Sambhav-2023

दिवस- 34

प्रश्न.1 पाषाण काल से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्वपूर्ण चरणों की चर्चा कीजिये। पाषाण काल के मानव से आधुनिक मानव क्या सीख सकता है? (150 शब्द)

प्रश्न.2 ताम्रपाषाणिक संस्कृति/बस्ती क्या है। ताम्रपाषाणिक संस्कृति की सीमाओं की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

17 Dec 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

उत्तर: 1

दृष्टिकोण:

  • पाषाण काल का परिचय दीजिये।
  • पाषाण काल के महत्त्वपूर्ण चरणों की चर्चा कीजिये और यह भी उल्लेख कीजिये कि पाषाण काल के लोगों से आधुनिक मानव क्या सीख सकता है?
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

पाषाण काल उस अवधि को संदर्भित करता है जब पत्थर का उपयोग उपकरण बनाने के लिये किया जाता था। इस काल को तीन चरणों में विभाजित किया गया है:

  • पुरापाषाण काल : अवधि - 500,000 - 10,000 ईसा पूर्व
  • मध्यपाषाण काल : अवधि - 10,000 - 6000 ईसा पूर्व
  • नवपाषाण काल: अवधि - 6000 - 1000 ईसा पूर्व

मुख्य भाग:

पुरापाषाण काल के चरण:

  • भारत में पुरापाषाण काल को लोगों द्वारा उपयोग किये जाने वाले पत्थर के औजारों की प्रकृति के अनुसार तीन चरणों में विभाजित किया गया है।
  • पहले चरण को प्रारंभिक या निम्न पुरापाषाण (500,000 ईसा पूर्व से 50,000 ईसा पूर्व), दूसरा मध्य पुरापाषाण (50,000 ईसा पूर्व से 40,000 ईसा पूर्व) और तीसरा उच्च पुरापाषाण (40,000 ईसा पूर्व से 10,000 ईसा पूर्व) के रुप में जाना जाता है।
  • कुल्हाड़ियों, चॉपर्स, फ्लेक्स का उपयोग इसकी विशेषताएँ हैं और इस काल के प्रमुख उपकरण में फ्लेक्स से बने ब्लेड, पॉइंट्स, बोरर्स और स्क्रेपर्स शामिल हैं।

ध्यपाषाण काल: शिकारी और चरवाहे

  • यह पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल के बीच का संक्रमणकालीन चरण है। मध्यपाषाण काल के लोग शिकार करने के साथ मछली पकड़ने और खाद्य संग्रहण पर निर्भर थे, बाद में उन्होंने जानवरों को भी पालतू बनाया।

नवपाषाण काल:खाद्य उत्पादक

  • इस काल के लोग पॉलिशयुक्त पत्थर के औज़ारों और पत्थर की कुल्हाड़ियों का इस्तेमाल करते थे। इस काल का एक महत्त्वपूर्ण स्थल बुर्जहोम है जो श्रीनगर से 16 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित है। नवपाषाण काल के लोग झील के किनारे गड्ढों में रहते थे और संभवतः इनकी अर्थव्यवस्था शिकार और मछली पकड़ने पर आधारित थी। ऐसा भी प्रतीत होता है कि वे कृषि से परिचित थे।

पाषाण काल के लोगों से आधुनिक मानव निम्नलिखित गुण सीख सकता है:

  • प्रकृति का सम्मान करना और हर जीव को समान महत्त्व देना। पर्यावरण केंद्रित दृष्टिकोण विकसित करना।
  • आने वाली पीढ़ियों के स्वस्थ जीवन और समृद्धि को ध्यान में रखते हुए सतत जीवन शैली को अपनाना।
  • प्राचीन कला, संस्कृति और अन्य मूर्त विरासत को संरक्षित करना।

निष्कर्ष:

पाषाण काल के मानव की एक प्रमुख सीमा लगभग पूरी तरह से पत्थर से बने औजारों और हथियारों पर निर्भर रहना था, जिस कारण वे पहाड़ी क्षेत्रों से दूर बस नहीं सकते थे। वे केवल पहाड़ियों की ढलानों, शैल आश्रयों और पहाड़ी नदी घाटियों में ही बस सकते थे। इसके अलावा बहुत प्रयास करने पर भी, वे अपने निर्वाह के लिये जितनी आवश्यकता होती थी उससे अधिक उत्पादन नहीं कर सकते थे।


उत्तर: 2

दृष्टिकोण:

  • ताम्रपाषाणिक संस्कृति का परिचय दीजिये।
  • ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशिष्टताओं पर चर्चा कीजिये और इसकी सीमाओं पर भी चर्चा कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

  • नवपाषाण काल ​​के अंत में धातुओं का उपयोग देखा गया। इस समय कई संस्कृतियाँ ताँबे और पत्थर के औजारों के उपयोग पर आधारित थीं।
  • जैसा कि नाम से संकेत मिलता है- ताम्रपाषाण (ताम्र = ताँबे और पाषाण= पत्थर) काल में धातु और पत्थर दोनों का उपयोग दैनिक जीवन की वस्तुओं के निर्माण के लिये किया जाता था।
  • ताम्रपाषाण संस्कृतियों ने कांस्य युगीन हड़प्पा संस्कृति का अनुसरण किया। इसकी समय अवधि लगभग 2500 ईसा पूर्व से 700 ईसा पूर्व तक थी।

मुख्य भाग:

मुख्य विशेषताएँ: विभिन्न क्षेत्र की ताम्रपाषाण संस्कृतियों को सिरेमिक और अन्य सांस्कृतिक उपकरणों जैसे तांँबे की कलाकृतियों, अर्द्ध-कीमती पत्थरों के मोतियों, पत्थर के औजारों और टेराकोटा मूर्तियों में देखी गई कुछ मुख्य विशेषताओं के अनुसार परिभाषित किया गया था।

  • ग्रामीण बस्तियाँ: इस समय अधिकांश लोग ग्रामीण थे और पहाड़ियों एवं नदियों के पास रहते थे। ताम्रपाषाण काल के लोग शिकार, मछली पकड़ने और कृषि पर आश्रित थे।
  • क्षेत्रीय भिन्नता: इस काल में सामाजिक संरचना, अनाज और मिट्टी के बर्तनों में क्षेत्रीय अंतर दिखाई देते हैं।
  • प्रवासन: जनसंख्या के प्रवासन और प्रसार को अक्सर ताम्रपाषाण काल की विभिन्न संस्कृतियों की उत्पत्ति के कारणों के रूप में उद्धृत किया जाता है।
  • भारत में प्रथम धातु युग: चूँकि यह भारत में प्रथम धातु युग की शुरुआत थी इसलिये ताँबे और इसकी मिश्र धातु कांसा (जो कम तापमान पर पिघल जाती थी) इस अवधि के दौरान विभिन्न वस्तुओं के निर्माण में उपयोग की जाती थी।
  • कला और शिल्प: ताम्रपाषाण संस्कृति की विशेषता पहिया एवं मिट्टी के बर्तन थे जो ज़्यादातर लाल और नारंगी रंग के होते थे।
    • ताम्रपाषाण काल के लोगों द्वारा विभिन्न प्रकार के मृदभांडों का प्रयोग किया जाता था। काले और लाल मृदभांड काफी प्रचलित थे।
    • वे पशुपालन के साथ झूम कृषि करते थे।

ताम्रपाषाणिक संस्कृति की सीमाएँ:

  • ये मवेशियों का उपयोग केवल माँस के लिये करते थे न कि दूध और कृषि के लिये।
    • ये जानवरों से पूरा लाभ प्राप्त नहीं कर सके।
  • ये काली कपास मृदा के क्षेत्र में रहते थे लेकिन इन्होंने गहन कृषि नहीं की।
  • यह झूम कृषि करते थे।
  • महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में बच्चों को दफनाने के साक्ष्य मिले हैं जो उच्च शिशु मृत्यु दर और निम्न चिकित्सा और स्वच्छता को दर्शाता है।
  • ताम्रपाषाण संस्कृति, शहरी हड़प्पा सभ्यता (IVC) के विपरीत एक ग्रामीण संस्कृति थी।
  • ताम्रपाषाण संस्कृति के लोग कांस्य से परिचित नहीं थे और लेखन के बारे में भी नहीं जानते थे।
  • ताम्रपाषाण संस्कृति के लोगों ने उन्नत सिंधु घाटी सभ्यता से कोई लाभ नहीं उठाया था ।

निष्कर्ष:

दक्षिण भारत में लोहे के उपयोग से ताम्रपाषाण संस्कृति, महापाषाण संस्कृति में परिवर्तित हो गई थी और पूर्वी भारत में इस संस्कृति के विकास के रुप में लौह युग से कृषि को बढ़ावा मिला।