प्रश्न.1 ‘संस्कृति’ पहचान, नवाचार और रचनात्मकता का एक स्रोत है। चर्चा कीजिये कि यह किस प्रकार आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण होने के साथ सामाजिक एकता और स्थिरता की वाहक है। (250 शब्द)
प्रश्न.2 भारत के विरासत स्थलों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये। सुझाव दीजिये कि जलवायु कार्रवाई को विरासत संरक्षण से कैसे संबद्ध किया जा सकता है। (250 शब्द)
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
उत्तर 1:
दृष्टिकोण:
- सांस्कृतिक विरासत को परिभाषित करते हुए परिचय दीजिये।
- चर्चा कीजिये कि यह किस प्रकार आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण होने के साथ सामाजिक एकता और स्थिरता की वाहक है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
सांस्कृतिक विरासत में परंपराएँ, प्रथाएँ, स्थान, कलाकृतियाँ, रचनात्मक अभिव्यक्तियाँ और मूल्य शामिल होते हैं। यह जीवन के उन आयामों का प्रतिनिधित्व है जो किसी समुदाय ने पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थापित किये हैं। मूर्त सांस्कृतिक विरासत में भवन, स्मारक और कलाकृतियाँ शामिल होती हैं। लोकगीत, रीति-रिवाज, भाषा और प्राकृतिक विरासत (महत्त्वपूर्ण परिदृश्य और जैव विविधता का सांस्कृतिक महत्त्व), अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के भाग हैं।
मुख्य भाग:
संस्कृति अपने सभी आयामों में सतत विकास का एक मूलभूत घटक है। गतिविधि के एक क्षेत्र के रूप में मूर्त और अमूर्त विरासत, रचनात्मक उद्योगों और कलात्मक अभिव्यक्तियों के विभिन्न रूपों के माध्यम से, संस्कृति आर्थिक विकास, सामाजिक स्थिरता और पर्यावरण संरक्षण में निर्णायक है।
ज्ञान, परंपरा और मूल्यों के भंडार के रूप संस्कृति स्थानीय और वैश्विक दोनों स्तरों पर मनुष्य के जीने के तरीके को भी परिभाषित करती है।
समावेशिता में संस्कृति की भूमिका: संस्कृति ऐसा माध्यम है जिसके अनुसरण से व्यक्ति स्वयं को परिपूर्ण करने हेतु प्रयासरत रहता है। इस प्रकार यह विकास का एक अभिन्न अंग है।
- सांस्कृतिक रूपों और स्थानीय प्रथाओं से संबंधित आजीविका के पारंपरिक कौशल और ज्ञान का पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरण होता है।
- वैश्विक नैतिकता जो मानव अधिकारों को बढ़ावा देते हुए सांस्कृतिक बहुलवाद पर बल देती है, लैंगिक समानता और लोकतंत्र सहित सभी व्यक्तियों और समूहों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- ज्ञान के प्रसार से वैश्विक नैतिकता के विपरीत हानिकारक प्रथाओं में कमी आने के साथ रचनात्मकता, नवाचार और व्यक्तियों और समूहों के बौद्धिक विकास को बढ़ावा मिलता है। जिससे विशिष्ट सांस्कृतिक रूपों के बीच समन्वय को बढ़ावा मिलता है।
आर्थिक विकास के वाहक के रुप में संस्कृति:
- संस्कृति आधारित उद्योग: संस्कृति एक शक्तिशाली वैश्विक आर्थिक इंजन है। वैश्विक सांस्कृतिक उद्योग की वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 7% की भागीदारी है। हालांकि सांस्कृतिक उद्योगों को सक्षम करने के लिये बुनियादी ढाँचे में निवेश की आवश्यकता होती है।
- पारंपरिक आजीविका: सांस्कृतिक आजीविका प्रथाएँ एवं स्थानीय ज्ञान से स्थानीय आर्थिक विकास होने के साथ रोजगार सृजित होते हैं। इसमें निर्माण शिल्प से लेकर कृषि और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन शामिल हो सकते हैं।
- सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से आर्थिक विकास के अवसर: सांस्कृतिक वस्तुओं और सेवाओं हेतु समुदाय के भीतर उपलब्ध संसाधन और कौशल निर्माण के लिये कम पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। इस क्रम में महिलाओं को लाभ पहुँचाने वाले माइक्रो-क्रेडिट उद्यमों की सफलताएँ विशेष रूप से मूल्यवान रही हैं।
- सांस्कृतिक पर्यटन: सांस्कृतिक पर्यटन की वैश्विक पर्यटन राजस्व में लगभग 40% की हिस्सेदारी है। यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों, समुदायों के लिये रोजगार पैदा करने वाले स्थानीय शिल्प, संगीत और सांस्कृतिक उत्पादों से राजस्व का उत्पादन होता है।
- सांस्कृतिक बुनियादी ढाँचा और संस्थान: विश्वविद्यालय, संग्रहालय, सांस्कृतिक केंद्र, सिनेमा, थिएटर, शिल्प केंद्र और ऐसे अन्य संस्थान रोजगार और राजस्व के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
सामाजिक एकता और स्थिरता के वाहक के रुप में संस्कृति:
- संस्कृतियों के बीच विविधता के पारस्परिक समन्वय से सकारात्मक और रचनात्मक वातावरण बनता है। संवाद से आपसी समझ, ज्ञान, मेल-मिलाप और शांति को बढ़ावा मिलता है, जो सामाजिक स्थिरता के लिये आवश्यक हैं।
- संस्कृति की पुनर्रचनात्मक शक्ति: संघर्ष की स्थिति में अंतर्सांस्कृतिक संवाद से शांति और सुलह की संभावनाएँ बनती हैं। आपदा के बाद की स्थिति में संस्कृति अपने सभी रूपों में समुदायों के बाधित जीवन को फिर से सही करने और मनोवैज्ञानिक कल्याण को बहाल करने में सहायक है।
- सांस्कृतिक विरासत की प्रतीकात्मक शक्ति: संस्कृति आशा का एक अच्छा स्रोत है, जो अपनेपन की भावना को मजबूत करती है। सांस्कृतिक पर्यटन के माध्यम से सामाजिक एकता में वृद्धि होती है। सांस्कृतिक विरासत से आय उत्पन्न होने के साथ सामाजिक सामंजस्य में वृद्धि होती है। सांस्कृतिक उत्सव से भी संवाद को बढ़ावा मिलता है।
- महिलाओं का सशक्तिकरण: अंतर-सांस्कृतिक संवाद, मौजूद अंतर के सम्मान पर ध्यान केंद्रित करने के साथ महिलाओं को 'मूल्य वाहक' और 'मूल्य निर्माता' दोनों के रूप में उनकी भूमिका को स्वीकार करके सशक्त बनाता है।
- SDGs को प्राप्त करने के लिये सक्षम वातावरण तैयार करना: इससे संघर्ष को रोककर, शांति स्थापित करके, महिलाओं और हाशिए के समूहों के अधिकारों की रक्षा करके, अंतर्सांस्कृतिक संवाद सुनिश्चित हो सकता है।
निष्कर्ष:
सांस्कृतिक विविधता से समृद्ध और विविधतपूर्ण विश्व का मार्ग प्रशस्त होता है जिससे न केवल लोगों के बीच समन्वय में वृद्धि होती है बल्कि मानवीय क्षमताओं के साथ मूल्यों का पोषण होता है। इसलिये यह समुदायों, लोगों और राष्ट्रों के लिये सतत विकास का एक मुख्य स्रोत है।
उत्तर 2:
दृष्टिकोण:
- भारत की सांस्कृतिक समृद्धि का परिचय दीजिये।
- भारत के विरासत स्थलों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और बताइए कि जलवायु कार्रवाई को विरासत संरक्षण से कैसे जोड़ा जा सकता है।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
भारत की समृद्ध विरासत है और यह पुरातात्विक संपत्तियों और स्मारकों से समृद्ध है। यह सभ्यता की एक अनूठी विरासत का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिये विरासत का संरक्षण आमतौर पर समाज के दीर्घकालिक हित में माना जाता है।
लेकिन भारत के अधिकांश स्थापत्य धरोहर और स्थल अज्ञात तथा काफी हद तक असंरक्षित बने रहे हैं और जो संरक्षित हैं, वे भी जलवायु परिवर्तन एवं असंवहनीय पर्यटन से संबद्ध चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इस परिदृश्य में भारतीय धरोहर से संबंधित मुद्दों को सावधानी से चिह्नित किया जाना चाहिये और व्यापक तरीके से इसका समाधान किया जाना चाहिये।
मुख्य भाग:
भारत में धरोहर संरक्षण से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ:
- प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन: हमारे धरोहर स्थलों के समक्ष प्रदूषण एक प्रमुख समस्या है और भारत अभी भी कुछ प्रमुख स्मारक जैसे ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिये संघर्षरत है।
- अभी हाल में देश के विभिन्न हिस्सों में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ की स्थिति का सामना करना पड़ा है जिससे कई प्रमुख धरोहर स्थल क्षेत्र भी प्रभावित हुए हैं।
- ओडिशा में पुरी और कर्नाटक में हम्पी, ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण धरोहर स्थलों के क्षतिग्रस्त होने के कुछ नवीनतम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
- धरोहर स्थलों का अतिक्रमण: कई प्राचीन स्मारकों का स्थानीय निवासियों, दुकानदारों और विक्रेताओं द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है।
- इन संरचनाओं और स्मारकों या आसपास की स्थापत्य शैली के बीच कोई सामंजस्य नहीं है।
- दृष्टांत के लिये, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की 2013 की रिपोर्ट के अनुसार ताजमहल परिसर में खान-ए-आलम बाग़ के निकट अतिक्रमण बना हुआ है।
- पुरातात्त्विक स्थलों का अतिदोहन: विकासात्मक गतिविधियों से भारत में कलाकृतियों के समृद्ध भंडार वाले कई पुरातात्त्विक स्थलों का दोहन हुआ है।
- इसके अतिरिक्त विकासात्मक परियोजनाओं के कार्यान्वयन से पूर्व सांस्कृतिक संपत्तियों के प्रबंधन का उचित प्रावधान न होने से यह समस्या और भी गहन हो जाती है।
- धरोहर स्थलों के लिये डेटाबेस का अभाव: भारत में धरोहर संरचनाओं के राज्यवार वितरण के साथ इससे संबंधित राष्ट्रीय स्तर के डेटाबेस का अभाव है।
- हालाँकि ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज़’ (INTACH) ने 150 शहरों में लगभग 60,000 इमारतों को सूचीबद्ध किया है लेकिन यह मामूली प्रयास ही माना जा सकता है, देश में 4000 से अधिक धरोहर क़स्बे और शहर मौजूद हैं।
- मानव संसाधन की कमी: स्मारकों की देखभाल और संरक्षण गतिविधियों के लिये कुशल एवं सक्षम मानव संसाधन की पर्याप्त संख्या की कमी ASI जैसी एजेंसियों के सामने सबसे बड़ी समस्या है।
जलवायु कार्रवाई को विरासत संरक्षण से निम्नलिखित तरीकों से संवद्ध किया जा सकता है:
- उत्खनन और संरक्षण नीति की पुनर्कल्पना: प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ बदलते परिदृश्य के आलोक में ASI को अपनी उत्खनन नीति को अद्यतन करने की आवश्यकता है।
- प्रलेखन, सर्वेक्षण, उत्खनन और संरक्षण हेतु फोटोग्रामेट्री एवं 3D लेज़र स्कैनिंग, LiDAR और उपग्रह रिमोट सेंसिंग सर्वेक्षण जैसी नई प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिये।
- ‘स्मार्ट सिटी, स्मार्ट हेरिटेज’: सभी बड़ी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये धरोहर प्रभाव आकलन पर विचार करना आवश्यक है।
- धरोहर पहचान और संरक्षण परियोजनाओं को शहर के मास्टर प्लान से जोड़ने और स्मार्ट सिटी पहल के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- संलग्नता बढ़ाने के लिये अभिनव रणनीतियाँ: ऐसे स्मारक जो बड़ी संख्या में आगंतुकों को आकर्षित नहीं करते हैं और सांस्कृतिक/धार्मिक रूप से संवेदनशील नहीं हैं, सांस्कृतिक एवं विवाह कार्यक्रमों आदि के आयोजन स्थल के रूप में उपयोग किये जा सकते हैं। जो निम्नलिखित दोहरे उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं:
- संबंधित अमूर्त धरोहर का प्रचार होगा।
- ऐसे स्थलों पर आगंतुकों की संख्या को बढ़ावा मिलेगा।
- कॉर्पोरेट धरोहर उत्तरदायित्व (Corporate Heritage Responsibility): कंपनियों को कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के एक अंग के रूप में स्मारकों के पुनरुद्धार और संरक्षण के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- जलवायु कार्रवाई के साथ धरोहर संरक्षण को संबद्ध करना: धरोहर स्थल, जलवायु जागरूकता और संबंधित शिक्षा के अवसरों के रूप में कार्य कर सकते हैं। इसके साथ ही बदलती जलवायु स्थितियों के संबंध में पिछली प्रतिक्रियाओं को समझने के लिये ऐतिहासिक स्थलों एवं इनसे संबंधित क्रियाकलापों पर शोध से अनुकूलन एवं शमन योजनाकारों को ऐसी रणनीतियाँ विकसित करने में मदद मिल सकती है जो प्राकृतिक विज्ञान और सांस्कृतिक विरासत को एकीकृत करती हैं।
- उदाहरण के लिये, माजुली द्वीप के समुदायों जैसे तटीय और नदीवासी समुदाय सदियों से बदलते जल स्तर के साथ रह रहे हैं और इसके अनुकूल बन रहे हैं।
निष्कर्ष:
विरासत, भौतिक कलाकृतियों और अमूर्त विशेषताओं का ऐसा आयाम होती है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी विकसित और स्थानांतरित होती है। यह आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक महत्त्व के साथ भारतीय समाज के ताने-बाने में विकसित हुई हैं। विभिन्न समुदायों की रीति-रिवाजों, परंपराओं, धर्मों, संस्कृतियों, विश्वासों, भाषाओं और सामाजिक व्यवस्थाओं की इस भारतीय विविधता के समन्वय हेतु सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए विश्व की सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को अपनाना होगा।