दिवस- 35
प्रश्न.1 सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) भारत की प्रथम सभ्यता थी। उन कारकों पर चर्चा कीजिये जो हड़प्पा सभ्यता को भारत का शहरीकृत समाज बनाते हैं। (250 शब्द)
प्रश्न.2 प्राचीन भारत में वैदिक काल की सामाजिक-राजनीतिक संरचना की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
19 Dec 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर: 1
दृष्टिकोण:
- संक्षेप में सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) का परिचय दीजिये।
- उन कारकों पर चर्चा कीजिये जो IVC को भारत का शहरीकृत समाज बनाते हैं।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
- सिंधु घाटी सभ्यता (IVC), दक्षिण एशिया और भारत की पहली बड़ी सभ्यता थी, जो वर्तमान भारत और पाकिस्तान (लगभग 12 लाख वर्ग किमी) के विशाल क्षेत्र में विस्तृत थी।
- परिपक्व सिंधु घाटी सभ्यता की समय अवधि ईसा पूर्व 2700 से 1900 ईसा पूर्व (अर्थात 800 वर्षों तक) के बीच अनुमानित है। लेकिन प्रारंभिक सिंधु घाटी सभ्यता 2700 ईसा पूर्व से पहले भी अस्तित्व में थी।
- IVC का भौगोलिक विस्तार पश्चिम में मकरान तट (बलूचिस्तान), दक्षिण में नर्मदा नदी और उत्तर में उत्तर प्रदेश के मेरठ से होते हुए जम्मू तक विस्तृत था।
IVC को भारत का शहरीकृत समाज बनाने वाले कारक:
- अच्छी तरह से स्थापित, संगठित और किलेबंद कस्बों और शहरों ने जंगली जानवरों के हमले, बाढ़ और अन्य प्रतिकूल घटनाओं से लोगों की रक्षा की।
- IVC के समानांतर किसी मजबूत और प्रतिद्वंद्वी सभ्यता का अभाव होने से IVC के लोगों के साथ किसी के संघर्ष की संभावना भी कम थी।
- हड़प्पा सभ्यता के गाँव ज्यादातर बाढ़ के मैदानों के पास स्थित थे,जिससे खाद्यान्न की प्रचुरता रहती थी जैसे:
- इस समय गेहूँ, जौ, राई, मटर, तिल, मसूर, चना और सरसों का उत्पादन होता था। गुजरात से बाजरा के भी साक्ष्य मिलते हैं। जबकि इस समय चावल का उपयोग अपेक्षाकृत कम होता था।
- कपास का उत्पादन करने वाले सबसे पहले सिंधु लोग ही थे।
- अनाज की खोज से यहाँ पर कृषि की व्यापकता का संकेत मिलता है।
- यहाँ के लोगों का उदार दृष्टिकोण होने के साथ धर्म एक निजी मामला था। हड़प्पा के किसी भी स्थल पर कोई मंदिर नहीं मिला है।
- इस समय भौतिकवादी संस्कृति के साथ व्यापारिक रूचि वाले समुदाय मौज़ूद थे। जैसे नाव की मुहरें, लोथल में डॉकयार्ड आदि के साक्ष्य मिले हैं।
- शैक्षिक समाज, समान नियम-विनियम और मानक (जैसे IVC के सभी शहरों में ईंटों का एक समान आकार) इसे आधुनिक बनाता है।
- शासकों का समाजवादी दृष्टिकोण (जैसे सार्वजनिक विशाल स्नानागार, अन्नागार आदि का निर्माण) आधुनिक समाज के परिचायक थे।
निष्कर्ष:
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली सामग्रियों और उनके द्वारा बनाए गए विभिन्न उपकरण उनकी कलात्मक उत्कृष्टता को प्रदर्शित करते हैं। इस समय के लेखों के प्रतिरूप और डिजाइन के साथ उत्खनन किये गए साक्ष्यों को देखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सिंधु सभ्यता के लोग वास्तविक अर्थों में सभ्य लोग थे।
उत्तर: 2
दृष्टिकोण:
- पूर्व और उत्तर वैदिक समाज का परिचय दीजिये।
- प्राचीन भारत में वैदिक काल की सामाजिक-राजनीतिक संरचना की चर्चा कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
|
परिचय:
- वैदिक काल 1500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच था। यह 1400 ईसा पूर्व में सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के साथ प्राचीन भारत में विकसित हुई प्रमुख सभ्यता है।
- कालानुक्रमिक रूप से वैदिक काल को पूर्व वैदिक काल (1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व) और उत्तर वैदिक काल (1000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व) के बीच विभाजित किया गया है।
- प्रारंभ में वैदिक आर्य "सप्त सिंधु" (सात नदियों की भूमि) के रूप में जानी जाने वाली भूमि पर रहते थे। ये सात नदियाँ थीं: सिंधु (सिंधु), विपाशा (व्यास), वितस्ता (झेलम), परुष्णी (रावी), असिक्नी (चेनाब), शुतुद्री (सतलुज) और सरस्वती।
- उत्तर वैदिक काल में आर्य पूर्व की ओर चले गए और पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश (कौशल) और बिहार पर कब्जा कर लिया।
प्राचीन भारत में वैदिक काल की सामाजिक-राजनीतिक संरचना:
- पूर्व वैदिक काल में राजनीतिक संरचना में शासन का राजशाही रूप शामिल था जिसमें राजा को राजन के नाम से जाना जाता था। राजा या राजन का पद वंशानुगत होता था। लेकिन राजन द्वारा असीमित शक्ति का प्रयोग नहीं किया जाता था।
- इस काल में राजा, समाज और उनके मवेशियों का रक्षक होता था, उनके लिये युद्ध लड़ता था और उनके कल्याण हेतु उन्मुख रहता था।
- साथ ही इस काल में समिति नामक सभा द्वारा राजा के चुनाव के भी साक्ष्य मिले हैं।
- ऋगवैदिक काल में पितृसत्तात्मक परिवारों में, ‘जन’ सबसे बड़ी सामाजिक इकाई थी। सामाजिक समूह का श्रेणीबद्ध विभाजन कुल (परिवार) - ग्राम - विश - जन के रूप में किया गया था।
- 'सभा' शब्द ऋगवैदिक काल में एक समूह को संदर्भित करता है। 'जन' के बड़े सदस्यों द्वारा 'सभा' में भाग लिया जाता था। इस सभा में 'सभावती' के नाम से जानी जाने वाली महिलाओं ने भी भाग लिया था। हालाँकि उत्तर वैदिक काल में महिलाओं ने 'सभा' में भाग लेना बंद कर दिया था।
- 'सभा' में संगीत, नृत्य और जादू-टोना के साथ-साथ जुआ भी खेला जाता था। इस सभा द्वारा प्रशासनिक और न्यायिक कार्य किये जाने के साथ दैनिक जीवन के मामलों पर चर्चा की जाती थी।
- समिति, एक राजनीतिक संगठन और निर्णय लेने वाली संस्था थी। राजा, सभा और समिति का समर्थन हासिल करने के लिये उत्सुक रहते थे।
- लोगों की सभा में किये जाने वाले राजनीतिक कार्य और विचार-विमर्श को 'समिति' द्वारा निष्पादित किया जाता था। राजनीतिक कार्य के अलावा, 'समिति' दार्शनिक मुद्दों पर भी चर्चा करती थी। सभा में प्रार्थना और धार्मिक समारोह प्रमुख विषय के रुप में शामिल होते थे। हालाँकि, इस सभा को पूर्व वैदिक काल के अंत में जाकर महत्त्व मिला।
- विदथ: यह सबसे पुरानी जनजातीय सभा थी। ऋग्वेद में ‘विदथ’ शब्द का 122 बार उल्लेख हुआ है और इसलिये यह सबसे महत्त्वपूर्ण सभा प्रतीत होती है। इस सभा का उद्देश्य धर्मनिरपेक्ष, सैन्य, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक उद्देश्यों के लिये निर्णय लेना था। इन सभाओं में महिलाओं की समान भागीदारी थी।
- विभिन्न कुलों और कबीलों ने अपने देवताओं की पूजा के लिये ‘विदथ’ का एक सामान्य आधार के रूप में इस्तेमाल किया।
- समाज में महिलाओं को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। उन्हें सभाओं और समितियों में भाग लेने की अनुमति थी। इस काल में महिला कवियित्री भी थीं (अपाला, लोपामुद्रा, विश्ववारा और घोषा)। मवेशी (विशेषकर गाय) को प्रमुख पूँजी माना जाता था। पूर्व वैदिक समाज में एकल विवाह प्रथा का प्रचलन था लेकिन राजघरानों और कुलीन परिवारों में बहुविवाह प्रथा देखी जाती थी। इस समय बाल विवाह निषिद्ध था और सामाजिक भेदभाव मौजूद तो थे लेकिन कठोर और वंशानुगत नहीं थे।
- उत्तर वैदिक काल में प्रदेशों की अवधारणा विकसित हुई और इसे राष्ट्र नाम दिया गया। राजा या 'राजन' का 'जनपद' या 'राष्ट्र' पर अधिकार रहता था।
- इस काल में महिलाओं को अधिकांश राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में भाग लेने से वंचित कर दिया गया था एवं सभा और समिति में प्रभावशाली लोगों का प्रभुत्व स्थापित हो गया था।
- पूर्व में युद्ध मवेशियों के लिये लड़े जाते थे; हालाँकि इस काल में, भूमि के लिये युद्ध लड़े जाने लगे।
- विशेष क्षेत्र में राजाओं के शासन को प्रदर्शित करने के लिये वाजपेय, अश्वमेघ आदि जैसे अनुष्ठान किये जाने लगे और राजनीतिक संगठनों की लोकतांत्रिक स्थिति का पतन हुआ।
निष्कर्ष:
उत्तर वैदिक काल में राजनीतिक संस्थानों के पतन और धार्मिक कर्मकांड के उदय के कारण जैन धर्म, बौद्ध धर्म और आजीवक जैसे उदार संप्रदायों का उदय हुआ जिन्होंने उस समय के सामाजिक-धार्मिक और राजनीतिक विचारों का एक अलग दृष्टिकोण रखा। विकास के इस क्रम में गंगा घाटी में प्राचीन भारत के सबसे समृद्ध साम्राज्य का विकास हुआ।