्र के शिलालेख शामिल हैं।
- इस काल के सबसे महत्त्वपूर्ण स्तूप अमरावती और नागार्जुनकोंडा हैं। अमरावती स्तूप में विभिन्न मूर्तियों के माध्यम से बुद्ध के जीवन के विभिन्न दृश्यों को दर्शाया गया है। नागार्जुनकोंडा स्तूप में बौद्ध स्मारक के साथ प्राचीनतम ईंट मंदिर भी हैं।
निष्कर्ष:
सातवाहन काल में भारत में सबसे पहली बार शासकों के अंकन वाले सिक्के जारी किये गए थे। उन्होंने सिंधु-गंगा के मैदान और दक्षिण भारत के बीच व्यापार को प्रोत्साहन देने के साथ विचारों और संस्कृति के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाने के लिये एक सांस्कृतिक आधार के रूप में कार्य किया था। इस क्रम में चित्रकला के क्षेत्र में भी काफी प्रगति हुई थी। इस समय की वास्तुकला भी बहुत उन्नत थी। इस समय काल के दौरान बौद्धों द्वारा कई चैत्य और गुफा स्थापत्य का निर्माण कराया था।